ताज़ा सुर ताल - वार्षिक समीक्षा
सजीव - नये संगीत के चाहनेवालों का 'ताज़ा सुर ताल' के इस ख़ास अंक में बहुत बहुत स्वागत है, और सुजॊय तथा विश्व दीपक, आप दोनों का भी मैं स्वागत करता हूँ।
सुजॊय - नमस्कार आप दोनों को। कितनी जल्दी समय बीत जाता है, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे अभी हाल ही में २०१० की वार्षिक समीक्षा की थी, और देखिए देखते ही देखते एक साल गुज़र गया।
विश्व दीपक - मेरी तरफ़ से भी आप दोनों को और सभी पाठकों को नमस्कार। आज बहुत ही अच्छा लग रहा है क्योंकि यह शायद पहला मौका है कि जब हम तीनों एक साथ किसी स्तंभ को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो सजीव जी, आप ही बताइए कि हम तीनों मिलकर किस तरह से इस ख़ास अंक को आगे बढ़ाएँ।
सजीव - ऐसा करते हैं कि कुछ विभाग या कैटेगरीज़ बना लेते हैं ठीक उस तरह से जिस तरह से वार्षिक पुरस्कार दिए जाते हैं, जैसे कि सर्वश्रेष्ठ गीत, सर्वश्रेष्ठ संगीतकार वगैरह। हम तीनों हर विभाग के लिए दो दो गीत सुझाते हैं। इस तरह से हर विभाग के लिए ६ गीत चुन लिए जाएँगे। फिर हम अपने पाठकों पर छोड़ेंगे कि वो हर विभाग के लिए इन ६ गीतों में कौन सा गीत चुनते हैं। कहिए क्या ख़याल है?
सुजॊय - बहुत बढ़िया! तो चलिए शुरु करते हैं पहले कैटगरी से जो है 'सर्वश्रेष्ठ गीत'। इस साल बने इतने सारे गीतों में से किन दो गीतों को चुना जाये, यह एक बड़ी समस्या थी। आख़िर में मैंने सोचा कि दो ऐसे गीतों को चुनूँ जो थोड़े से ऒफ़बीट फ़िल्मों से हों। ये फ़िल्में भले ही ऒफ़बीट या कम चलने वाले रहे हों, लेकिन ये दो गीत उत्कृष्टता में दूसरे गीतों से कम नहीं हैं। पहला गीत है 'माधोलाल कीप वाकिंग' फ़िल्म का - "नैना लागे तोसे", जिसके तीन तीन वर्ज़न थे। मैंने भूपेन्द्र के गाये वर्ज़न को चुना है। और दूसरा गीत है आमिर ख़ान की ऒस्कर में जाने वाली फ़िल्म 'पीपलि लाइव' से रघुवीर यादव और साथियों का गाया "महंगाई डायन खाये जात है"।
विश्व दीपक - वाह! मैंने साल के सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए जिन दो गीतों को निर्धारित किया है, उनमें से एक है फ़िल्म 'रावण' से "रांझा रांझा" तथा दूसरा गीत है "सजदा" 'माइ नेम इज़ ख़ान' फ़िल्म का। "रांझा रांझा" गीत के बारे में 'टी.एस.टी' में चर्चा करते वक़्त हमने इस बात का ज़िक्र भी किया था कि यह गीत वार्षिक टॊप-१० में शामिल होगा, और देखिए साल के अंत होने पर इस गीत ने हमारी बात का पूरा पूरा सम्मान किया है। और जहाँ तक "सजदा" की बात है, इसे भी तीन गायकों ने गाया है और यह गीत भी सूफ़ियाना अंदाज़ का है। इस तरह से मेरे चुने हुए दोनों सर्वश्रेष्ठ गीतों में कुछ समानता ज़रूर है। और सजीव जी, अब आप बताइए कि आप ने किन दो गीतों को चुना है।
सजीव - वर्ष २०१० के दो सर्वश्रेष्ठ गीतों के लिए मेरा नामांकन ये है- १. बस इतनी सी तुमसे गुज़ारिश है. २. तेरे मस्त मस्त दो नैन....गुज़ारिश के शीर्षक गीत मुझे क्यों इस हद तक पसंद है इस पर मै अपनी राय अपनी समीक्षा में कर चुका हूँ. इससे पहले भी फ़िल्मी गीतों में गायक/गायिका ने अपने लिए मौत मांगी है पर ये अंदाज़ एकदम अनूठा है और उस पर के के की गहराईयों में डूबी आवाज़ और संजय भंसाली का संगीत जहाँ ओपेरा स्टाइल में कुछ संवाद भी है, इस गीत को एक अलग ही मुकाम दे देते हैं. "तेरे मस्त मस्त दो नैन" सुनते सुनते कब मन में समां गया मै खुद नहीं जानता. वैसे इसके फिल्मांकन का भी इसमें हाथ है. फिल्म देखने से पहले मैंने बस एक दो बार ये गीत सुना था पर फिल्म के बाद इसे लगातार सुनता रहा, राहत साहब ने बहुत कशिश के साथ निभाया है इसे और संगीत संयोजन भी कमाल का है. एक और बात है कि ये गीत हर किसी को पसंद आता है, चाहे वो पुराने संगीत के शौकीन हो या आज के दौर के युवा हों। चलिए अब दूसरे कैटगरी पर आ जाते हैं, यह है 'सर्वश्रेष्ठ ऐल्बम' का। सर्वश्रेष्ठ अल्बम के लिए मैं नामांकित कर रहा हूँ - 'गुज़ारिश' और 'दबंग' को. 'गुज़ारिश' तो एक ऐसी अल्बम है जिसे मैं आज से ५ साल बाद भी इसी उत्साह से सुन पाऊंगा. 'दबंग' के गीतों का खालिस देसीपन मुझे बहुत भाया है. दो मशहूर गीतों के अलावा "चोरी किया", "हमका पीनी है" और शीर्षक गीत भी मुझे बेहद प्रभावी लगे. फिल्म की आपार सफलता में इसके संगीत का योगदान भी कम नहीं है।
सुजॊय - सजीव जी, जहाँ तक 'दबंग' की बात है, सल्लु मियाँ के फ़िल्मों के गानें हमेशा ही सुपर-डुपर हिट होते रहे हैं, और 'गुज़ारिश' में संजय लीला भंसाली ने भी अनोखा संगीत दिया है। आपके चुने इन दोनों फ़िल्मों को पूरा पूरा सम्मान देते हुए मैंने जिन दो फ़िल्मों को चुना है, वो हैं 'माइ नेम इस ख़ान' और 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसिस मेहता'। 'माइ नेम इज़ ख़ान' की तो ख़ूब चर्चा हुई है, लेकिन दूसरे फ़िल्म के गानें लोगों तक पहुँच ही नहीं पाये जो कि बेहद अफ़सोस की बात है। सजीव और विश्व दीपक जी, आपको याद होगा कि इस फ़िल्म के निर्देशक ने हमें बधाई और धन्यवाद दिया था जब हमने इस फ़िल्म के गीतों का पॊज़िटिव रिव्यू 'टी.एस.टी.’ में पोस्ट किया था।
विश्व दीपक - बिल्कुल याद है और वाक़ई यह अफ़सोस की ही बात है कि इतना अच्छा संगीत अनसुना सा रह गया। और मुझे पूरा यकीन है कि प्रचलित व्यावसायिक पुरस्कारों में इसका कहीं नामोनिशान तक नहीं मिलेगा। इस मामले में 'आवाज़' का यह मंच बिल्कुल अलग है। हम जानते हैं अच्छे संगीत को किस तरह से सराहा जाता है। अच्छा, अब मैं उन दो फ़िल्मों के नाम बता दूँ जिन्हें मैंने चुने हैं। एक तो है 'पीपलि लाइव' और दूसरी फ़िल्म है 'स्ट्राइकर'। क्यों चौंक गये ना आप दोनों?
