वर्ष २०१२ में श्रोताओं ने क्या क्या सुना, किसे पसंद किया और किसे सिरे से नकार दिया, किन गीतों ने हमारी धडकनों को धड़कने के सबब दिया, किन शब्दों ने हमारे ह्रदय को झकझोरा, और किन किन फनकारों की सदाएं हमारी रूह में उतर कर अपनी जगह बनने में कामियाब रहीं, आईये इस पोडकास्ट में सुनें पूरे वर्ष के संगीत का एक मुक्कमल लेखा जोखा. साथ ही किन संगीत योद्धाओं को हमारे श्रोताओं ने दिया वर्ष-सर्वश्रेष्ठ का खिताब, ये भी जाने. कुछ कदम थिरकाने वाले गीतों के संग आईये अलविदा कहें वर्ष २०१२ को और स्वागत करें २०१३ का. नववर्ष आप सबके लिए मंगलमय हो. इसी कामना के साथ प्रस्तुत है रेडियो प्लेबैक का ये पोडकास्ट.
महफ़िल-ए-ग़ज़ल #११३ सू फ़ियों-संतों के यहां मौत का तसव्वुर बडे खूबसूरत रूप लेता है| कभी नैहर छूट जाता है, कभी चोला बदल लेता है| जो मरता है ऊंचा ही उठता है, तरह तरह से अंत-आनन्द की बात करते हैं| कबीर के यहां, ये खयाल कुछ और करवटें भी लेता है, एक बे-तकल्लुफ़ी है मौत से, जो जिन्दगी से कहीं भी नहीं| माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोदुंगी तोहे ॥ माटी का शरीर, माटी का बर्तन, नेकी कर भला कर, भर बरतन मे पाप पुण्य और सर पे ले| आईये हम भी साथ-साथ गुनगुनाएँ "भला हुआ मेरी मटकी फूटी रे"..: भला हुआ मेरी मटकी फूटी रे । मैं तो पनिया भरन से छूटी रे ॥ बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय । जो दिल खोजा आपणा, तो मुझसा बुरा ना कोय ॥ ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नांहि । सीस उतारे भुँई धरे, तब बैठे घर मांहि ॥ हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को हुशारी क्या । रहे आज़ाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ॥ कहना था सो कह दिया, अब कछु कहा ना जाये । एक गया सो जा रहा, दरिया लहर समाये ॥ लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल । लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गयी लाल ॥ हँस हँस कु...

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