ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 756/2011/196
सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर पर आधारित श्रंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....' की छठी कड़ी में मैं अमित तिवारी आप सभी गुणी श्रोताओं और पाठकों का स्वागत करता हूँ. लता जी का पसन्दीदा वाद्य है ‘बाँसुरी'. पंडित पन्नालाल घोष की बाँसुरी के लिए उन्होंने कहा था कि 'उनकी बाँसुरी बजती ही नहीं थी, बल्कि गाती थी. फिल्म बसंत बहार के गाने ‘मैं पिया तेरी तू माने या न माने’ में दो गायिकाएं हैं, मैं और पन्नाबाबू की बाँसुरी.'
शहनाई उन्हें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के अलावा किसी और की पसंद ही नहीं आयी.
युसूफ भाई यानी कि दिलीप कुमार से लता जी की मुलाकात बड़े ही अजीब ढंग से हुई थी. एक बार अनिल बिस्वास और लता जी ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ लोकल ट्रेन से जा रहे थे. यह वो समय था जब इन सितारों के पास गाड़ियां नहीं हुआ करती थीं और ट्रेनों में भीड़ भी नहीं हुआ करती थी.
बांद्रा स्टेशन से दिलीप कुमार उसी डिब्बे में चढ़े. अनिल दा से दुआ सलाम हुआ. ये लोग आमने-सामने बैठे हुए थे तो अनिल दा ने कहा की युसूफ ये लता मंगेशकर है बहुत अच्छा गाती हैं. तो उन्होंने कहा कि कहाँ की है तो उन्होंने कहा कि मराठी है. तो युसूफ भाई ने सड़ा सा चेहरा करके कहा कि क्या है कि मराठी लोगों के बोल में थोड़ा दाल-भात की बू होती है.
लताजी को यह बात चुभ गयी और बस शुरू हो गयी उर्दू की पढ़ाई. एक मौलवी जी आने लगे जो बोलना सिखाते थे और गजलों का मतलब समझाते थे. दिमाग में वो था कि दाल-भात नहीं होना चाहिए और फिर वो कोशिश करती रही कि इस तरह से गाना गाना चाहिए. आखिरकार लता जी ने उर्दू में महारत हासिल कर ली. उन्ही लताजी को आज भी इस बात का मलाल है कि वे दिलीप कुमार को अपनी आवाज नहीं दे सकीं.
और उन्हीं लता जी ने बाद में भारत की लगभग सभी भाषाओँ में गाना गाया और कहीं पर भी ऐसा नहीं लगा कि वो उस भाषा को नहीं जानती हैं.
आज लता जी का गाया हुआ एक और बेहतरीन गाना सुनवाना चाहता हूँ. इस गाने की फरमाइश करी है मेरी अर्धांगिनी ने. उनका तर्क था कि जब ये श्रृंखला पाठकों और श्रोताओं की पसंद पर है तो उनकी पसंद का गाना भी तो बजना चाहिए. तो चलिए इस बार उनकी पसंद का गाना सुनवाते हैं.
ये एक भोजपुरी गाना है जिसे संगीतबद्ध करा था ‘चित्रगुप्त’ ने. गाने के बोल हैं ‘ए चंदा मामा आरे आवा पारे आवा’. फिल्म का नाम है ‘भौजी’ और गाने के बोल लिखे थे ‘मजरूह सुल्तानपुरी’ ने.
मैंने ये गाना करीब साल भर पहले सुना और उसके बाद तो २ दिन तक ये ही गाना सुनता रहा. जाने कितनी माँ अपने बच्चों को इस गाने की लोरी रोज सुनाती हैं.
चंदा मामा आरे आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा ।
सोना के कटोरिया में दूध भात लै लै आवा
बबुआ के मुंहवा में घुटूं ।।
आवाहूं उतरी आवा हमारी मुंडेर, कब से पुकारिले भईल बड़ी देर ।
भईल बड़ी देर हां बाबू को लागल भूख ।
ऐ चंदा मामा ।।
मनवा हमार अब लागे कहीं ना, रहिलै देख घड़ी बाबू के बिना
एक घड़ी हमरा को लागै सौ जून ।
ऐ चंदा मामा ।।
आप भी सब अपनी आँखें बंद करके इस गाने को सुनिए और मैं दावा कर सकता हूँ कि आप इसकी मधुरता में खो जायेंगे.
इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. लता जी की मधुर मधुर आवाज़ है इस गीत में.
२. मजरूह साहब का लिखा एक भजन है ये.
३. इस फिल्म का एक और गीत हम बजा चुके हैं इसी शृंखला में.
अब बताएं -
संगीतकार कौन हैं - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
फिल्म के नायक कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
अरे आप सब ने सुना हुआ था ये गीत ? मैंने पहली बार सुना (सजीव) बहुत ही मधुर है
खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन
सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर पर आधारित श्रंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....' की छठी कड़ी में मैं अमित तिवारी आप सभी गुणी श्रोताओं और पाठकों का स्वागत करता हूँ. लता जी का पसन्दीदा वाद्य है ‘बाँसुरी'. पंडित पन्नालाल घोष की बाँसुरी के लिए उन्होंने कहा था कि 'उनकी बाँसुरी बजती ही नहीं थी, बल्कि गाती थी. फिल्म बसंत बहार के गाने ‘मैं पिया तेरी तू माने या न माने’ में दो गायिकाएं हैं, मैं और पन्नाबाबू की बाँसुरी.'
