ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 668/2011/108
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों जारी है मजरूह सुल्तानपुरी पर केन्द्रित लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया'। इसके तहत हम दस अलग अलग संगीतकारों द्वारा स्वरबद्ध मजरूह साहब के लिखे गीत सुनवा रहे हैं जो बने हैं अलग अलग दौर में। ४०, ५० और ६० के बाद आज हम क़दम रख रहे हैं ७० के दशक में। ५० के दशक में नौशाद, अनिल बिस्वास, ओ.पी. नय्यर, मदन मोहन, के अलावा एक और नाम है जिनका उल्लेख किये बग़ैर यह शृंखला अधूरी ही रह जायेगी। और वह नाम है सचिन देव बर्मन का। अब आप सोच रहे होंगे कि ५० के दशक के संगीतकारों के साथ हमनें उन्हें क्यों नहीं शामिल किया। दरअसल बात ऐसी है कि हम बर्मन दादा द्वारा स्वरबद्ध जिस गीत को सुनवाना चाहते हैं, वह गीत है ७० के दशक का। इससे पहले कि हम इस गीत का ज़िक्र करें, हम वापस ४०-५० के दशक में जाना चाहेंगे। मेरा मतलब है मजरूह साहब के कहे कुछ शब्द जिनका ताल्लुख़ उस ज़माने से है। विविध भारती के किसी कार्यक्रम में उन्होंने ये शब्द कहे थे - "१९४५ से १९५२ के दरमियाँ की बात है। उस समय मैंने तरक्की-पसंद अशार की शुरुआत की थी। मेरे उम्र के जानकार लोगों को यह मालूम होगा कि आज ऐसे अशार जो किसी और के नाम से लोग जानते हैं, वो तरक्की-पसंद शायरी मैंने ही शुरु की थी। मैं एक बार अमरीका और कैनाडा गया था। वहाँ के कई यूनिवर्सिटीज़ में मैं गया, मुझे इस बात की हैरानी हुई कि वहाँ के शायरी-पसंद लोगों को मेरे अशार तो याद हैं, पर कोई फ़ैज़ के नाम से, तो कोई फ़रहाद के नाम से, मजरूह के नाम से नहीं"।
सचिन देव बर्मन की धुन पर मजरूह साहब के लिखे बेशुमार गीतों में से आज सुनिये १९७३ की फ़िल्म 'अभिमान' से लता-रफ़ी की आवाज़ों में "तेरी बिंदिया रे, आये हाये"। 'अभिमान' हिंदी सिनेमा की सफलतम फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म न केवल अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी के करीयर के लिये मील का पत्थर साबित हुई थी, इस फ़िल्म के गीतों नें भी काफ़ी धूम मचाया। फ़िल्म का हर गीत सुपरहिट, हर गीत लाजवाब। आज ४० वर्ष बाद भी इस फ़िल्म के गीत आये दिन सुनाई देते हैं। फ़िल्म के तीनों युगल गीतों, "तेरे मेरे मिलन की यह रैना" (लता-किशोर), "लूटे कोई मन का नगर बनके मेरा साथी" (लता-मनहर) और आज का प्रस्तुत गीत, का सर्वाधिक, सदाबहार व लोकप्रिय युगल गीतों की श्रेणी में शुमार होता है। फ़िल्म के सभी एकल गीत, "नदिया किनारे हेराये आयी कंगना" (लता), "पिया बिना बासिया बाजे ना" (लता), "अब तो है तुमसे हर ख़ुशी अपनी" (लता) तथा "मीत ना मिला रे मन का" (किशोर), भी सफलता की दृष्टि से पीछे नहीं थे। आज के प्रस्तुत गीत की बात करें तो जितना श्रेय दादा बर्मन को इसके संगीत के लिये जाता है, उतना ही श्रेय मजरूह साहब को भी जाता है ऐसे ख़ूबसूरत बोल पिरोने के लिये। जहाँ एक तरफ़ मजरूह नें शृंगार रस