स्वरगोष्ठी – ८५ में आज
जिनके सितार-तंत्र बजते ही नहीं गाते भी थे
जिनके सितार-तंत्र बजते ही नहीं गाते भी थे
अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सितारनवाज उस्ताद विलायत खाँ का जन्म २८अगस्त, १९२८ को तत्कालीन पूर्वी बंगाल के गौरीपुर नामक स्थान पर एक संगीतकार परिवार में हुआ था। उनके पिता उस्ताद इनायत खाँ अपने समय के न केवल सुरबहार और सितार के विख्यात वादक थे, बल्कि सितार वाद्य को विकसित रूप देने में भी उनका अनूठा योगदान था। उस्ताद विलायत खाँ के अनुसार सितार वाद्य प्राचीन वीणा का ही परिवर्तित रूप है। इनके पितामह (दादा) उस्ताद इमदाद खाँ अपने समय के रुद्रवीणा-वादक थे। उन्हीं के मन में सबसे पहले सितार में तरब के तारों को जोड़ने का विचार आया था, किन्तु इसे पूरा किया, विलायत खाँ के पिता इनायत खाँ ने। उन्होने संगीत-वाद्यों के निर्माता कन्हाई लाल के माध्यम से इस स्वप्न को साकार किया। सितार के ऊपरी हिस्से पर दूसरा तुम्बा लगाने का श्रेय भी इन्हें है।
उस्ताद विलायत खाँ की आरम्भिक संगीत-शिक्षा उनके पिता इनायत खाँ साहब से प्राप्त हुई थी। परन्तु जब वे मात्र १२ वर्ष के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। बाद में उनके चाचा वाहीद खाँ ने उन्हें सितार-वादन की शिक्षा दी। नाना बन्दे हुसेन खाँ और मामू जिन्दे हुसेन खाँ से उन्हें गायन की शिक्षा प्राप्त हुई। इनकी शिक्षा के प्रभाव से ही आगे चल कर उस्ताद विलायत खाँ ने गायकी अंग में अपने सितार-वादन को विकसित किया। आइए यहाँ थोड़ा रुक कर उनके सितार-वादन का एक उत्कृष्ट उदाहरण सुनते हैं। आपके लिए हमने सबसे पहले उस्ताद विलायत खाँ का बजाया राग शंकरा चुना है। बिलावल थाट, षाडव जाति के इस राग में खाँ साहब द्वारा तीनताल में प्रस्तुत एक मधुर रचना और अन्त में अति द्रुत लय में झाला वादन का रसास्वादन आप भी करें। राग शंकरा की एक अत्यन्त प्रचलित बन्दिश है- ‘अब मोरी आली कैसे धरूँ धीर...’। खाँ साहब का वादन सुनते जाइए और साथ-साथ यह बन्दिश भी गुनगुनाते जाइए।
राग शंकरा : उस्ताद विलायत खाँ
उस्ताद विलायत खाँ के सितार-वादन में तंत्रकारी कौशल के साथ-साथ गायकी अंग की स्पष्ट झलक मिलती है। सितार वाद्य को गायकी अंग से जोड़ कर उन्होने अपनी एक नई वादन शैली का सूत्रपात किया था। वादन करते समय उनके मिज़राब के आघात से ‘दा’ के स्थान पर ‘आ’ की ध्वनि का स्पष्ट आभास होता है। उनका यह प्रयोग, वादन को गायकी अंग से जोड़ देता है। खाँ साहब ने सितार के तारों में भी प्रयोग किए थे। सबसे पहले उन्होने सितार के जोड़ी के तारॉ में से एक तार निकाल कर एक पंचम स्वर का तार जोड़ा। पहले उनके सितार में पाँच तार हुआ करते थे। बाद में एक और तार जोड़ कर संख्या छह कर दी थी। अपने वाद्य और वादन शैली के विकास के लिए वे निरन्तर प्रयोगशील रहे। एक अवसर पर उन्होने स्वीकार भी किया था कि वर्षों के अनुभव के बावजूद अपने हर कार्यक्रम को एक चुनौती के रूप में लेते थे और मंच पर जाने से पहले दुआ माँगते थे कि इस इम्तहान में भी वो अव्वल पास हों। आइए अब आप सुनिए, उस्ताद विलायत खाँ का बजाया, राग गारा। इस रचना में तबला संगति उस्ताद ज़ाकिर हुसेन ने की है।
राग गारा : उस्ताद विलायत खाँ
उस्ताद विलायत खाँ की उम्र तब मात्र बारह वर्ष थी जब उनके वालिद उस्ताद इनायत खाँ का इंतकाल हुआ था। आगे की संगीत-शिक्षा नाना बन्दे हुसेन खाँ और मामू जिन्दे हुसेन खाँ ने उन्हें दी। यह गायकों का घराना था। आरम्भ में विलायत खाँ का झुकाव गायन की ओर ही था, किन्तु उनकी माँ ने उन्हें अपनी खानदानी परम्परा निभाने के लिए प्रेरित किया। गायन की ओर उनके झुकाव के कारण ही आगे चल कर उन्होने अपने वाद्य को गायकी अंग के अनुकूल परिवर्तित करने का सफल प्रयास किया। यही नहीं, अपने मंच-प्रदर्शन के दौरान प्रायः गाने भी लगते थे। १९९३ में लन्दन के रॉयल फेस्टिवल हॉल में आयोजित एक कार्यक्रम में खाँ साहब ने राग हमीर के वादन के दौरान पूरी बन्दिश का गायन भी प्रस्तुत कर दिया था। लीजिए आप भी सुनिए।
