ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 663/2011/103
'...और कारवाँ बनता गया', गीतकार व शायर मजरूह सुल्तानपुरी को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की चौथी कड़ी में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। मजरूह साहब पर एक किताब प्रकाशित हुई है जिसे उनके दो चाहनेवालों नें लिखे हैं। ये दो शख़्स हैं अमेरीका निवासी भारतीय मूल के बैदर बख़्त और उनकी अमरीकी सहयोगी मारीएन एर्की। इन दो मजरूह प्रशंसकों नें उनकी ग़ज़लों को संकलित कर एक किताब के रूप में प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है 'Never Mind Your Chains'। यह शीर्षक मजरूह साहब के ही लिखे एक शेर से आया है - "देख ज़िदान के परे, रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार, रक्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख"। अर्थात् चमन खिला हुआ है पिंजरे के ठीक उस पार, अगर नाच उठना है तो फिर पांव की बेड़ियों की तरफ़ न देख, never mind your chains। थोड़ा और क़रीब से देखा जाये तो उनकी यह ख़ूबसूरत ग़ज़ल उनके करीयर पर भी लागू होती है। उनका कभी न रुकने, कभी न हार स्वीकारने की अदा, लाख पाबंदियों के बावजूद उन्हें न रोक सकी, और आज उन्होंने एक अमर शायर व गीतकार के रूप में इतिहास में अपनी जगह बना ली है। दोस्तों, इन दिनों चर्चा जारी है मजरूह साहब के लिखे ५० के दशक के गीतों की। यह सच है कि इस दशक में मजरूह नें 'आर पार', 'दिल्ली का ठग', 'चलती का नाम गाड़ी', 'नौ दो ग्यारह', 'सी.आइ.डी', 'पेयिंग् गेस्ट' और 'तुमसा नहीं देखा' जैसे फ़िल्मों में गीत लिखकर एक व्यावसायिक हल्के फुल्के गीतकार के रूप में अपने आप को प्रस्तुत किया, जहाँ दूसरी तरफ़ उनके समकालीनों में साहिर, प्रदीप, कैफ़ी आज़्मी, भरत व्यास और शैलेन्द्र जैसे गीतकार स्तरीय काम कर रहे थे। बावजूद इसके, मजरूह नें अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और इसका नतीजा है कि गीतकारों में वो पहले व अकेले गीतकार हुए जिन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नौशाद, अनिल बिस्वास और मदन मोहन के बाद आज हम जिस संगीतकार की रचना लेकर आये हैं, उस संगीतकार के साथ भी मजरूह साहब नें लम्बी पारी खेली, और सिर्फ़ लम्बी ही नहीं, बेहद सफल भी। ये थे ओ. पी. नय्यर साहब। जैसा कि कल की कड़ी में हमनें आपको बताया कि १९५३ में नय्यर साहब और मजरूह साहब के जोड़ी की पहली फ़िल्म 'बाज़' प्रदर्शित हुई थी। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर पिट गई थी, लेकिन अगले ही साल, १९५४ में, इस जोड़ी की फ़िल्म 'आर-पार' नें जैसे चारों तरफ़ तहल्का मचा दिया। गायिका गीता दत्त, जो उन दिनों ज़्यादातर भक्तिमूलक और दर्दीले गीत ही गाती चली आ रहीं थीं, उनकी गायन क्षमता को एक नया आयाम मिला इस फ़िल्म से। "ए लो मैं हारी पिया हुई तेरी जीत रे", "बाबूजी धीरे चलना", "मोहब्बत कर लो जी भर लो", "हूँ अभी मैं जवान ऐ दिल", "अरे न न न तौबा तौबा", और "सुन सुन सुन सुन ज़ालिमा" जैसे गीतों में गीता जी की मादकता आज भी दिल में हलचल पैदा कर देती है। लेकिन इस फ़िल्म में एक और गीत भी है, जिसमें गीता जी का अंदाज़ कुछ ग़मगीन सा है। "सुन सुन ज़ालिमा" गीत का ही एक संस्करण हम इसे कह सकते हैं, जिसके बोल हैं "जा जा जा जा बेवफ़ा, कैसा प्यार कैसी प्रीत रे, तू ना किसी का मीत रे, झूठे तेरे प्यार की क़सम"। वैसे यही पंक्ति "सुन सुन ज़ालिमा" में भी गीता दत्त गाती हैं, लेकिन एक नोक-झोक टकरार वाली अंदाज़ में, और इसी को धीमी लय में और सैड मूड में परिवर्तित कर इसका गीता जी का एकल संस्करण बनाया गया है। तो आइए आज की कड़ी करें मजरूह और नय्यर की अमर जोड़ी के नाम, साथ ही गीता जी का भी स्मरण।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'फागुन' के निर्माता शुरु शुरु में इस फ़िल्म के गीत मजरूह से लिखवाना चाहते थे, लेकिन ओ.पी. नय्यर के सुझाव पर क़मर जलालाबादी से गीत लिखवाये गये क्योंकि फ़िल्म की पटकथा व संवाद क़मर साहब नें ही लिखे थे।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 5/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म में किन दो कलाकारों की प्रमुख भूमिकाएं है - ३ अंक
सवाल २ - फिल्म के निर्देशक कौन थे - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं- १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
