ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 614/2010/314
हिंदी सिनेमा की प्रथम महिला संगीतकार के रूप में हमनें आपका परिचय जद्दनबाई से करवाया था। लेकिन जद्दनबाई ने केवल 'तलाश-ए-हक़' फ़िल्म में ही संगीत दिया और इस फ़िल्म के गीतों को रेकॊर्ड पर भी उतारा नहीं गया था। शायद इसी वजह से प्रथम महिला संगीतकार होनें का श्रेय दिया जाता है 'बॊम्बे टाकीज़' की सरस्वती देवी को। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की आज चौथी कड़ी में बातें संगीत निर्देशिका सरस्वती देवी की। सरस्वती देवी का जन्म सन् १९१२ में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका परिवार एक व्यापारी परिवार था। उनका असली नाम था ख़ुर्शीद मेनोचा होमजी। पारसी समाज में उन दिनों महिलाओं के लिए फ़िल्म और संगीत जगत में क़दम रखना गुनाह माना जाता था। इसलिए ख़ुर्शीद के फ़िल्म जगत में पदार्पण का भी ख़ूब विरोध हुआ। लेकिन वो अपनी राह से ज़रा भी नहीं डीगीं। अपनी रुचि और सपने को साकार किया ख़ुर्शीद मेनोचा होमजी से सरस्वती देवी बन कर। बचपन से ही सरस्वती देवी का संगीत की तरफ़ रुझान था। विष्णु नारायण भातखण्डे से उन्होंने ध्रुपद और धमार की शिक्षा ली। फिर लखनऊ के मॊरिस म्युज़िक कॊलेज से संगीत की तालीम हासिल की। १९३३-३४ में एक संगीत समारोह में भाग लेने वो लखनऊ गईं जहाँ पर उनकी मुलाक़ात हो गई 'बॊम्बे टाकीज़' के प्रतिष्ठाता हिमांशु राय से। उन्होंने सरस्वती देवी को बम्बई आने का न्योता दिया। पहले पहले तो सरस्वती देवी ने उनसे यह कहा कि उनका सिर्फ़ शास्त्रीय संगीत का ही ज्ञान है, सुगम संगीत में कोई तजुर्बा नहीं है। हिमांशु राय ने जब उनसे कहा कि इसमें कोई चिंता की बात नहीं है, तब जाकर वो 'बॊम्बे टाकीज़' में शामिल होने के लिए तैयार हुईं। शुरु शुरु में सरस्वती देवी को हिमांशु राय की पत्नी और मशहूर अभिनेत्री देविका रानी को संगीत सिखाने का ज़िम्मा सौंपा गया। इसी दौरान वो हल्के फुल्के गानें भी बनाने लगीं। वो सरस्वती देवी ही थीं जिन्होंने उस समय की प्रचलित फ़िल्मी गीत की धारा (जो शुद्ध शास्त्रीय और नाट्य संगीत पर आधित हुआ करती थी) से अलग बहकर हल्के फुल्के ऒर्केस्ट्रेशन वाले गीतों का चलन शुरु किया, जिन्हें जनता ने हाथों हाथ ग्रहण किया। बॊम्बे टाकीज़' में तो एक से एक हिट फ़िल्मों में संगीत दिया ही, इनके अलावा सरस्वती देवी ने मिनर्वा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में भी संगीत दिया था जिनमें 'पृथ्वीबल्लभ' और 'प्रार्थना' शामिल हैं।
यह १९३४-३५ की बात है कि जब फ़िल्म 'जवानी की हवा' के गीतों का सृजन हुआ, जिन्हें गाया सरस्वती देवी की बहन मानेक और नजमुल हसन नें। यह सरस्वती देवी के संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी। ख़ुर्शीद और मानेक के फ़िल्मों में आने से पारसी समाज में हंगामा मच गया। अपनी पहचान छुपाने के लिए इन दोनों बहनों नें अपने अपने नाम बदल कर बन गईं सरस्वती देवी और चन्द्रप्रभा। 'जवानी की हवा' फ़िल्म में एक गीत चन्द्रप्रभा पर फ़िल्माया जाना था। पर उस दिन उनका गला ज़रा नासाज़ था, जिस वजह से सरस्वती देवी ने वह गीत गाया और चन्द्रप्रभा ने केवल होंठ हिलाये। यह बम्बई में रेकॊर्ड किया गया पहला प्लेबैक्ड सॊंग् था। दोस्तों, हमनें सरस्वती देवी को भारत की पहली महिला संगीतकार तो करार दे दिया, लेकिन क्या वाक़ई वो पहली थीं? १९३२-३३ में मुख्तार बेगम और गौहर कर्नाटकी गायन के क्षेत्र में तो आईं पर बतौर संगीतकार नहीं। १९३४ में इशरत सुल्ताना ने संगीत तो दिया पर उन्हें रेकॊर्ड पर उतारा नहीं गया, केवल फ़िल्म के पर्दे पर ही देखा व सुना गया। मुनिरबाई और जद्दनबाई के भी गीत रेकॊर्ड्स पर नहीं उतारे गये। इस तरह से प्रॊमिनेन्स की अगर बात करें तो सरस्वती देवी ही पहली फ़िल्मी महिला संगीतकार मानी गईं। तो लीजिए आज सरस्वती देवी की सुर-साधना को सलाम करते हुए सुनें उन्हीं की आवाज़ में एक बार फिर से 'अछूत कन्या' फ़िल्म का ही एक और गीत "कित गये हो खेवनहार"।