राग हमीर : ‘अचानक मोहें पिया आके जगाये...’ : उस्ताद विलायत खाँ राग
उस्ताद विलायत खाँ ने कुछेक विश्वविख्यात फिल्मों में भी संगीत दिया था। १९५८ में निर्मित सत्यजीत रे की बांग्ला फिल्म ‘जलसाघर’, १९६९ में मर्चेन्ट आइवरी की फिल्म ‘दि गुरु’ और १९७६ में मधुसूदन कुमार द्वारा निर्मित हिन्दी फिल्म ‘कादम्बरी’, उस्ताद विलायत खाँ के संगीत से सुसज्जित था। वे वास्तव में सरल, सहज और सच्चे कलासाधक थे। जन्मदिवस के अवसर पर उनकी स्मृतियों को यह स्वरांजलि अर्पित करते हुए हम सब स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। आइए, ‘स्वरगोष्ठी’ की आज की कड़ी को विराम देने से पहले संगीत-मंच की परम्परा का निर्वहन करते हुए, उस्ताद विलायत खाँ द्वारा प्रस्तुत राग भैरवी की मधुर रचना सुनवाते है। इसे सुन कर आपका मन उन्नीसवीं शताब्दी के महान संगीतज्ञ और रचनाकार कुँवरश्याम की बेहद चर्चित ठुमरी- ‘बाट चलत मोरी चुनरी रंग डारी श्याम...’ गुनगुनाने का अवश्य करेगा।
राग भैरवी : उस्ताद विलायत खाँ
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ की आज की संगीत-पहेली में हम पूर्व की भाँति संगीत प्रस्तुति का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछेंगे। ९०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले प्रतिभागी श्रृंखला के विजेता होंगे।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह तराना किस राग में निबद्ध है?
२ - इस गीत की गायिका के स्वर आपने शास्त्रीय मंच के अलावा अनेकानेक बार सुना है। तो देर किस बात की, गायिका का नाम हमें लिख भेजें।
२ - इस गीत की गायिका के स्वर आपने शास्त्रीय मंच के अलावा अनेकानेक बार सुना है। तो देर किस बात की, गायिका का नाम हमें लिख भेजें।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ८३वें अंक में हमने आपको पण्डित विनायक राव पटवर्धन के स्वर में एक दुर्लभ बन्दिश का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग जयन्ती अथवा जयन्त मल्हार और दूसरे का सही उत्तर है- तीनताल। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर एकमात्र प्रतिभागी, जबलपुर की क्षिति तिवारी ने ही दिया है। मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने राग का नाम पहचानने में भूल की, अतः उन्हें एक अंक से ही सन्तोष करना होगा। विजेताओं को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ की विभिन्न कड़ियों को तैयार कराते समय हम आपके सुझावों और फरमाइशों का पूरा ध्यान रखते हैं। तो देर किस बात की, आज ही अपने सुझाव हमें मेल करें। ‘स्वरगोष्ठी’ के कई संगीत-प्रेमी और कलासाधक स्वयं अपना या अपनी पसन्द का आडियो हमें निरन्तर भेज रहे है और हम विभिन्न कड़ियों में हम उनका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। यदि आपको कोई संगीत-रचना प्रिय हो और आप उसे सुनना चाहते हों तो आज ही अपनी फरमाइश हमें मेल कर दें। इसके साथ ही यदि आप इनसे सम्बन्धित आडियो ‘स्वरगोष्ठी’ के माध्यम से संगीत-प्रेमियों के बीच साझा करना चाहते हों तो अपना आडियो क्लिप MP3 रूप में भेज दें। हम आपकी फरमाइश को और आपके भेजे आडियो क्लिप को ‘स्वरगोष्ठी’ आगामी किसी अंक में शामिल करने का हर-सम्भव प्रयास करेंगे। आगामी अंक में हम एक ऐसी संगीत-साधिका के बारे में चर्चा करेंगे, जिन्हें आपने शास्त्रीय संगीत के मंच पर शायद न देखा हो, किन्तु वे बेहद लोकप्रिय हैं। अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित अपनी इस गोष्ठी में आप हमारे सहभागी बनिए। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
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