ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 661/2011/101
"वो तो है अलबेला, हज़ारों में अकेला"। फ़िल्म 'कभी हाँ कभी ना" के गीत के ये शब्द ख़ुद उन पर भी लागू होते हैं जिन्होंने इसे लिखा है। १९४६ से लेकर अगले पाँच दशकों तक एक से एक कामयाब, लाजवाब, सदाबहार गीत देने वाले इस फ़िल्मी गीतकार का शुमार अदबी शायरों में भी होता है। और केवल लेखन ही नहीं, हकीम शास्त्र में भी पारंगत इस लाजवाब शख़्स को हम सब जानते हैं मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से। आगामी २४ मई को मजरूह साहब की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य पर आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु हो रही है उनके लिखे दस अलग अलग संगीतकारों की स्वरबद्ध फ़िल्मी रचनाओं पर आधारित हमारी नई लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया'। १९४५ में साबू सिद्दिक़ी इंस्टिट्युट में आयोजित एक मुशायरे में भाग लेने के लिये मजरूह साहब बम्बई तशरीफ़ लाये थे। वहाँ उनकी ग़ज़लों और नज़्मों का श्रोताओं पर गहरा असर हुआ और इन श्रोताओं में फ़िल्मकार ए. आर. कारदार भी शामिल थे। कारदार साहब नें फिर जिगर मोरादाबादी को सम्पर्क किया जिन्होंने उनकी मुलाक़ात मजरूह से करवा दी। लेकिन मजरूह साहब नें फ़िल्मों के लिये लिखने से मना कर दिया क्योंकि फ़िल्म में लिखने को वो ऊँचा काम नहीं मानते थे। लेकिन जिगर साहब के अनुरोध और यह समझाने पर कि फ़िल्मों के लिये गीत लिखने से उन्हें अच्छे पैसे मिल सकते हैं जिससे वो अपने परिवार का अच्छा भरन-पोषण कर सकते हैं, मजरूह साहब मान गये। कारदार साहब मजरूह को लेकर सीधे नौशाद साहब के पास गये जो उन दिनों 'शाहजहाँ' फ़िल्म के गीत रच रहे थे। नौशाद नें मजरूह को एक धुन सुनाई और उनसे कहा कि उस मीटर पर कुछ लिखे। और मजरूह साहब की क़लम से निकले "जब उसने गेसु बिखराये, बादल आये झूम के"। नौशाद साहब को पसंद आई और इस तरह से ख़ुमार बाराबंकवी के साथ मजरूह भी बन गये फ़िल्म 'शाहजहाँ' का हिस्सा।
तो दोस्तों, आइए मजरूह साहब के लिखे इस पहले पहले गीत से ही इस शृंखला का शुभारंभ किया जाये। शम्शाद बेगम की आवाज़ में है यह गीत "जब उसने गेसु बिखराये"। इसी फ़िल्म के सहगल साहब के गाये तीन गीत हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुनवा चुके हैं, इसलिए आज के इस अंक में हम सहगल साहब के गाये गीतों की चर्चा नहीं करेंगे। बस इतना ही कहेंगे कि नौशाद साहब की तरह मजरूह साहब को भी बस इसी एक फ़िल्म में सहगल साहब से अपने गीत गवाने का मौका मिला था। लेकिन कुंदनलाल सहगल से लेकर कुमार सानू तक, लगभग सभी गायकों नें उनके लिखे गीत गाये और अपार शोहरत हासिल की। आज क्योंकि नौशाद साहब की रचना हम आप तक पहूँचा रहे हैं, तो गीत सुनने से पहले ये रहे चंद शब्द जो नौशाद साहब नें कहे थे मजरूह साहब की शान में - "मजरूह सिर्फ़ उर्दू के शायर ही नहीं थे, वो तो हाफ़िज़-ए-क़ुरान थे साहब! कोई मसला पूछना हो तो वो अरबी-फ़ारसी से रेफ़्रेन्स दिया करते थे। जहाँ तक उनकी शायरी का सवाल है, वो एक मुकम्मल शायर थे। उनकी शायरी में कोई झोल नहीं था। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के साथी थे, तरक्की पसंद शायरी की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी, उस वक़्त वे जैल में थे। उनकी जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है। मुझे इस बात का फ़क्र है कि मैंने ही उनको मुशायरे से उठाकर फ़िल्म लाइन में ले आया। भिंडी बाज़ार की पंजाबी शायरी में मैं उनसे मिला था। शक़ील, ख़ुमार और मजरूह, इन तीनों को मैंने ही मुशायरे से कारदार स्टुडिओज़ ले गया था। फ़नकार कभी मरता नहीं है, अपने फ़न से वो हमेशा ज़िंदा रहता है और मजरूह अपने गीतों के ज़रिये अमर रहेंगे।" आइए मजरूह साहब के लिखे गीतों का कारवाँ शुरु करते हैं शमशाद बेगम के गाये इस गीत के साथ।
क्या आप जानते हैं...
