ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 760/2011/200
नमस्कार दोस्तों!! आज हम आ पहुंचे हैं लता जी पर आधारित श्रृंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....’ की अंतिम कड़ी पर. लता जी ने हजारों गाने गाये और उनमें से १० गाने चुन कर प्रस्तुत करना बड़ा ही मुश्किल है. मजे की बात तो यह है कि हमने आपने ये सारे गाने कई बार सुने हैं पर हमेशा इन गानों में ताजगी झलकती है. आप इन गानों को सुन कर बोर नहीं हो सकते.
बेमिसाल और सर्वदा शीर्ष पर रहने के बावजूद लता ने बेहतरीन गायन के लिए रियाज़ के नियम का हमेशा पालन किया, उनके साथ काम करने वाले हर संगीतकार ने यही कहा कि वे गाने में चार चाँद लगाने के लिए हमेशा कड़ी मेहनत करती रहीं.
लता जी के लिए संगीत केवल व्यवसाय नहीं है. उनकी जीवन शैली में ही एक प्रकार का संगीत है. लता जी ने अपना संपूर्ण जीवन संगीत को समर्पित कर दिया. संगीत ही उनके जीवन की सबसे बडी़ पूंजी है. आज के युग में जब संगीत के नाम पर फूहड़ता और अश्लीलता परोसी जा रही है और लोकप्रियता के लिए गायक हर परिस्थिति से समझौता करने को तैयार है, हमारे लिए लता जी एक प्रेरणा-ज्योति की तरह हैं जो संगीत के अंधकारपूर्ण भविष्य को देदीप्यमान कर सकती हैं. लता जी को अनेकानेक सांगीतिक उपलब्धियों के लिए असंख्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया. लेकिन उन्होंने कभी पुरस्कारों को अपनी मंज़िल नहीं समझा. लता को सबसे बड़ा अवार्ड तो यही मिला है कि अपने करोड़ों प्रशंसकों के बीच उनका दर्जा एक पूजनीय हस्ती का है, वैसे फ़िल्म जगत का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फ़ाल्के अवार्ड और देश का सबसे बड़ा सम्मान 'भारत रत्न' लता मंगेशकर को मिल चुका है.
इतनी अधिक ख्याति अर्जित कर लेने के उपरांत भी लता जी को घमंड तो छू तक नहीं गया है। नम्रता और सदाशयता आपके व्यवहार में सदा से रही हैं।
कुछ और बातें उनके बारे में:
सन 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड लता जी के नाम हुआ.
लता मंगेशकर ने 'आनंद गान बैनर' तले फ़िल्मों का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है।
लता मंगेशकर जी अभी भी रिकॉर्डिंग के लिये जाने से पहले कमरे के बाहर अपनी चप्पलें उतारती हैं और वह हमेशा नंगे पाँव गाना गाती हैं।
लता जी का एक और पसंदीदा गाना है. ‘सत्यम शिवम सुन्दरम’. जब भी लता जी इस गाने को गाती थीं (विशेषतया स्टेज शो के दौरान) तो उनके अनुसार उनके अन्दर कुछ...कुछ अजीब सा होता था. वो जैसे किसी ध्यानावस्था में चली जाती हैं और सिर्फ़ मानसिक रूप से ही नहीं ...बदन में झुरझुरी सी होती है.
उन्होंने यह भी कहा कि जिस दिन मुझे यह अहसास होना बंद हो जायेगा मैं इस गाने को गाना बंद कर दूँगी.
एक रेडियो इंटरव्यू में लता जी से पूछा गया था "अगर आपको फिर से जीवन जीने का मौका मिले, और साथ में किस तरह का जीवन जीना है वह भी चुनने की आजादी मिले तो क्या आप फिर से यही जीवन जीना चाहेंगी? जबकी आपने अपने जीवन की शुरूआत में बहुत संघर्ष करा है."
उनका जवाब तुरंत आया, "आपसे किसने कह दिया कि मैं फिर से लता मंगेशकर बनना चाहती हूँ? मैं एक सामान्य व्यक्ति बन कर जीना चाहूंगी."
इस कड़ी का समापन करना चाहूँगा इस असामान्य व्यक्तित्व को हम सबकी और से शुभकामनाएँ देते हुए. आप और भी गाने गाएं और हम सबका मन मोहती रहें और संगीत को और ऊँचाइयों पर पहुंचाए. इस कड़ी का अंतिम गाना है सन १९८३ में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘हीरो’ का. इस गाने के बोल लिखे थे ‘आनंद बक्शी’ ने और संगीत दिया था ‘लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल’ ने.
फिर मिलूँगा किसी और श्रृंखला में आप सब के साथ कुछ नया लेकर. आज्ञा दीजिए. नमस्कार.
आज पहली को विश्राम देकर हमें ये बताएं आपके जीवन में लता जी की आवाज़ और उनके गाये गीतों की क्या अहमियत है ?
पिछली पहेली का परिणाम-
इस शृंखला में में क्षिति जी विजियी हुई हैं, बधाई आपको
खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन
नमस्कार दोस्तों!! आज हम आ पहुंचे हैं लता जी पर आधारित श्रृंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....’ की अंतिम कड़ी पर. लता जी ने हजारों गाने गाये और उनमें से १० गाने चुन कर प्रस्तुत करना बड़ा ही मुश्किल है. मजे की बात तो यह है कि हमने आपने ये सारे गाने कई बार सुने हैं पर हमेशा इन गानों में ताजगी झलकती है. आप इन गानों को सुन कर बोर नहीं हो सकते.
बेमिसाल और सर्वदा शीर्ष पर रहने के बावजूद लता ने बेहतरीन गायन के लिए रियाज़ के नियम का हमेशा पालन किया, उनके साथ काम करने वाले हर संगीतकार ने यही कहा कि वे गाने में चार चाँद लगाने के लिए हमेशा कड़ी मेहनत करती रहीं.
लता जी के लिए संगीत केवल व्यवसाय नहीं है. उनकी जीवन शैली में ही एक प्रकार का संगीत है. लता जी ने अपना संपूर्ण जीवन संगीत को समर्पित कर दिया. संगीत ही उनके जीवन की सबसे बडी़ पूंजी है. आज के युग में जब संगीत के नाम पर फूहड़ता और अश्लीलता परोसी जा रही है और लोकप्रियता के लिए गायक हर परिस्थिति से समझौता करने को तैयार है, हमारे लिए लता जी एक प्रेरणा-ज्योति की तरह हैं जो संगीत के अंधकारपूर्ण भविष्य को देदीप्यमान कर सकती हैं. लता जी को अनेकानेक सांगीतिक उपलब्धियों के लिए असंख्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया. लेकिन उन्होंने कभी पुरस्कारों को अपनी मंज़िल नहीं समझा. लता को सबसे बड़ा अवार्ड तो यही मिला है कि अपने करोड़ों प्रशंसकों के बीच उनका दर्जा एक पूजनीय हस्ती का है, वैसे फ़िल्म जगत का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फ़ाल्के अवार्ड और देश का सबसे बड़ा सम्मान 'भारत रत्न' लता मंगेशकर को मिल चुका है.
इतनी अधिक ख्याति अर्जित कर लेने के उपरांत भी लता जी को घमंड तो छू तक नहीं गया है। नम्रता और सदाशयता आपके व्यवहार में सदा से रही हैं।
कुछ और बातें उनके बारे में:
सन 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज़ बुक रिकॉर्ड लता जी के नाम हुआ.
