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कुछ दिन पहले एक ताल में....क्लास्सिक कहानी कहने के अंदाज़ में लिखा मजरूह ने इस गीत को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 675/2011/115

हानी भरे गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इन दिनो चल रही लघु शृंखला 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' में अब तक जिन "कहानीकारों" को हम शामिल कर चुके हैं, वो हैं किदार शर्मा, मुंशी अज़ीज़, क़मर जलालाबादी और हसरत जयपुरी। और इन कहानियों को हमें सुनाया सहगल, शांता आप्टे, सुरैया और लता मंगेशकर नें। आज इस लड़ी में एक और कड़ी को जोड़ते हुए सुनवा रहे हैं मजरूह सुल्तानपुरी की लिखी कहानी आशा भोसले के स्वर में। नर्गिस पर फ़िल्माया यह गीत है १९५८ की फ़िल्म 'लाजवंती' का। मजरूह साहब नें शुद्ध हिंदी के शब्दों का प्रयोग करते हुए इस कहानी रूपी गीत को लिखा है और दादा बर्मन का लाजवाब संगीत है इस गीत में। फ़िल्म का एक और कहानीनुमा गीत "चंदा मामा, मेरे द्वार आना" आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पहले सुन चुके हैं। जैसा कि पिछले अंकों में हमनें बताया था कि फ़िल्मों में अक्सर नायिका अपने जीवन की दुखभरी कहानी को ही किसी बच्चे को लोरी-गीत के रूप में सुनाती है, इस गीत का भाव भी कुछ हद तक वैसा ही है। कहानी है एक बतख के जोड़े की और उनके एक बच्चे की। गीत शुरु ख़ुशमिज़ाज तरीके से होता है, लेकिन कहानी दुखद मोड़ लेती है जब उस जोड़े से उनका बच्चा अलग हो जाता है। कहानी वहीं थम जाती है, नायिका (नर्गिस) आगे नहीं गा पातीं। भले ही फ़िल्म की कहानी में इस गीत का महत्वपूर्ण स्थान रहा होगा, लेकिन यह गीत इतना सुंदर बना है कि फ़िल्म को अलग रखते हुए भी हम अगर इसको सुनें तो उतना ही अच्छा लगता है। यह गीत हमें जैसे एक शांत तालाब में लिये जाता है जहाँ पर दो सफ़ेद हंस तैर रहे हैं अपने नन्हे से बच्चे के साथ। अभी कुछ दिन पहले मैंने यह कहा था कि लता के अभाव नें जहाँ सी.रामचन्द्र की सफलता पर रोक लगा दी थी, वहीं सचिन देव बर्मन पर जैसे कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा। इसका कारण तो यही लगता है कि जब दादा नें आशा को गवाना शुरु किया, तब वो गानें भी आशा वाले अंदाज़ के ही बनाये, न कि लता शैली के। और इसलिए आशा द्वारे गाये उनके गीत भी उतने ही लोकप्रिय हुए जितने लता के। इसका उदाहरण है 'लाजवंती' के गीतों की अपार सफलता।

और आइए अब हंस के जोड़े की कहानी भी पढ़ लीजिये...

कुछ दिन पहले एक ताल में कमलकुंज के अंदर
रहता था, एक हंस का जोड़ा।

रोज़ रोज़ भोर होते ही जब खिल जाते कमल,
दूर दूर दूर मोती चुगने को हंस घर से जाता निकल,
संध्या होते घर को आता झूम झूम के।

जब जब जब ढल जाता था दिन तारे जाते थे खिल,
सो जाते हिल-मिल के वो दोनों जैसे लहरों के दिल,
चंदा हँसता दोनों का मुख चूम चूम के।

थी उनकी एक नन्ही सी बेटी छोटी सी हंसिनी,
दोनों के नैनों की वो ज्योति घर की रोशनी,
ममता गाती और मुस्काती झूम झूम के।

फिर एक दिन ऐसा तूफ़ान आया चली ऐसी हवा,
बेचारे हंसा उड़ गये रे होके सबसे जुदा,
सागर सागर रोते हैं अब घूम घूम के।