कि शक़ील बदायूनी और नौशाद साहब का साथ शुरु होने से लेकर शक़ील साहब की मृत्यु तक केवल एक ऐसी फ़िल्म बनी जिसमें नौशाद साहब नें मजरूह के लिखे गीतों को स्वरबद्ध किया था, और यह फ़िल्म थी 'अंदाज़' (१९४९)।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 2/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - प्रदीप कुमार नायक थे फिल्म के.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म की नायिका कौन है - ३ अंक
सवाल ३ - गायिका बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी और अनजाना जी आप दोनों के फैसले के हम सम्मान करते हैं, इसलिए आज पहली काफी आसान दे रखी है देखते हैं कौन कौन आगे आते हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
"वो तो है अलबेला, हज़ारों में अकेला"। फ़िल्म 'कभी हाँ कभी ना" के गीत के ये शब्द ख़ुद उन पर भी लागू होते हैं जिन्होंने इसे लिखा है। १९४६ से लेकर अगले पाँच दशकों तक एक से एक कामयाब, लाजवाब, सदाबहार गीत देने वाले इस फ़िल्मी गीतकार का शुमार अदबी शायरों में भी होता है। और केवल लेखन ही नहीं, हकीम शास्त्र में भी पारंगत इस लाजवाब शख़्स को हम सब जानते हैं मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से। आगामी २४ मई को मजरूह साहब की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य पर आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु हो रही है उनके लिखे दस अलग अलग संगीतकारों की स्वरबद्ध फ़िल्मी रचनाओं पर आधारित हमारी नई लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया'। १९४५ में साबू सिद्दिक़ी इंस्टिट्युट में आयोजित एक मुशायरे में भाग लेने के लिये मजरूह साहब बम्बई तशरीफ़ लाये थे। वहाँ उनकी ग़ज़लों और नज़्मों का श्रोताओं पर गहरा असर हुआ और इन श्रोताओं में फ़िल्मकार ए. आर. कारदार भी शामिल थे। कारदार साहब नें फिर जिगर मोरादाबादी को सम्पर्क किया जिन्होंने उनकी मुलाक़ात मजरूह से करवा दी। लेकिन मजरूह साहब नें फ़िल्मों के लिये लिखने से मना कर दिया क्योंकि फ़िल्म में लिखने को वो ऊँचा काम नहीं मानते थे। लेकिन जिगर साहब के अनुरोध और यह समझाने पर कि फ़िल्मों के लिये गीत लिखने से उन्हें अच्छे पैसे मिल सकते हैं जिससे वो अपने परिवार का अच्छा भरन-पोषण कर सकते हैं, मजरूह साहब मान गये। कारदार साहब मजरूह को लेकर सीधे नौशाद साहब के पास गये जो उन दिनों 'शाहजहाँ' फ़िल्म के गीत रच रहे थे। नौशाद नें मजरूह को एक धुन सुनाई और उनसे कहा कि उस मीटर पर कुछ लिखे। और मजरूह साहब की क़लम से निकले "जब उसने गेसु बिखराये, बादल आये झूम के"। नौशाद साहब को पसंद आई और इस तरह से ख़ुमार बाराबंकवी के साथ मजरूह भी बन गये फ़िल्म 'शाहजहाँ' का हिस्सा।
