ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 666/2011/106
"मजरूह साहब का ताल्लुख़ अदब से है। वो ऐसे शायर हैं जो फ़िल्म इंडस्ट्री में आकर मशहूर नहीं हुए, बल्कि वो उससे पहले ही अपनी तारीफ़ करवा चुके थे। उन्होंने बहुत ज़्यादा गानें लिखे हैं, जिनमें कुछ अच्छे हैं, कुछ बुरे भी हैं। आदमी के देहान्त के बाद उसकी अच्छाइयों के बारे में ही कहना चाहिए। वो एक बहुत अच्छे ग़ज़लगो थे। वो आज हम सब से इतनी दूर जा चुके हैं कि उनकी अच्छाइयों के साथ साथ उनकी बुराइयाँ भी हमें अज़ीज़ है। आर. डी. बर्मन साहब की लफ़्ज़ों में मजरूह साहब का ट्युन पे लिखने का अभ्यास बहुत ज़्यादा था। मजरूह साहब नें बेशुमार गानें लिखे हैं जिस वजह से साहित्य और अदब में कुछ ज़्यादा नहीं कर पाये। उन्हें जब दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया, तब उन्होंने यह कहा था कि अगर यह पुरस्कार उन्हें साहित्य के लिये मिलता तो उसकी अहमियत बहुत ज़्यादा होती। "उन्होंने कुछ ऐसे गानें लिखे हैं जिन्हें कोई पढ़ा लिखा आदमी, भाषा के अच्छे ज्ञान के साथ ही, हमारे कम्पोज़िट कल्चर के लिये लिख सकता है।" - निदा फ़ाज़ली।
६० के दशक का पहला गीत इस शृंखला का हमनें कल सुना था फ़िल्म 'दोस्ती' का। आज सुनिये इसी दशक का फ़िल्म 'आकाशदीप' का गीत जिसके संगीतकार हैं चित्रगुप्त। इस संगीतकार के साथ भी मजरूह साहब नें बहुत काम किया है। रफ़ी साहब की आवाज़ में यह ग़ज़ल है "मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था, मुझे आप किसलिये मिल गये, मैं अकेले युं ही मज़े में था, मुझे आप किसलिये मिल गये"। यह १९६५ की फ़िल्म थी जिसका लता जी का गाया "दिल का दीया जलाके गया" आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पहले सुन चुके हैं। दोस्तों, १९६४-६५ का समय संगीतकार चित्रगुप्त के करीयर का शिखर समय था। पंकज राग लिखित किताब 'धुनों की यात्रा' में चित्रगुप्त के अध्याय में एक जगह यह लिखा गया है कि चित्रगुप्त के पुत्र आनंद ने एक साक्षात्कार में बताया था कि चित्रगुप्त की व्यस्तता का १९६४ का एक ज़माना वह भी था कि एक दिन आनंद बक्शी उनके घर बगीचे में गीत लिख रहे थे, तो मजरूह कहीं और डटे हुए थे, राजेन्द्र कृष्ण उनके संगीत-कक्ष में लगे थे और प्रेम धवन पिछवाड़े के नारियल के पेड़ के नीचे बैठे लिख रहे थे, और चित्रगुप्त बारी-बारी से एक हेडमास्टर की तरह सबके पास जाकर उनकी प्रगति आँक रहे थे। दोस्तों, है न मज़ेदार! और ऐसे ही न जाने कितने प्रसंग होंगे जो इन स्वर्णिम गीतों और इन लाजवाब फ़नकारों से संबंधित होंगे। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ में हमारी कोशिश और हमारी तलाश यही रहती है कि ऐसी दिलचस्प जानकारियों से हर शृंखला को समृद्ध करें। इसमें आप भी अपना सहयोग दे सकते हैं। अगर आपके पास भी फ़िल्म-संगीत इतिहास की अनोखी जानकारियाँ हैं तो आप उसे एक ईमेल में टाइप कर सूत्रब या संदर्भ के साथ हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर भेज सकते हैं। और आइए अब आनंद लें रफ़ी साहब की आवाज़ में मजरूह-चित्रगुप्त के इस गीत का। गीत फ़िल्माया गया है अभिनेता धर्मेन्द्र पर। चलते चलते मजरूह की इस ग़ज़ल के तमाम शेर पेशे खिदमत है.
मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था, मुझे आप किसलिये मिल गये,
मैं अकेले युं ही मज़े में था, मुझे आप किसलिये मिल गये।
युं ही अपने अपने सफ़र में गुम, कहीं दूर मैं कहीं दूर तुम,
चले जा रहे थे जुदा जुदा, मुझे आप किसलिये मिल गये।
मैं ग़रीब हाथ बढ़ा तो दूँ, तुम्हे पा सकूँ कि न पा सकूँ,
मेरी जाँ बहुत है ये फ़ासला, मुझे आप किसलिये मिल गये।
न मैं चांद हूँ किसी शाम का, न चिराग़ हूँ किसी बाम का,
मैं तो रास्ते का हूँ एक दीया, मुझे आप किसलिये मिल गये।
क्या आप जानते हैं...
कि हिंदी शब्दों में मजरूह साहब को कुछ शब्दों में ख़ासा दिलचस्पी थी, जैसे कि "प्यारे" और "दीया"। "दीया" शब्द के प्रयोग वाले गीतों में उल्लेखनीय हैं "दिल का दीया जलाके गया" (आकाशदीप), "क्या जानू सजन होती है क्या ग़म की शाम, जल उठे सौ दीये" (बहारों के सपने), "दीये जलायें प्यार के चलो इसी ख़ुशी में" (धरती कहे पुकार के)।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 7/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म के निर्देशक कौन थे - ३ अंक
सवाल २ - किस नायिका पर है ये गीत फिल्माया हुआ - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं- १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार टक्कर कांटे की है, अविनाश जी ८ अंक लेकर आगे चल रहे हैं, ६ अंकों पर हैं क्षिति जी, प्रतीक जी हैं ५ अंकों पर शरद जी ३ और हमारी प्रिय इंदु जी हैं २ अंकों पर.....इंदु जी आपको भूलें हमारी इतनी हिम्मत, अवध जी आप यूहीं आकार दिल खुश कर दिया कीजिये
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
"मजरूह साहब का ताल्लुख़ अदब से है। वो ऐसे शायर हैं जो फ़िल्म इंडस्ट्री में आकर मशहूर नहीं हुए, बल्कि वो उससे पहले ही अपनी तारीफ़ करवा चुके थे। उन्होंने बहुत ज़्यादा गानें लिखे हैं, जिनमें कुछ अच्छे हैं, कुछ बुरे भी हैं। आदमी के देहान्त के बाद उसकी अच्छाइयों के बारे में ही कहना चाहिए। वो एक बहुत अच्छे ग़ज़लगो थे। वो आज हम सब से इतनी दूर जा चुके हैं कि उनकी अच्छाइयों के साथ साथ उनकी बुराइयाँ भी हमें अज़ीज़ है। आर. डी. बर्मन साहब की लफ़्ज़ों में मजरूह साहब का ट्युन पे लिखने का अभ्यास बहुत ज़्यादा था। मजरूह साहब नें बेशुमार गानें लिखे हैं जिस वजह से साहित्य और अदब में कुछ ज़्यादा नहीं कर पाये। उन्हें जब दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया, तब उन्होंने यह कहा था कि अगर यह पुरस्कार उन्हें साहित्य के लिये मिलता तो उसकी अहमियत बहुत ज़्यादा होती। "उन्होंने कुछ ऐसे गानें लिखे हैं जिन्हें कोई पढ़ा लिखा आदमी, भाषा के अच्छे ज्ञान के साथ ही, हमारे कम्पोज़िट कल्चर के लिये लिख सकता है।" - निदा फ़ाज़ली।
६० के दशक का पहला गीत इस शृंखला का हमनें कल सुना था फ़िल्म 'दोस्ती' का। आज सुनिये इसी दशक का फ़िल्म 'आकाशदीप' का गीत जिसके संगीतकार हैं चित्रगुप्त। इस संगीतकार के साथ भी मजरूह साहब नें बहुत काम किया है। रफ़ी साहब की आवाज़ में यह ग़ज़ल है "मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था, मुझे आप किसलिये मिल गये, मैं अकेले युं ही मज़े में था, मुझे आप किसलिये मिल गये"। यह १९६५ की फ़िल्म थी जिसका लता जी का गाया "दिल का दीया जलाके