सजीव - 'पीपलि लाइव' तो ठीक है, लेकिन 'स्ट्राइकर' का नाम सुन कर थोड़ा चौंक ज़रूर गया था, लेकिन झट से यह अहसास भी हो गया और याद भी आ गया कि 'स्ट्राइकर' का संगीत बहुत अच्छा था। मुझे याद है कि इस फ़िल्म में ६ गीतकार और ६ संगीतकारों ने काम किया है और फ़िल्म के सभी गानें अच्छे बने हैं भले ही फ़िल्म ज्यादा ना चली हो। वैसे इस फिल्म की खासियत यह है कि यह हिन्दुस्तान की पहली फिल्म है, जिसे थियेटर में रीलिज के दिन हीं यूट्युब पर रीलिज किया गया था और यूट्युब पर इसे रिकार्ड हिट्स भी हासिल हुए थे। इस मामले में फिल्म को सफल कहा जा सकता है। 'माधोलाल कीप वाकिंग' और 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसिस मेहता' की तरह इस कमचर्चित फ़िल्म के अच्छे संगीत को भी हम सलाम करते हैं। चलिए आगे बढ़ते हैं और ज़िक्र करते हैं 'सर्वश्रेष्ठ गायक' की। सुजॊय, तुम पहले बताओ कि कौन से गायकों को तुमने चुना है इस विभाग के लिए।
सुजॊय - पता नहीं क्या बात है उनकी आवाज़ में, लेकिन हर साल मुझे के.के की आवाज़ ही सर्वश्रेष्ठ आवाज़ लगती है, और देखिए इस साल के लिए भी एक नाम मैंने के.के का चुना है। युं तो कई फ़िल्मों में इन्होंने इस साल गाने गाये हैं, लेकिन जिस फ़िल्म में उनके गाये गीत सब से ज़्यादा मकबूल हुए वह फ़िल्म है 'काइट्स'। इस फ़िल्म में उन्ही के गाये दो गीत "ज़िंदगी दो पल की" और "दिल क्यों ये मेरा शोर करे" कामयाबी की बुलंदी तक पहँचे, और मेरी तरफ़ से भी के.के का नामंकन इन दो गीतों के लिए आ रहा है। दूसरा नामांकन है रघुवीर यादव का जिन्होंने 'पीपलि लाइव' में "महंगाई डायन" गाया है। एक और नामांकन देना चाहूँगा, वह है मोहित चौहान के नाम का, जिन्होंने 'वन्स अपोन ए टाइम' में "पी लूँ" गाया था। वैसे इस गीत में कार्तिक का गाया "आइ ऐम इन लव" भी मुझे बहुत पसंद है।
विश्व दीपक - 'सर्वश्रेष्ट गायक' के लिए मैंने दो ऐसे गायकों को चुना है जो सूफ़ी शैली में गायन के लिए जाने जाते हैं। इनमें से एक हैं कैलाश खेर और दूसरे हैं राहत फ़तेह अली ख़ान। कैलाश तो आजकल फ़िल्मी गीतों में थोड़े कम कम ही सुनाई दे रहे हैं, लेकिन राहत साहब के गाये गीत तो लगभग हर फ़िल्म में आ रहे हैं। तो कैलाश खेर का गाया जो गीत मैंने चुना है, वह है 'लव सेक्स और धोखा' फ़िल्म का "तू गंदी लगती है" तथा राहत साहब का गाया "दिल तो बच्चा है जी" फ़िल्म 'इश्क़िया' से। "दिल तो बच्चा है जी" क्यों चुना.. मुझे नहीं लगता कि इसकी वज़ह बताने की जरूरत भी पड़ेगी। हाँ, आप दोनों और सभी श्रोतागण (पाठकगण) "एल एस डी" के गाने के लिए कैलाश खेर का नाम देखकर हैरत में जरूर पड़ गए होंगे। दर-असल इस चुनाव का एक और एकमात्र कारण है "कैलाश खेर" की अनकन्वेशनल गायकी। इस गाने या फिर "एल एस डी" के टाईटल ट्रेक को सुनने के पहले किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि कैलाश खेर ऐसा भी गाना गा सकते हैं.. ये गाने उनके अंदाज के थे हीं नहीं। फिर भी इन गानों को जिस तरह से "कैलाश खेर" ने गाया और गायकी की वज़ह से गाना जितना मक़बूल हुआ, उसमें कैलाश के महत्व को थोड़ा भी कम करना मुमकिन नहीं। मैं यहाँ पर "दिबाकर बनर्जी" को भी बधाई देना चाहूँगा, न सिर्फ़ वे ढर्रे से हटकर फिल्म बनाने में कामयाब हुए, बल्कि लीक से हटकर संगीत तैयार करवाने (संगीतकार: स्नेहा खनवल्कर) और बोल लिखने में भी सफल हुए। इस फिल्म ने यह भी साबित किया कि सेक्स शब्द से जुड़ी हर चीज निचले स्तर की नहीं होती.. खैर आगे बढते हैं!!!
सजीव - सुजॊय, तुम्हे यह जानकर अच्छा लगेगा कि सर्वश्रेठ गायक के रूप में एक बार फिर के.के हैं मेरे पसंदीदा 'गुज़ारिश' के शीर्षक गीत के लिए। के.के जो भी गाते हैं दिल से गाते हैं और यहाँ भी उनका वही जलवा बरकरार है। सोनू के क्या कहने, "स्ट्राईकर" का गीत इस वर्ष के सबसे मधुरतम मगर मुश्किल गीतों में से एक है और इसे इतना खास बनाने में सोनू की भूमिका सबसे अधिक है। यह गीत है "चम चम"। चलिए, अब बारी है 'सर्वश्रेष्ठ गायिका' की। सुनिधि चौहान ने जिस ऊर्जा के साथ "उडी" गाया है 'गुज़ारिश' में, वो लाजवाब है। सुनिधि को अधिकतर आईटम नंबर दिए जाते हैं. पर जब भी उन्हें मौका मिलता है वो दूसरे जेनर में भी कमाल कर जाती हैं. रेखा भारद्वाज ने "ससुराल गेंदाफूल" के बाद जैसे एक के बाद एक हिट गीतों की लड़ी लगा दी है. पर विशाल के लिए गाये 'इश्किया' के दो गीत बेमिसाल हैं. "बड़ी धीरे जली" की धुन और संगीत संयोजन पंचम की याद दिलाता है और रेखा ने जिस सहजता ने इस भावपूर्ण गीत को अंजाम दिया है, इसके लिए मेरा नामांकन उन्हें ही जाता है।
सुजॊय - के.के को मैंने 'काइट्स' के लिए चुना और आपने 'गुज़ारिश' के लिए। दोनों में जो बात कॊमन है, वह है हृतिक रोशन। जहाँ तक गायिका का सवाल है, मैंने जिन दो गायिकाओं को चुना है, वो हैं कविता सेठ, जिन्होंने फ़िल्म 'राजनीति' में आदेश श्रीवास्तव के संगीत में शास्त्रीय रचना "मोरा पिया मोसे बोलत नाही" गाया है। समीर ने इस गीत को लिखा है। और दूसरी गायिका हैं नगीन तनवीर, जिन्होंने 'पीपलि लाइव' में "चोला माटी के राम" गाया था। इस गीत को सुनते हुए एक अलग ही अनुभूति होती है। एक अनोखी आवाज़, सब से अलग सब से जुदा। काश उन्हें इस साल का सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का पुरस्कार दिया जाए!