की ऐसी सुंदर अभिव्यक्त्ति दी, वहीं दूसरी तरफ़ दादा बर्मन नें रूपक ताल में इसे कम्पोज़ कर जैसे कोमलता और मधुरता की एक नई धारा ही बहा दी। और दोस्तों, यह वह दौर था जब फ़िल्म-संगीत में शोर-शराबे की शुरुआत हो रही थी। इस फ़िल्म के लिये फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार जीत कर दादा नें नये दौर के सफल संगीतकारों को जैसे सीधी चुनौति दे दी। केवल तबला, सितार और बांसुरी की मधुर तानों से इस गीत को जिस तरह से दादा नें बांधा है, उन्होंने यह साबित किया कि एक ही समय पर कर्णप्रिय, स्तरीय और लोकप्रिय गीत बनाने के लिये आधुनिक तकनीकों की नहीं, बल्कि सृजनात्मक्ता की आवश्यक्ता होती है। 'ताज़ा सुर ताल' प्रस्तुत करते हुए मुझे यह अनुभव भी होता है और अफ़सोस भी कि फ़िल्म-संगीत के वाहक इसे किस मुक़ाम पर आज ले आये हैं! ख़ैर, फ़िल्हाल सुनते हैं 'अभिमान' का यह एवरग्रीन डुएट।
क्या आप जानते हैं...
कि मजरूह सुल्तानपुरी नें करीब करीब ३५० फ़िल्मों में करीब ४००० गीत लिखे हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 8/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म के मुख्य कलकार कौन कौन हैं (दो अभिनेत्रियों और एक अभिनेता का नाम बताएं) - ३ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं- २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अविनाश जी बढ़त बनाये हुए हैं, शरद जी जरा लेट हुए मगर क्षिति जी चूक गयीं, कोई बात नहीं नेक्स्ट टाइम
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों जारी है मजरूह सुल्तानपुरी पर केन्द्रित लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया'। इसके तहत हम दस अलग अलग संगीतकारों द्वारा स्वरबद्ध मजरूह साहब के लिखे गीत सुनवा रहे हैं जो बने हैं अलग अलग दौर में। ४०, ५० और ६० के बाद आज हम क़दम रख रहे हैं ७० के दशक में। ५० के दशक में नौशाद, अनिल बिस्वास, ओ.पी. नय्यर, मदन मोहन, के अलावा एक और नाम है जिनका उल्लेख किये बग़ैर यह शृंखला अधूरी ही रह जायेगी। और वह नाम है सचिन देव बर्मन का। अब आप सोच रहे होंगे कि ५० के दशक के संगीतकारों के साथ हमनें उन्हें क्यों नहीं शामिल किया। दरअसल बात ऐसी है कि हम बर्मन दादा द्वारा स्वरबद्ध जिस गीत को सुनवाना चाहते हैं, वह गीत है ७० के दशक का। इससे पहले कि हम इस गीत का ज़िक्र करें, हम वापस ४०-५० के दशक में जाना चाहेंगे। मेरा मतलब है मजरूह साहब के कहे कुछ शब्द जिनका ताल्लुख़ उस ज़माने से है। विविध भारती के किसी कार्यक्रम में उन्होंने ये शब्द कहे थे - "१९४५ से १९५२ के दरमियाँ की बात है। उस समय मैंने तरक्की-पसंद अशार की शुरुआत की थी। मेरे उम्र के जानकार लोगों को यह मालूम होगा कि आज ऐसे अशार जो किसी और के नाम से लोग जानते हैं, वो तरक्की-पसंद शायरी मैंने ही शुरु की थी। मैं एक बार अमरीका और कैनाडा गया था। वहाँ के कई यूनिवर्सिटीज़ में मैं गया, मुझे इस बात की हैरानी हुई कि वहाँ के शायरी-पसंद लोगों को मेरे अशार तो याद हैं, पर कोई फ़ैज़ के नाम से, तो कोई फ़रहाद के नाम से, मजरूह के नाम से नहीं"।
