Skip to main content

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - अक्टूबर २००८


Doctor Mridul Kirti - image courtesy: www.mridulkirti.com
डॉक्टर मृदुल कीर्ति

कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन। लीजिये आपके सेवा में प्रस्तुत है अक्टूबर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। अगस्त और सितम्बर २००८ की तरह ही इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

इस बार हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हम आप सभी के सहयोग और प्रेम के लिए आपके आभारी हैं। हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें समयाभाव के कारण इस कार्यक्रम में स्थान न पा सकीं एवं कुछ रिकॉर्डिंग ठीक न होने की वजह से। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो।

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है और इसमें विभिन्न देश, आयु-वर्ग, एवं पृष्ठभूमि के कवियों ने भाग लिया है। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की शोभा को बढाया है फ़रीदाबाद से शोभा महेन्द्रू, सिनसिनाटी (यू एस) से लावण्या शाह, लन्दन (यू के)  से शन्नो अग्रवाल, हैदराबाद से डॉक्टर रमा द्विवेदी, वाराणसी से शीला सिंह, झांसी से डॉक्टर महेंद्र भटनागर, दिल्ली से मनुज मेहता, ग़ाज़ियाबाद से कमलप्रीत सिंह, अशोकनगर (म॰प्र॰) से प्रदीप मानोरिया, रोहतक से डॉक्टर श्यामसखा "श्याम", दिल्ली से विवेक मिश्र, कोलकाता से अमिताभ "मीत",  कनाडा से नीरा राजपाल, तथा पिट्सबर्ग (यू एस) से अनुराग शर्मा ने। ज्ञातव्य है कि इस कार्यक्रम का संचालन किया है  हैरिसबर्ग  (अमेरिका) से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

इस बार के सम्मेलन से हम एक नया खंड शुरू कर रहे हैं जिसमें हम हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवियों की एक रचना को आप तक लाने का प्रयास करेंगे. इसी प्रयास के अंतर्गत इस बार हम सुना रहे हैं जाने-माने कवि एवं गीतकार स्वर्गीय पंडित नरेन्द्र शर्मा की ओजस्वी रचना "रथवान"।

पिछले सम्मेलनों की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है. हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा।

यदि आप हमारे आने वाले पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में भाग लेना चाहते हैं तो अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे। नवम्बर अंक के लिए रिकॉर्डिंग भेजने की अन्तिम तिथि है २३ नवम्बर २००८

नीचे के प्लेयरों से सुनें।

(ब्रॉडबैंड वाले यह प्लेयर चलायें)


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis

हम सभी कवियों से यह अनुरोध करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे।

रिकॉर्डिंग करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने इसी बावत एक पोस्ट लिखी है, उसकी मदद से आप रिकॉर्डिंग कर सकेंगे। अधिक जानकारी के लिए कृपया  यहाँ देखें

# Podcast Kavi Sammelan. Part 4. Month: October 2008.

Comments

AMIT ARUN SAHU said…
दिल खुश हो गया. बहुत अच्छा लगा सुनकर.
कार्यक्रम सुना और बहुत ही अच्छा लगा. उत्कृष्ट आयोजन के लिए बधाई स्वीकारें!
शोभा said…
लावण्या शाह - स्वप्न क्यों आते रहे अतिसुन्दर , शन्नो अग्रवाल जी - सुन्दर शब्द और सुन्दर भाव , रमा जी- जो बात हम ना कह सके- बहुत सुन्दर कविता , महेन्द्र भटनागर जी- राग संवेदन वाह-वाह अति सुन्दर , अमिताभ मीत जी- मोहे देख सकी- दिल को छूने वाली कविता, अनुराग शर्मा जी- हमेशा की तरह प्रभावी,विवेक मिश्रा जी- केवल कुछ पंक्तियाँ सुन पाई-बहुत खूब। कवि सम्मेलन बहुत सफल हो रहा है। मृदुल जी को लाजवाब संचालन के लिए बधाई। हिन्द युग्म को साधुवाद ।
इस बार के कवि सम्मेलन का अंक बहुत अच्छा और संग्रहणीय है। मूर्धन्य कवियों की कविताओं का प्रसारण नये श्रोताओं में महाकवियों के प्रति जागरूकता लाने में मदद करेगा, वहीं महान रचनाकारों को हिन्द-युग्म की सच्ची श्रद्दाँजलि भी होगी।

