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सुन री पवन, पवन पुरवैया.. भटयाली संगीत की लहरों में बहाते बर्मन दा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 766/2011/206

मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों का इस नए सप्ताह में हार्दिक स्वागत है। इन दिनों जारी है लघु शृंखला 'पुरवाई' जिसके अन्तर्गत आप आनन्द ले रहे हैं पूर्व और पुर्वोत्तर भारत के लोक और पारम्परिक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी रचनाओं की। आज हम आपको लिए चलते हैं पूर्वी बंगाल, यानि कि वो जगह जिसका ज़्यादातर अंश आज बंगलादेश में पड़ता है। आपको बता दें कि पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल की संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान और गीत-संगीत में बहुत अन्तर है। असम और त्रिपुरा में भी पूर्वी बंगालियों का एक बड़ा समूह वास करता है। आज के इस कड़ी में हम पूर्वी बंगाल के बहुत प्रचलित लोक-गीत शैली पर आधारित गीत सुनवाने जा रहे हैं जिसे भटियाली लोक-गीत कहा जाता है। भटियाली मांझी गीत है जिसे नाविक भाटे के बहाव में गाते हैं। जी हाँ, ज्वार-भाटा वाला भाटा। क्योंकि भाटे में चप्पु चलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसलिए मांझी लोग गुनगुनाने लग पड़ते हैं। और इस "भाटा-संगीत" को ही भटियाली कहते हैं। मूलत: इस शैली का जन्म मीमेनसिंह ज़िले में हुआ था जहाँ मांझी ब्रह्मपुत्र नदी में नाव चलाते हुए गाते थे। धीरे धीरे यह संगीत फैला और समूचे बंगाल (पूर्वी और पश्चिम) में गाया जाने लगा। भटियाली गीतों का विषय मूलत: नाव चलाने, मछलियाँ पकड़ने और नदियों से सम्बन्धित हुआ करते हैं। बंगलादेश के कुल १४ किस्म के लोक गीतों में भटियाली प्रकृति-तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। अन्य तत्वों में शामिल है देह-तत्व (शरीर के विषय में) और मुर्शिद-तत्व (गुरु के विषय में)।

भटियाली गीत-संगीत से जुड़े प्रसिद्ध संगीतकार और गीतकारों में कुछ उल्लेखनीय नाम हैं मिराज़ अली, उकिल मुन्शी, राशीदुद्दीन, जलाल ख़ान, जंग बहादुर, शाह अब्दुल करीम और उमेद अली। १९३० से १९५० का समय भटियाली संगीत का स्वर्णयुग था और ये तमाम फ़नकार उसी दौर के थे। गायक अब्बासुद्दीन नें इस गायन शैली को लोकप्रिय बनाया, और सबसे लोकप्रिय गीत उनका रहा "आमाय भाशाइली रे, आमय डुबाइली रे" (मुझे बहा ले गया, मुझे डुबो ले गया)। आज के दौर के दो प्रमुख भटियाली गायक हैं मलय गांगुली और बारी सिद्दिक़ी। अब आते हैं फ़िल्मी गीतों पर। क्योंकि सचिन देव बर्मन का जन्म और बचपन त्रिपुरा में प्रकृति के बहुत करीब से बीता, इसलिए वहाँ का हर तरह का लोक-संगीत उनके ख़ून में रच-बस गया था। अन्य तमाम लोक-शैलियों के साथ साथ भटियाली संगीत का भी उन्होंने कई कई बार प्रयोग किया। "मेरे साजन है उस पार" और "सुन मेरे बन्धु रे" इस श्रेणी के दो सबसे ज़्यादा उल्लेखनीय गीत हैं। उनकी आवाज़ में एक मशहूर भटियाली गीत था "के जाश रे, भाटी गांग बाइया...." (कौन जा रहा है उधर, नाव खेते हुए...)। यह बड़ा ही मार्मिक गीत है जिसे सुन कर हर लड़की की आँखों में आंसू आ जाते हैं। गीत का भाव कुछ ऐसा है कि ससुराल में घर-संसार सम्भालते हुए लड़की बहुत सालों से माइके नहीं जा पा रही हैं। ऐसे में वो दूर नदी में जा रही नाव के नाविकों को पुकार कर कह रही है कि अरे ओ कौन जा रहे हो, ज़रा मेरे घर में जा कर मेरे भाई से कहना कि वो आकर मुझे कुछ दिनों के लिए यहाँ से ले माइके ले जाए। कितने दिन हो गए माइके गए हुए। फिर गीत के अन्तरों में लड़की अपने बचपन के दिनों को याद करती है, माता-पिता और भाई-बहनों, सखी-सहेलियों को याद करती हैं। इस गीत को आप इस लिंक पर सुन सकते हैं। कहीं मैंने पढ़ा है कि इस गीत के बोल बर्मन दादा की पत्नी मीरा देब बर्मन नें लिखी हैं, पर इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है।

