ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 761/2011/201
ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम शुरु कर रहे हैं पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के लोक गीतों और लोक-संगीत शैलियों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'पुरवाई'।
'पुरवाई' का सफ़र हम शुरु कर रहे हैं उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय से। असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैण्ड, मिज़ोराम, त्रिपुरा और मेघालय राज्यों के समूह को 'सेवेन सिस्टर्स' कहा जाता है। हर राज्य की अपनी अलग संस्कृति है, संगीत में भी कई विविधताएँ हैं। मेघालय में एक बड़ी जनजाति है खासी जनजाति। आपको याद होगा कुछ महीने पहले 'ताज़ा सुर ताल' में फ़िल्म 'गुमशुदा' में एक खासी गीत शामिल किया गया था "खासी तिंग्या"। आपको शायद लगे कि यह पहला ऐसा मौका था किसी खासी गीत का हिन्दी फ़िल्मों में सुनाई देना। बोलों के लिहाज़ से शायद यह बात सच है, पर धुनों के हिसाब से नहीं। संगीतकार अनिल बिस्वास नें ५० के दशक में ही एक खासी लोक गीत की धुन को लेकर मीना कपूर की आवाज़ में एक लोरी रेकॉर्ड की थी फ़िल्म 'राही' में जिसके बोल हैं "चाँद सो गया, तारे सो गए, सो गई रात, सारे सो गए"। 'राही' १९५३ की देव आनन्द और अचला सचदेव अभिनीत फ़िल्म थी जिसमें प्रेम धवन नें गीत लिखे थे। इस गीत के बारे में अनिल दा कहते हैं, "तुमको बता दूँ कि 'राही' का बैकग्राउण्ड था एक टी-गार्डन। उसमें जो काम करने वाले थे वो ख़ास करके बिहार से आते थे, और कुछ पहाड़ से आते थे। उसमें एक सिचुएशन आया था लोरी का, बहुत अच्छा सिचुएशन था कि बच्चा गुज़र गया है, और माँ जो हैं न, पलना यही समझ के झुला रही है कि बच्चा सोया हुआ है, उसको सुला रही है। बहुत ही ख़ूबसूरत है। तो उसको मैंने उसी तरफ़ की चीज़ को लेके आया था। मणिपुर और खासिया साइड का लोक-गीत का इस्तमाल किया था, और वह गाना था "चाँद सो गया, तारे सो गए, सो जा मेरे लाल, सारे सो गए" (सौजन्य: 'संगीत सरिता', विविध भारती)। इसके अलावा भी फ़िल्म 'रोटी' में अनिल दा नें एक और खासी लोक गीत को लेकर "स्वामी घरवा नीक लागे, ठीक लागे..." गीत कम्पोज़ किया था, जिसका मूल खासी गीत था "दुई नन्का लेम छोले, सादंग नन्का लेम छोले..."। इस तरह से अनिल बिस्वास ऐसे संगीतकार हुए जिन्होंने खासी लोक-संगीत का एकाधिक बार प्रयोग अपने गीतों में किया। किसी अन्य संगीतकार नें खासी लोक धुनों का प्रयोग किया है या नहीं, इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है। तो आइए आज सुनते हैं 'पुरवाई' शृंखला का पहला गीत मीना कपूर की आवाज़ में, फ़िल्म 'राही' से।
चलिए आज से खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
बिहू लोक गीत से प्रेरित इस गीत के मुखड़े में ये दो शब्द है -"बन" और "कली"
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम शुरु कर रहे हैं पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के लोक गीतों और लोक-संगीत शैलियों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'पुरवाई'।
'पुरवाई' का सफ़र हम शुरु कर रहे हैं उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय से। असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैण्ड, मिज़ोराम, त्रिपुरा और मेघालय राज्यों के समूह को 'सेवेन सिस्टर्स' कहा जाता है। हर राज्य की अपनी अलग संस्कृति है, संगीत में भी कई विविधताएँ हैं। मेघालय में एक बड़ी जनजाति है खासी जनजाति। आपको याद होगा कुछ महीने पहले 'ताज़ा सुर ताल' में फ़िल्म 'गुमशुदा' में एक खासी गीत शामिल किया गया था "खासी तिंग्या"। आपको शायद लगे कि यह पहला ऐसा मौका था किसी खासी गीत का हिन्दी फ़िल्मों में सुनाई देना। बोलों के लिहाज़ से शायद यह बात सच है, पर धुनों के हिसाब से नहीं। संगीतकार अनिल बिस्वास नें ५० के दशक में ही एक खासी लोक गीत की धुन को लेकर मीना कपूर की आवाज़ में एक लोरी रेकॉर्ड की थी फ़िल्म 'राही' में जिसके बोल हैं "चाँद सो गया, तारे सो गए, सो गई रात, सारे सो गए"। 'राही' १९५३ की देव आनन्द और अचला सचदेव अभिनीत फ़िल्म थी जिसमें प्रेम धवन नें गीत लिखे थे। इस गीत के बारे में अनिल दा कहते हैं, "तुमको बता दूँ कि 'राही' का बैकग्राउण्ड था एक टी-गार्डन। उसमें जो काम करने वाले थे वो ख़ास करके बिहार से आते थे, और कुछ पहाड़ से आते थे। उसमें एक सिचुएशन आया था लोरी का, बहुत अच्छा सिचुएशन था कि बच्चा गुज़र गया है, और माँ जो हैं न, पलना यही समझ के झुला रही है कि बच्चा सोया हुआ है, उसको सुला रही है। बहुत ही ख़ूबसूरत है। तो उसको मैंने उसी तरफ़ की चीज़ को लेके आया था। मणिपुर और खासिया साइड का लोक-गीत का इस्तमाल किया था, और वह गाना था "चाँद सो गया, तारे सो गए, सो जा मेरे लाल, सारे सो गए" (सौजन्य: 'संगीत सरिता', विविध भारती)। इसके अलावा भी फ़िल्म 'रोटी' में अनिल दा नें एक और खासी लोक गीत को लेकर "स्वामी घरवा नीक लागे, ठीक लागे..." गीत कम्पोज़ किया था, जिसका मूल खासी गीत था "दुई नन्का लेम छोले, सादंग नन्का लेम छोले..."। इस तरह से अनिल बिस्वास ऐसे संगीतकार हुए जिन्होंने खासी लोक-संगीत का एकाधिक बार प्रयोग अपने गीतों में किया। किसी अन्य संगीतकार नें खासी लोक धुनों का प्रयोग किया है या नहीं, इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है। तो आइए आज सुनते हैं 'पुरवाई' शृंखला का पहला गीत मीना कपूर की आवाज़ में, फ़िल्म 'राही' से।
चलिए आज से खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
बिहू लोक गीत से प्रेरित इस गीत के मुखड़े में ये दो शब्द है -"बन" और "कली"
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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फिल्म- सौतेला भाई
गायक- मन्ना डे और मीना कपूर
गीत- शैलेन्द्र
जब यह गाना शुरू होता है तो मधुमती के 'चढ गयो पापी बिछुआ' का आभास होता है.