शहनाई उन्हें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के अलावा किसी और की पसंद ही नहीं आयी.
युसूफ भाई यानी कि दिलीप कुमार से लता जी की मुलाकात बड़े ही अजीब ढंग से हुई थी. एक बार अनिल बिस्वास और लता जी ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ लोकल ट्रेन से जा रहे थे. यह वो समय था जब इन सितारों के पास गाड़ियां नहीं हुआ करती थीं और ट्रेनों में भीड़ भी नहीं हुआ करती थी.
बांद्रा स्टेशन से दिलीप कुमार उसी डिब्बे में चढ़े. अनिल दा से दुआ सलाम हुआ. ये लोग आमने-सामने बैठे हुए थे तो अनिल दा ने कहा की युसूफ ये लता मंगेशकर है बहुत अच्छा गाती हैं. तो उन्होंने कहा कि कहाँ की है तो उन्होंने कहा कि मराठी है. तो युसूफ भाई ने सड़ा सा चेहरा करके कहा कि क्या है कि मराठी लोगों के बोल में थोड़ा दाल-भात की बू होती है.
लताजी को यह बात चुभ गयी और बस शुरू हो गयी उर्दू की पढ़ाई. एक मौलवी जी आने लगे जो बोलना सिखाते थे और गजलों का मतलब समझाते थे. दिमाग में वो था कि दाल-भात नहीं होना चाहिए और फिर वो कोशिश करती रही कि इस तरह से गाना गाना चाहिए. आखिरकार लता जी ने उर्दू में महारत हासिल कर ली. उन्ही लताजी को आज भी इस बात का मलाल है कि वे दिलीप कुमार को अपनी आवाज नहीं दे सकीं.
और उन्हीं लता जी ने बाद में भारत की लगभग सभी भाषाओँ में गाना गाया और कहीं पर भी ऐसा नहीं लगा कि वो उस भाषा को नहीं जानती हैं.
आज लता जी का गाया हुआ एक और बेहतरीन गाना सुनवाना चाहता हूँ. इस गाने की फरमाइश करी है मेरी अर्धांगिनी ने. उनका तर्क था कि जब ये श्रृंखला पाठकों और श्रोताओं की पसंद पर है तो उनकी पसंद का गाना भी तो बजना चाहिए. तो चलिए इस बार उनकी पसंद का गाना सुनवाते हैं.
ये एक भोजपुरी गाना है जिसे संगीतबद्ध करा था ‘चित्रगुप्त’ ने. गाने के बोल हैं ‘ए चंदा मामा आरे आवा पारे आवा’. फिल्म का नाम है ‘भौजी’ और गाने के बोल लिखे थे ‘मजरूह सुल्तानपुरी’ ने.
मैंने ये गाना करीब साल भर पहले सुना और उसके बाद तो २ दिन तक ये ही गाना सुनता रहा. जाने कितनी माँ अपने बच्चों को इस गाने की लोरी रोज सुनाती हैं.
चंदा मामा आरे आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा ।
सोना के कटोरिया में दूध भात लै लै आवा
बबुआ के मुंहवा में घुटूं ।।
आवाहूं उतरी आवा हमारी मुंडेर, कब से पुकारिले भईल बड़ी देर ।
भईल बड़ी देर हां बाबू को लागल भूख ।
ऐ चंदा मामा ।।
मनवा हमार अब लागे कहीं ना, रहिलै देख घड़ी बाबू के बिना
एक घड़ी हमरा को लागै सौ जून ।
ऐ चंदा मामा ।।
आप भी सब अपनी आँखें बंद करके इस गाने को सुनिए और मैं दावा कर सकता हूँ कि आप इसकी मधुरता में खो जायेंगे.
इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. लता जी की मधुर मधुर आवाज़ है इस गीत में.
२. मजरूह साहब का लिखा एक भजन है ये.
३. इस फिल्म का एक और गीत हम बजा चुके हैं इसी शृंखला में.
अब बताएं -
संगीतकार कौन हैं - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
फिल्म के नायक कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम-
अरे आप सब ने सुना हुआ था ये गीत ? मैंने पहली बार सुना (सजीव) बहुत ही मधुर है
खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन
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Comments
'जय जय हे जगदम्बे माता
द्वार तिहारे जो भी आता
बिन मांगे सब कुछ पा जाता....'
इस खूबसूरत गीत वाली फिल्म मैंने देखि थी ब्लेक एंड व्हाईट फिल्म थी शायद और ....और नही बताऊंगी सिवाय इसके कि इसका संगीत चित्रगुप्त जी ने तैयार किया था शायद .
अमित जी की पसंद के गीत है क्या यह सब जो उनके आलेख में शामिल किये जा रहे हैं?यदि ऐसा है तो......कमाल की पसंद है.ऐसे ही गाने मुझे पसंद है जिन्हें सुनते हुए मन उसी में डूब जाए हा हा हा अब क्या करू?
ऐसिच हूँ मैं तो
ऐसिच जो हूँ मैं तो हा हा
इस बार आपका उत्तर गलत है. पर रुकिए. अब आप जवाब मत दीजियेगा. इस बार अगर आपने सही जवाब दे भी दिया तो आपको अंक नही मिलने वाले.
क्यों? ......
अरे कल आने वाला गाना आपकी ही फरमाइश जो है ....तो इंतज़ार करिये कल तक. :)