और अब इसी धुन पर आधारित सुनिए बर्मन दादा का ही स्वरबद्ध किया फ़िल्म 'अनुराग' का गीत "सुन री पवन, पवन पुरवइया, मैं हूँ अकेली अलबेली तू सहेली मेरी बन जा साथिया"। इस गीत का भाव भी इसके बंगला संस्करण की ही तरह अकेलेपन से ताल्लुख़ रखता है, पर यहाँ लड़की ससुराल में अकेला नहीं महसूस कर रही है, बल्कि वो नेत्रहीन है और किसी जीवन-साथी की आस में बैठी है। लता मंगेशकर की अद्वितीय आवाज़ में आनन्द बख्शी की रचना प्रस्तुत है 'पुरवाई' शृंखला की छठी कड़ी में, भटियाली सुरों के साथ।



चलिए आज से खेलते हैं एक "गेस गेम" यानी सिर्फ एक हिंट मिलेगा, आपने अंदाजा लगाना है उसी एक हिंट से अगले गीत का. जाहिर है एक हिंट वाले कई गीत हो सकते हैं, तो यहाँ आपका ज्ञान और भाग्य दोनों की आजमाईश है, और हाँ एक आई डी से आप जितने चाहें "गेस" मार सकते हैं - आज का हिंट है -
साहिर का लिखा ये गीत "साजन" शब्द से शुरू होता है

पिछले अंक में
आपने बहुत अच्छे अच्छे गीत सुझाए शरद जी जिसमें 'अलबेली" शब्द आया है, बाकी श्रोता भी इस तरह बताएं तो हमारे पास एक शब्द प्रयुक्त गीतों की खासी सूची बन जायेगी
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

साजन की हो गई गोरी.
थोड़ा सा कठिन था पर गूगल देवता जिंदाबाद. अलग अलग तरीके से सर्च मारने पर तीसरा आप्शन यही गाने का आता है. वैसे शब्द साजन वाले और भी गाने हैं पर उसमे यह शब्द बाद में आता है.
आवाज़ के मित्रों,
अभी कुछ देर पहले मेरे एक पत्रकार मित्र ने आज का आलेख पढ़ कर फोन से पूछा कि क्या भटियाली धुन का विकसित रूप भटियार राग है? अपने पत्रकार मित्र के साथ-साथ मैं आवाज़ के पाठकों से अपने अल्प ज्ञान से यह कहना चाहता हूँ कि स्वरों और चलन की दृष्टि से दोनों में कोई समानता नहीं है। लोक संगीत की कई धुने विकसित होकर राग की श्रेणी में आ चुकी हैं, लेकिन उनमें भटियाली धुन अभी शामिल नहीं है। कभी अवसर मिला तो इस रोचक विषय पर लिखने का प्रयास करूंगा।
indu puri said…
मुझे नही मालूम किसे क्या कहते हैं.मुझे तो बस अच्छे गाने सुनने का शौक है.भटियाली गानों को मैं 'मांझी' गीत कहती हूँ हा हा हा
क्या करू?ऐसीच हूँ मैं तो

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