इतनी बड़ी ये दुनिया जहाँ इतना बड़ा मेला....पर कोई है अकेला दिल, जिसकी फ़रियाद में एक हँसी भी है उपहास की
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 654/2011/94
गान और मुस्कान', इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है यह लघु शृंखला जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गायक-गायिकाओं की हँसी या मुस्कुराहट सुनाई या महसूस की जा सकती है। पिछले गीतों में नायिका की चुलबुली अंदाज़, शोख़ी और रूमानीयत से भरी अदायगी, और साथ ही उनकी मुस्कुराहटें, उनकी हँसी आपनें सुनी। लेकिन जैसा कि पहले अंक में हमनें कहा था कि ज़रूरी नहीं कि हँसी हास्य से ही उत्पन्न हो, कभी कभार ग़म में भी हंसी छूटती है, और वह होती है अफ़सोस की हँसी, धिक्कार की हँसी। यहाँ हास्य रस नहीं बल्कि विभत्स रस का संचार होता है। जी हाँ, कई बार जब दुख तकलीफ़ें किसी का पीछा ही नहीं छोड़ती, तब एक समय के बाद जाकर वह आदमी दुख-तकलीफ़ों से ज़्यादा घबराता नहीं, बल्कि दुखों पर ही हँस पड़ता है, अपनी किस्मत पर हँस पड़ता है। आज के अंक के लिए हम एक ऐसा ही गीत लेकर आये हैं रफ़ी साहब की आवाज़ में। जी हाँ रफ़ी साहब की आवाज़ में अफ़सोस की हँसी। दोस्तों, वैसे तो इस गीत को मैंने बहुत साल पहले एक बार सुना था, लेकिन मेरे दिमाग से यह गीत निकल ही चुका था। और जब मैं रफ़ी साहब की हँसी वाला गीत नेट पर ढूंढ रहा था इस शृंखला के लिए, तो मुझे यकीन था कि शायद कोई ऐसा गीत मिलेगा जिसमें अभिनेता होंगे जॉनी वाकर या कोई और हास्य कलाकार। लेकिन आश्चर्य से मेरे हाथ यह गीत लगा और मुझे ख़ुशी है कि हँसी से इस रूप को भी इस शृंखला में हम शामिल कर सके। यह गीत है फ़िल्म 'तूफ़न में प्यार कहाँ' का। कुछ याद आया कि कितने साल पहले आपने इस गीत को सुना होगा?
'तूफ़ान में प्यार कहाँ' सन् १९६६ की फ़िल्म थी, जिसमें मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, नलिनी जयवंत, शशिकला, जयश्री गडकर और सुंदर प्रमुख। फणी मजुमदार निर्देशित इस फ़िल्म को बॉक्स ओफ़िस पर कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन इसके कम से कम दो गीत मशहूर ज़रूर हुए थे। एक तो लता-रफ़ी का "आधी रात को खनक गया" और दूसरा गीत था रफ़ी की एकल आवाज़ में "इतनी बड़ी दुनिया, जहाँ इतना बड़ा मेला, मगर मैं, हा हा हा, कितना अकेला"। दादामुनि पर फ़िल्माये गये इस गीत नें मेरी एक और ग़लत धारणा को परास्त किया। पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में यह बैठा हुआ था कि इस गीत को दादामुनि नें ही गाया है, यह तो मुझे कल ही पता चला कि इसे रफ़ी साहब नें आवाज़ दी है। लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि रफ़ी साहब नें दादामुनि अशोक कुमार की शख़्सीयत और आवाज़ को ध्यान में रख कर ही इस गीत को गाया होगा। इस फ़िल्म के संगीतकार थे चित्रगुप्त और गीतकार थे प्रेम धवन। चित्रगुप्त और उनके गायकों की बात करें तो अपने करीयर के शुरुआती सालों में उमा देवी, शम्शाद बेगम जैसी गायिकाओं को गवाया। वैसे लता के साथ सम्पर्क में आने के बाद उनके गीतों को नई बुलंदी मिली। लेकिन इससे पहले आशा उनकी प्रमुख गायिका के रूप में नज़र आईं। गायकों में जहाँ वो ख़ुद भी अपनी आवाज़ लगा लिया करते थे, साथ ही किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी, और तलत महमूद को भी शुरुआती सालों में गवाया। पर तलत या किशोर कभी उनके प्रमुख गायक नहीं बने। प्रमुख गायक के रूप में रफ़ी और मुकेश ही सामने आये। दूसरे शब्दों में लता, रफ़ी और मुकेश से ही चित्रगुप्त को अपने करीयर के सफलतम गीत मिले। तो आइए आज का यह गीत सुनते हैं, इस गीत में निराशा भरे सु्रों में भी हँसी की एक झलक महसूस कीजिए रफ़ी साहब की आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि बिहार के छपरा ज़िले में जन्में चित्रगुप्त संगीतकार बनने से पहले इकोनोमिक्स और जर्नलिज़्म में पोस्ट-ग्रैजुएशन किया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 05/शृंखला 16
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - किन दो कलाकारों पर फिल्माया गया है ये युगल गीत - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
४ सही जवाब एक बार फिर अमित जी, अन्जाना जी, हिन्दुस्तानी जी और प्रतीक जी को बधाई, अमित जी हमारे पास उपलब्ध सबसे विश्वसनीय सोत्र के रूप में गीतकोश है, जिसके अनुसार "अनुभव" फिल्म में गुलज़ार और कपिल कुमार दोनों ने ही गीत लिखे थे, जहाँ कपिल ने "कोई चुपके से आके" और "कहीं कोई फूल खिला" गीत लिखे वहीँ गुलज़ार साहब ने "मेरा दिल जो मेरा होता" और "मेरी जान" के लिए कलम उठायी. इसलिए हम पिछले परिणामों को ही मान्य मानेंगें.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