क्या आप जानते हैं...
कि १९६२ के हेलसिंकी, फ़िनलैण्ड में आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय लोकसंगीत प्रतियोगिता' की जूरी में शामिल थे सचिन देव बर्मन।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 6/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - संगीत रवि का है.
सवाल १ - किस अभिनेत्री पर है ये मशहूर गीत - २ अंक
सवाल २ - किस बाल कलाकार ने फिल्म में प्रमुख अभिनेत्री के बेटे की भूमिका की थी, आगे चलकर ये एक मशहूर फिल्म लेखिका बनी - ३ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन है - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अनजाना जी, अमित जी, अविनाश जी और शरद जी को बधाई. पहेली संख्या २ के जवाब को लेकर असमंजस बना हुआ है. हमारे सभी सूत्र मुंशी अज़ीज़ का ही नाम दर्शा रहे हैं, मगर अमित जी हमें फिल्म अर्काईव का सन्दर्भ भेज चुके हैं, ऐसी स्तिथि में जब ये साफ़ नहीं हो पा रहा हमें लगता है कि पहली २ को निरस्त कर देना चाहिए. पहेली २ के स्थान पर हम इस शृंखला के अंतिम प्रश्न के साथ एक बोनस सवाल पूछ लेंगें, ओल्ड इस गोल्ड का समय आज से आधा घंटा पहले कर दिया गया है. आशा है आप सब श्रोता नियमित हिस्सा लेते रहेंगें

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Avinash Raj said…
ye Geet meena kumari par hai.
Anjaana said…
Prem Dhawan
Hindustani said…
Lyricst: Prem Dhawan
Anjaana said…
This is not done.. time got changed without prior notice..we should have informed in advance .. I didn't get a chance to answer the question...

So I am withdrawing my name from this Series ( and may be future series as well ) .. Satyagrah u see :)... Good Luck Amit, it's all urs now :)
are anjaana ji naraz mat hoyiye, we will sort it out, actually aapki baat theek hai par jab kal aapki tippani dekhi to hamen laga ki aapko andaaza lag gaya hoga. we will sort it out satyagrah kii avashyakta nahi
:)
Anjaana said…
Sajeev Ji.. ye series hi poori gadbad ho gayi hai .. Q2 ke ans par vivaad hai.. and now this time change.. iski wajah se bina baat ke hi series ki lead chali gayi.. aapko to maaloom hai yaha ek se ek dhurandhar hai.. ek ek ank ke liye kitni mehnat karni padti hai
बहुत सुन्दर, वाह..
AVADH said…
समय बदलने का नोटिस पढ़ा. ठीक रहा. अनजाना जी और अमित जी को थोड़ी सुविधा होगी.

पर एक बात है. हो सकता है अनेक ऐसे भी श्रोता हों जो दिन में ऑफिस करने के बाद शाम को घर पर ही आवाज़ की महफ़िल (और पहेली) का आनंद उठाते हों.कदाचित उनमें ऐसे भी व्यक्ति हों जो पहेली के उत्तर जानते भी हों पर जब तक वोह आवाज़ की प्रस्तुति देखते हों उस समय तक बाकी लोगों के उत्तर आ जाते हों. यदि उनकी प्रार्थना समय को थोडा देर से (मसलन शाम ८.०० बजे) करने की आये, तब क्या किया जायेगा?
मैं केवल एक मुद्दा उठा रहा हूँ, इसे कृपया मेरी शिकायत न समझा जाये. हालाँकि मेरा भी शुमार ऐसे लोगों में किया जा सकता है,(मैं भी आम तौर पर लगभग ८.३०- ९.०० बजे शाम ही आपकी प्रस्तुति देखता हूँ) पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है.
अच्छा लगता है यह देख कर कि अब इतने सारे संगीत प्रेमी - अमित, अनजाना, अविनाश, क्षिति, हिन्दुस्तानी (जी सबमें कॉमन है)सब लोग जुड़ते जा रहे हैं. क्यों महागुरु शरद जी क्या विचार है?
अवध लाल
AVADH said…
लाजवंती के इस गीत के अंतिम अन्तरा में आशाजी ने अपनी voice modulation effects से ऐसा अभिनय किया है कि बस उनकी आवाज़ का जादू देखते ही बनता है.लाजवाब!
अवध लाल

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