सचिन देव बर्मन की धुन पर मजरूह साहब के लिखे बेशुमार गीतों में से आज सुनिये १९७३ की फ़िल्म 'अभिमान' से लता-रफ़ी की आवाज़ों में "तेरी बिंदिया रे, आये हाये"। 'अभिमान' हिंदी सिनेमा की सफलतम फ़िल्मों में से एक है। यह फ़िल्म न केवल अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी के करीयर के लिये मील का पत्थर साबित हुई थी, इस फ़िल्म के गीतों नें भी काफ़ी धूम मचाया। फ़िल्म का हर गीत सुपरहिट, हर गीत लाजवाब। आज ४० वर्ष बाद भी इस फ़िल्म के गीत आये दिन सुनाई देते हैं। फ़िल्म के तीनों युगल गीतों, "तेरे मेरे मिलन की यह रैना" (लता-किशोर), "लूटे कोई मन का नगर बनके मेरा साथी" (लता-मनहर) और आज का प्रस्तुत गीत, का सर्वाधिक, सदाबहार व लोकप्रिय युगल गीतों की श्रेणी में शुमार होता है। फ़िल्म के सभी एकल गीत, "नदिया किनारे हेराये आयी कंगना" (लता), "पिया बिना बासिया बाजे ना" (लता), "अब तो है तुमसे हर ख़ुशी अपनी" (लता) तथा "मीत ना मिला रे मन का" (किशोर), भी सफलता की दृष्टि से पीछे नहीं थे। आज के प्रस्तुत गीत की बात करें तो जितना श्रेय दादा बर्मन को इसके संगीत के लिये जाता है, उतना ही श्रेय मजरूह साहब को भी जाता है ऐसे ख़ूबसूरत बोल पिरोने के लिये। जहाँ एक तरफ़ मजरूह नें शृंगार रस की ऐसी सुंदर अभिव्यक्त्ति दी, वहीं दूसरी तरफ़ दादा बर्मन नें रूपक ताल में इसे कम्पोज़ कर जैसे कोमलता और मधुरता की एक नई धारा ही बहा दी। और दोस्तों, यह वह दौर था जब फ़िल्म-संगीत में शोर-शराबे की शुरुआत हो रही थी। इस फ़िल्म के लिये फ़िल्मफ़ेयर में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार जीत कर दादा नें नये दौर के सफल संगीतकारों को जैसे सीधी चुनौति दे दी। केवल तबला, सितार और बांसुरी की मधुर तानों से इस गीत को जिस तरह से दादा नें बांधा है, उन्होंने यह साबित किया कि एक ही समय पर कर्णप्रिय, स्तरीय और लोकप्रिय गीत बनाने के लिये आधुनिक तकनीकों की नहीं, बल्कि सृजनात्मक्ता की आवश्यक्ता होती है। 'ताज़ा सुर ताल' प्रस्तुत करते हुए मुझे यह अनुभव भी होता है और अफ़सोस भी कि फ़िल्म-संगीत के वाहक इसे किस मुक़ाम पर आज ले आये हैं! ख़ैर, फ़िल्हाल सुनते हैं 'अभिमान' का यह एवरग्रीन डुएट।
क्या आप जानते हैं...
कि मजरूह सुल्तानपुरी नें करीब करीब ३५० फ़िल्मों में करीब ४००० गीत लिखे हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 8/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म के मुख्य कलकार कौन कौन हैं (दो अभिनेत्रियों और एक अभिनेता का नाम बताएं) - ३ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं- २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अविनाश जी बढ़त बनाये हुए हैं, शरद जी जरा लेट हुए मगर क्षिति जी चूक गयीं, कोई बात नहीं नेक्स्ट टाइम
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments