भूली-बिसरी यादें
भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित
विशेष श्रृंखला, ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं
कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आपके बीच उपस्थित हूँ और
आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज मास का पहला गुरुवार है और इस दिन हम
आपके लिए मूक और सवाक फिल्मों की कुछ रोचक दास्तान लेकर आते हैं। आज के अंक में हम आपसे 1918 में बनी कुछ मूक फिल्मों तथा सवाक फिल्मों के अन्तर्गत 1943 में बनी फिल्म 'हमारी बात' पर चर्चा करेंगे।
यादें मूक फिल्मों की : चार भागों में बनी फिल्म ‘श्रीराम वनवास’
फिल्म 'श्रीकृष्ण जन्म' का दृश्य |
इस
श्रृंखला के पिछले अंक में हम आपसे मूक फिल्मों से जुड़े 1970 तक के कुछ
प्रमुख प्रसंगों का जिक्र कर चुके हैं। आज हम उससे आगे के कुछ प्रसंगों पर
चर्चा करेंगे। 1917 में जहाँ पाँच मूक फिल्मों का निर्माण और प्रदर्शन हुआ
था वहीं 1918 में आठ फिल्में प्रदर्शित की गई। इन आठ फिल्मों में से ‘दाता
कर्ण’, ‘प्रोफेसर राममूर्ति ऑन स्क्रीन’ और ‘नल दमयन्ती’ का निर्माण
तत्कालीन कलकत्ता में हुआ था। इनमें फिल्म ‘नल दमयन्ती’ एक बेहद सफल फिल्म
सिद्ध हुई। इसका निर्माण मादन थियेटर कम्पनी ने किया था। फिल्म में पेसेन्स
कूपर, के. अदजानिया, ई.डी. लिगुओरो, डी. सरकार, अल्वर्टिना आदि ने अभिनय
किया था। तत्कालीन बम्बई की पाटनकर कम्पनी ने इस वर्ष एक अनूठा ‘श्रीराम
वनवास’ कथानक पर धारावाहिक रूप से चार भागों में क्रमशः फिल्म का निर्माण
किया और क्रमशः उनका प्रदर्शन किया। आज एक ही कथानक या चरित्र पर एक से
अधिक फिल्मों का निर्माण प्रचलन में है। इसकी बुनियाद 1918 की इस फिल्म ने
ही स्थापित की थी। इस वर्ष पाटनकर की एक और फिल्म आई- ‘किंग श्रीयाल उर्फ
कटोरा भर खून’। दादा फालके ने भी इस वर्ष ‘श्रीकृष्ण जन्म’ नामक फिल्म का
निर्माण किया था। नासिक में बनी इस फिल्म में मन्दाकिनी, नीलकण्ठ, डी.डी.
दबके, पुरुषोत्तम वैद्य भागीरथी बाई आदि ने अभिनय किया था। बम्बई में भी
‘श्रीकृष्ण भगवान’ शीर्षक से एक और फिल्म का निर्माण भी हुआ था।
इसी वर्ष अर्थात 1918 में तत्कालीन सरकार ने ‘इण्डियन सिनेमेट्रोग्राफ ऐक्ट 1918’ पारित किया। यह ऐक्ट देश में निर्मित फिल्मों को लाइसेन्स देने और निर्माण के बाद सेंसर करने के लिए बनाया गया था।
इसी वर्ष अर्थात 1918 में तत्कालीन सरकार ने ‘इण्डियन सिनेमेट्रोग्राफ ऐक्ट 1918’ पारित किया। यह ऐक्ट देश में निर्मित फिल्मों को लाइसेन्स देने और निर्माण के बाद सेंसर करने के लिए बनाया गया था।
सवाक युग के धरोहर : फिल्म ‘हमारी बात’ से शुरू हुआ गीतकार नरेन्द्र शर्मा का फिल्मी सफर
फिल्म 'हमारी बात' |
सवाक
फिल्मों के धरोहर के अन्तर्गत आज हम आपसे चर्चा करेंगे 1943 के
फ़िल्म-संगीत की, अनिल बिस्वास की, पण्डित नरेन्द्र शर्मा की, पारुल घोष की और ‘बॉम्बे टॉकीज़’ की। इस कम्पनी की दो
फ़िल्में इस वर्ष प्रदर्शित हुईं – ‘हमारी बात’ और ‘क़िस्मत’। अब तक ‘नेशनल
स्टूडिओज़’ से अनुबन्धित होने के कारण अनिल बिस्वास का ‘बॉम्बे टॉकीज़’ में
संगीत देने के बावजूद नाम सामने नहीं आ पा रहा था। पर ‘हमारी बात’ से
औपचारिक रूप से बिस्वास ‘बॉम्बे टॉकीज़’ के संगीतकार बन गए, और इन दोनों ही
फ़िल्मों में उन्होंने ऐसा संगीत दिया कि ये इस कम्पनी की सबसे कामयाब
फ़िल्में सिद्ध हुईं। देविका रानी और जयराज अभिनीत ‘हमारी बात’ में देविका
रानी बतौर अभिनेत्री अन्तिम बार पर्दे पर नज़र आईं। पारुल घोष का गाया ‘मैं उनकी बन जाऊँ रे, पल पल पन्थ निहारूँ, नैनन दीप जलाऊँ...’
फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत था। पारुल घोष को इस गीत ने एक सशक्त पार्श्वगायिका के रूप में स्थापित कर दिया। उनके गाये फ़िल्म के अन्य एकल
गीतों में ‘वह दिल में घर किए थे, और दिल ने भी न जाना...’, ‘सूखी बगिया हुई हरी, घनश्याम बदरिया छाई रे...’ और ‘ऐ बादे सबा, इठलाती न आ, मेरा गुंचाए दिल तो सूख गया...’ शामिल थे। अपने बड़े भाई और फ़िल्म के संगीतकार अनिल बिस्वास के साथ भी पारुल ने एक गीत गाया था ‘इंसान क्या जो ठोकरें नसीब की न खा सके...’। सुरैया, जिन्होंने फ़िल्म में अभिनय किया, अरूण कुमार के साथ कुछ गीत भी गाये, जैसे कि ‘जीवन-जमुना
पार, मिलेंगे जीवन-जमुना पार...’, ‘साकी की निगाहें शराब हैं, मेरे दिल
में मुहब्बत के ख़्वाब हैं...’, ‘करवटें बदल रहा है आज सब जहान...’ और ‘बिस्तर बिछा दिया है तेरे दर के सामने...’।
इस
अनिल बिस्वास |
अन्तिम गीत के गीतकार थे वली साहब, जबकि फ़िल्म के अन्य सभी गीत लिखे
नवोदित गीतकार नरेन्द्र शर्मा ने। पण्डित शर्मा की यह पहली फ़िल्म थी। उनकी
पुत्री लावण्या शाह इण्टरनेट पर सक्रिय हैं और अपने पिता से सम्बन्धित कई
लेख अपने ब्लॉगों पर पोस्ट करती रहती हैं जिनसे पण्डित शर्मा के व्यक्तित्व
और उपलब्धियों के बारे में विस्तारपूर्वक जाना जा सकता है। पण्डित शर्मा
एक गीतकार होने के अलावा एक दार्शनिक, भाषाविद और आयुर्देव के ज्ञाता भी
थे। सही मायने में वो एक ‘पण्डित’ की हैसियत रखते थे।
लावण्या जी
से हुई मेरी (सुजॉय चटर्जी) बातचीत के दौरान उन्होने बताया था कि
'चित्रलेखा' के मशहूर उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा, नरेन्द्र शर्मा को अपने
संग बम्बई ले आये थे। कारण था, फिल्म निर्माण संस्था ‘बॉम्बे टॉकीज़’ नायिका
देविका रानी के पास आ गयी थी, जब उनके पति हिमांशु राय का देहान्त हो गया
और देविका रानी को अच्छे गीतकार, पटकथा लेख़क, कलाकार, सभी की जरूरत हुई।
भगवती बाबू को, गीतकार नरेन्द्र शर्मा को ‘बॉम्बे टॉकीज़’ में काम करने के
लिए ले आने का आदेश हुआ था और नरेन्द्र शर्मा के जीवन की कहानी का अगला
अध्याय यहीं से आगे बढ़ा। पण्डित जी का लिखा पहला गीत पारुल घोष की आवाज़ में
१९४३ की फ़िल्म 'हमारी बात' का, ‘मैं उनकी बन जाऊँ रे...’ बहुत लोकप्रिय हुआ था। आगे बढ़ने से पहले पण्डित नरेन्द्र शर्मा का पहला गीत अब हम आपको भी सुनवाते हैं-
फिल्म हमारी बात : ‘मैं उनकी बन जाऊँ रे...’ : स्वर पारुल घोष : गीतकार पण्डित नरेन्द्र शर्मा
पारुल घोष |
बातचीत
के दौरान लावण्या जी ने यह भी बतलाया था कि फिल्म 'हमारी बात' के लिए गीत
लिखने के लिए जब पापा को बम्बई बुलाया गया तो उन्होने आते समय ट्रेन में ही
फिल्म का पहला गीत 'ऐ बादे सबा, इठलाती न आ...' लिख लिया था। इस गीत में
उन्होने हिन्दी और उर्दू के शब्दों को इस इरादे से मिलाया था कि उन दिनों
हिन्दी फिल्मों में ऐसा ही चलन था। फिल्म ‘हमारी बात’ में पण्डित नरेन्द्र
शर्मा के ट्रेन में लिखे इस गीत को संगीतकार अनिल बिस्वास जी ने स्वरबद्ध
किया और गायिका पारुल घोष ने गाया। लीजिए, यह गीत आप भी सुनिए-
