Skip to main content

एक हसीना थी, एक दीवाना था....एक कहानी नुमा गीत जिसमें फिल्म की पूरी तस्वीर छुपी है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 678/2011/118

'एक था गुल और एक थी बुलबुल' शृंखला में कल आपने १९७९ की फ़िल्म 'मिस्टर नटवरलाल' का गीत सुना था। जैसा कि हमने कल बताया था कि आनन्द बक्शी साहब के लिखे दो गीत आपको सुनवायेंगे, तो आज की कड़ी में सुनिये उनका लिखा एक और ज़बरदस्त कहानीनुमा गीत। यह केवल कहानीनुमा गीत ही नहीं, बल्कि उसकी फ़िल्म का सार भी है। पुनर्जनम की कहानी पर बनने वाली फ़िल्मों में एक महत्वपूर्ण नाम है 'कर्ज़' (१९८०)। राज किरण और सिमी गरेवाल प्रेम-विवाह कर लेते हैं। राज को भनक तक नहीं पड़ी कि सिमी ने दरअसल उसके बेहिसाब जायदाद को पाने के लिये उससे शादी की है। और फिर एक दिन धोखे से सिमी राज को गाड़ी से कुचल कर पहाड़ से फेंक देती है। राज किरण की मौत हो जाती है और सिमी अपने स्वर्गवासी पति के एस्टेट की मालकिन बन जाती है। लेकिन कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई। प्रकृति भी क्या क्या खेल रचती है! राज दोबारा जनम लेता है ॠषी कपूर के रूप में, और जवानी की दहलीज़ तक आते आते उसे अपने पिछले जनम की याद आ जाती है और किस तरह से वो सिमी से बदला लेता है अपने इस जनम की प्रेमिका टिना मुनीम के साथ मिल कर, किस तरह से पिछले जनम का कर्ज़ चुकाता है, यही है इस ब्लॉकबस्टर फ़िल्म की कहानी। एक कमर्शियल फ़िल्म की सफलता के लिये जिन जिन बातों की ज़रूरत होती है, वो सभी बातें मौजूद थीं सुभाष घई की इस फ़िल्म में। यहाँ तक कि इसके गीत-संगीत का पक्ष भी बहुत मज़बूत था। दोस्तों, पूनर्जनम और सस्पेन्स फ़िल्मों में पार्श्वसंगीत का बड़ा हाथ होता है माहौल को सेट करने के लिये। और ख़ास कर पूनर्जनम की कहानी मे ऐसी विशेष धुन की ज़रूरत होती है जिससे आती है एक हौण्टिंग् सी फ़ीलिंग्। यह धुन बार बार बजती है, और कभी कभी तो इसकी कहानी में इतनी अहमियत हो जाती है कि यह धुन ही पिछले जनम की याद दिलवा जाये! ऐसा ही कुछ 'कर्ज़' में भी था। याद है आपको वह इन्स्ट्रुमेण्टल पीस जो राज किरण और सिमी की गाड़ी में बजी थी ठीक राज के कत्ल से पहले। अगले जनम में ऋषी इसी धुन पर आधारित गीत गा कर और उस धुन पर उसी भयानक कहानी को सुना कर सिमी को भयभीत कर देता है। और दोस्तों, यही कहानी है आज के गीत में, जिसे आवाज़ें दी हैं किशोर कुमार और आशा भोसले नें। "एक हसीना थी, एक दीवाना था..."। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत था इस फ़िल्म में।

अभी जो उपर 'कर्ज़' फ़िल्म की कहानी हमने बतायी, उसी का एक अन्य रूप था गीत की शक्ल में! और फिर एक बार आनन्द बक्शी ऐट हिज़ बेस्ट!!! क्या कमाल का लिखा है। सिचुएशन है कि ऋषी कपूर को पिछले जनम की कातिल-पत्नी सिमी गरेवाल को उस भायानक कहानी की याद दिला कर उसे डराना है, उसे एक्स्पोज़ करना है। इस जनम में ऋषी एक सिंगर-डान्सर हैं, और यह काम वो एक स्टेज-शो में टिना मुनीम के साथ मिल कर करते हैं। गीत के शुरुआती बोल ऋषी कपूर की आवाज़ में ही है। आइए इस गीत-रूपी कहानी को पहले पढ़ें और फिर सुनें।

रोमिओ-जुलिएट, लैला-मजनु, शिरी और फ़रहाद,
इनका सच्चा इश्क़ ज़माने को अब तक है याद।

याद मुझे आया है एक ऐसे दिलबर का नाम,
जिसने धोखा देकर नाम-ए-इश्क़ किया बदनाम।

यही है सायबान कहानी प्यार की,
किसी ने जान ली, किसी ने जान दी।

एक हसीना थी, एक दीवाना था,
क्या उमर, क्या समा, क्या ज़माना था।

एक दिन वो मिले, रोज़ मिलने लगे,
फिर मोहब्बत हुई, बस क़यामत हुई,
खो गये तुम कहाँ, सुन के ये दास्ताँ,
लोग हैरान हैं, क्योंकि अंजान हैं,
इश्क की वो गली, बात जिसकी चली,
उस गली में मेरा आना-जाना था,
एक हसीना थी एक दीवाना था।

उस हसीं ने कहा, सुनो जाने-वफ़ा,
ये फ़लक ये ज़मीं, तेरे बिन कुछ नहीं,
तुझपे मरती हूँ मैं, प्यार करती हूँ मैं,
बात कुछ और थी, वो नज़र चोर थी,
उसके दिल में छुपी चाह दौलत की थी,
प्यार का वो फ़कत एक बहाना था,
एक हसीना थी एक दीवाना था।

बेवफ़ा यार ने अपने महबूब से,
ऐसा धोखा किया,
ज़हर उसको दिया,
धोखा धोखा धोखा धोखा।

मर गया वो जवाँ,
अब सुनो दास्ताँ,
जन्म लेके कहीं फिर वो पहुँचा वहीं,
शक्ल अंजान थी, अक्ल हैरान थी,
सामना जब हुआ, फिर वही सब हुआ,
उसपे ये कर्ज़ था, उसका ये फ़र्ज़ था,
फ़र्ज़ तो कर्ज़ अपना चुकाना था।




क्या आप जानते हैं...
कि 'कर्ज़' फ़िल्म के इस गीत के पहले इंटरल्युड म्युज़िक का इस्तमाल अनु मलिक नें फ़िल्म 'हर दिल जो प्यार करेगा' के गीत "ऐसा पहली बार हुआ सतरह अठरह सालों में" में किया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 9/शृंखला 18
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - लता की आवाज़ है गीत में.
सवाल १ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल २ - गीतकार का नाम बताएं - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
लगता है अनजाना जी वाकई सत्यग्रह पर बैठ गए हैं, अरे भाई हम सरकार नहीं हैं वापस आईये मुकाबल एकतरफा हो रहा है, अमित जी क्षिति जी और अविनाश जी को बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Avinash Raj said…
Ravinder rawal
Kshiti said…
Sangeetkar - Ram Lakshman
बहुत बढ़िया गाना है.
AVADH said…
फिल्म: हम साथ साथ हैं.
अवध लाल
हिन्दुस्तानी said…
Film: Bezubaan

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की