ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 547/2010/247
'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला के चौथे व अंतिम खण्ड में कल से हमने शुरु की है गुरु दत्त के जीवन सफ़र की कहानी। कल हम उनके जन्म और पारिवार के बारे में जाना। आइए अब बात आगे बढ़ाते हैं। गुरु दत्त की बहन ललिता ने अपने भाई को याद करते हुए कहा था कि १४ वर्ष की आयु में ही गुरु दत्त अपनी उंगलियों के सहारे दीवार पर दीये की रोशनी से छवियाँ बनाते थे। बचपन में उन्हें नृत्य करने का भी शौक था। सर्पनृत्य (स्नेक डांस) करके एक बार उन्हें ५ रुपय का पुरस्कार भी जीता था। आर्थिक अवस्था ठीक ना होने की वजह से गुरु दत्त ने कॊलेज की पढ़ाई नहीं की। लेकिन वो उदयशंकर के नृत्य मंडली से जुड़ गए। तब उनकी आयु १६ वर्ष थी। १९४१ से १९४४ तक नृत्य सीखने के बाद वो बम्बई आ गए और पुणे में 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' में तीन साल के लिए अनुबंधित हो गए। और यहीं पर गुरु दत्त की मुलाक़ात हुई दो ऐसे प्रतिभाओं से जिनका उनके फ़िल्मों में बहुत बड़ा योगदान रहा है - देव आनंद और रहमान। १९४४ की फ़िल्म 'चाँद' में गुरु दत्त ने श्री कृष्ण का एक छोटा सा रोल निभाया, और १९४५ में अभिनय के साथ साथ फ़िल्म 'लखारानी' में निर्देशक विश्राम बेडेकर के सहायक भी रहे। १९४६ में पी.एल. संतोषी की फ़िल्म 'हम एक हैं' में नृत्य निर्देशक और सहायक निर्देशक रहे। १९४७ में यह कॊन्ट्रौक्ट ख़त्म होने के बाद वो एक फ़्रीलान्स ऐसिस्टैण्ट बन तो गए, लेकिन अगले १० महीनों तक कोई काम ना मिला। इसी दौरान गुरु दत्त को लिखने का शौक पैदा हुआ और एक स्थानीय अंग्रेज़ी पत्रिका 'दि इलस्ट्रेटेड वीकली ऒफ़ इण्डिया' में लघु कहानियाँ लिखने लगे। कहा जाता है कि इसी समय उन्होंने अपनी फ़िल्म 'प्यासा' का स्क्रिप्ट लिखी होगी। 'प्यासा' का मूल नाम 'कश्मकश' था, जिसे फ़िल्म निर्माण के दौरान बदलकर 'प्यासा' कर दिया गया था।
दोस्तों, 'प्यासा' तो काफ़ी बाद में बनीं थी, लेकिन जब 'प्यासा' का ज़िक्र आ ही गया है तो क्यों ना आज इसी फ़िल्म का एक बड़ा ही मशहूर, शोख़, चंचल, नटखट गीत सुन लिया जाए। गीता दत्त की आवाज़ में "जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैने सुनी, बात कुछ बन ही गई"। कैफ़ी आज़्मी के बोल और सचिन देव बर्मन का संगीत। इस गीत के रिदम में सचिन दा की ख़ास पहचान शामिल है। वही किसी चिड़िया के बोलने की आवाज़ जैसी एक धुन वो इस्तेमाल करते थे और बहुत से गीतों में इसका प्रयोग महसूस किया जा सकता है। गुरु दत्त और उनकी पत्नी गीता दत्त का दाम्पत्य जीवन बहुत ज़्यादा दिनों तक सुखी नहीं रखा। आज के प्रस्तुत गीत को सुनते हुए भले ही इस बात की भनक तक ना पड़े किसी को, लेकिन हक़ीक़त तो यही है कि उन दोनों के बीच एक दीवार सी बन गई थी। गुरु दत्त के निधन के बाद एक बार गीता दत्त विविध भारती पर तशरीफ़ लेकर आई थीं। उस दिन भी फ़िल्म 'प्यासा' का एक गीत बजाते हुए उनके शब्दों से दर्द फूट पड़ा था। कुछ युं कहा था उन्होंने - "अब मेरे सामने है फ़िल्म 'प्यासा' का रेकॊर्ड। और इसी के साथ याद आ रही है मेरे जीवन की सुख भरी, दुख भरी यादें, लेकिन आपको ये सब बताकर क्या करूँगी! मेरे मन की हालत का अंदाज़ा आप अच्छी तरह लगा सकते हैं। इस फ़िल्म के निर्माता थे मेरे पतिदेव गुरु दत्त जी। सपनों की उड़ान का कोई अंत नहीं, कोई सीमा नहीं, न जाने यह मन क्या क्या सपने देख लेता है। और जब सपने भंग होते हैं, तो कुछ और ही हक़ीक़त सामने आती है।" दोस्तों, आइए इस ग़मगीन परिवेश से बाहर निकलकर गीता जी की चुलबुली आवाज़ में सुनें "जाने क्या तूने कही"....
क्या आप जानते हैं...
कि गुरु दत्त द्वारा अभिनीत अंतिम फ़िल्म थी 'सांझ और सवेरा' जो प्रदर्शित हुई थी १९६४ में। इसमें उनकी नायिका थीं मीना कुमारी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 08/शृंखला 05
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक क्लास्सिक फिल्म के एक सुपर क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - गायक कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह अवध जी, इंदु जी और प्रतिभा जी ने मिलकर तीनों सवालों का जवाब देकर साबित कर दिया कि श्याम जी, शरद जी और अमित जी का भी तोड़ उपलब्ध है बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला के चौथे व अंतिम खण्ड में कल से हमने शुरु की है गुरु दत्त के जीवन सफ़र की कहानी। कल हम उनके जन्म और पारिवार के बारे में जाना। आइए अब बात आगे बढ़ाते हैं। गुरु दत्त की बहन ललिता ने अपने भाई को याद करते हुए कहा था कि १४ वर्ष की आयु में ही गुरु दत्त अपनी उंगलियों के सहारे दीवार पर दीये की रोशनी से छवियाँ बनाते थे। बचपन में उन्हें नृत्य करने का भी शौक था। सर्पनृत्य (स्नेक डांस) करके एक बार उन्हें ५ रुपय का पुरस्कार भी जीता था। आर्थिक अवस्था ठीक ना होने की वजह से गुरु दत्त ने कॊलेज की पढ़ाई नहीं की। लेकिन वो उदयशंकर के नृत्य मंडली से जुड़ गए। तब उनकी आयु १६ वर्ष थी। १९४१ से १९४४ तक नृत्य सीखने के बाद वो बम्बई आ गए और पुणे में 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' में तीन साल के लिए अनुबंधित हो गए। और यहीं पर गुरु दत्त की मुलाक़ात हुई दो ऐसे प्रतिभाओं से जिनका उनके फ़िल्मों में बहुत बड़ा योगदान रहा है - देव आनंद और रहमान। १९४४ की फ़िल्म 'चाँद' में गुरु दत्त ने श्री कृष्ण का एक छोटा सा रोल निभाया, और १९४५ में अभिनय के साथ साथ फ़िल्म 'लखारानी' में निर्देशक विश्राम बेडेकर के सहायक भी रहे। १९४६ में पी.एल. संतोषी की फ़िल्म 'हम एक हैं' में नृत्य निर्देशक और सहायक निर्देशक रहे। १९४७ में यह कॊन्ट्रौक्ट ख़त्म होने के बाद वो एक फ़्रीलान्स ऐसिस्टैण्ट बन तो गए, लेकिन अगले १० महीनों तक कोई काम ना मिला। इसी दौरान गुरु दत्त को लिखने का शौक पैदा हुआ और एक स्थानीय अंग्रेज़ी पत्रिका 'दि इलस्ट्रेटेड वीकली ऒफ़ इण्डिया' में लघु कहानियाँ लिखने लगे। कहा जाता है कि इसी समय उन्होंने अपनी फ़िल्म 'प्यासा' का स्क्रिप्ट लिखी होगी। 'प्यासा' का मूल नाम 'कश्मकश' था, जिसे फ़िल्म निर्माण के दौरान बदलकर 'प्यासा' कर दिया गया था।
