शब्दों के चाक पर - एपिसोड 02
"शब्दों के चाक पर" के पहले एपिसोड को आप सब का भरपूर प्यार मिले, तो लीजिए दुगुने जोश से आज हम हाज़िर हैं इस अनूठे खेल का दूसरा एपिसोड लेकर. इस कार्यक्रम के निम्न चरण होंगें, कृपया समझ लें -
(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)
या फिर यहाँ से डाउनलोड कर सुने
"शब्दों के चाक पर" के पहले एपिसोड को आप सब का भरपूर प्यार मिले, तो लीजिए दुगुने जोश से आज हम हाज़िर हैं इस अनूठे खेल का दूसरा एपिसोड लेकर. इस कार्यक्रम के निम्न चरण होंगें, कृपया समझ लें -
1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल यहाँ है.
2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपनी आवाज़ भरेंगें. और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें.
3. हर मंगलवार सुबह ९ से १० के बीच हम इसे अपलोड करेंगें आपके इस प्रिय जाल स्थल पर. अब शुरू होता है कार्यक्रम का दूसरा चरण. मंगलवार को इस पोडकास्ट के प्रसारण के तुरंत बाद से हमारे प्रिय श्रोता सुनी हुई कविताओं में से अपनी पसंद की कविता को वोट दे सकेंगें. सिर्फ कवियों का नाम न लिखें बल्कि ये भी बताएं कि अमुख कविता आपको क्यों सबसे बेहतर लगी. आपके वोट और हमारी टीम का निर्णय मिलकर फैसला करेंगें इस बात का कि कौन है हमारे सप्ताह का सरताज कवि.
तो ये थी कार्यक्रम की रूपरेखा. पिछले सोमवार से गुरूवार के बीच जन्मी कविताओं का गुलदस्ता लेकर आज आपके सामने फिर से उपस्थित हैं अनुराग शर्मा और अभिषेक ओझा. कवियों से अनुरोध है कि इस सप्ताह यानी सोमवार से शुरू हुए खेल को खेलने के लिए रश्मि जी के मंच पर जाएँ तो हमारे प्रिय श्रोतागणों से निवेदन है कि अपना बहुमूल्य वोट दें और चुने इस सप्ताह का सरताज कवि. सभी प्रतिभागी कवियों को हमारी शुभकामनाएँ. सुनिए सुनाईये और छा जाईये...
(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)
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Comments
बहुत ही आन्नदमय स्थिति है .... !!
बहुत - बहुत धन्यवाद और आभार .... !!
1)जरूरी तो नहीं मानसून की आहटों से सबके शहर का मौसम गुलाबी हो ............
मानसून आ रहा है
मानसून आ रहा है
सिर्फ यही तो उसे डरा रहा है
कल तक जो रहती थी बेफिक्र
आज उसकी आँखों में उतरी है बेबसी
ग्रीष्म का ताप तो जैसे तैसे सहन कर लेती है
कभी किसी वृक्ष की छाँव में सो लेती है
तो कभी किसी दीवार की ओट में बैठ लेती है
ज़िन्दगी गुजर बसर कर लेती है
शीत भी ना इतना डराता है
तेज ठिठुरती सर्द रातों में
कुछ अलाव जला लेती है
और रात को सूरज का ताप दिखा
गुजार देती है
दिन में चाहे चिथड़ों में लिपटी रहती है
कभी टाट ओढ़ लेती है
मगर दिन तो जैसे तैसे गुजार लेती है
मगर बरसात का क्या करे
किस दर पर दस्तक दे
जब बूँदें रिमझिम गिरती हैं
किसी के मन को मोहती हैं
मगर उसे तो साक्षात् यम सी दिखती हैं
दिन हो या रात
सुबह हो या शाम
कहीं ना कोई ठिकाना दिखता है
जब चारों तरफ जल भराव होता है
ना रात का ठिकाना होता है
ना दिन में कोई ठौर दिखता है
मूसलाधार बरसातों में तो
प्रलंयकारी माहौल बनता है
जब तीन चार दिन तक
ना पानी थमता है
ना जीवन उसका चलता है
बस रात दिन दुआओं में
खुदा से विनती करती है
ना चैन से सो पाती है
ना दो रोटी खा पाती है
बस ऐसी बेबस लाचार
एक फ़ुटपाथिये की ज़िन्दगी होती है
जब ऐसे हालातों से पाला पड़ता है
तब मुँह से यही निकलता है
हाँ , मानसून आ रहा है
सिर्फ यही तो उसे डरा रहा है
जरूरी तो नहीं
मानसून की आहटों से सबके शहर का मौसम गुलाबी हो ............
2)तुम्हारी पहली मौसमी आहट
जानते हो
एक अरसा हुआ
तुम्हारे आने की
आहट सुने
यूँ तो पदचाप
पहचानती हूँ मैं
बिना सुने भी
जान जाती हूँ मैं
मगर मेरी मोहब्बत
कब पदचापों की मोहताज हुई
जब तुम सोचते हो ना
आने की
मिलने की
मेरे मन में जवाकुसुम खिल जाता है
जान जाती हूँ
आ रहा है सावन झूम के
मगर अब तो एक अरसा हो गया
क्या वहाँ अब तक
सूखा पड़ा है
मेघों ने घनघोर गर्जन किया ही नहीं
या ऋतु ने श्रृंगार किया ही नहीं
जो तुम्हारा मौसम अब तक
बदला ही नहीं
या मेरे प्रेम की बदली ने
रिमझिम बूँदें बरसाई ही नहीं
तुम्हें प्रेम मदिरा में भिगोया ही नहीं
या तुम्हारे मन के कोमल तारों पर
प्रेम धुन बजी ही नहीं
किसी ने वीणा का तार छेड़ा ही नहीं
किसी उन्मुक्त कोयल ने
प्रेम राग सुनाया ही नहीं
कहो तो ज़रा
कौन सा लकवा मारा है
कैसे हमारे प्रेम को अधरंग हुआ है
क्यूँ तुमने उसे पंगु किया है
हे ..........ऐसी तो ना थी हमारी मोहब्बत
कभी ऋतुओं की मोहताज़ ना हुई
कभी इसे सावन की आस ना हुई
फिर क्या हुआ है
जो इतना अरसा बीत गया
मोहब्बत को बंजारन बने
जानते हो ना ...........
मेरे लिए सावन की पहली आहट हो तुम
मौसम की रिमझिम कर गिरती
पहली फुहार हो तुम
मेरी ज़िन्दगी का
मेघ मल्हार हो तुम
तपते रेगिस्तान में गिरती
शीतल फुहार हो तुम
जानते हो ना...........
मेरे लिए तो सावन की पहली बूँद
उसी दिन बरसेगी
और मेरे तपते ह्रदय को शीतल करेगी
वो ही होगी
मेरी पहली मोहब्बत की दस्तक
तुम्हारी पहली मौसमी आहट
जिस दिन तुम
मेरी प्रीत बंजारन की मांग अपनी मोहब्बत के लबों से भरोगे ...........