विश्व दीपक - 'वीर' के लिए सजीव जी ने तो रेखा भारद्वाज का नाम मनोनीत कर ही दिया है, मैं भी करने वाला था। चलिए दो और नाम सुझाता हूँ। एक हैं श्रेया घोषाल, जिन्होंने 'ऐक्शन रीप्ले' में "ओ बेख़बर" गाया है। और दूसरा नाम है शिल्पा राव, जिन्होंने 'लफ़ंगे परिंदे' में "नैन परिंदे" गाया है।
सजीव - वाह! बहुत ही सुरीला पसंद है वी.डी भाई, निस्संदेह ये दोनों गीत इस साल के दो बेहतरीन गीतों में से हैं। अब अगले कैटगरी की बारी। 'सर्वश्रेष्ठ युगल गीत' की बात करें तो 'झूठा ही सही' का जावेद और श्रेया का गाया "क्राई क्राई" मुझे बहुत भाया। गाने का थीम अलग है और एक्सप्रेशंस दोनों के कमाल के हैं। 'खेलें हम जी जान से' में "सपने सलोने" अख्तर साहब ने लिखा है और सोहेल सेन और पामेला जैन ने प्यार और कर्तव्य के द्वंद्व को बहुत खूबी से उभारा है।
सुजॊय - युगल गीतों में पहला गीत मैं चुनूँगा फ़िल्म 'वीर' का, "सलाम आया"। इस साल के शुरु शुरु में यह फ़िल्म आयी थी, फ़िल्म तो नहीं चली लेकिन इस गीत ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। रूप कुमार राठोड़ और श्रेया घोषाल ने इस गीत को गाया है। वैसे सुज़ेन डी'मेलो ने भी अपनी आवाज़ दी है, इस तरह से यह युगल गीत तो नहीं है, लेकिन फिर भी मैंने इसे चुन लिया। साजिद वाजिद ने गुलज़ार के बोलों को बहुत ही मीठे धुनों में पिरोया, और साबित किया कि अच्छे बोल मिले तो संगीतकार अच्छा काम कर ही निकलता है। और दूसरा गाना है फ़िल्म 'खट्टा मीठा' का, "सजदे किए हैं लाखों", के.के और सुनिधि चौहान की आवाज़ों में। लोक शैली (बंगाल की लोकधुनों पर आधारित) में प्रीतम ने इस गीत को स्वरबद्ध किया है जो मुझे पसंद है। विश्व दीपक जी, आपने किन दो युगल गीतों को चुना है?
विश्व दीपक - एक तो है फ़िल्म 'लम्हा' का "मदनो", जिसे क्षितिज तारे और चिनमयी ने गाया है, तथा दूसरा गीत है फ़िल्म 'दबंग' का "चोरी किया रे जिया" जो सोनू निगम और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में है। रोमांटिक डुएट्स में साजिद वाजिद हमेशा ही अच्छा काम दिखाते आये हैं, जैसे कि 'मुझसे शादी करोगी' के तमाम गीत और जैसा कि ऊपर आप ने 'वीर' का "सलाम आया" चुना है। 'लम्हा' में संगीत था मिथुन का और इस गीत को भी अच्छा रेस्पॊन्स मिला था, भले ही फ़िल्म बॊक्स ऒफ़िस पर असफल रही हो। चलिए अब आगे बढ़ते हैं अगले कैटगरी की ओर, और यह कैटगरी वह कैटगरी है जिसके बग़ैर शायद आज फ़िल्में बनती ही नहीं है। जी हाँ, आइटम नंबर। 'सर्वश्रेष्ठ आइटम सॊंग' के लिए जो दो गीत मैं सुझा रहा हूँ, उनमें एक है फ़िल्म 'वन्स अपोन ए टाइम' का "परदा"। यह दर-असल एक रीमिक्स नंबर है। ७० के दशक के दो जबरदस्त राहुल देब बर्मन हिट्स "दुनिया में लोगों को" और "मोनिका ओ माइ डारलिंग" को मिलाकर इस गीत का आधार तय्यार किया गया है और उसमें नए बोल डाले गए हैं "परदा परदा अपनों से कैसा परदा"। एक तरह से ट्रिब्यूट सॊंग माना जा सकता है उस पूरे दशक के नाम। सुनिधि चौहान इस तरह के गीतों को तो ख़ूब अंजाम देती है ही है, लेकिन आर. डी. बर्मन जैसी आवाज़ निकालने वाले गायक राना मजुमदार को भी दाद देनी ही पड़ेगी। और दूसरा आइटम सॊंग है फ़िल्म 'राजनीति' का "इश्क़ बरसे"। प्रणब बिस्वास, हंसिका अय्यर और स्वानंद किरकिरे की आवाज़ों में यह गीत एक मस्ती भरा गीत है। 'लागा चुनरी में दाग' फ़िल्म के "हम तो ऐसे हैं भइया" की थोड़ी बहुत याद आ ही जाती है इस गीत को सुनते हुए। स्वानंद किरकिरे क्रमश: एक ऐसे गीतकार की हैसियत रखने लगे हैं जिनकी लेखन शैली में एक मौलिकता नज़र आती है। भीड़ से अलग सुनाई देते हैं उनके लिखे हुए गीत। और भीड़ से अलग है शांतनु का संगीत भी।
सुजॊय - आइटम सॊंग्स में मैं सब से पहले नाम लूँगा मुन्नी का, यानी "मुन्नी बदनाम हुई", फ़िल्म 'दबंग' से। यह गीत जितनी वितर्कित रही, उतनी ही लोकप्रिय भी साबित हुई। और दूसरा गीत है फ़िल्म 'आक्रोश' का "तेरे इसक से मीठा कुछ भी नहीं"। "बीड़ी" जलै ले" जैसी बात तो इन दोनों में ही नहीं आ पायी, लेकिन इस साल के आइटम गीतों की लिस्ट को देखते हुए मुझे ये गीत ही ठीक लगे। सजीव, आपका क्या कहना है?
