Skip to main content

तुझे प्यार करते हैं करते रहेंगें.... जब प्यार में कसमें वादों का दौर चला

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 556/2010/256

रोमांटिक फ़िल्मी गीतों में जितना ज़्यादा प्रयोग "दिल" शब्द का होता आया है, शायद ही किसी और शब्द का हुआ होगा! और क्यों ना हो, प्यार का आख़िर दिल से ही तो नाता है। हमारे फ़िल्मी गीतकारों को जब भी इस तरह के हल्के फुल्के प्यार भरे युगल गीत लिखने के मौके मिले हैं, तो उन्होनें "दिल", "धड़कन", "दीवाना" जैसे शब्दों को जीने मरने के क़सम-ए-वादों के साथ मिला कर इसी तरह के गानें तैयार करते आए हैं। आज हमने जो गीत चुना है, वह भी कुछ इसी अंदाज़ का है। गीत है तो बहुत ही सीधा और हल्का फुल्का, लेकिन बड़ा ही सुरीला और प्यारा। हसरत जयपुरी साहब रोमांटिक गीतों के जादूगर माने जाते रहे हैं, जिनकी कलम से न जाने कितने कितने हिट युगल गीत निकले हैं, जिन्हे ज़्यादातर लता-रफ़ी ने गाए हैं। लेकिन आज हम उनका लिखा हुआ जो गीत आप तक पहुँचा रहे हैं उसे रफ़ी साहब ने लता जी के साथ नहीं, बल्कि सुमन कल्याणपुर के साथ मिलकर गाया है फ़िल्म 'अप्रैल फ़ूल' के लिए। शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में यह गीत है "तुझे प्यार करते हैं करते हैं करते रहेंगे, के दिल बनके दिल में धड़कते रहेंगे"। 'अप्रैल फ़ूल' १९६४ की फ़िल्म थी जिसके मुख्य कलाकार थे बिस्वजीत और सायरा बानो। सुबोध मुखर्जी निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म का शीर्षक गीत आज भी बेहद लोकप्रिय है जिसे हम हर साल पहली अप्रैल के दिन याद करते हैं।

जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि 'अप्रैल फ़ूल' १९६४ की फ़िल्म थी। और यही वो समय था जब लता जी और रफ़ी साहब ने रायल्टी के विवाद की वजह से एक दूसरे के साथ गीत गाना बंद कर दिया था। १९६३ से लेकर अगले तीन-चार सालों तक इन दोनों ने साथ में कोई भी युगल गीत नहीं गाया, और १९६७ में सचिन देव बर्मन के मध्यस्थता के बाद 'ज्वेल थीफ़' में "दिल पुकारे आ रे आ रे आ रे" गा कर इस झगड़े को ख़त्म किया। हमने इस बात का ज़िक्र यहाँ पर इसलिए किया क्योंकि बात रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर के गाने की चल रही है। जी हाँ, लता जी के रफ़ी साहब के साथ ना गाने की वजह से फ़िल्म निर्माता और संगीतकार सुमन जी की आवाज़ की ओर आकृष्ट हुए क्योंकि एक सुमन जी ही थीं जिनकी आवाज़ लता जी से बहुत मिलती जुलती थी। ज़रा ग़ौर कीजिए दोस्तों कि संगीतकारों ने लता जी के बदले आशा जी को लेना गवारा नहीं किया, बल्कि सुमन जी की आवाज़ ली। इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि लता जी जैसी आवाज़ की क्या डिमाण्ड रही होगी उस ज़माने में। ख़ैर, इस विवाद की वजह से अगर किसी को फ़ायदा हुआ तो वो थीं सुमन जी। इन तीन सालों में सुमन जी को रफ़ी साहब के साथ कई कई हिट गीत गाने के सुयोग मिले और आज का प्रस्तुत गीत भी उन्ही में से एक है। कुछ मशहूर रफ़ी - सुमन डुएट्स की याद दिलाएँ आपको जो इन तीन सालों के भीतर बनीं थीं?

