ई मेल के बहाने यादों के खजाने (२१), जब नूरजहाँ की पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया पार्श्वगायिका शारदा ने
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक में। आज फिर एक बार बारी 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' की। और आज का ईमेल भी बहुत ही ख़ास है। दोस्तों, २३ दिसम्बर २००० को मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ इस दुनिया-ए-फ़ानी को छोड़ कर अपनी अनंत यात्रा पर निकल गईं और पीछे छोड़ गईं अपने गाये गीतों के अनमोल ख़ज़ाने को। आज पूरी दुनिया में नूरजहाँ जी के असंख्य चाहनेवाले हैं। और उनके इन तमाम चाहनेवालों में से एक उल्लेखनीय नाम पार्श्वगायिका शारदा का भी है। जी हाँ, वो ही शारदा जिन्होंने "तितली उड़ी", "दुनिया की सैर कर लो", "चले जाना ज़रा ठहरो", "वो परी कहाँ से लाऊँ", "जानेचमन शोला बदन", "जब भी ये दिल उदास होता है", "देखो मेरा दिल मचल गया" और ऐसे ही बहुत से कामयाब गीतों को गाकर ६० के दशक में फ़िल्म संगीत जगत पर छा गईं थीं। हमें जब उनकी किसी इंटरव्यु से पता चला कि उनकी मनपसंद गायिका नूरजहाँ रहीं हैं, हमने सोचा कि क्यों ना उनसे ईमेल के ज़रिए सम्पर्क स्थापित कर इस बारे में पूछा जाए। तो लीजिए आज 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में पढ़िए शारदा जी द्वारा नूरजहाँ जी के बारे में कही हुई बातें। २३ दिसंबर को नूरजहाँ जी की पुण्यतिथि पर यह 'आवाज़' मंच की श्रद्धांजली है।
सुजॊय - शारदा जी, आशा है आप सकुशल हैं। २३ दिसंबर को मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ की बरसी है। हम 'हिंद-युग्म' के 'आवाज़' मंच की तरफ़ से उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करने की कामना रखते हैं। हमें पता चला है कि नूरजहाँ जी आपकी मनपसंद गायिका रही हैं। इसलिए हम आपसे इस बारे में जानना चाहेंगे। आप हमें और हमारे पाठकों को बताएँ कि आपके दिल में उनके लिए किस तरह के विचार हैं, उनकी गायकी में क्या ख़ास बात आपको नज़र आती है जो उन्हें औरों से अलग करती है?
शारदा - नूरजहाँ जी को मैं एक बेहतरीन गायिका के रूप में याद करती हूँ। मैंने अपने जीवन में जो पहला हिंदी गीत सुना था, वह नूरजहाँ जी का ही गाया हुआ था और उस सुहाने याद को मैं अब तक महसूस करती हूँ और बार बार जीती हूँ। उसके बाद हर बार जब भी मैं उनके गाये हुए गीत सुनती हूँ, मैं यही पता लगाने की कोशिश करती हूँ कि बोल, संगीत और आवाज़ के अलावा वह कौन सी "एक्स्ट्रा" चीज़ वो गाने में डालती हैं कि जिससे उनका गाया हर गीत एक अद्भुत अनुभव बन कर रह जाता है, जो दिल को इतना छू जाता है। मेरी ओर से नूरजहाँ जी को भावभीनी श्रद्धांजली।
सुजॊय - उनके कौन से गानें आपको सब से ज़्यादा पसंद हैं?
शारदा - नूरजहाँ और रफ़ी साहब की, वह "यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है" सुनने के लिए मरती थी, क्योंकि वहाँ ना रेडियो था, ना कुछ था सुनने के लिए, और हमारे गली के पीछे चाय की दुकान थी। तो उधर बजाते थे। एक दिन मैं खाना खा रही थी, तो खाना छोड़ कर उपर टेरेस पर भागी सुनने के लिए, और पूरा सुन कर ही नीचे आयी। माँ ने कहा कि क्या हो गया तुमको? मैं खाने के जूठे हाथ से ही खड़ी रही और पूरा सुनकर ही वापस आयी। नूरजहाँ जी से कभी मुलाक़ात नहीं हो पायी। फिर एक और गाना है "आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे"। रेडियो पर जब गाना आता था तो भाग भाग कर लिखती थी, समझ में भी नहीं आता था तब, हिंदी भी बोलना नहीं आता था।
तो दोस्तों, शारदा जी के बताये इन दो गीतों में से दूसरा जो गीत है, "आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे", आइए आज इस गीत के ज़रिए नूरजहाँ जी को हम अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करें। फ़िल्म 'अनमोल घड़ी', संगीत नौशाद साहब का, और गीतकार हैं तनवीर नक़वी।
गीत - आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे (अनमोल घड़ी)
तो ये था इस सप्ताह का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने', जो रोशन हो रही थी पार्श्वगायिका शारदा के यादों के उजालों से। २३ दिसंबर को मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ की पुण्यतिथि पर यह अंक उन्हें श्रद्धांजली स्वरूप प्रस्तुत किया गया। अब आज बस इतना ही, कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नियमित अंक के साथ हम पुन: उपस्थित होंगे, इजाज़त दीजिए, नमस्कार!
सुजॊय - शारदा जी, आशा है आप सकुशल हैं। २३ दिसंबर को मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ की बरसी है। हम 'हिंद-युग्म' के 'आवाज़' मंच की तरफ़ से उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करने की कामना रखते हैं। हमें पता चला है कि नूरजहाँ जी आपकी मनपसंद गायिका रही हैं। इसलिए हम आपसे इस बारे में जानना चाहेंगे। आप हमें और हमारे पाठकों को बताएँ कि आपके दिल में उनके लिए किस तरह के विचार हैं, उनकी गायकी में क्या ख़ास बात आपको नज़र आती है जो उन्हें औरों से अलग करती है?
शारदा - नूरजहाँ जी को मैं एक बेहतरीन गायिका के रूप में याद करती हूँ। मैंने अपने जीवन में जो पहला हिंदी गीत सुना था, वह नूरजहाँ जी का ही गाया हुआ था और उस सुहाने याद को मैं अब तक महसूस करती हूँ और बार बार जीती हूँ। उसके बाद हर बार जब भी मैं उनके गाये हुए गीत सुनती हूँ, मैं यही पता लगाने की कोशिश करती हूँ कि बोल, संगीत और आवाज़ के अलावा वह कौन सी "एक्स्ट्रा" चीज़ वो गाने में डालती हैं कि जिससे उनका गाया हर गीत एक अद्भुत अनुभव बन कर रह जाता है, जो दिल को इतना छू जाता है। मेरी ओर से नूरजहाँ जी को भावभीनी श्रद्धांजली।
सुजॊय - उनके कौन से गानें आपको सब से ज़्यादा पसंद हैं?
शारदा - नूरजहाँ और रफ़ी साहब की, वह "यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है" सुनने के लिए मरती थी, क्योंकि वहाँ ना रेडियो था, ना कुछ था सुनने के लिए, और हमारे गली के पीछे चाय की दुकान थी। तो उधर बजाते थे। एक दिन मैं खाना खा रही थी, तो खाना छोड़ कर उपर टेरेस पर भागी सुनने के लिए, और पूरा सुन कर ही नीचे आयी। माँ ने कहा कि क्या हो गया तुमको? मैं खाने के जूठे हाथ से ही खड़ी रही और पूरा सुनकर ही वापस आयी। नूरजहाँ जी से कभी मुलाक़ात नहीं हो पायी। फिर एक और गाना है "आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे"। रेडियो पर जब गाना आता था तो भाग भाग कर लिखती थी, समझ में भी नहीं आता था तब, हिंदी भी बोलना नहीं आता था।
तो दोस्तों, शारदा जी के बताये इन दो गीतों में से दूसरा जो गीत है, "आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे", आइए आज इस गीत के ज़रिए नूरजहाँ जी को हम अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करें। फ़िल्म 'अनमोल घड़ी', संगीत नौशाद साहब का, और गीतकार हैं तनवीर नक़वी।
गीत - आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे (अनमोल घड़ी)
तो ये था इस सप्ताह का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने', जो रोशन हो रही थी पार्श्वगायिका शारदा के यादों के उजालों से। २३ दिसंबर को मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ की पुण्यतिथि पर यह अंक उन्हें श्रद्धांजली स्वरूप प्रस्तुत किया गया। अब आज बस इतना ही, कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नियमित अंक के साथ हम पुन: उपस्थित होंगे, इजाज़त दीजिए, नमस्कार!
Comments
'मेरे बचपन के साथी मुझे भूल ना जाना
देखो देखो हंसे ना जमाना'
'निगाहें मिला कर बदल जाने वाले मुझे तुझसे कोई शिकायत नही है' बहुत पसंद है.लताजी के प्रारंभिक गीतों में नूरजहाँ जी की गायकी का इतना ज्यादा असर था कि कई बार 'कन्फ्यूज्ड'हो जाते हैं.
अभिनय और गायकी की बात जब भी छिडेगी लोग नूरजहाँ को याद करेंगे.