ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 772/2011/212
ननमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है मशहूर ग़ज़ल गायक व संगीतकार स्वर्गीय जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप हमारी ख़ास शृंखला 'जहाँ तुम चले गए'। उनका जाना ग़ज़ल-जगत के लिए एक विराट क्षति है जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती। स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर नें अपने शोक संदेश में एक निजी न्यूज़ चैनल को बताया, "इस बात का मुझे बहुत दुख है, बहुत ही ज़्यादा दुख है कि जगजीत जी आज हमारे बीच नहीं रहे। मैंने उनके साथ काम किया है, और एक ही रेकॉर्ड किया था, और वो उस वक़्त बहुत चला था। और मुझे वो सब बातें याद आती हैं कि कैसे उन्होंने वह गाना रेकॉर्ड किया था, कैसे वो मुझे सिखाते थे, क्या क्या बातें होती थीं, सब। पहले तो वो मुझे गानें पढ़ के सुनाये, ग़ज़लें जो थीं, फिर कहा कि जो पसन्द नहीं आती हैं, वो मत गाइए। मैंने कहा कि नहीं ऐसी बात नहीं है, सभी ग़ज़लें अच्छी हैं। और जब उन्होंने रिहर्सल्स शुरु किए तो एक चीज़ वो बताते थे कि ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए, इस तरह से नहीं इस तरह से गाना चाहिए, मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं एक नई सिंगर आई हूँ और मुझे कोई सिखा रहा है। इस तरह से उन्होंने वो रेकॉर्ड किया था। और मेरे साथ बहुत अच्छी बात करते थे, हालाँकि हमारा मिलना नहीं होता था, बहुत कम मिलते थे, कभी-कभार, पर जब भी मिलते थे, बहुत अच्छी तरह से बात करते थे। उनकी ख़ास बात जो थी, वो क्लासिकल सिंगर थे, रियाज़ किया करते थे, अब तक वो रियाज़ करते थे, और रियाज़ करते हुए उन्होंने अपनी आवाज़ बदली और अपनी आवाज़ बदलकर वो गाने लगे, उन्होंने जो जो ग़ज़लें गाई हैं, वो सब बहुत अलग तरह से गाई हैं। उनके जैसा भारत में ग़ज़ल सिंगर और कोई है नहीं। उनकी बहुत सी ग़ज़लें हैं जो मुझे पसन्द है। "सरकती जाये है" जो उन्होंने गाई थी, शायद उनकी पहली ग़ज़ल थी, आपको याद होगा वह बहुत चली थी, बहुत अच्छा गाया था उन्होंने।"
'दि टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' को दिए एक साक्षात्कार में लता जी नें कहा उन्होंने पहली बार जगजीत सिंह का नाम तब सुना जब वो संगीतकार मदन मोहन के लिए कोई गाना रेकॉर्ड कर रही थीं। लता जी नें बताया, "मैंने मदन भैया से पूछा कि वो क्यों इस नए गायक से अपनी ग़ज़लें नहीं गवाते? शायद उस वक़्त जगजीत जी की आवाज़ उस वक़्त के हीरोज़ को सूट नहीं करती थी। लेकिन जब मैंने उनकी आवाज़ सुनी तो हैरान रह गई। मैं उस वक़्त के संगीतकारों को बताया करती थी उनकी आवाज़ के बारे में। पर शायद उनकी आवाज़ ग़ैर फ़िल्म-संगीत के लिए ही बनी थी। लेकिन बाद में वो फ़िल्मों में भी गाए और कई अभिनेताओं के लिए गाए। शुरु शुरु में 'सजदा' में केवल मेरी आवाज़ और जगजीत जी का संगीत होना था। यह एक मौका था जब मुझे उस कलाकार के साथ काम करने का मौका मिला जिनकी आवाज़ मैं मैं बरसों से पसन्द करती आई थी। इसलिए मैं इस मौके को गँवाना नहीं चाहती थी। मैंने उनसे बस इतनी गुज़ारिश की कि वो मुझसे शराब और महख़ाने की ग़ज़लें न गवाएँ। जब मैंने "दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह" गाया तो वो बड़े भावुक हो गए थे। वो अपनी ज़िन्दगी के एक दर्दनाक हादसे से गुज़र रहे थे और इस ग़ज़ल नें उनके दिल को छू लिया था। लेकिन इस ऐल्बम के जिस ग़ज़ल को उन्हें और उनकी पत्नी चित्रा को सबसे ज़्यादा पसन्द आई, वो थी "धुआँ बनके फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको"। दोस्तों, लता जी नें बार बार कहा कि जगजीत जी के साथ उन्होंने केवल 'सजदा' में ही काम किया, पर जहाँ तक मेरा ख़याल है कि १९८९ में एक फ़िल्म आई थी 'कानून की आवाज़', जिसमें संगीत था जगजीत सिंह था और इस फ़िल्म में उन्होंने लता जी से एक गीत गवाया था "सिंदूर की होय लम्बी उमरिया, मेरा जुग जुग जिये सांवरिया"। इंदीवर का लिखा यह गीत जया प्रदा पे फ़िल्माया गया था। आइए आज इसी गीत का आनन्द लिया जाये।
चलिए अब खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
खुद जगजीत की आवाज़ में ये गीत है जिसके मुखड़े में शब्द है - "फासले", गीतकार है नक्श ल्यालपुरी
पिछले अंक में
अमित जी सच बताईये क्या आपने ये गीत पहले सुना था, मैंने तो नहीं सुना था कभी :)
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
ननमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है मशहूर ग़ज़ल गायक व संगीतकार स्वर्गीय जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप हमारी ख़ास शृंखला 'जहाँ तुम चले गए'। उनका जाना ग़ज़ल-जगत के लिए एक विराट क्षति है जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती। स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर नें अपने शोक संदेश में एक निजी न्यूज़ चैनल को बताया, "इस बात का मुझे बहुत दुख है, बहुत ही ज़्यादा दुख है कि जगजीत जी आज हमारे बीच नहीं रहे। मैंने उनके साथ काम किया है, और एक ही रेकॉर्ड किया था, और वो उस वक़्त बहुत चला था। और मुझे वो सब बातें याद आती हैं कि कैसे उन्होंने वह गाना रेकॉर्ड किया था, कैसे वो मुझे सिखाते थे, क्या क्या बातें होती थीं, सब। पहले तो वो मुझे गानें पढ़ के सुनाये, ग़ज़लें जो थीं, फिर कहा कि जो पसन्द नहीं आती हैं, वो मत गाइए। मैंने कहा कि नहीं ऐसी बात नहीं है, सभी ग़ज़लें अच्छी हैं। और जब उन्होंने रिहर्सल्स शुरु किए तो एक चीज़ वो बताते थे कि ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए, इस तरह से नहीं इस तरह से गाना चाहिए, मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं एक नई सिंगर आई हूँ और मुझे कोई सिखा रहा है। इस तरह से उन्होंने वो रेकॉर्ड किया था। और मेरे साथ बहुत अच्छी बात करते थे, हालाँकि हमारा मिलना नहीं होता था, बहुत कम मिलते थे, कभी-कभार, पर जब भी मिलते थे, बहुत अच्छी तरह से बात करते थे। उनकी ख़ास बात जो थी, वो क्लासिकल सिंगर थे, रियाज़ किया करते थे, अब तक वो रियाज़ करते थे, और रियाज़ करते हुए उन्होंने अपनी आवाज़ बदली और अपनी आवाज़ बदलकर वो गाने लगे, उन्होंने जो जो ग़ज़लें गाई हैं, वो सब बहुत अलग तरह से गाई हैं। उनके जैसा भारत में ग़ज़ल सिंगर और कोई है नहीं। उनकी बहुत सी ग़ज़लें हैं जो मुझे पसन्द है। "सरकती जाये है" जो उन्होंने गाई थी, शायद उनकी पहली ग़ज़ल थी, आपको याद होगा वह बहुत चली थी, बहुत अच्छा गाया था उन्होंने।"
'दि टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' को दिए एक साक्षात्कार में लता जी नें कहा उन्होंने पहली बार जगजीत सिंह का नाम तब सुना जब वो संगीतकार मदन मोहन के लिए कोई गाना रेकॉर्ड कर रही थीं। लता जी नें बताया, "मैंने मदन भैया से पूछा कि वो क्यों इस नए गायक से अपनी ग़ज़लें नहीं गवाते? शायद उस वक़्त जगजीत जी की आवाज़ उस वक़्त के हीरोज़ को सूट नहीं करती थी। लेकिन जब मैंने उनकी आवाज़ सुनी तो हैरान रह गई। मैं उस वक़्त के संगीतकारों को बताया करती थी उनकी आवाज़ के बारे में। पर शायद उनकी आवाज़ ग़ैर फ़िल्म-संगीत के लिए ही बनी थी। लेकिन बाद में वो फ़िल्मों में भी गाए और कई अभिनेताओं के लिए गाए। शुरु शुरु में 'सजदा' में केवल मेरी आवाज़ और जगजीत जी का संगीत होना था। यह एक मौका था जब मुझे उस कलाकार के साथ काम करने का मौका मिला जिनकी आवाज़ मैं मैं बरसों से पसन्द करती आई थी। इसलिए मैं इस मौके को गँवाना नहीं चाहती थी। मैंने उनसे बस इतनी गुज़ारिश की कि वो मुझसे शराब और महख़ाने की ग़ज़लें न गवाएँ। जब मैंने "दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह" गाया तो वो बड़े भावुक हो गए थे। वो अपनी ज़िन्दगी के एक दर्दनाक हादसे से गुज़र रहे थे और इस ग़ज़ल नें उनके दिल को छू लिया था। लेकिन इस ऐल्बम के जिस ग़ज़ल को उन्हें और उनकी पत्नी चित्रा को सबसे ज़्यादा पसन्द आई, वो थी "धुआँ बनके फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको"। दोस्तों, लता जी नें बार बार कहा कि जगजीत जी के साथ उन्होंने केवल 'सजदा' में ही काम किया, पर जहाँ तक मेरा ख़याल है कि १९८९ में एक फ़िल्म आई थी 'कानून की आवाज़', जिसमें संगीत था जगजीत सिंह था और इस फ़िल्म में उन्होंने लता जी से एक गीत गवाया था "सिंदूर की होय लम्बी उमरिया, मेरा जुग जुग जिये सांवरिया"। इंदीवर का लिखा यह गीत जया प्रदा पे फ़िल्माया गया था। आइए आज इसी गीत का आनन्द लिया जाये।
चलिए अब खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
खुद जगजीत की आवाज़ में ये गीत है जिसके मुखड़े में शब्द है - "फासले", गीतकार है नक्श ल्यालपुरी
पिछले अंक में
अमित जी सच बताईये क्या आपने ये गीत पहले सुना था, मैंने तो नहीं सुना था कभी :)
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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