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म संगीत के बदलते दौर के मद्देनज़र ४० के दशक में सरस्वती देवी के सहायक के रूप में जे. एस. कश्यप और रामचन्द्र पाल को नियुक्त किया गया था, लेकिन सरस्वती देवी को अपने काम में किसी की दख़लंदाज़ी नापसंद थी, और इसलिए १९५० में उन्होंने फ़िल्मों से सन्यास ले लिया।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 05/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक और सुप्रसिद्ध गायिका/नायिका को समर्पित है ये कड़ी.
सवाल १ - कौन है ये मशहूर गायिका/नायिका - ३ अंक
सवाल २ - किस फिल्म का है ये गीत - १ अंक
सवाल ३ - किस फिल्म कंपनी के इस फिल्म का निर्माण किया था - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी नक़ल भी करने के लिए थोडा सा समय चाहिए होता है, पर यहाँ तो ये दोनों लगभग एक ही समय में जवाब के साथ हाज़िर हो जाते हैं. रही बात जवाब के एक जैसे होने की तो ये तय है कि जवाब इन दोनों के गूगल किया है और संबंधित साईट से जस का तस कॉपी कर यहाँ पेस्ट कर दिया है :० क्यों अमित जी और अंजाना जी सही कह रहा हूँ न, फिलहाल हम सभी विजेताओं को बधाई दिए देते हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
हिंदी सिनेमा की प्रथम महिला संगीतकार के रूप में हमनें आपका परिचय जद्दनबाई से करवाया था। लेकिन जद्दनबाई ने केवल 'तलाश-ए-हक़' फ़िल्म में ही संगीत दिया और इस फ़िल्म के गीतों को रेकॊर्ड पर भी उतारा नहीं गया था। शायद इसी वजह से प्रथम महिला संगीतकार होनें का श्रेय दिया जाता है 'बॊम्बे टाकीज़' की सरस्वती देवी को। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'कोमल है कमज़ोर नहीं' शृंखला की आज चौथी कड़ी में बातें संगीत निर्देशिका सरस्वती देवी की। सरस्वती देवी का जन्म सन् १९१२ में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका परिवार एक व्यापारी परिवार था। उनका असली नाम था ख़ुर्शीद मेनोचा होमजी। पारसी समाज में उन दिनों महिलाओं के लिए फ़िल्म और संगीत जगत में क़दम रखना गुनाह माना जाता था। इसलिए ख़ुर्शीद के फ़िल्म जगत में पदार्पण का भी ख़ूब विरोध हुआ। लेकिन वो अपनी राह से ज़रा भी नहीं डीगीं। अपनी रुचि और सपने को साकार किया ख़ुर्शीद मेनोचा होमजी से सरस्वती देवी बन कर। बचपन से ही सरस्वती देवी का संगीत की तरफ़ रुझान था। विष्णु नारायण भातखण्डे से उन्होंने ध्रुपद और धमार की शिक्षा ली। फिर लखनऊ के मॊरिस म्युज़िक कॊलेज से संगीत की तालीम हासिल की। १९३३-३४ में एक संगीत समारोह में भाग लेने वो लखनऊ गईं जहाँ पर उनकी मुलाक़ात हो गई 'बॊम्बे टाकीज़' के प्रतिष्ठाता हिमांशु राय से। उन्होंने सरस्वती देवी को बम्बई आने का न्योता दिया। पहले पहले तो सरस्वती देवी ने उनसे यह कहा कि उनका सिर्फ़ शास्त्रीय संगीत का ही ज्ञान है, सुगम संगीत में कोई तजुर्बा नहीं है। हिमांशु राय ने जब उनसे कहा कि इसमें कोई चिंता की बात नहीं है, तब जाकर वो 'बॊम्बे टाकीज़' में शामिल होने के लिए तैयार हुईं। शुरु शुरु में सरस्वती देवी को हिमांशु राय की पत्नी