ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 553/2010/253
३० और ४० के दशकों से एक एक मशहूर युगल गीत सुनने के बाद 'एक मैं और एक तू' शुंखला में आज हम क़दम रख रहे हैं ५० के दशक में। इस दशक में युगल गीतों की संख्या इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि एक से बढ़कर एक युगल गीत बनें और अगले दशकों में भी यही ट्रेण्ड जारी रहा। अनिल बिस्वास, नौशाद, सी. रामचन्द्र, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, रोशन, ओ. पी. नय्यर, हेमन्त कुमार, सलिल चौधरी जैसे संगीतकारों ने एक से एक नायाब युगल गीत हमें दिए। अब आप ही बतायें कि इस दशक का प्रतिनिधित्व करने के लिए हम इनमें से किस संगीतकार को चुनें। भई हमें तो समझ नहीं आ रहा। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना किसी कमचर्चित संगीतकार की बेहद चर्चित रचना को ही बनाया जाये ५० के दशक का प्रतिनिधि गीत! क्या ख़याल है? तो साहब आख़िरकार हमने चुना लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी का गाया फ़िल्म 'बारादरी' का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत युगलगीत "भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, ज़माना ख़राब है दग़ा नहीं देना जी दग़ा नहीं देना"। संगीतकार हैं नौशाद नहीं, नाशाद। नाशाद का असली नाम था शौक़त अली। उनका जन्म १९२३ को दिल्ली में हुआ था। बहुत छोटे उम्र से वो अच्छी बांसुरी बजा लेते थे और समय के साथ साथ उस पर महारथ भी हासिल कर ली। संगीत के प्रति उनका लगाव उन्हें बम्बई खींच लाया, जहाँ पर उन्हें उस समय के मशहूर संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर और नौशाद अली के साथ बतौर साज़िंदा काम करने का मौका मिला। नाशाद के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इस नाम को धारण करने से पहले उन्होंने कई अलग अलग नामों से फ़िल्मों में संगीत दिया है। और ऐसा उन्होंने १९४७ से ४९ के बीच किया था। 'दिलदार', 'पायल' और 'सुहागी' फ़िल्मों में उन्होंने शौकत दहल्वी के नाम से संगीत दिया तो 'जीने दो' में शौकत हुसैन के नाम से, 'टूटे तारे' में शौकत अली के नाम से तो 'आइए' में शौकत हैदरी का नाम पर्दे पर आया। और 'दादा' फ़िल्म में उनका नाम आया शौकत हुसैन हैदरी। इन फ़िल्मों के एक आध गानें चले भी होंगे, लेकिन उनकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया। आख़िरकार १९५३ में निर्देशक और गीतकार नक्शब जराचवी ने उनका नाम बदलकर नाशाद कर दिया, और यह नाम आख़िर तक उनके साथ बना रहा। नक्शब ने अपनी १९५३ की फ़िल्म 'नग़मा' के लिए नाशाद को संगीतकार चुना, जिसमें अशोक कुमार और नादिरा ने अभिनय किया था।
नाशाद के नाम से उन्हें पहली ज़बरदस्त कामयाबी मिली सन् १९५५ में जब उनके रचे गीत के. अमरनाथ की फ़िल्म 'बारादरी' में गूंजे और सर्वसाधारण से लेकर संगीत में रुचि रखने वाले रसिकों तक को बहुत लुभाये। ख़ास कर आज के प्रस्तुत गीत ने तो कमाल ही कर दिया था। अजीत और गीता बाली पर फ़िल्माया यह गीत १९५५ के सबसे लोकप्रिय युगल गीतों में शामिल हुआ। ख़ुमार बाराबंकवी ने 'बारादरी' के गानें लिखे थे। इसी फ़िल्म में लता-रफ़ी का एक और युगल गीत "मोहब्बत की बस इतनी दास्तान है, बहारें चार दिन की फिर ख़िज़ाँ है" को भी लोगों ने पसंद किया। तलत महमूद की आवाज़ में "तसवीर बनाता हूँ तसवीर नहीं बनती" को भी ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई और आज भी तलत साहब के सब से लोकप्रिय गीतों में शुमार होता है। आगे चलकर यह गीत भी ज़रूर शामिल होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। ख़ुमार साहब ने हो सकता है कि बहुत ज़्यादा फ़िल्मी गानें नहीं लिखे हों, लेकिन जितने भी लिखे बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण लिखे। नाशाद और ख़ुमार का इसी साल १९५५ में एक बार फिर से साथ हुआ था फ़िल्म 'जवाब' में, जिसमें भी तलत साहब के गाये लोरी "सो जा तू मेरे राजदुलारे सो जा, चमके तेरी क़िस्मत के सितारे राजदुलारे सो जा" को लोगों ने पसंद किया। वापस आते हैं आज के गीत पर। मैंडोलीन का बड़ा ही ख़ूबसूरत और असरदार प्रयोग इस गीत में नाशाद ने किया है और बंदिश भी कितनी प्यारी है। तो आइए अब मैं आपके और इस सुमधुर गीत के बीच में से हट जाता हूँ, कल फिर मुलाक़ात होगी ६० के दशक में। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि नाशाद १९६६ में पाक़िस्तान स्थानांतरित हो गये थे और वहाँ जाकर 'सालगिरह', 'ज़ीनत', 'नया रास्ता', 'रिश्ता है प्यार का', 'फिर सुबह होगी' जैसी कुछ पाक़िस्तानी फ़िल्मों में संगीत दिया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 4/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.