तो दोस्तों, आइए मजरूह साहब के लिखे इस पहले पहले गीत से ही इस शृंखला का शुभारंभ किया जाये। शम्शाद बेगम की आवाज़ में है यह गीत "जब उसने गेसु बिखराये"। इसी फ़िल्म के सहगल साहब के गाये तीन गीत हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुनवा चुके हैं, इसलिए आज के इस अंक में हम सहगल साहब के गाये गीतों की चर्चा नहीं करेंगे। बस इतना ही कहेंगे कि नौशाद साहब की तरह मजरूह साहब को भी बस इसी एक फ़िल्म में सहगल साहब से अपने गीत गवाने का मौका मिला था। लेकिन कुंदनलाल सहगल से लेकर कुमार सानू तक, लगभग सभी गायकों नें उनके लिखे गीत गाये और अपार शोहरत हासिल की। आज क्योंकि नौशाद साहब की रचना हम आप तक पहूँचा रहे हैं, तो गीत सुनने से पहले ये रहे चंद शब्द जो नौशाद साहब नें कहे थे मजरूह साहब की शान में - "मजरूह सिर्फ़ उर्दू के शायर ही नहीं थे, वो तो हाफ़िज़-ए-क़ुरान थे साहब! कोई मसला पूछना हो तो वो अरबी-फ़ारसी से रेफ़्रेन्स दिया करते थे। जहाँ तक उनकी शायरी का सवाल है, वो एक मुकम्मल शायर थे। उनकी शायरी में कोई झोल नहीं था। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के साथी थे, तरक्की पसंद शायरी की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी, उस वक़्त वे जैल में थे। उनकी जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है। मुझे इस बात का फ़क्र है कि मैंने ही उनको मुशायरे से उठाकर फ़िल्म लाइन में ले आया। भिंडी बाज़ार की पंजाबी शायरी में मैं उनसे मिला था। शक़ील, ख़ुमार और मजरूह, इन तीनों को मैंने ही मुशायरे से कारदार स्टुडिओज़ ले गया था। फ़नकार कभी मरता नहीं है, अपने फ़न से वो हमेशा ज़िंदा रहता है और मजरूह अपने गीतों के ज़रिये अमर रहेंगे।" आइए मजरूह साहब के लिखे गीतों का कारवाँ शुरु करते हैं शमशाद बेगम के गाये इस गीत के साथ।
क्या आप जानते हैं...
कि शक़ील बदायूनी और नौशाद साहब का साथ शुरु होने से लेकर शक़ील साहब की मृत्यु तक केवल एक ऐसी फ़िल्म बनी जिसमें नौशाद साहब नें मजरूह के लिखे गीतों को स्वरबद्ध किया था, और यह फ़िल्म थी 'अंदाज़' (१९४९)।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 2/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - प्रदीप कुमार नायक थे फिल्म के.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म की नायिका कौन है - ३ अंक
सवाल ३ - गायिका बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी और अनजाना जी आप दोनों के फैसले के हम सम्मान करते हैं, इसलिए आज पहली काफी आसान दे रखी है देखते हैं कौन कौन आगे आते हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
अभी इसी समय देखने का अवसर मिला.
मुझे लगता है कि पहेली में पूछे गए गीत की फिल्म थी 'हीर' जिसमें नायक प्रदीप कुमार थे और नूतन ने हीर का रोल निभाया था.जैसा अविनाश जी ने भी इंगित किया है.
परन्तु इस हिसाब से तो फिल्म के संगीतकार होने चाहिए: अनिल (दा) बिस्वास न कि नौशाद साहेब.
अवध लाल