सजीव - "मुन्नी" को सुजॉय नामांकित कर चुके हैं, तो मैं 'शीला' को चुन लेता हूँ। "शीला, शीला की जवानी", फ़िल्म 'तीस मार खान' का। वैसे गाना एवरेज ही है पर बीट्स और अंतरों में कव्वाली के पुट से गाने में जान आती है। 'हाउसफ़ुल' के "धन्नो" में पुराने अमिताभ के हिट गीत का तडका काफी जमता है. वाकई इसे सुनकर थिरकने का मन होता है। 'सर्वश्रेष्ठ भावप्रधान गीत' की बात करें तो "मिस्टर सिंह और मिसेस मेहता" में दिल्ली की कुड़ी रिचा शर्मा की सशक्त अभिव्यक्ति वाला गीत "फ़रियाद है" और शंकर महादेवन का ऊंची पट्टी पर गाया शुद्ध कवितामय गीत "धुंधली धुंधली शाम हुई" मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हैं।
विश्व दीपक - ईमोशनल कैटगरी के लिए पहला गीत मेरी पसंद का होगा फ़िल्म 'झूठा ही सही' का "दो निशानियाँ"। एक और सुंदर कम्पोज़िशन, और सोनू निगम और रहमान का वही पुराना "दिल से" वाला अंदाज़ वापस आ गया है। एक धीमी लय वाला, कोमल और सोलफ़ुल गीत। पियानो की लगातार बजने वाली ध्वनियाँ गीत के ऒरकेस्ट्रेशन का मुख्य आकर्षण है। थोड़ा सा ग़मगीन अंदाज़ का गाना है लेकिन सोनू ने जिस पैशन के साथ इसे निभाया है, यह इस ऐल्बम का एक महत्वपूर्ण ट्रैक बन गया है यकीनन। दूसरा भावप्रधान गीत जो मैं चुन रहा हूँ, वह है फ़िल्म 'अंजाना अंजानी' का "तुझे भुला दिया ओ"। इस गीत की ख़ासियत है कि इसे दो गीतकारों ने लिखा है। विशाल दादलानी ने भी लिखा है, और क़व्वाली वाला हिस्सा लिखा है गीतकार कुमार ने।
सुजॊय - मैं इस कैटगरी के लिए दो भक्तिमूलक गीत चुन रहा हूँ। इस साल यह देखा गया है कि कई फ़िल्मों में सूफ़ी गीतों के अलावा भी भक्ति रस के गीत आये हैं। मेरी नज़र में जो दो श्रेष्ठ रचनाएँ हैं, वो हैं जगजीत सिंह की आवाज़ में "फूल खिला दे शाखों पर", फ़िल्म 'लाइफ़ एक्सप्रेस' का यह गीत, तथा 'माइ नेम इज़ ख़ान' का "अल्लाह ही रहम" जिसे राशिद खान ने गाया है। इन दोनों गीतों के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहना चाहिए, बल्कि सिर्फ़ सुन कर महसूस करना चाहिए। चलिए बढ़ते हैं आगे और चुनते हैं 'सर्वश्रेष्ठ गीतकार' के लिए दो दावेदार। मैं इस साल दो वरिष्ठ गीतकारों को ही चुन रहा हूँ, जिनके बारे में अलग से कुछ कहने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। बस गानें बता रहा हूँ, गुलज़ार ("दिल तो बच्चा है जी" - 'इश्क़िया') तथा जावेद अख़्तर ("ये देस है मेरा" - 'खेलें हम जी जान से')।
सजीव - गीतकारों में गुज़ारिश के दो नवोदित गीतकारों ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है. इस फिल्म से पहले मैंने इनके नाम भी नहीं सुने थे पर "सौ ग्राम जिंदगी" लिख कर विभु पुरी और "जाने किसके ख्वाब" जैसे गीत लिख कर ए एम् तुराज़ ने इंडस्ट्री में नए और काबिल गीतकारों की सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया है।
विश्व दीपक - मैं तीन नाम चुन रहा हूँ - गुलज़ार ("तुमसे क्या कहना है" - दस तोला, "कान्हा" - वीर), अमिताभ भट्टाचार्य ("आज़ादियाँ" - उड़ान, "तरक़ीबें" - बैण्ड बाजा बारात) एवं इरशाद कामिल ("सौदेबाज़ी", "इसक से मीठा" - आक्रोश, "पी लूँ" - वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई)। तीन इसलिए क्योंकि सुजॉय जी गुलज़ार साहब को पहले हीं चुन चुके हैं। इरशाद कामिल ऐसे गीतकार हैं जो सीधे-सादे शब्दों से सौदेबाजी करके सीधे दिल की नसों को पकड़ लेते है। एक हीं गीतकार ऐसा है, जिसने पिछले साल प्यार में डूबे पंछियों को "तेरा होने लगा हूँ" जैसा एंथम दिया था.. और इस बार "पी लूँ" या फिर "भींगी-सी भागी-सी" जैसे नशीले तोहफ़े दिए। मैं इरशाद साहब की लेखनी का कायल हूँ, इसलिए जब गुलज़ार साहब और जावेद साहब का नामांकन हो चुका था, तो मुझे सीधे इनकी याद हुई। जहाँ इरशाद साहब नर्मोनाजुक शब्दों से गीतों का जाल बुनते हैं, वहीं एक गीतकार ऐसा है, जो आज की पीढी को ध्यान में रखकर शब्दों का तानाबाना गढता है। मैंने जब "बैंड बाजा बारात" और "नो वन किल्ड जेसिका" की समीक्षाएँ लिखी थीं, तो इन महानुभाव, जिनका नाम अमिताभ है, का ज़िक्र विशेष तौर पर किया था।
सुजॊय - गीतकार के बाद अब 'सर्वश्रेष्ठ संगीतकार' की बारी। मैं अपने वोट 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसेस मेहता' तथा 'रावण' को दे रहा हूँ। वैसे तो और भी बहुत से फ़िल्मों में कामयाब गीत आये हैं, लेकिन अगर पूरे ऐल्बम की बात करें तो मुझे ये दो ऐल्बम ठीक लगे, वैसे 'पीपलि लाइव' और 'माइ नेम इज़ ख़ान' भी इसके हक़दार हैं। लेकिन क्योंकि मुझे दो ही नाम चुनने हैं, इसलिए उस्ताद शुजात हुसैन ख़ान और ए. आर. रहमान को ही मैं अपना वोट दे रहा हूँ। विश्वदीपक जी, आपने किन दो संगीतकारों को चुना है?
विश्व दीपक - मैं दो ऐसे संगीतकारों को चुन रहा हूँ जिन्होंने जितनी भी फ़िल्मों में संगीत दिया इस वर्ष, कामयाब दिया। ये हैं अमित त्रिवेदी ('उड़ान', 'आयशा') तथा विशाल-शेखर ('आइ हेट लव स्टोरीज़', 'अंजाना अंजानी', 'ब्रेक के बाद')। सजीव जी, अब आपकी बारी, आपकी राय में कौन हैं सर्वश्रेष्ठ संगीतकार २०१० के?
