स्वरगोष्ठी-102 में आज
संगीतकार नौशाद के 94वें जन्मदिवस पर विशेष -2
खमाज, केदार, सोहनी, वृन्दावनी सारंग और भैरवी में पगे नौशाद के गीत
क्षिति, पी.के. और प्रकाश संगीत-पहेली के महाविजेता बने
‘स्वरगोष्ठी’ के 102वें अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सब
संगीत-प्रेमियों के बीच उपस्थित हूँ। आपको स्मरण ही होगा कि गत रविवार को
हमने फिल्म जगत के यशस्वी संगीतकार नौशाद अली के 94वें जन्मदिवस के
उपलक्ष्य में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़े कुछ प्रसंगों का
स्मरण किया था। पिछले अंक में हमने नौशाद के संगीतबद्ध, 1946 से लेकर 1955
के बीच कुछ राग-आधारित गीतों का चयन किया था। आज हम उससे अगले दशक अर्थात
1956 से लेकर 1967 के बीच के कुछ राग-आधारित गीत आपको सुनवाएँगे। ये गीत
खमाज, केदार, सोहनी, वृन्दावनी सारंग और भैरवी रागों पर आधारित हैं
जिनका रसास्वादन आप करेंगे।
इसके साथ ही आज के इस अंक में हम ‘स्वरगोष्ठी’ के वार्षिक महाविजेता और उप-विजेताओ की घोषणा भी कर रहे हैं।
इसके साथ ही आज के इस अंक में हम ‘स्वरगोष्ठी’ के वार्षिक महाविजेता और उप-विजेताओ की घोषणा भी कर रहे हैं।
आरम्भ से ही नौशाद ने अपने संगीत को उत्तर प्रदेश के लोक संगीत और राग आधारित संगीत पर केन्द्रित रखा। यही नहीं आवश्यकता पड़ने पर दिग्गज शास्त्रीय गायकों को भी अपनी फिल्मों में गवाया। 1957 की फिल्म ‘मदर इण्डिया’ और ‘गंगा जमुना’ में तो नौशाद ने लोक संगीत के श्रेष्ठतम उदाहरण प्रस्तुत किये। नौशाद ने इन फिल्मों के कुछ गीतों में तो लोक धुनों के साथ रागदारी संगीत का अनूठा समिश्रण कर फिल्म संगीत को एक नया मुहावरा दिया। आज सबसे पहले हम आपको फिल्म ‘मदर इण्डिया’ का एक गीत सुनवाते हैं, जिसे मन्ना डे ने स्वर दिया है। गीत के बोल हैं- ‘चुनरिया कटती जाए रे, उमरिया घटती जाए...’। नौशाद ने इस गीत में पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक प्रचलित लोकधुन के साथ-साथ राग खमाज के स्वरों का उपयोग भी किया है। वर्तमान में प्रचलित राग खमाज ठुमरियों के लिए एक आदर्श राग है। षाड़व-सम्पूर्ण जाति के इस राग के आरोह में ऋषभ का प्रयोग नहीं होता और अवरोह में दोनों निषाद प्रयोग किये जाते हैं। श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए कई फिल्म-संगीतकारों ने खमाज का प्रयोग किया है। नौशाद के संगीत की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे विविध रागों के स्वरों का सरल लोक रूपान्तरण कर लेते थे। फिल्म ‘मदर इण्डिया’ के इस गीत में भी उनकी इस प्रतिभा का स्पष्ट दिग्दर्शन होता है। मन्ना डे के स्वरों में सुनिए राग खमाज का एक अनूठा फिल्मी रूप।
राग - खमाज : ‘चुनरिया कटती जाए रे...’ : मन्ना डे : फिल्म - मदर इण्डिया
नौशाद की संगीत प्रतिभा को शिखर पर ले जाने में 1960 की फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस फिल्म का पूरा संगीत ही अविस्मरणीय रहा है। आज के इस अंक में हमने फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के दो गीत लिये हैं। पहला लता मंगेशकर का गाया गीत है- ‘बेकस पे करम कीजिये सरकार-ए-मदीना...’, जिसे नौशाद ने राग केदार के स्वरों का आधार लेकर संगीतबद्ध किया था। राग केदार कल्याण थाट से संचालित होता है। प्राचीन ग्रन्थकार इसे बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते थे। इस राग में दोनों मध्यम तथा अन्य स्वर शुद्ध लगते हैं। शुद्ध मध्यम आरोह-अवरोह दोनों में तथा तीव्र मध्यम केवल आरोह में प्रयोग किया जाता है। आरोह में ऋषभ तथा अवरोह में गन्धार स्वर वर्जित होता है। नौशाद का संगीतबद्ध किया फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ का यह गीत राग केदार पर आधारित गीतों की सूची में एक अच्छा उदाहरण है। आपके लिए प्रस्तुत है यह गीत-
राग - केदार : ‘बेकस पे करम कीजिये...’ : लता मंगेशकर : फिल्म - मुगल-ए-आज़म