प्रतीक जी एकदम सही जवाब है, २ अंक अविनाश जी के खाते में भी आये, क्षिति जी आपका जवाब स्वीकार्य न हो ऐसा कैसे संभव है, इंदु जी कभी कभार आ जाया कीजिये दिल खुश हो जाता है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'...और कारवाँ बनता गया', गीतकार व शायर मजरूह सुल्तानपुरी को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की चौथी कड़ी में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। मजरूह साहब पर एक किताब प्रकाशित हुई है जिसे उनके दो चाहनेवालों नें लिखे हैं। ये दो शख़्स हैं अमेरीका निवासी भारतीय मूल के बैदर बख़्त और उनकी अमरीकी सहयोगी मारीएन एर्की। इन दो मजरूह प्रशंसकों नें उनकी ग़ज़लों को संकलित कर एक किताब के रूप में प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है 'Never Mind Your Chains'। यह शीर्षक मजरूह साहब के ही लिखे एक शेर से आया है - "देख ज़िदान के परे, रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार, रक्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख"। अर्थात् चमन खिला हुआ है पिंजरे के ठीक उस पार, अगर नाच उठना है तो फिर पांव की बेड़ियों की तरफ़ न देख, never mind your chains। थोड़ा और क़रीब से देखा जाये तो उनकी यह ख़ूबसूरत ग़ज़ल उनके करीयर पर भी लागू होती है। उनका कभी न रुकने, कभी न हार स्वीकारने की अदा, लाख पाबंदियों के बावजूद उन्हें न रोक सकी, और आज उन्होंने एक अमर शायर व गीतकार के रूप में इतिहास में अपनी जगह बना ली है। दोस्तों, इन दिनों चर्चा जारी है मजरूह साहब के लिखे ५० के दशक के गीतों की। यह सच है कि इस दशक में मजरूह नें 'आर पार', 'दिल्ली का ठग', 'चलती का नाम गाड़ी', 'नौ दो ग्यारह', 'सी.आइ.डी', 'पेयिंग् गेस्ट' और 'तुमसा नहीं देखा' जैसे फ़िल्मों में गीत लिखकर एक व्यावसायिक हल्के फुल्के गीतकार के रूप में अपने आप को प्रस्तुत किया, जहाँ दूसरी तरफ़ उनके समकालीनों में साहिर, प्रदीप, कैफ़ी आज़्मी, भरत व्यास और शैलेन्द्र जैसे गीतकार स्तरीय काम कर रहे थे। बावजूद इसके, मजरूह नें अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और इसका नतीजा है कि गीतकारों में वो पहले व अकेले गीतकार हुए जिन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नौशाद, अनिल बिस्वास और मदन मोहन के बाद आज हम जिस संगीतकार की रचना लेकर आये हैं, उस संगीतकार के साथ भी मजरूह साहब नें लम्बी पारी खेली, और सिर्फ़ लम्बी ही नहीं, बेहद सफल भी। ये थे ओ. पी. नय्यर साहब। जैसा कि कल की कड़ी में हमनें आपको बताया कि १९५३ में नय्यर साहब और मजरूह साहब के जोड़ी की पहली फ़िल्म 'बाज़' प्रदर्शित हुई थी। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर पिट गई थी, लेकिन अगले ही साल, १९५४ में, इस जोड़ी की फ़िल्म 'आर-पार' नें जैसे चारों तरफ़ तहल्का मचा दिया। गायिका गीता दत्त, जो उन दिनों ज़्यादातर भक्तिमूलक और दर्दीले गीत ही गाती चली आ रहीं थीं, उनकी गायन क्षमता को एक नया आयाम मिला इस फ़िल्म से। "ए लो मैं हारी पिया हुई तेरी जीत रे", "बाबूजी धीरे चलना", "मोहब्बत कर लो जी भर लो", "हूँ अभी मैं जवान ऐ दिल", "अरे न न न तौबा तौबा", और "सुन सुन सुन सुन ज़ालिमा" जैसे गीतों में गीता जी की मादकता आज भी दिल में हलचल पैदा कर देती है। लेकिन इस फ़िल्म में एक और गीत भी है, जिसमें गीता जी का अंदाज़ कुछ ग़मगीन सा है। "सुन सुन ज़ालिमा" गीत का ही एक संस्करण हम इसे कह सकते हैं, जिसके बोल हैं "जा जा जा जा बेवफ़ा, कैसा प्यार कैसी प्रीत रे, तू ना किसी का मीत रे, झूठे तेरे प्यार की क़सम"। वैसे यही पंक्ति "सुन सुन ज़ालिमा" में भी गीता दत्त गाती हैं, लेकिन एक नोक-झोक टकरार वाली अंदाज़ में, और इसी को धीमी लय में और सैड मूड में परिवर्तित कर इसका गीता जी का एकल संस्करण बनाया गया है। तो आइए आज की कड़ी करें मजरूह और नय्यर की अमर जोड़ी के नाम, साथ ही गीता जी का भी स्मरण।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'फागुन' के निर्माता शुरु शुरु में इस फ़िल्म के गीत मजरूह से लिखवाना चाहते थे, लेकिन ओ.पी. नय्यर के सुझाव पर क़मर जलालाबादी से गीत लिखवाये गये क्योंकि फ़िल्म की पटकथा व संवाद क़मर साहब नें ही लिखे थे।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 5/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म में किन दो कलाकारों की प्रमुख भूमिकाएं है - ३ अंक
सवाल २ - फिल्म के निर्देशक कौन थे - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं- १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
प्रतीक जी एकदम सही जवाब है, २ अंक अविनाश जी के खाते में भी आये, क्षिति जी आपका जवाब स्वीकार्य न हो ऐसा कैसे संभव है, इंदु जी कभी कभार आ जाया कीजिये दिल खुश हो जाता है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
aur...apne pyar me kya khot ho skti hai babu! indu aanti to sbke samne kahti hai ki wo sbko bahut pyar krti hai aur...hindyugm aawaj aur aap dono ko bhii.
aisiich hun main to ha ha ha