दोस्तों, 'प्यासा' तो काफ़ी बाद में बनीं थी, लेकिन जब 'प्यासा' का ज़िक्र आ ही गया है तो क्यों ना आज इसी फ़िल्म का एक बड़ा ही मशहूर, शोख़, चंचल, नटखट गीत सुन लिया जाए। गीता दत्त की आवाज़ में "जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैने सुनी, बात कुछ बन ही गई"। कैफ़ी आज़्मी के बोल और सचिन देव बर्मन का संगीत। इस गीत के रिदम में सचिन दा की ख़ास पहचान शामिल है। वही किसी चिड़िया के बोलने की आवाज़ जैसी एक धुन वो इस्तेमाल करते थे और बहुत से गीतों में इसका प्रयोग महसूस किया जा सकता है। गुरु दत्त और उनकी पत्नी गीता दत्त का दाम्पत्य जीवन बहुत ज़्यादा दिनों तक सुखी नहीं रखा। आज के प्रस्तुत गीत को सुनते हुए भले ही इस बात की भनक तक ना पड़े किसी को, लेकिन हक़ीक़त तो यही है कि उन दोनों के बीच एक दीवार सी बन गई थी। गुरु दत्त के निधन के बाद एक बार गीता दत्त विविध भारती पर तशरीफ़ लेकर आई थीं। उस दिन भी फ़िल्म 'प्यासा' का एक गीत बजाते हुए उनके शब्दों से दर्द फूट पड़ा था। कुछ युं कहा था उन्होंने - "अब मेरे सामने है फ़िल्म 'प्यासा' का रेकॊर्ड। और इसी के साथ याद आ रही है मेरे जीवन की सुख भरी, दुख भरी यादें, लेकिन आपको ये सब बताकर क्या करूँगी! मेरे मन की हालत का अंदाज़ा आप अच्छी तरह लगा सकते हैं। इस फ़िल्म के निर्माता थे मेरे पतिदेव गुरु दत्त जी। सपनों की उड़ान का कोई अंत नहीं, कोई सीमा नहीं, न जाने यह मन क्या क्या सपने देख लेता है। और जब सपने भंग होते हैं, तो कुछ और ही हक़ीक़त सामने आती है।" दोस्तों, आइए इस ग़मगीन परिवेश से बाहर निकलकर गीता जी की चुलबुली आवाज़ में सुनें "जाने क्या तूने कही"....
क्या आप जानते हैं...
कि गुरु दत्त द्वारा अभिनीत अंतिम फ़िल्म थी 'सांझ और सवेरा' जो प्रदर्शित हुई थी १९६४ में। इसमें उनकी नायिका थीं मीना कुमारी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 08/शृंखला 05
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक क्लास्सिक फिल्म के एक सुपर क्लास्सिक गीत.
सवाल १ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल २ - गायक कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह अवध जी, इंदु जी और प्रतिभा जी ने मिलकर तीनों सवालों का जवाब देकर साबित कर दिया कि श्याम जी, शरद जी और अमित जी का भी तोड़ उपलब्ध है बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
s.d.burman
mohammad rafi
bichchde sabhi baari baari
'कागज के फूल' हिट ना रही हो किन्तु थी एक बहुत प्यारी फिल्म. प्रशंसको की भीड़ में छटपटाती,भीड़ को चीर अपने प्रियतम से मिलने को आतुर नायिका (वहीदा रहमान जी ने रोल निभाया था) की आँखों की पीड़ा...और ग्लेमर की दुनिया को छोड़ नायक के साथ चल देना...शायद इसी फिल्म का दृश्य था.या प्यासा का? कन्फ्यूज हूँ.पर...आज भी मन और आँखों में बसा हुआ है.