फिल्मों के प्रसंग के अनुसार नौशाद उस समय के दिग्गज शास्त्रीय गायकों को आमंत्रित कर गवाने से भी नहीं चूके। 1952 की फिल्म ‘बैजू बावरा’ में उस्ताद अमीर खाँ और पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के स्वरों में तथा 1954 की फिल्म ‘शबाब’ में दोबारा उस्ताद अमीर खाँ के स्वर में ऐसा प्रयोग वे कर चुके थे। फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ के एक प्रसंग में अकबर के दरबारी गायक तानसेन के स्वर में जब एक गीत की आवश्यकता हुई तो नौशाद ने उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ को गाने के लिए बड़ी मुश्किल से राजी किया। उस्ताद का राग सोहनी में गाया वह गीत था- ‘प्रेम जोगन बनके...’। इस ठुमरीनुमा गीत के लिए के. आसिफ ने उस्ताद को पचीस हजार रुपये मानदेय के रूप में दिया था। यह गीत उन्हें इतना पसन्द आया कि के. आसिफ ने उस्ताद बड़े गुलाम अली को पचीस हजार रुपये और देकर एक और गीत ‘शुभ दिन आयो राजदुलारा...’ (राग रागेश्री) भी गवाया था। आइए, अब हम आपको उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के स्वर में फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ की राग सोहनी, दीपचन्दी ताल में निबद्ध ठुमरी सुनवाते हैं।
राग – सोहनी : ‘प्रेम जोगन बनके...’ : उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ : फिल्म - मुगल-ए-आज़म
लोकधुनों और राग आधारित गीतों के अलावा गज़लों की संगीत-रचना में भी नौशाद सिद्ध थे। फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’, ‘मेरे महबूब’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘पालकी’ आदि फिल्मों में उनकी संगीतबद्ध गज़लें बेहद लोकप्रिय हुई थीं। फिल्म ‘दिल दिया दर्द लिया’ में मोहम्मद रफी का गाया- ‘कोई सागर दिल को बहलाता नहीं...’ और ‘गुजरे हैं आज इश्क़ में...’ की धुनें बेहद आकर्षक थीं। परन्तु आज हम आपको इस फिल्म का जो गीत सुनवा रहे हैं, वह राग वृन्दावनी सारंग पर आधारित है। मोहम्मद रफी और आशा भोसले के स्वरों में प्रस्तुत इस युगल गीत के बोल हैं- ‘सावन आए या न आए, जिया जब झूमे सावन है...’। तीनताल और कहरवा में निबद्ध इस गीत का आनन्द आप लीजिए।
राग – वृन्दावनी सारंग : ‘सावन आए या न आए...’ : आशा भोसले और रफी : फिल्म – दिल दिया दर्द लिया
नौशाद द्वारा लोक धुनों के आकर्षक फिल्मी रूपान्तरण के लिए यदि फिल्म ‘मदर इण्डिया’ को याद रखा जाएगा तो 1961 में बनी फिल्म ‘गंगा जमुना’ का संगीत भी कुछ कम नहीं था। पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोकप्रिय धुनों में राग खमाज, पीलू, पहाड़ी, भैरवी आदि रागों का स्पर्श देकर नौशाद ने इस फिल्म के संगीत के स्तर को नई ऊँचाईयों तक पहुँचा दिया था। फिल्म ‘गंगा जमुना’ के एक गीत- ‘दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गयो रे...’ को नौशाद ने लोक धुन बिरहा का आधार दिया तो राग भैरवी के कोमल स्वरों का स्पर्श देकर गीत के विरह भाव को उत्प्रेरित भी किया। सितार और सारंगी का प्रयोग कर उन्होने गीत को अतुलनीय कर्णप्रियता प्रदान की है। संगीतकार नौशाद के 94वें जन्मदिवस पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित दो कड़ियों की इस लघु श्रृंखला का समापन हम फिल्म ‘गंगा जमुना' के इसी गीत से कर रहें हैं। लता मंगेशकर की आवाज़ में राग भैरवी के स्वरों की चाशनी में पगे इस गीत का आप रसास्वादन करें और मुझे आज के अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दें।
राग – भैरवी : ‘दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गयो रे...’ : लता मंगेशकर : फिल्म – गंगा जमुना
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक की पहेली में हम आपको एक राग आधारित फिल्मी गीत का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहेली के 110वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?
२ – इस गीत के संगीतकार कौन हैं?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 104वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 100वें अंक में हमने आपको सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद अमीर खाँ की आवाज़ में वर्ष 1954 की फिल्म ‘शबाब’ के गीत का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मुलतानी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- तीनताल। दोनों प्रश्नो के सही उत्तर लखनऊ के प्रकाश गोविन्द, जबलपुर की क्षिति तिवारी और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से बधाई।
वर्ष 2012 के महाविजेता
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ 51वें अंक
अर्थात वर्ष 2012 के प्रारम्भिक अंकों से हमने आप सबके परामर्श से संगीत
पहेली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू किया था। गत 16 दिसम्बर के अंक में 100वीं
पहेली सम्पन्न हुई है। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे कुछ पाठक नियमित तो
कुछ पाठक बीच-बीच में भाग लेते रहे हैं। 100वें अंक की पहेली का उत्तर
प्राप्त हो जाने के बाद हमने सभी प्रतिभागियों द्वारा पूरे एक वर्ष तक के
अर्जित प्राप्तांकों का योग किया और प्रथम तीन सर्वाधिक अंक पाने वाले
प्रतिभागियो का चयन किया।
सर्वाधिक
82 अंक अर्जित कर जबलपुर, मध्य प्रदेश की श्रीमती क्षिति तिवारी वर्ष 2012
की महाविजेता बनीं है। इस क्रम में 57 अंक पाकर जौनपुर, उत्तर प्रदेश के
डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने प्रथम उप-महाविजेता का और 39 अंक पाकर लखनऊ, उत्तर
प्रदेश के श्री प्रकाश गोविन्द द्वितीय उप-महाविजेता बने हैं। इन सभी
विजेताओं को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। यहाँ हम
पहेली के कुछ अन्य प्रतिभागियों का भी उल्लेख करना चाहते हैं। पटना, बिहार
की सुश्री अर्चना टण्डन और बैंगलुरु, कर्नाटक के श्री पंकज मुकेश ने
आरम्भिक तीन सेगमेंट तक अपनी बढ़त बना ली थी। परन्तु अचानक ये दोनों
प्रतिभागी प्रतियोगिता में अनियमित हो गए। यही कारण था कि तीसरे सेगमेंट के
बीच से भाग लेने वाले श्री प्रकाश गोविन्द इनसे आगे निकल आए। इनके अलावा
अहमदाबाद, गुजरात के डॉ. कश्यप दवे, लखनऊ के श्री अवध लाल, राजस्थान के
राजेन्द्र सोनकर, राकेश रमण, दयानिधि वत्स, अभिषेक मिश्रा, अखिलेश दीक्षित
और दीपक ‘मशाल’ ने भी बीच-बीच में संगीत पहेली में अपनी सहभागिता की है। इन
सभी प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित हैं।
100वें अंक की समाप्ति के बाद बने हमारे तीनों शीर्ष स्थान के विजेताओं से अनुरोध है कि वे अपने डाक का पूरा पता हमें शीघ्रातिशीघ्र swargoshthi@gmail.com पर भेज दें, ताकि हम आपका पुरस्कार आपके पते पर भेज सकें।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ का अगला अंक वर्ष 1013 का पहला अंक होगा। इस अंक से
हम एक नई लघु श्रृंखला- ‘राग और प्रहर’ शीर्षक से आरम्भ कर रहे हैं। काल
गणना के अनुसार दिन और रात्रि को तीन-तीन घण्टों की अवधि के आठ प्रहर में
बाँटा जाता है। परम्परागत रूप से गायन-वादन के लिए सभी राग किसी प्रहर
विशेष अथवा ऋतु विशेष में ही उपयोगी माने जाते हैं। अगले अंक में हम दिन के
प्रथम प्रहर के रागों पर आपसे चर्चा करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९-३०
बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सब संगीत-रसिकों की हम प्रतीक्षा करेंगे।
कृष्णमोहन मिश्र
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