ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 487/2010/187
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और सुहानी शाम में हम आप सभी का स्वागत करते हैं। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीतों से सजी लघु शृंखला 'लता के दुर्लभ दस', जिसके लिए इन गीतों को चुन कर हमें भेजा है नागपुर के श्री अजय देशपाण्डेय ने। हम एक के बाद एक कुल पाँच ऐसे गानें इन दिनों आपको सुनवा रहे हैं जो साल १९५० में जारी हुए थे। तीन गीत हम सुनवा चुके हैं, आज है चौथे गीत की बारी। १९५० में एक फ़िल्म आई थी 'चोर'। सिंह आर्ट्स के बैनर तले इस फ़िल्म का निर्माण हुआ था, और जिसका निर्देशन किया था ए. पी. कपूर ने। यह एक लो बजट फ़िल्म थी जिसमें मुख्य भूमिकाएँ अदा किए मीरा मिश्रा, कृष्णकांत, अल्कारानी, संकटप्रसाद और सोना चटर्जी ने। फ़िल्म में संगीत दिया पंडित गोबिन्दराम ने। इस फ़िल्म से जिस गीत को हम सुनवा रहे हैं उसके बोल हैं "रसिया पवन झकोरे आएँ, जल थल झूमे, नाचे गाएँ, मन है ख़ुशी मनाएँ"। इस गीत को लिखा है गीतकार विनोद कपूर ने। १९४७ से लेकर १९५१ के बीच, यानी कि लता जी के करीयर के शुरुआती सालों में जिन संगीतकारों की मुख्य भूमिका रही, उनमें अक्सर हम अनिल बिस्वास, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, नौशाद और शंकर जयकिशन के नाम लेते हैं। लेकिन पंडित गोबिंदराम को लोगों ने भुला दिया है जिन्होंने इसी दौरान लता जी से कुछ बेहद मीठी सुरीली रचनाएँ गवाए हैं। यह बेहद अफ़सोस की बात है कि आज ये तमाम अनमोल गानें कहीं से भी सुनने को नहीं मिलते।
दोस्तों, आज के इस अंक के लिए शोध करते हुए जब मैं अपनी लाइब्रेरी में कुछ बहुत पुराने प्रकाशनों पर नज़र दौड़ा रहा था कि इस फ़िल्म के बारे में या पंडित गोबिंदराम के बारे में, या इसके गीतकार विनोद कपूर के बारे में कुछ जानकारी हासिल कर के आपके साथ बाँट सकूँ, तभी मेरी नज़र पड़ी 'लिस्नर्स बुलेटिन' की १९७९ के नवंबर में प्रकाशित अंक पर जिसमें ना केवल गोबिन्दराम जी पर लेख प्रकाशित हुआ था, बल्कि उस लेख का विषय ही था संगीतकार पंडित गोबिन्दराम द्वारा कोकिल कंठी लत्ता मंगेशकर से गवाए गीतों की चर्चा। दोस्तों, इससे बेहतर भला और क्या हो सकता है कि आज लता जी पर केन्द्रित शृंखला में गोबिन्दराम जी के स्वरबद्ध गीत सुनते हुए हम उसी लेख का भी आनंद लें। उस लेख को लिखा था श्री राकेश प्रताप सिंह ने। राकेश जी लिखते हैं - १९४९ में पं गोबिन्दराम ने ४ फ़िल्मों में संगीत दिया - भोली, दिल की दुनिया, माँ का प्यार, निस्बत - जिसमें 'भोली' तथा 'माँ का प्यार' में लता ने गीत गाए थे। बहुत सम्भव है कि 'माँ का प्यार' में ही गोबिन्दराम के संगीत में लता ने सर्वप्रथम यह गीत गाया था - "तूने जहाँ बनाकर अहसान क्या किया है"। इस फ़िल्म में ईश्वर चन्द्र कपूर ने गीत लिखे थे। फ़िल्म 'भोली' में लता ने जो गीत गाए, उनमें उपलब्ध जानकारी के अनुसार एक गीत था "इतना भी बेक़सों को न आसमाँ सताए"। (दोस्तों, अगर आपको याद हो तो यह गीत पिछले