लावण्या जी ने पं॰ नरेन्द्र शर्मा की बहुत ही सुंदर कविता का चयन किया है। मुझे शोभा जी का काव्यपाठ बहुत पसंद आया।

शीला जी की आवाज़ भी प्रभावी है। मीत भाई की आवाज़ वजनी है। श्याम जी की आवाज़ इस बार कम साफ थी। लेकिन कविता बहुत प्रभावी है। नीरा राजपाल की भी रिकॉर्डिंग में दिक्कत थी, ऐसा सुनकर लगा। तकनीकी तौर पर भी ऐसे प्रयासो की ज़रूरत है, जिससे कम गुणवत्ता की फाइलों को भी सँवारा जा सके।

डॉ॰ महेन्द्र भटनागर, डॉ॰ रमा द्विवेदी, लावण्या शाह ने इसमें भाग लेकर कार्यक्रम का मान बढ़ाया है। कमलप्रीत सिंह हमेशा की तरह कठोर आवाज़ के साथ श्रोता-समक्ष आये। प्रदीप मानोरिया की रचना पसंद आई। शन्नो अग्रवाल को पहली दफ़ा सुना। उनसे आग्रह है कि आगे भी भाग लेती रहें। अनुराग हमेशा की तरह प्रभावी रहे। विवेक जी की भी रिकॉर्डिंग क्वालिटी ठीक नहीं है।

सबसे अधिक मृदुल कीर्ति जी बधाई और धन्यवाद की पात्र हैं, जो कवि और श्रौताओं के बीच की भौगोलिक दूरियाँ कम कर रही हैं।