सजीव - 'गुज़ारिश' के ही "तेरा ज़िक्र" गीत के लिए और "खेले हम जी जान से" के शीर्षक गीत के लिए मेरा नामांकन संजय लीला भंसाली और सोहैल सेन को जाता है संगीतकार श्रेणी में। संजय ने सीमित साजों का इस्तेमाल कर जहाँ संगीत को माधुर्य और शब्द गरिमा दी है वहीं सोहैल ने किशोर लड़कों के लिए बने गीत में परफेक्ट टोन और ओर्केस्टएशन देकर उसे एक यादगार गीत बना दिया है। और अब आख़िरी कैटगरी की बारी, और यह है 'सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मांकन'। यानी बेस्ट कोरीओग्राफ़्ड सॊंग। फिल्मांकन की बात करें तो 'गुज़ारिश' के "उडी" का कोई जवाब नहीं। एश्वर्या की सुंदरता और उनका नृत्य दोनों ही किसी जादू से कम नहीं है इस गीत में। "तेरे मस्त मस्त दो नैन" का फिल्मांकन शानदार है। सामान्य सड़क पर चलते हुए, रोज़मर्रा के चेहरों की भीड़ में कैसे कोई व्यक्ति सपनों में पहुँच जाता है जहाँ वही आस पास की दुनिया, वही लोग उसके साथ होते है उसकी खुशी में, बेहद दिलचस्प है सब पर्दे पर देखना।
सुजॊय - पता नहीं इस विभाग में मैं न्याय कर पाऊँगा कि नहीं क्योंकि मैंने इस साल पर्दे पर ज़्यादा फ़िल्में देखी नहीं है, हाँ कुछ गानें टीवी पर ज़रूर देखे हैं। उन्हीं में से मैं दो गीत सुझाता हूँ। एक तो है 'कार्तिक कॊलिंग कार्तिक' का "उफ़ तेरी अदा" और दूसरा है 'हाउसफ़ुल' फ़िल्म का "वाल्युम कम कर पप्पा जग जाएगा"। और विश्व दीपक जी, आप भी बताइए कि आपके हिसाब से कौन से गानों की शानदार फ़िल्मांकन हुआ है।
विश्व दीपक - पहला गीत है "छान के मोहल्ला", फ़िल्म 'ऐक्शन रीप्ले' का, और दूसरा है 'रोबोट' फ़िल्म का "नैना मिले"। "छान के मोहल्ला" एक पारंपरिक होली गीत की तरह पिक्चराईज़ न होकर अलग हीं रंग और ढंग से फिल्मांकित हुआ लगता है। इस गाने में कई सारे डांसरों का इस्तेमाल किया गया है, जो पूरी तरह "सिंक" में हैं। इसलिए मुझे यह गीत बहुत पसंद है। जहाँ तक "रोबोट" की बात है तो इस फिल्म और इस फिल्म से जुड़े हर दृश्य की बात हीं निराली है। बस "नैना मिले हीं क्यों", इस फिल्म में ऐसा कौन-सा गाना है जो किसी खास अंदाज में न फिल्माया गया हो। रजनीकांत और ऐश्वर्या की जोड़ी हर गाने में कमाल की नज़र आई है, लेकिन इस गाने में ऐश्वर्या ने तो "डांस" के अपने पुराने रिकार्ड्स पीछे छोड़ दिए हैं। इसलिए सारे गानों में से मैंने इसे प्राथमिकता दी है। आप दोनों ने शायद यब बात गौर की होगी कि जिन छ: गानों को हमने नामांकित किया है, उनमें से तीन में ऐश्वर्या है। फिर न जाने क्यों लोग ऐश्वर्या की काबिलियत पर ऊंगली उठाते हैं!! चलिए आगे बढते हैं।
सजीव - तो हमें मिल गये हैं इन सभी श्रेणियों के लिए ६ ६ नामांकन, अब हम ज़िम्मा अपने श्रोताओं व पाठकों पर ही छोड़ते हैं कि हर श्रेणी में अपना वोट किसे दें। आपको ऊपर दिए हुए पूल बॉक्स में जाकर अपना मत देना है.
सुजॊय - तो इसी के साथ आज का यह चर्चा हम समाप्त कर सकते हैं, लेकिन आज एक ऐसा गीत ज़रूर सुन सकते हैं जिसकी चर्चा उपर नहीं हुई है। बहुत ही स्पेशल है यह गीत इस लिहाज़ से कि इसे लता मंगेशकर ने गाया है, और हाल ही में रिलीज़ हुई 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' फ़िल्म का यह गीत है। फ़िल्म के ना चलने से इस गीत की तरफ़ बहुत कम लोगों का ही ध्यान गया है। लता जी का नाम आज के दौर के कलाकारों के साथ नामांकित करना हमें शोभा नहीं देता, इसलिए उन्हें हमने इस चर्चा से अलग ही रखा है। लेकिन इस विशेषांक को समाप्त करते हुए उनका गाया यह गीत ज़रूर सुन सकते हैं।
गीत - डोन्नो व्हाई न जाने क्यों
सजीव - चलिए अब सब हम अपने दोस्तों पर छोड़ते हैं, आपके वोटों का नतीजा हम लेकर उपस्थित होंगें ३१ तारीख़ को टी एस टी के विशेष एपिसोड में, आपके पास वोट करने के लिए २९ तारीख़ रात ११.४५ तक का टाइम है. एक बात और हम आपको बता दें कि अगले साल से टी एस टी संवाद रूप में नहीं होगा, इसे मैं या वी डी आपके लिए लेकर आयेगें एकल प्रस्तुति के रूप में. सुजॉय जी अगले वर्ष से हर रविवार लेकर आयेंगें शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नयी शृंखला. आशा है आप इस नयी शृंखला को भी भरपूर स्नेह देंगें.
सजीव - नये संगीत के चाहनेवालों का 'ताज़ा सुर ताल' के इस ख़ास अंक में बहुत बहुत स्वागत है, और सुजॊय तथा विश्व दीपक, आप दोनों का भी मैं स्वागत करता हूँ।
सुजॊय - नमस्कार आप दोनों को। कितनी जल्दी समय बीत जाता है, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे अभी हाल ही में २०१० की वार्षिक समीक्षा की थी, और देखिए देखते ही देखते एक साल गुज़र गया।
विश्व दीपक - मेरी तरफ़ से भी आप दोनों को और सभी पाठकों को नमस्कार। आज बहुत ही अच्छा लग रहा है क्योंकि यह शायद पहला मौका है कि जब हम तीनों एक साथ किसी स्तंभ को प्रस्तुत कर रहे हैं। तो सजीव जी, आप ही बताइए कि हम तीनों मिलकर किस तरह से इस ख़ास अंक को आगे बढ़ाएँ।
सजीव - ऐसा करते हैं कि कुछ विभाग या कैटेगरीज़ बना लेते हैं ठीक उस तरह से जिस तरह से वार्षिक पुरस्कार दिए जाते हैं, जैसे कि सर्वश्रेष्ठ गीत, सर्वश्रेष्ठ संगीतकार वगैरह। हम तीनों हर विभाग के लिए दो दो गीत सुझाते हैं। इस तरह से हर विभाग के लिए ६ गीत चुन लिए जाएँगे। फिर हम अपने पाठकों पर छोड़ेंगे कि वो हर विभाग के लिए इन ६ गीतों में कौन सा गीत चुनते हैं। कहिए क्या ख़याल है?