साल हमने लता जी के गाए दुर्लभ गीतों की शृंखला में सुनवाया था)। सन् '५० में गोबिन्दराम के संगीत में ३ फ़िल्में - चोर, राजमुकुट, शादी की रात - रिलीज़ हुईं। फ़िल्म 'चोर' में लता के गाए ४ गीतों में एक मनमोहक गीत था "तू चंदा क्यों मुस्काए", अन्य दो गीत थे "रसिया पवन झकोरे आए" तथा "बन गई प्रेम दीवानी मैं तो"। एक और गीत मीना कपूर व सखियों के साथ था "ओ जमुना किनारे मोरे बालम का देस"; फ़िल्म 'राजमुकुट' में लता के गाए दो एकक गीत थे - "मैं तड़पूँ तेरी याद में" तथा "एक रूप नगर का राजा था"; दो अन्य गीत थे "पनघट पे ना जैयो" (शम्शाद, सखियों के साथ) तथा "मिठाई ले लो बाबू" (राजा गुल के साथ)। फ़िल्म 'शादी की रात' में पं गोबिन्दराम के साथ एस. मोहिंदर तथा अज़ीज़ हिंदी ने भी गीतों की रचना की थी। फ़िल्म के १२ गीतों में से उपलब्ध जानकारी के अनुसार २ गीत लता के थे - "कहो भाभी मेरी कब आएगी" और "हम दिल की कहानी"। तो दोस्तो, इतनी जानकारी के बाद आइए अब आज के गीत का आनंद लिया जाए।
क्या आप जानते हैं...
कि आज भुला दिए गए संगीतकार गोबिन्दराम उस ज़माने के इतने महत्वपूर्ण संगीतकार थे कि जब के. आसिफ़ ने 'मुग़ल-ए-आज़म' की योजना बनाई थी तो संगीतकार के रूप में पहले गोबिन्दराम को ही चुना था।
विशेष सूचना:
लता जी के जनमदिन के उपलक्ष्य पर इस शृंखला के अलावा २५ सितंबर शनिवार को 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' में होगा लता मंगेशकर विशेष। इस लता विशेषांक में आप लता जी को दे सकते हैं जनमदिन की शुभकामनाएँ बस एक ईमेल के बहाने। लता जी के प्रति अपने उदगार, या उनके गाए आपके पसंदीदा १० गीत, या फिर उनके गाए किसी गीत से जुड़ी आपकी कोई ख़ास याद, या उनके लिए आपकी शुभकामनाएँ, इनमें से जो भी आप चाहें एक ईमेल में लिख कर हमें २० सितंबर से पहले oig@hindyugm.com के पते पर भेज दें। हमें आपके ईमेल का इंतज़ार रहेगा।
अजय देशपांडे जी ने लता जी के दुर्लभ गीतों को संगृहीत करने के उद्देश्य से एक वेब साईट का निर्माण किया है, जरूर देखिये यहाँ.
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. किसी का नाम लेकर अपनी ज़िंदगी काटने की बात हो रही है गीत के पहले अंतरे में। गीत का मुखड़ा बताएँ। २ अंक।
२. फ़िल्म का शीर्षक वह है जिस शीर्षक से ६० के दशक में एक बेहद कामयाब म्युज़िकल फ़िल्म बनी थी जिसमें संगीतकार थे शंकर जयकिशन और जिसके एक गीत के प्रील्युड म्युज़िक में मनोहारी दा का बहुत ही सैक्सोफ़ोन पीस था। बताइए कल के गीत के फ़िल्म का नाम। २ अंक।
३. इस फ़िल्म में तलत महमूद और सुधा मल्होत्रा ने भी गीत गाए थे। संगीतकार बताएँ। ३ अंक।