गया" आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पहले सुन चुके हैं। दोस्तों, १९६४-६५ का समय संगीतकार चित्रगुप्त के करीयर का शिखर समय था। पंकज राग लिखित किताब 'धुनों की यात्रा' में चित्रगुप्त के अध्याय में एक जगह यह लिखा गया है कि चित्रगुप्त के पुत्र आनंद ने एक साक्षात्कार में बताया था कि चित्रगुप्त की व्यस्तता का १९६४ का एक ज़माना वह भी था कि एक दिन आनंद बक्शी उनके घर बगीचे में गीत लिख रहे थे, तो मजरूह कहीं और डटे हुए थे, राजेन्द्र कृष्ण उनके संगीत-कक्ष में लगे थे और प्रेम धवन पिछवाड़े के नारियल के पेड़ के नीचे बैठे लिख रहे थे, और चित्रगुप्त बारी-बारी से एक हेडमास्टर की तरह सबके पास जाकर उनकी प्रगति आँक रहे थे। दोस्तों, है न मज़ेदार! और ऐसे ही न जाने कितने प्रसंग होंगे जो इन स्वर्णिम गीतों और इन लाजवाब फ़नकारों से संबंधित होंगे। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ में हमारी कोशिश और हमारी तलाश यही रहती है कि ऐसी दिलचस्प जानकारियों से हर शृंखला को समृद्ध करें। इसमें आप भी अपना सहयोग दे सकते हैं। अगर आपके पास भी फ़िल्म-संगीत इतिहास की अनोखी जानकारियाँ हैं तो आप उसे एक ईमेल में टाइप कर सूत्रब या संदर्भ के साथ हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर भेज सकते हैं। और आइए अब आनंद लें रफ़ी साहब की आवाज़ में मजरूह-चित्रगुप्त के इस गीत का। गीत फ़िल्माया गया है अभिनेता धर्मेन्द्र पर। चलते चलते मजरूह की इस ग़ज़ल के तमाम शेर पेशे खिदमत है.
मुझे दर्द-ए-दिल का पता न था, मुझे आप किसलिये मिल गये,
मैं अकेले युं ही मज़े में था, मुझे आप किसलिये मिल गये।
युं ही अपने अपने सफ़र में गुम, कहीं दूर मैं कहीं दूर तुम,
चले जा रहे थे जुदा जुदा, मुझे आप किसलिये मिल गये।
मैं ग़रीब हाथ बढ़ा तो दूँ, तुम्हे पा सकूँ कि न पा सकूँ,
मेरी जाँ बहुत है ये फ़ासला, मुझे आप किसलिये मिल गये।
न मैं चांद हूँ किसी शाम का, न चिराग़ हूँ किसी बाम का,
मैं तो रास्ते का हूँ एक दीया, मुझे आप किसलिये मिल गये।
क्या आप जानते हैं...
कि हिंदी शब्दों में मजरूह साहब को कुछ शब्दों में ख़ासा दिलचस्पी थी, जैसे कि "प्यारे" और "दीया"। "दीया" शब्द के प्रयोग वाले गीतों में उल्लेखनीय हैं "दिल का दीया जलाके गया" (आकाशदीप), "क्या जानू सजन होती है क्या ग़म की शाम, जल उठे सौ दीये" (बहारों के सपने), "दीये जलायें प्यार के चलो इसी ख़ुशी में" (धरती कहे पुकार के)।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 7/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म के निर्देशक कौन थे - ३ अंक
सवाल २ - किस नायिका पर है ये गीत फिल्माया हुआ - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं- १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार टक्कर कांटे की है, अविनाश जी ८ अंक लेकर आगे चल रहे हैं, ६ अंकों पर हैं क्षिति जी, प्रतीक जी हैं ५ अंकों पर शरद जी ३ और हमारी प्रिय इंदु जी हैं २ अंकों पर.....इंदु जी आपको भूलें हमारी इतनी हिम्मत, अवध जी आप यूहीं आकार दिल खुश कर दिया कीजिये
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
आजकल बड़े प्यारे गाने सुना रहे हो भई.मजा आ जाता है यहाँ आके.
शरद भैया ! अवध भैया ! आप लोग कैसे हैं?