फिल्म हमारी बात : 'ऐ बादे सबा, इठलाती न आ...' : स्वर पारुल घोष : गीतकार पण्डित नरेन्द्र शर्मा
पण्डित नरेन्द्र शर्मा |
पण्डित
नरेन्द्र शर्मा का 'बॉम्बे टॉकीज़' के साथ जुड़ना मात्र संयोग नहीं था।
दरअसल उस समय गीतकार प्रदीप ‘बॉम्बे टॉकीज़’ से सम्बद्ध थे। ‘कंगन’, ‘बन्धन’
और ‘नया संसार’ फिल्मों से उन्होंने बम्बई की फिल्मी दुनिया में चमत्कारिक
ख्याति अर्जित कर ली थी, लेकिन इस बीच वह ‘बॉम्बे टॉकीज़’ में काम करने
वाले एक गुट के साथ अलग हो गए थे। इस गुट ने ‘फिल्मिस्तान’ नामक एक नई
संस्था स्थापित कर ली थी। इन लोगों का कम्पनी से हट जाने के कारण देविका
रानी को अधिक चिन्ता नहीं थी, किन्तु, अभिनेता अशोक कुमार और गीतकार प्रदीप
जी के हट जाने से वह बहुत चिन्तित थीं। कम्पनी के तत्कालीन डायरेक्टर श्री
धरम्सी ने अशोक कुमार की कमी युसूफ ख़ान नामक एक नवयुवक को लाकर पूरी कर
दी। यूसुफ का नया नाम, "दिलीप कुमार" रखा गया, (यह नाम भी पण्डित नरेन्द्र
शर्मा ने ही सुझाया था)। एक और नाम 'जहाँगीर' भी चुना गया था पर नरेन्द्र
जी ने कहा था कि यूसुफ, दिलीप कुमार नाम (ज्योतिष के हिसाब से) बहुत फलेगा
और आज सारी दुनिया इस नाम को पहचानती है। किन्तु प्रदीप जी की टक्कर के
गीतकार के अभाव से श्रीमती राय बहुत परेशान थीं। इसलिए उन्होंने भगवतीचरण
वर्मा से यह आग्रह किया था एक नये अच्छी हिन्दी जानने वाले गीतकार को खोज
लाने का। भगवती बाबू ही नरेन्द्र शर्मा को इलाहाबाद से बम्बई लाए थे। इस
तरह से पण्डित नरेन्द्र ‘बॉम्बे टॉकीज़’ में शामिल हुए।
‘बॉम्बे टॉकीज़’ की देविका रानी और जयराज अभिनीत फिल्म ‘हमारी बात’ में अभिनेत्री और गायिका सुरैया ने भी अभिनय किया था और अरुण कुमार मुखर्जी के साथ गीत भी गाये थे। इसी फिल्म का एक युगल गीत भी प्रस्तुत है, जिसे पण्डित नरेन्द्र शर्मा ने लिखा और अनिल बिस्वास ने संगीतबद्ध किया था। स्वर, सुरैया और अरुण कुमार के हैं।
‘बॉम्बे टॉकीज़’ की देविका रानी और जयराज अभिनीत फिल्म ‘हमारी बात’ में अभिनेत्री और गायिका सुरैया ने भी अभिनय किया था और अरुण कुमार मुखर्जी के साथ गीत भी गाये थे। इसी फिल्म का एक युगल गीत भी प्रस्तुत है, जिसे पण्डित नरेन्द्र शर्मा ने लिखा और अनिल बिस्वास ने संगीतबद्ध किया था। स्वर, सुरैया और अरुण कुमार के हैं।
फिल्म हमारी बात : 'करवटें बदल रहा है आज सब जहान...' : स्वर सुरैया और अरुण कुमार
इसी गीत के साथ इस अंक को हम यहीं विराम देते हैं। आपको हमारी यह प्रस्तुति
कैसी लगी, हमें अवश्य लिखिएगा। आपकी प्रतिक्रिया, सुझाव और समालोचना से हम
इस स्तम्भ को और भी सुरुचिपूर्ण रूप प्रदान कर सकते हैं। ‘स्मृतियों के
झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल’ के आगामी अंक में आपके लिए हम एक रोचक
संस्मरण लेकर उपस्थित होंगे। आप अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव हमें radioplaybackindia@live.com पर भेजें।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
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