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रेशम की डोरी में छुपे अनगिनित एहसास शब्दों में गुंथे


शब्दों की चाक पर - एपिसोड 10

शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम - 



1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल यहाँ है.

2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपनी आवाज़ भरेंगें. और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें.

3. हमारी टीम अपने विवेक से सभी प्रतिभागी कवियों में से किसी एक कवि को उनकी किसी खास कविता के लिए सरताज कवि चुनेगें. आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से ये बताना है कि क्या आपको हमारा निर्णय सटीक लगा, अगर नहीं तो वो कौन सी कविता जिसके कवि को आप सरताज कवि चुनते. 

आज शैफाली गुप्ता और अभिषेक ओझा के साथ हम सुनते हैं कि हमारे कवि मित्र भाई बहन के अटूट रिश्ते को रेशम के नाज़ुक डोर से बाँध कर और मजबूती देते त्यौहार रक्षा बंधन को लेकर क्या विचार रख रहें हैं. स्क्रिप्ट है विश्व दीपक की, संचालन रश्मि प्रभा का, प्रस्तुति है अनुराग शर्मा और सजीव सारथी का. तो दोस्तों सुनिए सुनाईये और छा जाईये...

(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)


 या फिर यहाँ से डाउनलोड करें 

सूचना - इस हफ्ते हम कवितायेँ स्वीकार करेंगें "हमारे बुजुर्ग और हम" विषय पर. अपनी रचनाएँ आप उपर दिए रश्मि जी के पते पर भेज सकते हैं. गुरूवार शाम तक प्राप्त कवितायेँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

Comments

Archana Chaoji said…
वाह! क्या खूब रंग जमता जा रहा है ...आनंद आ गया...
मैंने हर बार पाया ... कोई कम नहीं और सबके अन्दर शिव की जटा है, जहाँ से गंगा निकलती है एहसासों की ...
बहुत बढ़िया ...राखी के रंग और आप सब का संग ..अलग सा अंदाज़ बहुत पसंद आया .,.शुक्रिया
अपने शब्दों को कविता रूप में सुन आँखों में फिर से आंसू आ गए .... रश्मि प्रभा जी ==== शैफाली गुप्ता जी ==== अभिषेक ओझा जी ==== अनुराग शर्मा जी का मैं तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ... आभारी हूँ .... सिर्फ धन्यवाद या शुक्रिया लिख देने से उनके अहसान कम ना होगें ....
poonam said…
bahut bahut sunder
Rajesh Kumari said…
बहुत बहुत प्यारा लगा ये एपिसोड रक्षाबंधन के खूबसूरत पर्व के जैसा सभी की सुन्दर रचनाओं को शेफाली और अभिषेक जी की मधुर आवाजों में सुनने का अलग ही एहसास है इस प्रोग्राम से जुड़े हुए हर सदस्य को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें
Jack Sparrow said…
ati sunder man bhavan ,dil ko choone vali rachnaye jin sun ker mun perfoolit hua
बहुत सुन्दर मजा आगया..प्रस्तुत प्रयास बहुत ही उत्साह वर्धक लगा..
vandana gupta said…
कितने खूबसूरत अन्दाज़ मे आप सब रचनायें प्रस्तुत करते हैं कि सुनने पर आनन्द द्विगुणित हो जाता है ………पूरी टीम बधाई की पात्र है।
बहुत सुन्दर.......बेहतरीन टीम वर्क...
आनंददायी..

अनु

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