और मशहूर अभिनेत्री देविका रानी को संगीत सिखाने का ज़िम्मा सौंपा गया। इसी दौरान वो हल्के फुल्के गानें भी बनाने लगीं। वो सरस्वती देवी ही थीं जिन्होंने उस समय की प्रचलित फ़िल्मी गीत की धारा (जो शुद्ध शास्त्रीय और नाट्य संगीत पर आधित हुआ करती थी) से अलग बहकर हल्के फुल्के ऒर्केस्ट्रेशन वाले गीतों का चलन शुरु किया, जिन्हें जनता ने हाथों हाथ ग्रहण किया। बॊम्बे टाकीज़' में तो एक से एक हिट फ़िल्मों में संगीत दिया ही, इनके अलावा सरस्वती देवी ने मिनर्वा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में भी संगीत दिया था जिनमें 'पृथ्वीबल्लभ' और 'प्रार्थना' शामिल हैं।
यह १९३४-३५ की बात है कि जब फ़िल्म 'जवानी की हवा' के गीतों का सृजन हुआ, जिन्हें गाया सरस्वती देवी की बहन मानेक और नजमुल हसन नें। यह सरस्वती देवी के संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी। ख़ुर्शीद और मानेक के फ़िल्मों में आने से पारसी समाज में हंगामा मच गया। अपनी पहचान छुपाने के लिए इन दोनों बहनों नें अपने अपने नाम बदल कर बन गईं सरस्वती देवी और चन्द्रप्रभा। 'जवानी की हवा' फ़िल्म में एक गीत चन्द्रप्रभा पर फ़िल्माया जाना था। पर उस दिन उनका गला ज़रा नासाज़ था, जिस वजह से सरस्वती देवी ने वह गीत गाया और चन्द्रप्रभा ने केवल होंठ हिलाये। यह बम्बई में रेकॊर्ड किया गया पहला प्लेबैक्ड सॊंग् था। दोस्तों, हमनें सरस्वती देवी को भारत की पहली महिला संगीतकार तो करार दे दिया, लेकिन क्या वाक़ई वो पहली थीं? १९३२-३३ में मुख्तार बेगम और गौहर कर्नाटकी गायन के क्षेत्र में तो आईं पर बतौर संगीतकार नहीं। १९३४ में इशरत सुल्ताना ने संगीत तो दिया पर उन्हें रेकॊर्ड पर उतारा नहीं गया, केवल फ़िल्म के पर्दे पर ही देखा व सुना गया। मुनिरबाई और जद्दनबाई के भी गीत रेकॊर्ड्स पर नहीं उतारे गये। इस तरह से प्रॊमिनेन्स की अगर बात करें तो सरस्वती देवी ही पहली फ़िल्मी महिला संगीतकार मानी गईं। तो लीजिए आज सरस्वती देवी की सुर-साधना को सलाम करते हुए सुनें उन्हीं की आवाज़ में एक बार फिर से 'अछूत कन्या' फ़िल्म का ही एक और गीत "कित गये हो खेवनहार"।
क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म संगीत के बदलते दौर के मद्देनज़र ४० के दशक में सरस्वती देवी के सहायक के रूप में जे. एस. कश्यप और रामचन्द्र पाल को नियुक्त किया गया था, लेकिन सरस्वती देवी को अपने काम में किसी की दख़लंदाज़ी नापसंद थी, और इसलिए १९५० में उन्होंने फ़िल्मों से सन्यास ले लिया।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 05/शृंखला 12
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक और सुप्रसिद्ध गायिका/नायिका को समर्पित है ये कड़ी.
सवाल १ - कौन है ये मशहूर गायिका/नायिका - ३ अंक
सवाल २ - किस फिल्म का है ये गीत - १ अंक
सवाल ३ - किस फिल्म कंपनी के इस फिल्म का निर्माण किया था - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अवध जी नक़ल भी करने के लिए थोडा सा समय चाहिए होता है, पर यहाँ तो ये दोनों लगभग एक ही समय में जवाब के साथ हाज़िर हो जाते हैं. रही बात जवाब के एक जैसे होने की तो ये तय है कि जवाब इन दोनों के गूगल किया है और संबंधित साईट से जस का तस कॉपी कर यहाँ पेस्ट कर दिया है :० क्यों अमित जी और अंजाना जी सही कह रहा हूँ न, फिलहाल हम सभी विजेताओं को बधाई दिए देते हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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गीत 'अम्बुआ की डाली डाली झूम रही है आली'
अवध लाल