सुजॊय - बहुत बढ़िया! तो चलिए शुरु करते हैं पहले कैटगरी से जो है 'सर्वश्रेष्ठ गीत'। इस साल बने इतने सारे गीतों में से किन दो गीतों को चुना जाये, यह एक बड़ी समस्या थी। आख़िर में मैंने सोचा कि दो ऐसे गीतों को चुनूँ जो थोड़े से ऒफ़बीट फ़िल्मों से हों। ये फ़िल्में भले ही ऒफ़बीट या कम चलने वाले रहे हों, लेकिन ये दो गीत उत्कृष्टता में दूसरे गीतों से कम नहीं हैं। पहला गीत है 'माधोलाल कीप वाकिंग' फ़िल्म का - "नैना लागे तोसे", जिसके तीन तीन वर्ज़न थे। मैंने भूपेन्द्र के गाये वर्ज़न को चुना है। और दूसरा गीत है आमिर ख़ान की ऒस्कर में जाने वाली फ़िल्म 'पीपलि लाइव' से रघुवीर यादव और साथियों का गाया "महंगाई डायन खाये जात है"।
विश्व दीपक - वाह! मैंने साल के सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए जिन दो गीतों को निर्धारित किया है, उनमें से एक है फ़िल्म 'रावण' से "रांझा रांझा" तथा दूसरा गीत है "सजदा" 'माइ नेम इज़ ख़ान' फ़िल्म का। "रांझा रांझा" गीत के बारे में 'टी.एस.टी' में चर्चा करते वक़्त हमने इस बात का ज़िक्र भी किया था कि यह गीत वार्षिक टॊप-१० में शामिल होगा, और देखिए साल के अंत होने पर इस गीत ने हमारी बात का पूरा पूरा सम्मान किया है। और जहाँ तक "सजदा" की बात है, इसे भी तीन गायकों ने गाया है और यह गीत भी सूफ़ियाना अंदाज़ का है। इस तरह से मेरे चुने हुए दोनों सर्वश्रेष्ठ गीतों में कुछ समानता ज़रूर है। और सजीव जी, अब आप बताइए कि आप ने किन दो गीतों को चुना है।
सजीव - वर्ष २०१० के दो सर्वश्रेष्ठ गीतों के लिए मेरा नामांकन ये है- १. बस इतनी सी तुमसे गुज़ारिश है. २. तेरे मस्त मस्त दो नैन....गुज़ारिश के शीर्षक गीत मुझे क्यों इस हद तक पसंद है इस पर मै अपनी राय अपनी समीक्षा में कर चुका हूँ. इससे पहले भी फ़िल्मी गीतों में गायक/गायिका ने अपने लिए मौत मांगी है पर ये अंदाज़ एकदम अनूठा है और उस पर के के की गहराईयों में डूबी आवाज़ और संजय भंसाली का संगीत जहाँ ओपेरा स्टाइल में कुछ संवाद भी है, इस गीत को एक अलग ही मुकाम दे देते हैं. "तेरे मस्त मस्त दो नैन" सुनते सुनते कब मन में समां गया मै खुद नहीं जानता. वैसे इसके फिल्मांकन का भी इसमें हाथ है. फिल्म देखने से पहले मैंने बस एक दो बार ये गीत सुना था पर फिल्म के बाद इसे लगातार सुनता रहा, राहत साहब ने बहुत कशिश के साथ निभाया है इसे और संगीत संयोजन भी कमाल का है. एक और बात है कि ये गीत हर किसी को पसंद आता है, चाहे वो पुराने संगीत के शौकीन हो या आज के दौर के युवा हों। चलिए अब दूसरे कैटगरी पर आ जाते हैं, यह है 'सर्वश्रेष्ठ ऐल्बम' का। सर्वश्रेष्ठ अल्बम के लिए मैं नामांकित कर रहा हूँ - 'गुज़ारिश' और 'दबंग' को. 'गुज़ारिश' तो एक ऐसी अल्बम है जिसे मैं आज से ५ साल बाद भी इसी उत्साह से सुन पाऊंगा. 'दबंग' के गीतों का खालिस देसीपन मुझे बहुत भाया है. दो मशहूर गीतों के अलावा "चोरी किया", "हमका पीनी है" और शीर्षक गीत भी मुझे बेहद प्रभावी लगे. फिल्म की आपार सफलता में इसके संगीत का योगदान भी कम नहीं है।
सुजॊय - सजीव जी, जहाँ तक 'दबंग' की बात है, सल्लु मियाँ के फ़िल्मों के गानें हमेशा ही सुपर-डुपर हिट होते रहे हैं, और 'गुज़ारिश' में संजय लीला भंसाली ने भी अनोखा संगीत दिया है। आपके चुने इन दोनों फ़िल्मों को पूरा पूरा सम्मान देते हुए मैंने जिन दो फ़िल्मों को चुना है, वो हैं 'माइ नेम इस ख़ान' और 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसिस मेहता'। 'माइ नेम इज़ ख़ान' की तो ख़ूब चर्चा हुई है, लेकिन दूसरे फ़िल्म के गानें लोगों तक पहुँच ही नहीं पाये जो कि बेहद अफ़सोस की बात है। सजीव और विश्व दीपक जी, आपको याद होगा कि इस फ़िल्म के निर्देशक ने हमें बधाई और धन्यवाद दिया था जब हमने इस फ़िल्म के गीतों का पॊज़िटिव रिव्यू 'टी.एस.टी.’ में पोस्ट किया था।
विश्व दीपक - बिल्कुल याद है और वाक़ई यह अफ़सोस की ही बात है कि इतना अच्छा संगीत अनसुना सा रह गया। और मुझे पूरा यकीन है कि प्रचलित व्यावसायिक पुरस्कारों में इसका कहीं नामोनिशान तक नहीं मिलेगा। इस मामले में 'आवाज़' का यह मंच बिल्कुल अलग है। हम जानते हैं अच्छे संगीत को किस तरह से सराहा जाता है। अच्छा, अब मैं उन दो फ़िल्मों के नाम बता दूँ जिन्हें मैंने चुने हैं। एक तो है 'पीपलि लाइव' और दूसरी फ़िल्म है 'स्ट्राइकर'। क्यों चौंक गये ना आप दोनों?
सजीव - 'पीपलि लाइव' तो ठीक है, लेकिन 'स्ट्राइकर' का नाम सुन कर थोड़ा चौंक ज़रूर गया था, लेकिन झट से यह अहसास भी हो गया और याद भी आ गया कि 'स्ट्राइकर' का संगीत बहुत अच्छा था। मुझे याद है कि इस फ़िल्म में ६ गीतकार और ६ संगीतकारों ने काम किया है और फ़िल्म के सभी गानें अच्छे बने हैं भले ही फ़िल्म ज्यादा ना चली हो। वैसे इस फिल्म की खासियत यह है कि यह हिन्दुस्तान की पहली फिल्म है, जिसे थियेटर में रीलिज के दिन हीं यूट्युब पर रीलिज किया गया था और यूट्युब पर इसे रिकार्ड हिट्स भी हासिल हुए थे। इस मामले में फिल्म को सफल कहा जा सकता है। 'माधोलाल कीप वाकिंग' और 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसिस मेहता' की तरह इस कमचर्चित फ़िल्म के अच्छे संगीत को भी हम सलाम करते हैं। चलिए आगे बढ़ते हैं और ज़िक्र करते हैं 'सर्वश्रेष्ठ गायक' की। सुजॊय, तुम पहले बताओ कि कौन से गायकों को तुमने चुना है इस विभाग के लिए।
सुजॊय - पता नहीं क्या बात है उनकी आवाज़ में, लेकिन हर साल मुझे के.के की आवाज़ ही सर्वश्रेष्ठ आवाज़ लगती है, और देखिए इस साल के लिए भी एक नाम मैंने के.के का चुना है। युं तो कई फ़िल्मों में इन्होंने इस साल गाने गाये हैं, लेकिन जिस फ़िल्म में उनके गाये गीत सब से ज़्यादा मकबूल हुए वह फ़िल्म है 'काइट्स'। इस फ़िल्म में उन्ही के गाये दो गीत "ज़िंदगी दो पल की" और "दिल क्यों ये मेरा शोर करे" कामयाबी की बुलंदी तक पहँचे, और मेरी तरफ़ से भी के.के का नामंकन इन दो गीतों के लिए आ रहा है। दूसरा नामांकन है रघुवीर यादव का जिन्होंने 'पीपलि लाइव' में "महंगाई डायन" गाया है। एक और नामांकन देना चाहूँगा, वह है मोहित चौहान के नाम का, जिन्होंने 'वन्स अपोन ए टाइम' में "पी लूँ" गाया था। वैसे इस गीत में कार्तिक का गाया "आइ ऐम इन लव" भी मुझे बहुत पसंद है।
विश्व दीपक - 'सर्वश्रेष्ट गायक' के लिए मैंने दो ऐसे गायकों को चुना है जो सूफ़ी शैली में गायन के लिए जाने जाते हैं। इनमें से एक हैं कैलाश खेर और दूसरे हैं राहत फ़तेह अली ख़ान। कैलाश तो आजकल फ़िल्मी गीतों में थोड़े कम कम ही सुनाई दे रहे हैं, लेकिन राहत साहब के गाये गीत तो लगभग हर फ़िल्म में आ रहे हैं। तो कैलाश खेर का गाया जो गीत मैंने चुना है, वह है 'लव सेक्स और धोखा' फ़िल्म का "तू गंदी लगती है" तथा राहत साहब का गाया "दिल तो बच्चा है जी" फ़िल्म 'इश्क़िया' से। "दिल तो बच्चा है जी" क्यों चुना.. मुझे नहीं लगता कि इसकी वज़ह बताने की जरूरत भी पड़ेगी। हाँ, आप दोनों और सभी श्रोतागण (पाठकगण) "एल एस डी" के गाने के लिए कैलाश खेर का नाम देखकर हैरत में जरूर पड़ गए होंगे। दर-असल इस चुनाव का एक और एकमात्र कारण है "कैलाश खेर" की अनकन्वेशनल गायकी। इस गाने या फिर "एल एस डी" के टाईटल ट्रेक को सुनने के पहले किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि कैलाश खेर ऐसा भी गाना गा सकते हैं.. ये गाने उनके अंदाज के थे हीं नहीं। फिर भी इन गानों को जिस तरह से "कैलाश खेर" ने गाया और गायकी की वज़ह से गाना जितना मक़बूल हुआ, उसमें कैलाश के महत्व को थोड़ा भी कम करना मुमकिन नहीं। मैं यहाँ पर "दिबाकर बनर्जी" को भी बधाई देना चाहूँगा, न सिर्फ़ वे ढर्रे से हटकर फिल्म बनाने में कामयाब हुए, बल्कि लीक से हटकर संगीत तैयार करवाने (संगीतकार: स्नेहा खनवल्कर) और बोल लिखने में भी सफल हुए। इस फिल्म ने यह भी साबित किया कि सेक्स शब्द से जुड़ी हर चीज निचले स्तर की नहीं होती.. खैर आगे बढते हैं!!!
