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इस नवीन श्रृंखला का आरम्भ हम ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ के पहले आलेख से कर रहे हैं। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का स्वरूप आपके लिए तो प्रतियोगितात्मक है किन्तु ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालकों के लिए यह गैर-प्रतियोगी होगा। तो आइए, आरम्भ करते हैं, हमारे-आपके प्रिय स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी की देखी पहली फिल्म के अनुभव से। सुजॉय जी ने 1983-84 में देखी अपनी पहली फिल्म ‘आँचल’ का अनुभव इस आलेख के माध्यम से बाँटा है।
मैंने देखी पहली फिल्म - 1
हमें बेरोक-टोक फ़िल्में देखने की इजाज़त नहीं थी
हमें बेरोक-टोक फ़िल्में देखने की इजाज़त नहीं थी
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सुजॉय चटर्जी |
जैसा कि मैंने कहा कि यह फ़िल्म मैंने उस वक़्त देखी जब मैं 6-7 बरस का था। उस समय टेलीविज़न नहीं आया था (या यूँ कहें कि हमारे घर में नहीं आया था)। फ़िल्में देखने के लिए सिनेमाघर जाने के अलावा कोई दूसरा ज़रिया नहीं था। रेलवे कॉलोनी में रहने की वजह से हमारे घर के पास ही में 'रेलवे सीनियर इंस्टिट्यूट' था जहाँ एक ऑडिटोरियम और एक स्क्रीन भी हुआ करता था, वहीं पर कभी कभार फ़िल्में दिखाई जाती थी। जब यह फ़िल्म लगी तो कालोनी के हमारे पास-पड़ोस की कुछ महिलाओं ने फ़िल्म देखने का प्रोग्राम बनाया, और उनमें मेरी माँ भी शामिल थीं। इसलिए ज़ाहिर सी बात है कि माँ के साथ मेरा और मेरे बड़े भाई का जाना भी अत्यावश्यक था, वरना न माँ को चैन मिलता और न हम उन्हें चैन से जाने देते। वैसे आपको बता दूँ कि जब टेलीविज़न आया, तब हमें रविवार (बाद में शनिवार) शाम को प्रसारित होने वाली हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म देखने की अनुमति नहीं थी। इसलिए थिएटर जाकर इस फ़िल्म को देखने की घटना से आप यह न समझ लीजिएगा कि हमें बेरोक-टोक फ़िल्में देखने की इजाज़त थी। कतई नहीं। यह तो बस कालोनी के सारे लोग जा रहे थे, इसलिए माँ-पिताजी ने मना नहीं किया।
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लीजिए, प्रस्तुत है, सुजॉय चटर्जी की देखी पहली फिल्म 'आँचल' से उनका पसन्दीदा गीत- "भोर भये पंछी..."
हमारा यह प्रयास आपको कैसा लगा? हमें अवश्य लिखिएगा। आप अपनी प्रतिक्रिया cine.paheli@yahoo.com अथवा swargoshthi@gmail.com पर भेज सकते हैं।
आलेख - सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति – कृष्णमोहन मिश्र
Comments
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जब इस उम्र में आँचल जैसी फिल्म देखेंगे तो नींद तो आएगी ही न :)