गान और मुस्कान', इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है यह लघु शृंखला जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गायक-गायिकाओं की हँसी या मुस्कुराहट सुनाई या महसूस की जा सकती है। पिछले गीतों में नायिका की चुलबुली अंदाज़, शोख़ी और रूमानीयत से भरी अदायगी, और साथ ही उनकी मुस्कुराहटें, उनकी हँसी आपनें सुनी। लेकिन जैसा कि पहले अंक में हमनें कहा था कि ज़रूरी नहीं कि हँसी हास्य से ही उत्पन्न हो, कभी कभार ग़म में भी हंसी छूटती है, और वह होती है अफ़सोस की हँसी, धिक्कार की हँसी। यहाँ हास्य रस नहीं बल्कि विभत्स रस का संचार होता है। जी हाँ, कई बार जब दुख तकलीफ़ें किसी का पीछा ही नहीं छोड़ती, तब एक समय के बाद जाकर वह आदमी दुख-तकलीफ़ों से ज़्यादा घबराता नहीं, बल्कि दुखों पर ही हँस पड़ता है, अपनी किस्मत पर हँस पड़ता है। आज के अंक के लिए हम एक ऐसा ही गीत लेकर आये हैं रफ़ी साहब की आवाज़ में। जी हाँ रफ़ी साहब की आवाज़ में अफ़सोस की हँसी। दोस्तों, वैसे तो इस गीत को मैंने बहुत साल पहले एक बार सुना था, लेकिन मेरे दिमाग से यह गीत निकल ही चुका था। और जब मैं रफ़ी साहब की हँसी वाला गीत नेट पर ढूंढ रहा था इस शृंखला के लिए, तो मुझे यकीन था कि शायद कोई ऐसा गीत मिलेगा जिसमें अभिनेता होंगे जॉनी वाकर या कोई और हास्य कलाकार। लेकिन आश्चर्य से मेरे हाथ यह गीत लगा और मुझे ख़ुशी है कि हँसी से इस रूप को भी इस शृंखला में हम शामिल कर सके। यह गीत है फ़िल्म 'तूफ़न में प्यार कहाँ' का। कुछ याद आया कि कितने साल पहले आपने इस गीत को सुना होगा?
'तूफ़ान में प्यार कहाँ' सन् १९६६ की फ़िल्म थी, जिसमें मुख्य कलाकार थे अशोक कुमार, नलिनी जयवंत, शशिकला, जयश्री गडकर और सुंदर प्रमुख। फणी मजुमदार निर्देशित इस फ़िल्म को बॉक्स ओफ़िस पर कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन इसके कम से कम दो गीत मशहूर ज़रूर हुए थे। एक तो लता-रफ़ी का "आधी रात को खनक गया" और दूसरा गीत था रफ़ी की एकल आवाज़ में "इतनी बड़ी दुनिया, जहाँ इतना बड़ा मेला, मगर मैं, हा हा हा, कितना अकेला"। दादामुनि पर फ़िल्माये गये इस गीत नें मेरी एक और ग़लत धारणा को परास्त किया। पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में यह बैठा हुआ था कि इस गीत को दादामुनि नें ही गाया है, यह तो मुझे कल ही पता चला कि इसे रफ़ी साहब नें आवाज़ दी है। लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि रफ़ी साहब नें दादामुनि अशोक कुमार की शख़्सीयत और आवाज़ को ध्यान में रख कर ही इस गीत को गाया होगा। इस फ़िल्म के संगीतकार थे चित्रगुप्त और गीतकार थे प्रेम धवन। चित्रगुप्त और उनके गायकों की बात करें तो अपने करीयर के शुरुआती सालों में उमा देवी, शम्शाद बेगम जैसी गायिकाओं को गवाया। वैसे लता के साथ सम्पर्क में आने के बाद उनके गीतों को नई बुलंदी मिली। लेकिन इससे पहले आशा उनकी प्रमुख गायिका के रूप में नज़र आईं। गायकों में जहाँ वो ख़ुद भी अपनी आवाज़ लगा लिया करते थे, साथ ही किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी, और तलत महमूद को भी शुरुआती सालों में गवाया। पर तलत या किशोर कभी उनके प्रमुख गायक नहीं बने। प्रमुख गायक के रूप में रफ़ी और मुकेश ही सामने आये। दूसरे शब्दों में लता, रफ़ी और मुकेश से ही चित्रगुप्त को अपने करीयर के सफलतम गीत मिले। तो आइए आज का यह गीत सुनते हैं, इस गीत में निराशा भरे सु्रों में भी हँसी की एक झलक महसूस कीजिए रफ़ी साहब की आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि बिहार के छपरा ज़िले में जन्में चित्रगुप्त संगीतकार बनने से पहले इकोनोमिक्स और जर्नलिज़्म में पोस्ट-ग्रैजुएशन किया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 05/शृंखला 16
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - किन दो कलाकारों पर फिल्माया गया है ये युगल गीत - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
४ सही जवाब एक बार फिर अमित जी, अन्जाना जी, हिन्दुस्तानी जी और प्रतीक जी को बधाई, अमित जी हमारे पास उपलब्ध सबसे विश्वसनीय सोत्र के रूप में गीतकोश है, जिसके अनुसार "अनुभव" फिल्म में गुलज़ार और कपिल कुमार दोनों ने ही गीत लिखे थे, जहाँ कपिल ने "कोई चुपके से आके" और "कहीं कोई फूल खिला" गीत लिखे वहीँ गुलज़ार साहब ने "मेरा दिल जो मेरा होता" और "मेरी जान" के लिए कलम उठायी. इसलिए हम पिछले परिणामों को ही मान्य मानेंगें.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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