सजीव - सुजॊय, तुम्हे यह जानकर अच्छा लगेगा कि सर्वश्रेठ गायक के रूप में एक बार फिर के.के हैं मेरे पसंदीदा 'गुज़ारिश' के शीर्षक गीत के लिए। के.के जो भी गाते हैं दिल से गाते हैं और यहाँ भी उनका वही जलवा बरकरार है। सोनू के क्या कहने, "स्ट्राईकर" का गीत इस वर्ष के सबसे मधुरतम मगर मुश्किल गीतों में से एक है और इसे इतना खास बनाने में सोनू की भूमिका सबसे अधिक है। यह गीत है "चम चम"। चलिए, अब बारी है 'सर्वश्रेष्ठ गायिका' की। सुनिधि चौहान ने जिस ऊर्जा के साथ "उडी" गाया है 'गुज़ारिश' में, वो लाजवाब है। सुनिधि को अधिकतर आईटम नंबर दिए जाते हैं. पर जब भी उन्हें मौका मिलता है वो दूसरे जेनर में भी कमाल कर जाती हैं. रेखा भारद्वाज ने "ससुराल गेंदाफूल" के बाद जैसे एक के बाद एक हिट गीतों की लड़ी लगा दी है. पर विशाल के लिए गाये 'इश्किया' के दो गीत बेमिसाल हैं. "बड़ी धीरे जली" की धुन और संगीत संयोजन पंचम की याद दिलाता है और रेखा ने जिस सहजता ने इस भावपूर्ण गीत को अंजाम दिया है, इसके लिए मेरा नामांकन उन्हें ही जाता है।
सुजॊय - के.के को मैंने 'काइट्स' के लिए चुना और आपने 'गुज़ारिश' के लिए। दोनों में जो बात कॊमन है, वह है हृतिक रोशन। जहाँ तक गायिका का सवाल है, मैंने जिन दो गायिकाओं को चुना है, वो हैं कविता सेठ, जिन्होंने फ़िल्म 'राजनीति' में आदेश श्रीवास्तव के संगीत में शास्त्रीय रचना "मोरा पिया मोसे बोलत नाही" गाया है। समीर ने इस गीत को लिखा है। और दूसरी गायिका हैं नगीन तनवीर, जिन्होंने 'पीपलि लाइव' में "चोला माटी के राम" गाया था। इस गीत को सुनते हुए एक अलग ही अनुभूति होती है। एक अनोखी आवाज़, सब से अलग सब से जुदा। काश उन्हें इस साल का सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का पुरस्कार दिया जाए!
विश्व दीपक - 'वीर' के लिए सजीव जी ने तो रेखा भारद्वाज का नाम मनोनीत कर ही दिया है, मैं भी करने वाला था। चलिए दो और नाम सुझाता हूँ। एक हैं श्रेया घोषाल, जिन्होंने 'ऐक्शन रीप्ले' में "ओ बेख़बर" गाया है। और दूसरा नाम है शिल्पा राव, जिन्होंने 'लफ़ंगे परिंदे' में "नैन परिंदे" गाया है।
सजीव - वाह! बहुत ही सुरीला पसंद है वी.डी भाई, निस्संदेह ये दोनों गीत इस साल के दो बेहतरीन गीतों में से हैं। अब अगले कैटगरी की बारी। 'सर्वश्रेष्ठ युगल गीत' की बात करें तो 'झूठा ही सही' का जावेद और श्रेया का गाया "क्राई क्राई" मुझे बहुत भाया। गाने का थीम अलग है और एक्सप्रेशंस दोनों के कमाल के हैं। 'खेलें हम जी जान से' में "सपने सलोने" अख्तर साहब ने लिखा है और सोहेल सेन और पामेला जैन ने प्यार और कर्तव्य के द्वंद्व को बहुत खूबी से उभारा है।
सुजॊय - युगल गीतों में पहला गीत मैं चुनूँगा फ़िल्म 'वीर' का, "सलाम आया"। इस साल के शुरु शुरु में यह फ़िल्म आयी थी, फ़िल्म तो नहीं चली लेकिन इस गीत ने काफ़ी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। रूप कुमार राठोड़ और श्रेया घोषाल ने इस गीत को गाया है। वैसे सुज़ेन डी'मेलो ने भी अपनी आवाज़ दी है, इस तरह से यह युगल गीत तो नहीं है, लेकिन फिर भी मैंने इसे चुन लिया। साजिद वाजिद ने गुलज़ार के बोलों को बहुत ही मीठे धुनों में पिरोया, और साबित किया कि अच्छे बोल मिले तो संगीतकार अच्छा काम कर ही निकलता है। और दूसरा गाना है फ़िल्म 'खट्टा मीठा' का, "सजदे किए हैं लाखों", के.के और सुनिधि चौहान की आवाज़ों में। लोक शैली (बंगाल की लोकधुनों पर आधारित) में प्रीतम ने इस गीत को स्वरबद्ध किया है जो मुझे पसंद है। विश्व दीपक जी, आपने किन दो युगल गीतों को चुना है?
