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सारी बस्ती निगल गया है (नई धुन, नई ग़ज़ल)

दूसरे सत्र के २५वें गीत के रूप में सुनिए एक ग़ज़ल


कुमार आदित्य
नाज़िम नक़वी
हम वर्ष २००८ के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। हिन्द-युग्म की बड़ी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि यह भी रही कि ४ जुलाई से अब तक हमने हर शुक्रवार एक नया गाना रीलिज किया। अब तक १७ संगीतकारों से अपना तार जोड़ा। ऐसे ही एक संगीतकार हमें मिले जो फिल्मों में जाने की तमन्ना रखते हैं, जिनके द्वारा कम्पोज एक गीत हमने पिछले शुक्रवार इस सत्र के २४वें गीत के रूप में ज़ारी किया था। आप इनके ऊर्जावान होने का अंदाज़ा यहाँ से लगा सकते हैं कि यह शुक्रवार आया और इन्हें एक नया गीत तैयार कर लिया। जिसमें फिर से इन्हीं की आवाज़ है। जी हाँ, हम अपने २५ गीत के रूप में हिन्द-युग्म के कवि नाज़िम नक़वी की एक ग़ज़ल 'जिस्म कमाने निकल गया है' रीलिज कर रहे हैं, जिसे संगीतबद्ध किया है ग्वालियर के संगीतकार कुमार आदित्य विक्रम ने और आवाज़ है खुद संगीतकार की। तो चलिए सुनते हैं हिन्द-युग्म का २५वाँ गीत-

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(सही उच्चारण के साथ)


We are heading towards the end of present session. We have releasing released a fresh song on every friday since 4 July 2008. This is one of the big achievements of Hind-Yugm. Today, we are going to rock you with a fresh Ghazal that is written by Poet Nazim Naqvi and composed by Kumar Aditya Vikram. Kumar Aditya Vikram has also given his voice to this new combo . Please listen and leave your comment.

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(With right pronounciation)

ग़ज़ल के अशआर

सूरज हाथ से फिसल गया है
आज का दिन भी निकल गया है

तेरी सूरत अब भी वही है
मेरा चश्मा बदल गया है

ज़ेहन अभी मसरूफ़ है घर में
जिस्म कमाने निकल गया है

क्या सोचें कैसा था निशाना
तीर कमां से निकल गया है

जाने कैसी भूख थी उसकी
सारी बस्ती निगल गया है

ग़ज़ल पसंद आने पर इसे अपने मित्रों तक पहुँचायें। अपने ब्लॉग/वेबसाइट/ऑरकुट स्क्रैपबुक/माईस्पैस/फेसबुक में 'जिस्म कमाने निकल गया है' का पोस्टर लगाने के लिए पसंदीदा पोस्टर का कोड कॉपी करें।



SONG # 25, SEASON # 02, JISM KAMANE NIKAL GAYA HAI, OPENED ON AWAAZ, HIND YUGM.
Music @ Hind Yugm, Where music is a passion.



Comments

बहुत अच्छे!
neelam said…
music is superb,and voice quality is also very gud ,sur taal to hume pata nahi ,magar behad karnpriya gajal hai .heartiest congratulations
to whole team for this nice presentation .
jehan ko kya aisa gaana theek tha ?thoda sa atak raha hai ,anyhow very gud ,great job .
सूरज हाथ से फिसल गया है

मन को छू लिया इस गजल ने

इसे गुनगुनाते हुए , कुछ पंक्तियाँ मेरे मन ने भी लिख डालीं
मेरी तरह वो भी तन्हाँ है
आग है इतनी , पिघल गया है

बहके क़दमों , मय को कोसे
हसरत सारी निगल गया है

छूटा निवाला , वक़्त के हाथों
ख्वाब तो सारा बिखर गया है

दिन दिन कर ये ,इक युग बीता
जीवन हाथ से फिसल गया है

आस सँजोये , रोज नई सी
सफर आसमाँ के निकल गया है
आदित्य, आपने बहुत सुंदर धुन बनाई है इस ग़ज़ल की और गायकी भी मुझे पिछले गीत से बेहतर और सधी हुई लगी....लेकिन ग़ज़ल हो या गीत शब्द स्पष्ट और सही उच्चारित होने जरूरी हैं...."जेहन" का उच्चारण पूरी तरह से ग़लत है....आपको भाषा पर श्याद थोड़ा और काम करना चाहिए
shanno said…
आदित्य जी,
इस गज़ल को इतनी खूबसूरत धुन देने के लिए धन्यबाद. मन होता है कि बस सुने ही जायें. ऐसा लगता है कि किसी सादी बस्तु को सजा दिया हो आपने. धुन इतनी आकर्षित करने वाली है कि जितनी तारीफ करुँ उतनी कम होगी.
shivani said…
आवाज़ के श्रोताओं को इस सत्र की २५वी रचना सुनवाने के लिए हिंद युग्म का बहुत बहुत धन्यवाद !इस उपलक्ष्य पर ये और भी ख़ुशी की बात है की ये ग़ज़ल भी हिंद युग्म के कवि नाजिम नकवी जी ने लिखी है !आदित्य जी आपने इस ग़ज़ल की शुरुआत बहुत मधुरता से की है !मुझको ये ग़ज़ल बहुत पसंद आई !आप दोनों को मेरी ओर से अनेकानेक शुभकामनाएं !
aditya ji ab perfect hai....thanks
Anonymous said…
bahut dard hai gazal me, sadhubad ! radhakrishna mangalam

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