पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है....मीर ने दी चिंगारी तो मजरूह साहब ने बात कर दी आम इश्क वाली
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 557/2010/257
'एक मैं और एक तू' - फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के सदाबहार युगल गीतों से सजी इस लघु शृंखला में आज बारी ७० के दशक की। आज का यह अंक हम समर्पित कर रहे हैं १८-वीं शताब्दी के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर के नाम। जी हाँ, उनकी लिखी हुई एक मशहूर ग़ज़ल से प्रेरीत होकर मजरूह सुल्तानपुरी ने यह गीत लिखा था - "पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है"। यह पूरा मुखड़ा मीर के उस ग़ज़ल का पहला शेर है। आगे गीत के तीन अंतरे मजरूह साहब ने ख़ुद लिखे हैं। इन्हे आप गीत को सुनते हुए जान ही लेंगे, लेकिन क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि मीर के उस ग़ज़ल के बाक़ी शेर कौन कौन से थे? लीजिए हम यहाँ पेश कर रहे हैं उस पुराने ग़ज़ल के कुल ७ शेर।
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है,
जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है।
आगे उस मुतकब्बर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं,
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर ख़ुद-आरा जाने है।
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में,
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है।
चारा गरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं,
वरना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है।
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुतफ़-ओ-इनायत एक से वाक़ीफ़ इन में नहीं,
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है।
आशिक़ तो मुर्दा है हमेशा जी उठता है देखे उसे,
यार के आ जाने को यकायक उम्र दोबारा जाने है।
तश्ना-ए-ख़ून भी अपना कितना मीर भी नादाँ तल्ख़ीकश,
दमदार आब-ए-तेग़ को उसके आब-ए-गवारा जाने है।
लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में यह फ़िल्म 'एक नज़र' का गीत है। गीतकार का नाम तो हम बता ही चुके हैं, संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। 'एक नज़र' शीर्षक से दो फ़िल्में बनीं हैं। एक १९५७ में, जिसमें रवि का संगीत था और जिसमें तलत महमूद के गाए कुछ अच्छे गानें भी थे। आज का गीत १९७२ की 'एक नज़र' का है जिसमें मुख्य कलाकार थे अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी। यह फ़िल्म उन दोनों के करीयर के साथ साथ काम किया हुआ सब से बड़ी फ़्लॊप फ़िल्म साबित हुई। इसी समय इन दोनों ने 'बंसी बिरजु' फ़िल्म में भी काम किया था और वह भी असफल रही। आज 'एक नज़र' फ़िल्म को अगर कोई याद करता है तो बस इस दिलकश गीत की वजह से। दोस्तों, प्यार भरे युगल गीतों की इस शृंखला में आइए आज सुनते हैं स्वर कोकिला लता जी और गायकी के शहंशाह रफ़ी साहब की आवाज़ें! लेकिन गीत सुनने से पहले एक अंतरा और पढ़ लीजिए इस गीत का जिसे मैंने लिखने की गुस्ताख़ कोशिश की है...
"तूने ही तो कहा था, मरना हमें गवारा नहीं,
हमको तो ज़िंदा रहके, करनी है दुनिया में रोशनी,
कितनी सच्ची कही है, कितनी अच्छी कही है,
दिल को बहुत ही भाये है, पत्ता पत्ता...."।
क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने साथ में कुल ४४० युगल गीत गाए हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 8/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ये आपने क्या किया...अंक नहीं मिल पायेंगें, शरद जी का तुक्का एकदम सही है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'एक मैं और एक तू' - फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के सदाबहार युगल गीतों से सजी इस लघु शृंखला में आज बारी ७० के दशक की। आज का यह अंक हम समर्पित कर रहे हैं १८-वीं शताब्दी के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर के नाम। जी हाँ, उनकी लिखी हुई एक मशहूर ग़ज़ल से प्रेरीत होकर मजरूह सुल्तानपुरी ने यह गीत लिखा था - "पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है"। यह पूरा मुखड़ा मीर के उस ग़ज़ल का पहला शेर है। आगे गीत के तीन अंतरे मजरूह साहब ने ख़ुद लिखे हैं। इन्हे आप गीत को सुनते हुए जान ही लेंगे, लेकिन क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि मीर के उस ग़ज़ल के बाक़ी शेर कौन कौन से थे? लीजिए हम यहाँ पेश कर रहे हैं उस पुराने ग़ज़ल के कुल ७ शेर।
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है,
जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है।
आगे उस मुतकब्बर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं,
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर ख़ुद-आरा जाने है।
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में,
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है।
चारा गरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं,
वरना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है।
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुतफ़-ओ-इनायत एक से वाक़ीफ़ इन में नहीं,
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है।
आशिक़ तो मुर्दा है हमेशा जी उठता है देखे उसे,
यार के आ जाने को यकायक उम्र दोबारा जाने है।
तश्ना-ए-ख़ून भी अपना कितना मीर भी नादाँ तल्ख़ीकश,
दमदार आब-ए-तेग़ को उसके आब-ए-गवारा जाने है।
लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में यह फ़िल्म 'एक नज़र' का गीत है। गीतकार का नाम तो हम बता ही चुके हैं, संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। 'एक नज़र' शीर्षक से दो फ़िल्में बनीं हैं। एक १९५७ में, जिसमें रवि का संगीत था और जिसमें तलत महमूद के गाए कुछ अच्छे गानें भी थे। आज का गीत १९७२ की 'एक नज़र' का है जिसमें मुख्य कलाकार थे अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी। यह फ़िल्म उन दोनों के करीयर के साथ साथ काम किया हुआ सब से बड़ी फ़्लॊप फ़िल्म साबित हुई। इसी समय इन दोनों ने 'बंसी बिरजु' फ़िल्म में भी काम किया था और वह भी असफल रही। आज 'एक नज़र' फ़िल्म को अगर कोई याद करता है तो बस इस दिलकश गीत की वजह से। दोस्तों, प्यार भरे युगल गीतों की इस शृंखला में आइए आज सुनते हैं स्वर कोकिला लता जी और गायकी के शहंशाह रफ़ी साहब की आवाज़ें! लेकिन गीत सुनने से पहले एक अंतरा और पढ़ लीजिए इस गीत का जिसे मैंने लिखने की गुस्ताख़ कोशिश की है...
"तूने ही तो कहा था, मरना हमें गवारा नहीं,
हमको तो ज़िंदा रहके, करनी है दुनिया में रोशनी,
कितनी सच्ची कही है, कितनी अच्छी कही है,
दिल को बहुत ही भाये है, पत्ता पत्ता...."।
क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने साथ में कुल ४४० युगल गीत गाए हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 8/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ये आपने क्या किया...अंक नहीं मिल पायेंगें, शरद जी का तुक्का एकदम सही है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
सवाल २ - फिल्म का नाम - खेल खेल में
सवाल ३ - संगीतकार -- राहुल देव बर्मन
होगी जहाँ में खुशियाँ.. हंसते रहेंगे हम बार-बार
कैसा है सच का सवेरा…
सपनों का है ये बसेरा…
ये सोच के दिल लहराए है…
पत्ता पत्ता… बूटा बूटा… हाल हमारा जाने है…