ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 624/2010/324
अगर हम "पैथोस" शब्द का पर्यायवाची शब्द "सहगल" कहें तो शायद यह जवाब बहुत ग़लत नहीं होगा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है कुंदन लाल सहगल को समर्पित इस लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर' की चौथी कड़ी में। न्यु थिएटर्स के संगीतकारों में एक नाम तिमिर बरन का भी है। १९३३ में 'पूरन भगत' और १९३४ में 'चंडीदास' के कालजयी गीतों के बाद १९३५ में तो सहगल साहब ने जैसे तहलका ही मचा दिया। सहगल साहब की फ़िल्मों की फ़ेहरिस्त में शायद सब से हिट फ़िल्म रही है १९३५ की पी. सी. बरुआ निर्देशित फ़िल्म 'देवदास'। तिमिर बरन को इस फ़िल्म में संगीत देने का ज़िम्मा सौंपा गया और किदार शर्मा नें गीत लिखे। इस गीतकार-संगीतकार जोड़ी के कलम और साज़ों पे सवार होकर सहगल साहब के गाये इस फ़िल्म के नग़में पहूँचे घर घर में। फ़िल्म 'देवदास' के बंगला वर्ज़न में सहगल साहब ने कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की एक रचना को स्वर दिया था, जिसके बोल थे "गोलाप होये उठुक फूले"। 'देवदास' की अपार कामयाबी ने के.एल. सहगल को सुपरस्टार बना दिया। इसी साल, यानी १९३५ में आशा रानी से सहगल साहब का विवाह सम्पन्न हुआ और वो अपने परिवार के साथ हँसी ख़ुशी दिन बिताने लगे। लेकिन 'देवदास' में उनका निभाया किरदार बिलकुल इसके विपरीत था। दर्द और शराब में डूबा देवदास का किरदार सहगल साहब नें जैसे पर्दे पर जीवंत कर दिया। इस फ़िल्म का "बालम आये बसो मोरे मन में" हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुनवा चुके हैं; इसलिए आज इस फ़िल्म का एक दर्दीला गाना सुनिए, "दुख के दिन अब बीतत नाहीं"। इस गीत को सुनते हुए महसूस कीजिएगा कि किस तरह से वायलिन की धुन सहगल साहब की आवाज़ से आवाज़ मिलाकर साथ साथ चलती है। तिमिर बरन के संगीत में १९३६ में सहगल साहब की एक और फ़िल्म आयी थी 'पुजारिन', जिसमें उनका गाया "जो बीत चुकी सो बीत चुकी" फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत था।
और कल की तरह आज भी कुछ उद्गार सहगल साहब की शान में फ़िल्म जगत की एक प्रसिद्ध अभिनेता के मुख से। ये हैं के. एन. सिंह जिन्होंने सहगल साहब के बारे में बताया था विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में बरसों पहले- "अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ने की वजह से मुझे वेस्टर्ण म्युज़िक में ज़्यादा दिलचस्पी थी। मगर भारतीय संगीत के जादू ने मुझ पर असर पहली बार तब किया जब सन् १९३० में लखनऊ में मैं कुंदन लाल सहगल से मिला। उस वक़्त न वो फ़िल्मों में आये थे और न ही मैं। कुछ सालों के बाद कलकत्ता में फिर हमारी मुलाक़ात हुई, तब वो फ़िल्मों में थे, और उनके गानें का असर धीरे-धीरे फैल रहा था। कुछ सालों बाद मैं भी फ़िल्मों में आ गया, और फिर सहगल साहब से मेल-जोल बढ़ा, और एक लम्बी, गहरी दोस्ती में बदल गई, जो उनके देहांत तक रही। सहगल न केवल एक बेमिसाल गायक थे, बल्कि एक बेमिसाल दोस्त भी थे। वो अपनी आवाज़ पीछे छोड़ गये हैं। दौर बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे। मगर सहगल का संगीत आज भी पुराना नहीं हुआ है। फ़िल्म संगीत को उन्होंने ही सब से पहले पापुलर बनाया था। तो उन्हीं का एक गाना सुन लें?" दोस्तों, के. एन. सिंह साहब की तरह बहुत से कलाकार अपनी अपनी 'जयमाला' में सहगल साहब के लिए कुछ न कुछ बोला करते और उनका गाया अपनी पसंद का एक गीत सुनवाया करते। तो आइए अब आज का गीत सुना जाये।
क्या आप जानते हैं...
कि 'देवदास' फ़िल्म का "बालम आये बसो मोरे मन में" गीत वह पहला ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड था जो लता मंगेशकर नें ख़रीदा था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 4/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन हैं इस गीत के - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्देशक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत दिनों बाद टाई हुआ है कल...बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
अगर हम "पैथोस" शब्द का पर्यायवाची शब्द "सहगल" कहें तो शायद यह जवाब बहुत ग़लत नहीं होगा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है कुंदन लाल सहगल को समर्पित इस लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर' की चौथी कड़ी में। न्यु थिएटर्स के संगीतकारों में एक नाम तिमिर बरन का भी है। १९३३ में 'पूरन भगत' और १९३४ में 'चंडीदास' के कालजयी गीतों के बाद १९३५ में तो सहगल साहब ने जैसे तहलका ही मचा दिया। सहगल साहब की फ़िल्मों की फ़ेहरिस्त में शायद सब से हिट फ़िल्म रही है १९३५ की पी. सी. बरुआ निर्देशित फ़िल्म 'देवदास'। तिमिर बरन को इस फ़िल्म में संगीत देने का ज़िम्मा सौंपा गया और किदार शर्मा नें गीत लिखे। इस गीतकार-संगीतकार जोड़ी के कलम और साज़ों पे सवार होकर सहगल साहब के गाये इस फ़िल्म के नग़में पहूँचे घर घर में। फ़िल्म 'देवदास' के बंगला वर्ज़न में सहगल साहब ने कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की एक रचना को स्वर दिया था, जिसके बोल थे "गोलाप होये उठुक फूले"। 'देवदास' की अपार कामयाबी ने के.एल. सहगल को सुपरस्टार बना दिया। इसी साल, यानी १९३५ में आशा रानी से सहगल साहब का विवाह सम्पन्न हुआ और वो अपने परिवार के साथ हँसी ख़ुशी दिन बिताने लगे। लेकिन 'देवदास' में उनका निभाया किरदार बिलकुल इसके विपरीत था। दर्द और शराब में डूबा देवदास का किरदार सहगल साहब नें जैसे पर्दे पर जीवंत कर दिया। इस फ़िल्म का "बालम आये बसो मोरे मन में" हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुनवा चुके हैं; इसलिए आज इस फ़िल्म का एक दर्दीला गाना सुनिए, "दुख के दिन अब बीतत नाहीं"। इस गीत को सुनते हुए महसूस कीजिएगा कि किस तरह से वायलिन की धुन सहगल साहब की आवाज़ से आवाज़ मिलाकर साथ साथ चलती है। तिमिर बरन के संगीत में १९३६ में सहगल साहब की एक और फ़िल्म आयी थी 'पुजारिन', जिसमें उनका गाया "जो बीत चुकी सो बीत चुकी" फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत था।
और कल की तरह आज भी कुछ उद्गार सहगल साहब की शान में फ़िल्म जगत की एक प्रसिद्ध अभिनेता के मुख से। ये हैं के. एन. सिंह जिन्होंने सहगल साहब के बारे में बताया था विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में बरसों पहले- "अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ने की वजह से मुझे वेस्टर्ण म्युज़िक में ज़्यादा दिलचस्पी थी। मगर भारतीय संगीत के जादू ने मुझ पर असर पहली बार तब किया जब सन् १९३० में लखनऊ में मैं कुंदन लाल सहगल से मिला। उस वक़्त न वो फ़िल्मों में आये थे और न ही मैं। कुछ सालों के बाद कलकत्ता में फिर हमारी मुलाक़ात हुई, तब वो फ़िल्मों में थे, और उनके गानें का असर धीरे-धीरे फैल रहा था। कुछ सालों बाद मैं भी फ़िल्मों में आ गया, और फिर सहगल साहब से मेल-जोल बढ़ा, और एक लम्बी, गहरी दोस्ती में बदल गई, जो उनके देहांत तक रही। सहगल न केवल एक बेमिसाल गायक थे, बल्कि एक बेमिसाल दोस्त भी थे। वो अपनी आवाज़ पीछे छोड़ गये हैं। दौर बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे। मगर सहगल का संगीत आज भी पुराना नहीं हुआ है। फ़िल्म संगीत को उन्होंने ही सब से पहले पापुलर बनाया था। तो उन्हीं का एक गाना सुन लें?" दोस्तों, के. एन. सिंह साहब की तरह बहुत से कलाकार अपनी अपनी 'जयमाला' में सहगल साहब के लिए कुछ न कुछ बोला करते और उनका गाया अपनी पसंद का एक गीत सुनवाया करते। तो आइए अब आज का गीत सुना जाये।
क्या आप जानते हैं...
कि 'देवदास' फ़िल्म का "बालम आये बसो मोरे मन में" गीत वह पहला ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड था जो लता मंगेशकर नें ख़रीदा था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 4/शृंखला 13
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - सहगल साहब का गाया एक और क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन हैं इस गीत के - ३ अंक
सवाल ३ - फिल्म के निर्देशक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत दिनों बाद टाई हुआ है कल...बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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