दिल एक मंदिर (१९६३) - "दिल एक मंदिर है"
जहाँ-आरा (१९६४) - "बाद मुद्दत के ये घड़ी आई"
कैसे कहूँ (१९६४) - "मनमोहन मन में हो तुम्ही"
जी चाहता है (१९६४) - "ऐ जाने तमन्ना ऐ जाने बहारा"
बेटी-बेटे (१९६४) - "अगर तेरा जल्वा नुमाई ना होती, ख़ुदा की क़सम ये ख़ुदाई ना होती"
राजकुमार (१९६४) - "तुमने पुकारा और हम चले आए"
सांझ और सवेरा (१९६४) - "अजहूँ ना आए साजना सावन बीता जाए"
शगुन (१९६४) - "पर्बतों के पेड़ों पे शाम का बसेरा है"
आधी रात के बाद (१९६५) - "बहुत हसीं हैं तुम्हारी आँखें"
मोहब्बत इसको कहते हैं (१९६५) - "ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा"
भीगी रात (१९६५) - "ऐसे तो ना देखो के बहक जाएँ"
जब जब फूल खिले (१९६५) - "ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे"
दिल ने फिर याद किया (१९६६) - "दिल ने फिर याद किया बर्फ़ सी लहराई है"
सूरज (१९६६) - "इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राज़दार"
साज़ और आवाज़ (१९६६) - "किसने मुझे पुकारा, किसने मुझे सदा दी"
ममता (१९६६) - "रहें ना रहें हम महका करेंगे"
ग़ज़ल (१९६६) - "मुझे ये फूल ना दे तुझे दिलबरी की क़सम"
छोटी सी मुलाक़ात (१९६७) - "तुझे देखा, तुझे चाहा, तुझे पूजा मैंने"
चांद और सूरज (१९६५) - "तुम्हे दिल से चाहा तुम्हे दिल दिया है"
फ़र्ज़ (१९६७) - "तुमसे ओ हसीना कभी मोहब्बत ना मैंने करनी थी"
पाल्की (१९६७) - "दिल-ए-बेताब को सीने से लगाना होगा"
ब्रह्मचारी (१९६८) - "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर"

तो दोस्तों, देखा आपने कि कैसे कैसे हिट गीत इन तीन चार सालों में सुमन जी को रफ़ी साहब के साथ गाने को मिले थे। वैसे इनके अलावा भी, इन चंद सालों के बाहर भी इन दोनों ने और भी बहुत से हिट युगल गीत गाए, लेकिन जो कामयाबी उन्हे इन गीतों में मिली, वह शायद इससे पहले या इसके बाद नहीं मिली होगी। ख़ैर, आइए अब सुना जाए आज का गीत फ़िल्म 'अप्रैल फ़ूल' से।



क्या आप जानते हैं...
कि सुमन कल्याणपुर ने सन् १९५४ में संगीतकार मोहम्मद शफ़ी के निर्देशन में फ़िल्म 'मंगू' में पहली बार गीत गाया था और उस गीत के बोल थे "कोई पुकारे धीरे से तुझे"।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 7/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - किस मशहूर शायर की है मूल रचना - २ अंक
सवाल २ - किस गीतकार ने इस ग़ज़ल को आगे बढ़ाया है फिल्म के लिए - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
गलत जवाब है श्याम कान्त जी.....आपने २ अंक गँवा दिए....इंदु जी और रोमेंद्र जी एक एक अंक जरूर कमाए

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

मजरूह सुल्तानपुरी
तुम्हे भूल जाऊं ये मुमकिन नही है
कहीं भी रहूँ मेरा दिल तो वहीं है
घटे चाँद लेकिन कोई गम न होगा तेरा प्यार दिल से कभी कम ना होगा.....' क्या खूब लिखा है लिखने वाले कि हर प्यार करने वाले के दिल बात कह जाता है ये गीत.मुझे बहुत पसंद.
हो भी क्यों ना
ऐसिच हूँ मैं भी -प्यार जीवन है मेरा और मेरा भगवान भी
हा हा हा
भई हम तो पहले प्रश्न का उत्तर दे रहे है - ये गज़ल मूल रूप से शायर 'मीर' साहब की है.आपको दो प्रश्नों को एक करके पूछना था.तीसरा प्रश्न कोई और दे देते.
पहला उत्तर का जवाब कोई और भी आ कर दे सकते हैं.क्योंकि ये गलत हो सकता है.गुरूजी! दोनों सही हुए तो??????? नम्बर 'शून्य' हो जायेगा? ये भी कोई बात हुई.
Music Director : laxmikant Pyarelal
(Tukka)

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट