Skip to main content

शुद्ध भारतीय संगीत को फिल्मी परदे पर साकार रूप दिया दादू यानी रविन्द्र जैन ने

अब तक आपने पढ़ा


वर्ष था १९८२ का. कवियित्री दिव्या जैन से विवाह बंधन में बंध चुके हमारे दादू यानी रविन्द्र जैन साहब के संगीत जीवन का चरम उत्कर्ष का भी यही वर्ष था जब "ब्रिजभूमि" और "नदिया के पार" के संगीत ने सफलता की सभी सीमाओं को तोड़कर दादू के संगीत का डंका बजा दिया था. और यही वो वर्ष था जब दादू की मुलाकात राज कपूर साहब से एक विवाह समारोह में हुई थी. हुआ यूँ कि महफ़िल जमी थी और दादू से गाने के लिए कहा गया. दादू ने अपनी मधुर आवाज़ में तान उठायी- "एक राधा, एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा, अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो, एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी...".राज साहब इसी मुखड़े को बार बार सुनते रहे और फ़िर दादू से आकर पुछा -"ये गीत किसी को दिया तो नही". दादू बोले- "दे दिया", चौंक कर राज साहब ने पुछा "किसे", दादू ने मुस्कुरा कर कहा "राजकपूर जी को".सुनकर राज साहब ने जेब में हाथ डाला पर सवा रूपया निकला टी पी झुनझुनवाला साहब की जेब से (टी पी साहब दादू के संगी और मार्गदर्शक रहे हैं कोलकत्ता से मुंबई तक). और यहीं से शुरू हुआ दादू से सफर का वो उत्कृष्ट दौर. फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली की भी एक दिलचस्प कहानी है. राज साहब की उलझन थी की उन्होंने ही फ़िल्म "जिस देश में गंगा बहती है" बनाई थी, अब वही कैसे कहे "राम तेरी गंगा मैली". गंगा दर्शन को गए दादू और राज साहब जब गंगा किनारे बैठ इसी बात पर विचार कर रहे थे, दादू पर अचानक माँ सरस्वती की कृपा हुई, बाजा हाथ में था तो गाने लगे- "गंगा हमारी कहे बात ये रोते रोते...राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते धोते..". सुनकर राज साहब कुछ ऐसे प्रसन्न हुए जैसे किसी बालक को खेलने के लिए चन्द्र खिलौना मिल जाए, आनंदातिरेक में कहने लगे "बात बन गयी...अब फ़िल्म भी बन जायेगी". और ये हम सब जानते हैं की ये फ़िल्म कितनी बड़ी हिट थी, आगे बढ़ने से पहले लता जी की दिव्य आवाज़ में इस फ़िल्म का शीर्षक गीत अवश्य सुनेंगें.



इस फ़िल्म के दौरान ही अगली फ़िल्म "हिना" पर भी चर्चा शुरू हो चुकी थी हालाँकि राज साहब ये फ़िल्म ख़ुद पूरी नही कर पाये पर इस फ़िल्म का लाजवाब संगीत उन्हीं की निगरानी में रिकॉर्ड हुआ था. इसके बाद दादू ने कुछ और भी कामियाब फिल्में की जैसे "मरते दम तक", "जंगबाज़", "प्रतिघात" आदि पर उनकी अगली बड़ी कामियाबियाँ छोटे परदे से आई.महा धारावाहिक "रामायण" में उनका काम अलौकिक था. हर धारावाहिक में उन्होंने थीम के अनुसार यादगार संगीत दिया, फ़िर चाहे वो हेमा मालिनी कृत नृत्य आधारित नुपुर हो, या अद्भुत कथाओं की अलिफ़ लैला या फ़िर साईं बाबा का न भूलने वाला संगीत. जितने अच्छे संगीतकार हैं दादू उतने ही या कहें उससे कहीं बड़े गीतकार, कवि और शायर भी हैं वो, अपने अधिकतर गीत उन्होंने ख़ुद लिखे पर कभी कभी अन्य संगीतकारों के लिए भी गीतकारी की. कल्याण जी आनंद जी के साथ "जा रे जा ओ हरजाई..."(कालीचरण), उषा खन्ना के लिए "गड्डी जांदी है छलांगा मार दी" (दादा) आदि उन्हीं के लिखे गीत हैं. सुनते चलें दादू के दो और शानदार गीत -

पहला गीत दादू की अपनी ही आवाज़ में फ़िल्म "अखियों के झरोखों से".



दूसरा गीत सुनिए महेंद्र कपूर के स्वर में फ़िल्म "फकीरा" से.



एक और बड़ा श्रेय दादू को जाता है, इंडस्ट्री को गायकों और गायिकाओं से नवाजने का. आरती मुख़र्जी को उन्होंने कोलकत्ता से बुलाया फ़िल्म गीत गाता चल के "श्याम तेरी बंसी पुकारे.." के लिए तो इसी फ़िल्म जसपाल सिंह के रूप में उन्होंने एक नया गायक भी दिया. हेमलता, येसुदास और सुरेश वाडेकर ने भी उन्हीं की छात्र छाया में ही ढेरों कमाल के गीत गाये. गायक सुरेश वाडेकर मानते हैं कि आज वो जो भी हैं उसका पूरा श्रेय दादू को है. एक संगीत प्रतियोगिता के विजेता थे सुरेश और दादू निर्णायक. सुरेश की आवाज़ से प्रभावित दादू ने उन्हें फ़िल्म में मौका देने का वादा किया जो उन्होंने निभाया भी, सुरेश से फ़िल्म "पहेली" में गवा कर. दादू की और बातें करेंगे फ़िर कभी पर कल हम आपको मिलवायेंगे इस बेहद जबरदस्त गायक सुरेश वाडेकर से, फिलहाल हम छोड़ते हैं आपको सुरेश के गाये उस पहले गीत पर. फ़िल्म "पहेली" का ये गीत सुनिए और दादू के संगीत की मधुर मिठास का आनंद लीजिये.
"विष्टि पड़े टापुर टुपुर..."



रविन्द्र जैन पर हमारी इस श्रृंखला में सुनवाये गए सभी गीत और कुछ अन्य गीत भी आप इस प्लेयर पर सुन सकते हैं बिना रुके.


Comments

ये वाकई सही है कि रवीन्द्र जैन ने शुद्ध भारतीय सन्गीत को फ़िल्मी परदे पर साकार रूप दिया है. रविन्द्र जैन के सन्गीत मे एक जादु है जो श्रोताओ को अपनी और खीच लेता है.इनके सुरीले गीतो को एक जगह प्रस्तुत करने पर आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट