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मैंने देखी पहली फिल्म : सुमन दीक्षित


स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल –29

जुड़वा बहनों की कहानी से माँ ने मुझे प्रेरित करने का प्रयास किया



भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया है। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। पिछले अंक में प्रस्तुत किये गए प्रतियोगी संस्मरण को हमने इस श्रृंखला का समापन संस्मरण घोषित किया था। परन्तु हमे विलम्ब से हमारी एक श्रोता/पाठक का एक और संस्मरण प्राप्त हो गया। आज के अंक में उसी संस्मरण को प्रस्तुत कर रहे हैं। अब हम इस प्रतियोगिता का परिणाम जनवरी के दूसरे गुरुवार को घोषित करेंगे। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता के आज के समापन अंक में हम प्रस्तुत कर रहे है, लखनऊ निवासी, एक गृहणी श्रीमती सुमन दीक्षित का संस्मरण। सुमन जी ने बचपन में सबसे पहले फिल्म ‘दो कलियाँ’ देखी थी।


मेरा रुपहले पर्दे का साक्षात्कार पहली बार तब हुआ जब मैं 7 या 8 वर्ष की थी। फिल्म थी ‘दो कलियाँ’। मुझे वह अवसर भी अचानक मिला था, एक आकस्मिक घटना के जैसा। पाँच भाई बहनों में मैं सबसे छोटी थी। मुझसे मात्र एक वर्ष चार माह बड़ी बहन हैं। बचपन में हम दोनों के बीच गजब की प्रतिस्पर्धा हुआ करती थी। हमारे बीच खूब लड़ाई हुआ करती थी। यहाँ तक कि मुहल्ले में हमें ‘गुलाबो-सिताबो’ के खिताब से नवाजा गया था। माता-पिता और घर के और बड़े हमारी इन हरकतों पर कभी डाँटते तो कभी झुँझलाते, किन्तु हम बहनों के बीच का युद्ध बदस्तूर जारी रहता था।

उस समय हमारे ऊपर फिल्में न देखने का कठोर प्रतिबन्ध तो नहीं था, परन्तु हम घर के किसी बड़े सदस्य के साथ केवल चुनी हुई फिल्म ही देख सकते थे। हम दोनों बहनों के बीच प्रायः होने वाले वाद-विवाद से चिन्तित मेरी माँ को एक दिन हमारी एक पड़ोसन ने बताया कि दो जुड़वा बहनों के बिछड़ने और मिलने की कहानी पर बनी एक फिल्म पास के सिनेमाघर में लगी है। इस फिल्म से हमें प्रेरणा मिले और हम दोनों बहनो के बीच के झगड़े दूर हों, इस इरादे से माँ हमें फिल्म ‘दो कलियाँ’ दिखाने ले गई थीं। विश्वजीत और माला सिन्हा अभिनीत यह फिल्म माता-पिता के आपसी मतभेद की कहानी पर आधारित थी। इस अलगाव का बच्चों पर क्या असर पड़ता है, फिल्म की कहानी में इसी बात पर ज़ोर दिया गया था। आगे चलकर दोनॉ जुड़वा बहनें अपने माता-पिता को आपस में मिलाती हैं किन्तु इससे पूर्व अलग-अलग परिवेश में पल रहीं दो हमशक्ल बच्चियाँ इस बात से अनभिज्ञ थीं कि वे आपस में बहनें हैं और ठीक उसी प्रकार आपस में लड़ती रहीं, जिस तरह हम दोनों बहनें बचपन में लड़ती थीं।

फिल्म 'दो कलियाँ' को देखकर हम कुछ शिक्षा लें और आपस में लड़ना बन्द करें इस विचार से हमारी माँ और बड़ी बहन हमें फिल्म दिखाने ले गई थीं। फिल्म के कई भावुक दृश्य भी थे जिन्हें देखकर हमारे भाव तत्काल परिवर्तित भी हुए और सिनेमाघर से बाहर निकलने से पहले ही यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब हम कभी नहीं लड़ेंगे। हम इतने प्यार में डूब गए कि एक दूसरे का हाथ पकड़कर बाहर निकले और घर पहुँचने तक एक दूसरे का हाथ थामे रहे। पूरा एक दिन हम बड़े प्यार से रहे, मिल-बाँट कर खाते। घर वाले बहुत खु्श हुए कि बच्चियाँ सुधर गई हैं। अब आपस में नहीं लड़ेंगी। परन्तु घरवालो की ये खु्शी ज्यादा समय तक नही रह पाई। कुछ ही समय में हम अपने असली रुप में आ गए और फिर उसी तरह लड़ने-झगड़ने लगे।

कुछ भी हो, बहाना कोई भी हो, पर पहली बार फिल्म देखने का रोमांच अलग ही था जो आज तक चेतना-पटल पर ताज़ा बना हुआ है। पिक्चर हाल में पहली बार जाने का अनुभव, गीत-संगीत सुनना, और हीरो-हीरोइन को देखना हमारे जीवन की एक बड़ी उपलब्धि से कम न थी। फिल्म का एक गाना- 'बच्चे मन के सच्चे...' हम काफी समय तक गुनगुनाते रहे। नीतू सिंह का बचपन उन बच्चियों के रुप में बहुत अच्छी तरह याद है। आज भी नीतू सिंह का नाम याद आते ही या उन्हें टेलीविज़न के परदे पर देखते ही ‘दो कलियाँ’ वाली नीतू सिंह याद आ जाती है और याद आ जाता है, हम बहनों के बचपन का युद्ध।

इतेफाक सें मैं भी दो जुड़वा बेटों का माँ बनी। अब तो दोनों वयस्क हो गए हैं, लेकिन उनके बचपन के दौर में मैं हमेशा सतर्क रहती थी कि हमारे बच्चे वह गलती न दुहराएँ, जो हमने अपने बचपन में की थी।

सुमन जी की देखी पहली और प्रेरक फिल्म ‘दो कलियाँ’ के बारे में अभी आपने उनका संस्मरण पढ़ा। अब हम आपको इस फिल्म के दो गीत सुनवाते हैं, जो सुमन जी को ही नहीं आपको भी पसन्द आएगा। 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘दो कलियाँ’ के संगीतकार हैं रवि और गीत लिखे साहिर लुधियानवी ने।

प्लेयर का पहला गीत - फिल्म – दो कलियाँ : ‘बच्चे मन के सच्चे...’ : लता मंगेशकर


प्लयेर का दूसरा गीत - फिल्म – दो कलियाँ : ‘चितनन्दन आगे नाचूँगी...’: आशा भोसले 



आपको सुमन जी का यह संस्मरण कैसा लगा, हमें अवश्य लिखिएगा। आप अपनी प्रतिक्रिया radioplaybackindia@live.com पर भेज सकते हैं। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता का यह समापन संस्मरण था। इस प्रतियोगिता का परिणाम और विजेताओं के नाम 10 जनवरी, 2013 के अंक में घोषित करेंगे। नए वर्ष से हम इस स्तम्भ के स्थान पर एक नई श्रृंखला आरम्भ करेंगे। आप अपने सुझाव, संस्मरण और फरमाइश अवश्य भेजें।  

प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र 


Comments

शिशिर कृष्ण शर्मा said…
उत्तम !!!...मर्मस्पर्शी...और अंत में भीतर तक गुदगुदाने वाली !!! :)
Pankaj Mukesh said…
bahut hi sunder yadein, ek marmsparshi shailee poorn prashtuti!!!!

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