४. इस फ़िल्म में दो गीतकारों ने गीत लिखे थे। इनमें से एक थे प्रेम धवन, आपको बताना है कल बजने वाले इस गीत के गीतकार का नाम। ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ने दिमाग चलाया और कामियाब रही, अवध जी सही जवाब देकर नर्वस ९० में प्रवेश कर चुके हैं, बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और सुहानी शाम में हम आप सभी का स्वागत करते हैं। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीतों से सजी लघु शृंखला 'लता के दुर्लभ दस', जिसके लिए इन गीतों को चुन कर हमें भेजा है नागपुर के श्री अजय देशपाण्डेय ने। हम एक के बाद एक कुल पाँच ऐसे गानें इन दिनों आपको सुनवा रहे हैं जो साल १९५० में जारी हुए थे। तीन गीत हम सुनवा चुके हैं, आज है चौथे गीत की बारी। १९५० में एक फ़िल्म आई थी 'चोर'। सिंह आर्ट्स के बैनर तले इस फ़िल्म का निर्माण हुआ था, और जिसका निर्देशन किया था ए. पी. कपूर ने। यह एक लो बजट फ़िल्म थी जिसमें मुख्य भूमिकाएँ अदा किए मीरा मिश्रा, कृष्णकांत, अल्कारानी, संकटप्रसाद और सोना चटर्जी ने। फ़िल्म में संगीत दिया पंडित गोबिन्दराम ने। इस फ़िल्म से जिस गीत को हम सुनवा रहे हैं उसके बोल हैं "रसिया पवन झकोरे आएँ, जल थल झूमे, नाचे गाएँ, मन है ख़ुशी मनाएँ"। इस गीत को लिखा है गीतकार विनोद कपूर ने। १९४७ से लेकर १९५१ के बीच, यानी कि लता जी के करीयर के शुरुआती सालों में जिन संगीतकारों की मुख्य भूमिका रही, उनमें अक्सर हम अनिल बिस्वास, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, नौशाद और शंकर जयकिशन के नाम लेते हैं। लेकिन पंडित गोबिंदराम को लोगों ने भुला दिया है जिन्होंने इसी दौरान लता जी से कुछ बेहद मीठी सुरीली रचनाएँ गवाए हैं। यह बेहद अफ़सोस की बात है कि आज ये तमाम अनमोल गानें कहीं से भी सुनने को नहीं मिलते।
दोस्तों, आज के इस अंक के लिए शोध करते हुए जब मैं अपनी लाइब्रेरी में कुछ बहुत पुराने प्रकाशनों पर नज़र दौड़ा रहा था कि इस फ़िल्म के बारे में या पंडित गोबिंदराम के बारे में, या इसके गीतकार विनोद कपूर के बारे में कुछ जानकारी हासिल कर के आपके साथ बाँट सकूँ, तभी मेरी नज़र पड़ी 'लिस्नर्स बुलेटिन' की १९७९ के नवंबर में प्रकाशित अंक पर जिसमें ना केवल गोबिन्दराम जी पर लेख प्रकाशित हुआ था, बल्कि उस लेख का विषय ही था संगीतकार पंडित गोबिन्दराम द्वारा कोकिल कंठी लत्ता मंगेशकर से गवाए गीतों की चर्चा। दोस्तों, इससे बेहतर भला और क्या हो सकता है कि आज लता जी पर केन्द्रित शृंखला में गोबिन्दराम जी के स्वरबद्ध गीत सुनते हुए हम उसी लेख का भी आनंद लें। उस लेख को लिखा था श्री राकेश प्रताप सिंह ने। राकेश जी लिखते हैं - १९४९ में पं गोबिन्दराम ने ४ फ़िल्मों में संगीत दिया - भोली, दिल की दुनिया, माँ का प्यार, निस्बत - जिसमें 'भोली' तथा 'माँ का प्यार' में लता ने गीत गाए थे। बहुत सम्भव है कि 'माँ का प्यार' में ही गोबिन्दराम के संगीत में लता ने सर्वप्रथम यह गीत गाया था - "तूने जहाँ बनाकर अहसान क्या किया है"। इस फ़िल्म में ईश्वर चन्द्र कपूर ने गीत लिखे थे। फ़िल्म 'भोली' में लता ने जो गीत गाए, उनमें उपलब्ध जानकारी के अनुसार एक गीत था "इतना भी बेक़सों को न आसमाँ सताए"। (दोस्तों, अगर आपको याद हो तो यह गीत पिछले साल हमने लता जी के गाए दुर्लभ गीतों की शृंखला में सुनवाया था)। सन् '५० में गोबिन्दराम के संगीत में ३ फ़िल्में - चोर, राजमुकुट, शादी