Skip to main content

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (२२), सभी श्रोताओं को क्रिसमस की शुभकामनाएँ

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की २२ वीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। आप सभी को क्रिस्मस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। इस साप्ताहिक विशेषांक में अधिकतर समय हमने 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' पेश किया, जिसमें आप ही के भेजे हुए ईमेल शामिल हुए और कई बार हमने नामचीन फ़नकारों से संपर्क स्थापित कर फ़िल्म संगीत के किसी ना किसी पहलु का ज़िक्र किया। आज हम आ पहुँचे हैं इस साप्ताहिक शृंखला की २०१० वर्ष की अंतिम कड़ी पर। तो आज हम अपने जिस दोस्त के ईमेल से इस शृंखला में शामिल कर रहे हैं, वो हैं ख़ानसाब ख़ान। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तारीफ़ की है और हमारा हौसला अफ़ज़ाई की है। लीजिए ख़ानसाब का ईमेल पढ़िए...

******************************

आदाब,

नौ रसों की 'रस माधुरी' शृंखला बहुत पसंद आई। आपने केवल इन रसों का बखान फ़िल्मी गीतों के लिए ही नहीं किया, बल्कि हमारी ज़िंदगी से जोड़ कर भी आप ने इनको पूरे विस्तार से बताया, जिससे हमें हमारी ज़िंदगी से जुड़े पहलुओं को भी जानने को मिला। और हमें ज्ञात हुआ कि हमारे मन की इन मुद्राओं को भी फ़िल्मी गीतों में किस तरह से अभिव्यक्ति मिली है। आपके इन अथक प्रयासों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। और आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं भी यह सोच रहा था कि "फिर छिड़ी रात बात फूलों की" ग़ज़ल और "फूल आहिस्ता फेंको" गीत के बोलों में, बड़े ही सुंदर तरीक़े से "फूल" शब्द का इस्तेमाल किया गया, जिसको सुनकर दिलों में भी फूलों की तरह नर्मोनाज़ुक अहसास पैदा हो जाते हैं। इससे ज़्यादा और किसी गीत की कामयाबी क्या होगी!

'ओल्ड इज़ गोल्ड - सफ़र अब तक' पढ़कर मज़ा आ गया। और हमारे जो साथी बाद में जुड़े थे, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, सब को मालूम हो गया कि पिछे का भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र कितना शानदार रहा है। मैं एक दिन ऐसा सोच ही रहा था कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का पिछला सफ़र कैसा रहा होगा, इसमें किस तरह के और कौन कौन से गीत बजे होंगे, और आपने शायद मेरे मन की आवाज़ को सुन ली। क्योंकि हमारे इस महफ़िल का नाम भी तो आवाज़ ही है, जो कि पीछे की, आगे की, अभी की सारी आवाज़ों को अपने में शामिल किए हुए है। इसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। इसकी वजह से हम भी अब आवाज़ की इस महफ़िल से किसी भी तरह से अंजान नहीं रहे हैं।

धन्यवाद।

************************************************
वाह ख़ानसाब, और आपका बहुत बहुत शुक्रिया भी। आइए आज एक ऐसा गीत सुनते हैं जो आज के दिन के लिए बहुत ही सटीक है। आज क्रिसमस है और इस अवसर पर बनने वाले फ़िल्मी गीतों की बात करें तो सबसे पहले जिस गीत की याद आती है वह है फ़िल्म 'ज़ख़्मी' का "जिंगल बेल जिंगल बेल.... आओ तुम्हे चाँद पे ले जाएँ"। गौहर कानपुरी का लिखा और बप्पी लाहिड़ी का संगीतबद्ध किया हुआ यह गीत है जिसे लता मंगेशकर और सुषमा श्रेष्ठ ने गाया है। गीत फ़िल्माया गया है आशा पारेख और बेबी पिंकी पर। कहानी के सिचुएशन के मुताबिक़ गीत का फ़िल्मांकन दर्दीला है। गीत "जिंगल बेल्स" से शुरु होकर मुखड़ा "आओ तुम्हे चांद पे ले जाएँ, प्यार भरे सपने सजाएँ" पे ख़त्म होता है। अंतरों में भी एक सपनों की सुखद दुनिया का चित्रण है। गीत के फ़िल्मांकन से अगर बोलों की तुलना की जाये तो एक तरह से विरोधाभास ही झलकता है। राजा ठाकुर निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सुनिल दत्त, आशा पारेख, राकेश रोशन और रीना रॊय। तो आइए सुनते हैं यह गीत और आप सभी को एक बार फिर से किरस्मस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

गीत - जिंगल बेल्स... आओ तुम्हे चाँद पे (ज़ख़्मी)


तो ये था आज का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नियमित कड़ी के साथ आपसे कल फिर मुलाक़ात होगी, तब तक के लिए इजाज़त दीजिए, नमस्कार!

Comments

जानते हो मैं इस गाने की फरमाइश करने वाली ही थी और आपने सुना दिया.कार मे सुनील दत्त,बेबी पिंकी और उसकी टीचर बनी आशा पारेख...उस पर शुरू होता है ये खूबसूरत गाना.
फिल्म का नाम शायद 'ज़ख़्मी; था.इस फिल्म का एक और गाना है जो मेरे ख्याल से एक मात्र गाना है जिसमे होली के रंगो या होली खेलने का वर्णन ना हो कर होली जलने की बात कही गई है -'आली रे आली आली मस्तानों की टोली तूफ़ान दिल मे लिए...दिल मे होली जल रही है' ऐसा कुछ था उस गाने मे.
मेरी क्रिसमस और ढेर सारा प्यार आप सभी को.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...