"एक प्रयास" और वंदना जी . ब्लॉग तो उनके और भी हैं, पर यह ब्लॉग उनके कृष्णमय जीवन का आईना है. तो आज के गीतों संग वंदना जी - अपने लफ़्ज़ों में -
रश्मि जी, अपनी पसंद के गीत भेज रही हूँ.बहुत मुश्किल काम था मगर किसी तरह पूरा कर दिया है.......ये गीत मुझे इसलिए पसंद हैं क्यूँकि इनमे प्रेम हैं, कसक है, वेदना है, विरह है, मोहब्बत की पराकाष्ठा है जहाँ मोहब्बत लफ़्ज़ों से परे अहसास में जीवंत होती है जहाँ मोहब्बत को किसी नाम की जरूरत नहीं है तो दूसरी तरफ मोहब्बत करने वाला हो तो ऐसा कि सब कुछ भुलाकर चाहे सिर्फ रूह को चाहे जिस्म से परे होकर उसकी आँखों के आँसू भी खुद पी ले मगर उसे दो पल की मुस्कान दे दे. एक तरफ इंतज़ार हो तो ऐसा कि जहाँ मोहब्बत यकीन करती हो हाँ वो आज भी जहाँ होगा मेरे इंतज़ार में ही होगा और मोहब्बत में कशिश होगी या मोहब्बत इतनी बुलंद होगी कि वो जहाँ भी होगा वहीँ से खींचा चला आएगा ...इंतज़ार हो तो ऐसा जिसमे यकीन की चाशनी मिली हो और दूसरी तरफ समर्पण हो तो ऐसा कि खुद से ज्यादा खुशनसीब इन्सान किसी को ना समझे मोहब्बत समर्पण भी तो चाहती है ना...मोहब्बत के हर पहलू को छूते ये गाने मेरी पहली पसंद हैं ...मोहब्बत में प्रेम, समर्पण, इंतज़ार, विरह और त्याग सभी का समावेश होता है तभी तो मोहब्बत मुकम्मल होती है बस उन ही सब भावों को इस माला में गूंथ दिया है .फिल्म : ठोकर
अपनी आँखों में बसाकर कोई इकरार करूँ
जी में आता है कि जी भर के तुझे प्यार करूँ
हम दिल दे चुके सनम
तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही
मुझको सजा दी प्यार की ऐसा क्या गुनाह किया
ऐतबार
किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है
कहाँ हो तुम कि ये दिल बेक़रार आज भी है
देवर
दुनिया में ऐसा कहाँ सबका नसीब है
कोई कोई अपने पिया के करीब है
ख़ामोशी
हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छूकर इसे रिश्तों का इलज़ाम ना दो
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
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