लता मंगेशकर ने 'आनंद गान बैनर' तले फ़िल्मों का निर्माण भी किया है और संगीत भी दिया है।
लता मंगेशकर जी अभी भी रिकॉर्डिंग के लिये जाने से पहले कमरे के बाहर अपनी चप्पलें उतारती हैं और वह हमेशा नंगे पाँव गाना गाती हैं।
लता जी का एक और पसंदीदा गाना है. ‘सत्यम शिवम सुन्दरम’. जब भी लता जी इस गाने को गाती थीं (विशेषतया स्टेज शो के दौरान) तो उनके अनुसार उनके अन्दर कुछ...कुछ अजीब सा होता था. वो जैसे किसी ध्यानावस्था में चली जाती हैं और सिर्फ़ मानसिक रूप से ही नहीं ...बदन में झुरझुरी सी होती है.
उन्होंने यह भी कहा कि जिस दिन मुझे यह अहसास होना बंद हो जायेगा मैं इस गाने को गाना बंद कर दूँगी.
एक रेडियो इंटरव्यू में लता जी से पूछा गया था "अगर आपको फिर से जीवन जीने का मौका मिले, और साथ में किस तरह का जीवन जीना है वह भी चुनने की आजादी मिले तो क्या आप फिर से यही जीवन जीना चाहेंगी? जबकी आपने अपने जीवन की शुरूआत में बहुत संघर्ष करा है."
उनका जवाब तुरंत आया, "आपसे किसने कह दिया कि मैं फिर से लता मंगेशकर बनना चाहती हूँ? मैं एक सामान्य व्यक्ति बन कर जीना चाहूंगी."
इस कड़ी का समापन करना चाहूँगा इस असामान्य व्यक्तित्व को हम सबकी और से शुभकामनाएँ देते हुए. आप और भी गाने गाएं और हम सबका मन मोहती रहें और संगीत को और ऊँचाइयों पर पहुंचाए. इस कड़ी का अंतिम गाना है सन १९८३ में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘हीरो’ का. इस गाने के बोल लिखे थे ‘आनंद बक्शी’ ने और संगीत दिया था ‘लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल’ ने.
फिर मिलूँगा किसी और श्रृंखला में आप सब के साथ कुछ नया लेकर. आज्ञा दीजिए. नमस्कार.
आज पहली को विश्राम देकर हमें ये बताएं आपके जीवन में लता जी की आवाज़ और उनके गाये गीतों की क्या अहमियत है ?
पिछली पहेली का परिणाम-
इस शृंखला में में क्षिति जी विजियी हुई हैं, बधाई आपको
खोज व आलेख- अमित तिवारी
विशेष आभार - वाणी प्रकाशन
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
आपको और आपके पूरे परिवार को शक्ति और विजय-पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ। आपको बहुत-बहुत बधाई, इसलिए कि स्वर साम्राज्ञी लता जी पर जानकारी से परिपूर्ण श्रृंखला का रसास्वादन कराया।
आपको, पूरे हिन्दयुग्म परिवार और पाठकों को दशहरे की शुभकामनाएँ.
लता दीदी की आवाज़ हमारे लिए शायद ईश्वरीय वरदान है.
भाई अमित जी ने बहुत परिश्रम और प्यार से हमें लता स्वर रस से ओत-प्रोत कई व्यंजनों से परिचित कराया.कृष्णमोहन जी और सजीव जी के बाद मेरा यह कहना कि श्रृंखला वास्तव में बेहद रोचक,स्तरीय और आनंददायक थी शायद अनावश्यक प्रतीत हो पर मैं फिर भी अपना आभार प्रदर्शन करना चाहूँगा.
जैसा कि अंग्रेज़ी में प्रायः कहा जाता है: 'a labour of love'. परन्तु मुझे तो यह उससे भी कई गुना बढ़ कर लगी क्योंकि इसमें अमित जी की लता दीदी के प्रति श्रृद्धा की झांकी साफ़ दिखाई देती है.
एक बार पुनः आपका धन्यवाद अमित जी.क्योंकि अब आपका पदार्पण हो ही चुका है तो हम उम्मीद रखते हैं आगे भी अक्सर आप आवाज़ की महफ़िल की मेज़बानी करेंगे.
आभार सहित,
अवध लाल