सवाल १ - आवाजें बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी आप बिल्कुल सही हैं, शरद जी और श्याम जी का मुकाबला दिलचस्प है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
३० और ४० के दशकों से एक एक मशहूर युगल गीत सुनने के बाद 'एक मैं और एक तू' शुंखला में आज हम क़दम रख रहे हैं ५० के दशक में। इस दशक में युगल गीतों की संख्या इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि एक से बढ़कर एक युगल गीत बनें और अगले दशकों में भी यही ट्रेण्ड जारी रहा। अनिल बिस्वास, नौशाद, सी. रामचन्द्र, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन, रोशन, ओ. पी. नय्यर, हेमन्त कुमार, सलिल चौधरी जैसे संगीतकारों ने एक से एक नायाब युगल गीत हमें दिए। अब आप ही बतायें कि इस दशक का प्रतिनिधित्व करने के लिए हम इनमें से किस संगीतकार को चुनें। भई हमें तो समझ नहीं आ रहा। इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना किसी कमचर्चित संगीतकार की बेहद चर्चित रचना को ही बनाया जाये ५० के दशक का प्रतिनिधि गीत! क्या ख़याल है? तो साहब आख़िरकार हमने चुना लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी का गाया फ़िल्म 'बारादरी' का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत युगलगीत "भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, ज़माना ख़राब है दग़ा नहीं देना जी दग़ा नहीं देना"। संगीतकार हैं नौशाद नहीं, नाशाद। नाशाद का असली नाम था शौक़त अली। उनका जन्म १९२३ को दिल्ली में हुआ था। बहुत छोटे उम्र से वो अच्छी बांसुरी बजा लेते थे और समय के साथ साथ उस पर महारथ भी हासिल कर ली। संगीत के प्रति उनका लगाव उन्हें बम्बई खींच लाया, जहाँ पर उन्हें उस समय के मशहूर संगीतकार मास्टर ग़ुलाम हैदर और नौशाद अली के साथ बतौर साज़िंदा काम करने का मौका मिला। नाशाद के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि इस नाम को धारण करने से पहले उन्होंने कई अलग अलग नामों से फ़िल्मों में संगीत दिया है। और ऐसा उन्होंने १९४७ से ४९ के बीच किया था। 'दिलदार', 'पायल' और 'सुहागी' फ़िल्मों में उन्होंने शौकत दहल्वी के नाम से संगीत दिया तो 'जीने दो' में शौकत हुसैन के नाम से, 'टूटे तारे' में शौकत अली के नाम से तो 'आइए' में शौकत हैदरी का नाम पर्दे पर आया। और 'दादा' फ़िल्म में उनका नाम आया शौकत हुसैन हैदरी। इन फ़िल्मों के एक आध गानें चले भी होंगे, लेकिन उनकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया। आख़िरकार १९५३ में निर्देशक और गीतकार नक्शब जराचवी ने उनका नाम बदलकर नाशाद कर दिया, और यह नाम आख़िर तक उनके साथ बना रहा। नक्शब ने अपनी १९५३ की फ़िल्म 'नग़मा' के लिए नाशाद को संगीतकार चुना, जिसमें अशोक कुमार और नादिरा ने अभिनय किया था।
नाशाद के नाम से उन्हें पहली ज़बरदस्त कामयाबी मिली सन् १९५५ में जब उनके रचे गीत के. अमरनाथ की फ़िल्म 'बारादरी' में गूंजे और सर्वसाधारण से लेकर संगीत में रुचि रखने वाले रसिकों तक को बहुत लुभाये। ख़ास कर आज के प्रस्तुत गीत ने तो कमाल ही कर दिया था। अजीत और गीता बाली पर फ़िल्माया यह गीत १९५५ के सबसे लोकप्रिय युगल गीतों में शामिल हुआ। ख़ुमार बाराबंकवी ने 'बारादरी' के गानें लिखे थे। इसी फ़िल्म में लता-रफ़ी का एक और युगल गीत "मोहब्बत की बस इतनी दास्तान है, बहारें चार दिन की फिर ख़िज़ाँ है" को भी लोगों ने पसंद किया। तलत महमूद की आवाज़ में "तसवीर बनाता हूँ तसवीर नहीं बनती" को भी ज़बरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई और आज भी तलत साहब के सब से लोकप्रिय गीतों में शुमार होता है। आगे चलकर यह गीत भी ज़रूर शामिल होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। ख़ुमार साहब ने हो सकता है कि बहुत ज़्यादा फ़िल्मी गानें नहीं लिखे हों, लेकिन जितने भी लिखे बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण लिखे। नाशाद और ख़ुमार का इसी साल १९५५ में एक बार फिर से साथ हुआ था फ़िल्म 'जवाब' में, जिसमें भी तलत साहब के गाये लोरी "सो जा तू मेरे राजदुलारे सो जा, चमके तेरी क़िस्मत के सितारे राजदुलारे सो जा" को लोगों ने पसंद किया। वापस आते हैं आज के गीत पर। मैंडोलीन का बड़ा ही ख़ूबसूरत और असरदार प्रयोग इस गीत में नाशाद ने किया है और बंदिश भी कितनी प्यारी है। तो आइए अब मैं आपके और इस सुमधुर गीत के बीच में से हट जाता हूँ, कल फिर मुलाक़ात होगी ६० के दशक में। नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि नाशाद १९६६ में पाक़िस्तान स्थानांतरित हो गये थे और वहाँ जाकर 'सालगिरह', 'ज़ीनत', 'नया रास्ता', 'रिश्ता है प्यार का', 'फिर सुबह होगी' जैसी कुछ पाक़िस्तानी फ़िल्मों में संगीत दिया था।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 4/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.
सवाल १ - आवाजें बताएं - १ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी आप बिल्कुल सही हैं, शरद जी और श्याम जी का मुकाबला दिलचस्प है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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Pratibha K-S
Ottawa, Canada
“लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित कर पाना ही सफ़लता का एक अति महत्वपूर्ण सूत्र है” - थियोडोर रूसवेल्ट