आशा है नवम्बर माह में और अधिक कवि इसमें भाग लेंगे।
शोभा said…
विवेक जी ने बहुत सुन्दर और प्रभावी कविता सुनाई। श्याम जी का अंदाज़ निराला था। विषय और उसपर नया दृष्टिकोण दिया, मकल प्रीत जी की कविता बहुत सुन्दर लगी, प्रदीप जी की कविता भी बहुत अच्छी लगी।
वाह ये तक का सबसे बहतरीन अंक रहा. हिंद युग्म अपने इस प्रयास में बेहद कामियाब नज़र आ रहा है, अनुराग जी और शैलेश जी बधाई. मृदुल जी के बारे में क्या कहूँ, उनकी आवाज़ और प्रस्तुति इतनी जबरदस्त है की बस मन करता है उन्हें सुनते ही जायें सुनते ही जायें. लावण्या जी का स्वप्न लौट लौट कर आते रहें, शन्नो जी का स्वागत, बहुत भावपूर्ण कवितायें....शोभा जी ने अपनी आवाज़ में धीरे धीरे एक कशिश सी पैदा कर ली है आवाज़ की दुनिया में अब वो एक चमकता सितारा हैं. रमा जी को भी मैंने पहली बार सुना बहुत अच्छा लगा. शीला जी महेंद्र जी मनुज जी कमलप्रीत जी विवेक जी और अनुराग को बधाई....सब ने खूब रंग जमाया है....मीत भाई को विशेष बधाई पारुल से पता लगा की आज उनका जन्मदिन भी है.
sahil said…
behatarin.
ALOK SINGH "SAHIL"
मधुर आवाज मै एक बहुत अच्छी कविता सुनाने के लिये धन्यवाद.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
Anonymous said…
अब की बार सबसे अच्छा रहा कवि -सम्मलेन रहा |डाक्टर कीर्ति जी मेरे पिछले कमेंट्स से नाराज दिखीं मगर तीनो पोस्ट सुने और देखें क यह क्या अधिक कसा सञ्चालन नहीं है,हाँ आपने पनी मधुए आवाज में अपना गीत कविता नहीं सुनाई,आशा है अगली बार हमारे अनुरोध का मन रखेंगी -अनाम
सभी कवि साथियोँ का अभूतपूर्व काव्य -पाठ, डा.मृदुल कीर्तिजी का मृदु मधुर भाव समेटे
प्रभावी सँचालन, हिन्दी युग्म का यह मँच
जो देशविदेश मेँ बसे
हर कवि साथी को एक साथ-
एक बार, पुन: जोडने मेँ सफल हुआ है -
जिसका आनँद, सभी को मिला !
-"आवाज़" को बधाई!
व सभी सुननेवाले स्नेही मित्रोँको,
दीप पर्व पर मँगल कामनाएँ -
स स्नेह्,
- लावण्या
मानसी said…
सुंदर कवि सम्मेलन रहा। अच्छी संयोजना और एक उम्दा प्रयास।
Aflatoon said…
लावण्या जी की आवाज सुनना अच्छा लगा ।
दीपावली पर आप को और आप के परिवार के लिए
हार्दिक शुभकामनाएँ!
धन्यवाद
ajit gupta said…
मृदुल कीर्ति जी
नमस्‍कार ा स्‍वप्‍न क्‍यूं आते रहे थे रात भर से प्रारम्‍भ और हमें तुम रोको मत पथ में, कविता से अन्‍त हुए इस कवि सम्‍मेलन के लिए ढेरों शुभकामनाएंा मैके का आंगन खिला रहे, बेटियों के स्‍मृति पटल पर अंकित ही रहता हैा आपके शब्‍द दिल में धडकने लगते है जब आप बोलती है कि वो पेड कट गया हो या भाइयों में आंगन बंट गया होा कवि सम्‍मेलन में प्रत्‍येक कवि ने अपने मन की आहुति दी हैा किसके हविष्‍य से मन के हवन कुण्‍ड में कितनी लपटे उठेगी और कितनी सुगन्‍ध चारो ओर फैलेंगी शायद हिसाब लगाना मुश्किल होगाा शोभा महेन्‍द्र ने कैसेट कहूं रात जो गुजारी, यादों की जमीन पर था एक पग भी भारी, आवाज की कसक ही उनके शब्‍दों में जादू भर रहा थाा अनुराग शर्मा की सच वैतरणी भी तरता है, गहन चिंतन से उपजा विचार हैा रमा द्विवेदी की जो बात हम ना कह सके वो अश्रु बनकर बह बए, भी मन को छूती हैा निसंदेह कवि सम्‍मेलन ने अपना वजूद स्‍थापित किया हैा मैं इसके लिए आपको पुनः बधाई देती हूंा
अजित गुप्‍ता
उदयपुर भारत
Anonymous said…
मृदुल कीर्ति जी,
आपकी आवाज़ में एक अनोखी कशिश है जो कि श्रोताओं को बांध लेती है। आपकी भाषा पर दखल अत्यन्त सरहनीय है। सभि कवियित्रि-कवियों ने बहुत अच्छा पढा। शोभा महेन्‍द्र ने कैसे कहूं रात जो गुजारी, यादों की जमीन पर था एक पग भी भारी,प्रदीप मानोरियाजी की रचना,लावण्या जी का पं॰ नरेन्द्र शर्मा की बहुत ही सुंदर कविता का कव्यपाठ किया, बहुत पसंद आईं। विवेक मिश्र जी की कविता का विषय बहुत गूढ, अन्दर तक छू लेनेवाला था। बधाई।
Rama said…
डा. रमा द्विवेदी said..

कवि-सम्मेलन नि:सन्देह बहुत विविधतापूर्ण एवं श्रवणप्रिय रहा । सभी कवियों व कवयित्रियों को साधुवाद । डा. मृदुल कीर्ति जी के सधे हुए संचालन के लिए बधाई और शुभकामनाएं ।
आप सभी को दीप-पर्व की हार्दिक मंगलकामनाएं...
rachana said…
शब्दों को मिली आवाज़, नमो को पहचान मिली
कविता सुन के खिल गई मनो दिल की कली
हिंद युग्म का है ये सफल सुंदर प्रयास
भविष्य में भी कुछ एसे ही करिक्रमों की रहीगी आस
सादर
रचना
shanno said…
मुझे शिवानी जी की 'नाविक, 'चले जाना', 'ये जरूरी नहीं' और 'मेरे आंसू' गजलें रुपेश जी की आवाज़ में गाये बहुत ही अच्छे लगे. पता नहीं मैं कितनी बार सुन चुकी हूँ पर मन ही नहीं भरता. हिन्दयुग्म से मेरा परिचय जल्दी ही हुआ. मैं ब्रिटेन में हूँ तो कैसे अल्बम को प्राप्त करें. काश मुझे कोई यह एल्बम भेज दे और मैं पैसे भेज दूँ उसे भारत में.कभी-कभी अकेलेपन के गाने भी अकेलपन में सहारा होते हैं. shanno

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...