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कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार.....निर्गुण भक्ति और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 756/2011/196

मस्कार दोस्तों. आज हम आ पहुंचे हैं लता जी को समर्पित ‘मेरी आवाज ही पहचान है....’ श्रृंखला की सातवीं कड़ी पर. सबसे पहले तो ऊँचाइयों पर पहुँचाना कठिन होता है और जब उसे हासिल कर लिया जाए तब वहाँ पर मजबूती के साथ टिके रहना उससे भी कठिन होता है. और वही लता जी के साथ हुआ. वो उस मुकाम पर पहुँची और उन पर कई आरोप लगाये गए.

एक संगीन आरोप लगा ‘मोनोपोली’ का. आरोप लगा था कि लता जी के कहने पर म्यूजिक डायरेक्टर दूसरों को गाने का मौका ही नहीं देते. लता जी ही निर्णय करती हैं कि कौन म्यूजिक डायरेक्टर होगा, कितने गाने होंगे आदि आदि ...

लता जी से जब पूछा गया था तो वो नाराज होकर बोलीं कि अगर मुझे ही तय करना होता कि म्यूजिक डायरेक्टर कौन होगा तो तब तो आधी से ज्यादा फिल्मों में मेरे भाई हृदयनाथ को म्यूजिक डायरेक्टर होना चाहिए था.

इसके विपरीत कविता कृष्णमूर्ती ने एक साक्षात्कार में एक अनुभव शेअर किया था. १९८२ में कविता जी ने निर्माता राजकुमार कोहली की एक निर्माणाधीन फिल्म के लिए, बप्पी दा के संगीत निर्देशन में ‘डबिंग’ गायिका के तौर पर एक गाना गाया था, यह जानते हुए, कि बाद में यह किसी नामी गायिका द्वारा गाया जायेगा.

गाना था, ‘ओ मेरे सजना..’, यह गाना शिवरंजनी राग में था. गीत रिकॉर्ड हो गया, पैसे भी मिल गए. कुछ ३-४ महीने बाद कविता जी ने एक पत्रिका में पढ़ा कि लता जी बप्पी दा की एक रिकॉर्डिंग पर गयीं, पर ‘डबिंग आर्टिस्ट’ कविता कृष्णमूर्ति की रिकॉर्डिंग सुनने के बाद गाना ‘डब’ करने से इनकार कर दिया. कविता जी को लगा कि अब तो डबिंग आर्टिस्ट का काम भी हाथ से गया. जब पूरी खबर पढ़ी तो वो आश्चर्यचकित रह गयीं. लताजी ने पूरा गाना ध्यान से सुना और अपना निर्णय दिया कि ‘इस लड़की ने तो इतना अच्छा गाया है, फिर मुझसे क्यों गवाना चाहते हो?’
निर्माता-निर्देशक और संगीतकार ने लताजी को मनाने की कोशिश करी पर वो अपने फैसले पर अड़ी रहीं और वह गाना नहीं गाया.

१९८० में लताजी ने दक्षिण अमरीका के गयाना देश की राजधानी जोर्जटाउन में कार्यक्रम प्रस्तुत करा था. लता जी के गायन आगमन पर जोर्जटाउन में छुट्टी घोषित कर दी गयी थी और जोर्जटाउन शहर की ‘चाभी’ लता जी को दी गयी थी.

संगीतकार खय्याम ने तो एक बार सार्वजनिक रूप से कहा था कि ‘जब तक लता जी ने नियमित रूप से मेरे गीत नहीं गाये थे, मेरा संगीत उतना नहीं चला था. इसकी सबसे बड़ी मिसाल फिल्म ‘कभी कभी’ है.

इसी तरह संगीतकार मदन मोहन की पहली पसंद थीं लता मंगेशकर. मदन जी ने लता को ही प्राथमिकता दी थी अपने संगीत में. लता जी भी उन्हें "मदन भैया" कह के संबोधित करती थीं. मदन जी के एक बार कहा था "बचपन में ही मुझे एक ज्योतिषी ने बताया था कि मेरी शादी कब होगी, बच्चे कितने होंगे, ऐश्वर्य कितना और कब तक भोगूँगा. सिर्फ़ यह नहीं बताया था कि लता नाम की एक अलौकिक गायिका मेरी तर्जों में जान डाल देगी."

आप सबको हमने इस श्रंखला की दूसरी कड़ी मैं फिल्म ‘शागिर्द’ का गाना सुनवाया था. आज की पसंद है ‘इंदू पूरी गोस्वामी’ जी की. और क्या बढ़िया गाना चुना है उन्होंने. वो तो ऐसीहीच हैं. और भला क्या हम उनकी पसंद ठुकरा सकते हैं? वैसे मुझे भी बहुत पसंद है यह गाना. राग मांझ खमाज में इस गाने की रचना करी थी ‘मजरूह सुल्तानपुरी’ ने और संगीतबद्ध करा था ‘लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल' ने.
गाने के बोल हैं, 'कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार.....'.



इन ३ सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. लता जी की मधुर मधुर आवाज़ है इस गीत में.
२. संगीत सलिल दा का है.
३. मुखड़े में शब्द है - 'घडी घडी".

अब बताएं -
गीतकार कौन हैं - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
फिल्म की नायिका कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम-


खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments




गीतकार : शैलेन्द्र



नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
indu puri said…
दस मिनट पहले अहमदाबाद से आई ही हूँ.आते ही अपने इस परिवार से मिलने चली आई.इतना प्यारा गाना सुनाया और...उस पर...मेरी पसंद का ख्याल रखा .शुक्रिया बोलू?जाने क्यों बड़ा हल्का लगने लगता है यह शब्द कभी कभी प्यार और दोस्ती के बीच .
बस.....मैं गाना सुन रही हूँ और......मेरी आँखों के सामने मेरा कृष्णा है.उसके पीछे खड़े खड़े अमित तुम मस्करा रहे हो 'दीदी! देखो तुम्हारी पसंद का गाना बजा रहा हूँ....तुम्हारे कृष्णा को पास ले आया न तुम्हारे?अच्छा भैया ,अच्छा दोस्त हूँ न ?'
हाँ बाबु! हो.
मैं बहुत किस्मत वाली हूँ. आगे क्या बोलू?कहोगे-'दीदी! तुम ऐसिच हो एकदम -इमोशनल स्टुपिड हो. जियो बाबु! आवाज परिवार से जुड़ा हर व्यक्ति....मेरे कृष्णा से परे नही मेरे लिए.

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