की रात - रिलीज़ हुईं। फ़िल्म 'चोर' में लता के गाए ४ गीतों में एक मनमोहक गीत था "तू चंदा क्यों मुस्काए", अन्य दो गीत थे "रसिया पवन झकोरे आए" तथा "बन गई प्रेम दीवानी मैं तो"। एक और गीत मीना कपूर व सखियों के साथ था "ओ जमुना किनारे मोरे बालम का देस"; फ़िल्म 'राजमुकुट' में लता के गाए दो एकक गीत थे - "मैं तड़पूँ तेरी याद में" तथा "एक रूप नगर का राजा था"; दो अन्य गीत थे "पनघट पे ना जैयो" (शम्शाद, सखियों के साथ) तथा "मिठाई ले लो बाबू" (राजा गुल के साथ)। फ़िल्म 'शादी की रात' में पं गोबिन्दराम के साथ एस. मोहिंदर तथा अज़ीज़ हिंदी ने भी गीतों की रचना की थी। फ़िल्म के १२ गीतों में से उपलब्ध जानकारी के अनुसार २ गीत लता के थे - "कहो भाभी मेरी कब आएगी" और "हम दिल की कहानी"। तो दोस्तो, इतनी जानकारी के बाद आइए अब आज के गीत का आनंद लिया जाए।
क्या आप जानते हैं...
कि आज भुला दिए गए संगीतकार गोबिन्दराम उस ज़माने के इतने महत्वपूर्ण संगीतकार थे कि जब के. आसिफ़ ने 'मुग़ल-ए-आज़म' की योजना बनाई थी तो संगीतकार के रूप में पहले गोबिन्दराम को ही चुना था।
विशेष सूचना:
लता जी के जनमदिन के उपलक्ष्य पर इस शृंखला के अलावा २५ सितंबर शनिवार को 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' में होगा लता मंगेशकर विशेष। इस लता विशेषांक में आप लता जी को दे सकते हैं जनमदिन की शुभकामनाएँ बस एक ईमेल के बहाने। लता जी के प्रति अपने उदगार, या उनके गाए आपके पसंदीदा १० गीत, या फिर उनके गाए किसी गीत से जुड़ी आपकी कोई ख़ास याद, या उनके लिए आपकी शुभकामनाएँ, इनमें से जो भी आप चाहें एक ईमेल में लिख कर हमें २० सितंबर से पहले oig@hindyugm.com के पते पर भेज दें। हमें आपके ईमेल का इंतज़ार रहेगा।
अजय देशपांडे जी ने लता जी के दुर्लभ गीतों को संगृहीत करने के उद्देश्य से एक वेब साईट का निर्माण किया है, जरूर देखिये यहाँ.
पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)
१. किसी का नाम लेकर अपनी ज़िंदगी काटने की बात हो रही है गीत के पहले अंतरे में। गीत का मुखड़ा बताएँ। २ अंक।
२. फ़िल्म का शीर्षक वह है जिस शीर्षक से ६० के दशक में एक बेहद कामयाब म्युज़िकल फ़िल्म बनी थी जिसमें संगीतकार थे शंकर जयकिशन और जिसके एक गीत के प्रील्युड म्युज़िक में मनोहारी दा का बहुत ही सैक्सोफ़ोन पीस था। बताइए कल के गीत के फ़िल्म का नाम। २ अंक।
३. इस फ़िल्म में तलत महमूद और सुधा मल्होत्रा ने भी गीत गाए थे। संगीतकार बताएँ। ३ अंक।
४. इस फ़िल्म में दो गीतकारों ने गीत लिखे थे। इनमें से एक थे प्रेम धवन, आपको बताना है कल बजने वाले इस गीत के गीतकार का नाम। ३ अंक।
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ने दिमाग चलाया और कामियाब रही, अवध जी सही जवाब देकर नर्वस ९० में प्रवेश कर चुके हैं, बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अवध लाल
*****
PAWAN KUMAR
******
PAWAN
Pratibha Kaushal-Sampat
Ottawa, Canada
समस्त सफलताएं कर्म की नींव पर आधारित होती हैं.-एंथनी राबिन्स