विश्व दीपक - एक तो है फ़िल्म 'लम्हा' का "मदनो", जिसे क्षितिज तारे और चिनमयी ने गाया है, तथा दूसरा गीत है फ़िल्म 'दबंग' का "चोरी किया रे जिया" जो सोनू निगम और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में है। रोमांटिक डुएट्स में साजिद वाजिद हमेशा ही अच्छा काम दिखाते आये हैं, जैसे कि 'मुझसे शादी करोगी' के तमाम गीत और जैसा कि ऊपर आप ने 'वीर' का "सलाम आया" चुना है। 'लम्हा' में संगीत था मिथुन का और इस गीत को भी अच्छा रेस्पॊन्स मिला था, भले ही फ़िल्म बॊक्स ऒफ़िस पर असफल रही हो। चलिए अब आगे बढ़ते हैं अगले कैटगरी की ओर, और यह कैटगरी वह कैटगरी है जिसके बग़ैर शायद आज फ़िल्में बनती ही नहीं है। जी हाँ, आइटम नंबर। 'सर्वश्रेष्ठ आइटम सॊंग' के लिए जो दो गीत मैं सुझा रहा हूँ, उनमें एक है फ़िल्म 'वन्स अपोन ए टाइम' का "परदा"। यह दर-असल एक रीमिक्स नंबर है। ७० के दशक के दो जबरदस्त राहुल देब बर्मन हिट्स "दुनिया में लोगों को" और "मोनिका ओ माइ डारलिंग" को मिलाकर इस गीत का आधार तय्यार किया गया है और उसमें नए बोल डाले गए हैं "परदा परदा अपनों से कैसा परदा"। एक तरह से ट्रिब्यूट सॊंग माना जा सकता है उस पूरे दशक के नाम। सुनिधि चौहान इस तरह के गीतों को तो ख़ूब अंजाम देती है ही है, लेकिन आर. डी. बर्मन जैसी आवाज़ निकालने वाले गायक राना मजुमदार को भी दाद देनी ही पड़ेगी। और दूसरा आइटम सॊंग है फ़िल्म 'राजनीति' का "इश्क़ बरसे"। प्रणब बिस्वास, हंसिका अय्यर और स्वानंद किरकिरे की आवाज़ों में यह गीत एक मस्ती भरा गीत है। 'लागा चुनरी में दाग' फ़िल्म के "हम तो ऐसे हैं भइया" की थोड़ी बहुत याद आ ही जाती है इस गीत को सुनते हुए। स्वानंद किरकिरे क्रमश: एक ऐसे गीतकार की हैसियत रखने लगे हैं जिनकी लेखन शैली में एक मौलिकता नज़र आती है। भीड़ से अलग सुनाई देते हैं उनके लिखे हुए गीत। और भीड़ से अलग है शांतनु का संगीत भी।
सुजॊय - आइटम सॊंग्स में मैं सब से पहले नाम लूँगा मुन्नी का, यानी "मुन्नी बदनाम हुई", फ़िल्म 'दबंग' से। यह गीत जितनी वितर्कित रही, उतनी ही लोकप्रिय भी साबित हुई। और दूसरा गीत है फ़िल्म 'आक्रोश' का "तेरे इसक से मीठा कुछ भी नहीं"। "बीड़ी" जलै ले" जैसी बात तो इन दोनों में ही नहीं आ पायी, लेकिन इस साल के आइटम गीतों की लिस्ट को देखते हुए मुझे ये गीत ही ठीक लगे। सजीव, आपका क्या कहना है?
सजीव - "मुन्नी" को सुजॉय नामांकित कर चुके हैं, तो मैं 'शीला' को चुन लेता हूँ। "शीला, शीला की जवानी", फ़िल्म 'तीस मार खान' का। वैसे गाना एवरेज ही है पर बीट्स और अंतरों में कव्वाली के पुट से गाने में जान आती है। 'हाउसफ़ुल' के "धन्नो" में पुराने अमिताभ के हिट गीत का तडका काफी जमता है. वाकई इसे सुनकर थिरकने का मन होता है। 'सर्वश्रेष्ठ भावप्रधान गीत' की बात करें तो "मिस्टर सिंह और मिसेस मेहता" में दिल्ली की कुड़ी रिचा शर्मा की सशक्त अभिव्यक्ति वाला गीत "फ़रियाद है" और शंकर महादेवन का ऊंची पट्टी पर गाया शुद्ध कवितामय गीत "धुंधली धुंधली शाम हुई" मेरी नज़र में सर्वश्रेष्ठ हैं।
विश्व दीपक - ईमोशनल कैटगरी के लिए पहला गीत मेरी पसंद का होगा फ़िल्म 'झूठा ही सही' का "दो निशानियाँ"। एक और सुंदर कम्पोज़िशन, और सोनू निगम और रहमान का वही पुराना "दिल से" वाला अंदाज़ वापस आ गया है। एक धीमी लय वाला, कोमल और सोलफ़ुल गीत। पियानो की लगातार बजने वाली ध्वनियाँ गीत के ऒरकेस्ट्रेशन का मुख्य आकर्षण है। थोड़ा सा ग़मगीन अंदाज़ का गाना है लेकिन सोनू ने जिस पैशन के साथ इसे निभाया है, यह इस ऐल्बम का एक महत्वपूर्ण ट्रैक बन गया है यकीनन। दूसरा भावप्रधान गीत जो मैं चुन रहा हूँ, वह है फ़िल्म 'अंजाना अंजानी' का "तुझे भुला दिया ओ"। इस गीत की ख़ासियत है कि इसे दो गीतकारों ने लिखा है। विशाल दादलानी ने भी लिखा है, और क़व्वाली वाला हिस्सा लिखा है गीतकार कुमार ने।
सुजॊय - मैं इस कैटगरी के लिए दो भक्तिमूलक गीत चुन रहा हूँ। इस साल यह देखा गया है कि कई फ़िल्मों में सूफ़ी गीतों के अलावा भी भक्ति रस के गीत आये हैं। मेरी नज़र में जो दो श्रेष्ठ रचनाएँ हैं, वो हैं जगजीत सिंह की आवाज़ में "फूल खिला दे शाखों पर", फ़िल्म 'लाइफ़ एक्सप्रेस' का यह गीत, तथा 'माइ नेम इज़ ख़ान' का "अल्लाह ही रहम" जिसे राशिद खान ने गाया है। इन दोनों गीतों के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहना चाहिए, बल्कि सिर्फ़ सुन कर महसूस करना चाहिए। चलिए बढ़ते हैं आगे और चुनते हैं 'सर्वश्रेष्ठ गीतकार' के लिए दो दावेदार। मैं इस साल दो वरिष्ठ गीतकारों को ही चुन रहा हूँ, जिनके बारे में अलग से कुछ कहने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। बस गानें बता रहा हूँ, गुलज़ार ("दिल तो बच्चा है जी" - 'इश्क़िया') तथा जावेद अख़्तर ("ये देस है मेरा" - 'खेलें हम जी जान से')।
सजीव - गीतकारों में गुज़ारिश के दो नवोदित गीतकारों ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है. इस फिल्म से पहले मैंने इनके नाम भी नहीं सुने थे पर "सौ ग्राम जिंदगी" लिख कर विभु पुरी और "जाने किसके ख्वाब" जैसे गीत लिख कर ए एम् तुराज़ ने इंडस्ट्री में नए और काबिल गीतकारों की सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया है।
विश्व दीपक - मैं तीन नाम चुन रहा हूँ - गुलज़ार ("तुमसे क्या कहना है" - दस तोला, "कान्हा" - वीर), अमिताभ भट्टाचार्य ("आज़ादियाँ" - उड़ान, "तरक़ीबें" - बैण्ड बाजा बारात) एवं इरशाद कामिल ("सौदेबाज़ी", "इसक से मीठा" - आक्रोश, "पी लूँ" - वन्स अपोन ए टाइम इन मुंबई)। तीन इसलिए क्योंकि सुजॉय जी गुलज़ार साहब को पहले हीं चुन चुके हैं। इरशाद कामिल ऐसे गीतकार हैं जो सीधे-सादे शब्दों से सौदेबाजी करके सीधे दिल की नसों को पकड़ लेते है। एक हीं गीतकार ऐसा है, जिसने पिछले साल प्यार में डूबे पंछियों को "तेरा होने लगा हूँ" जैसा एंथम दिया था.. और इस बार "पी लूँ" या फिर "भींगी-सी भागी-सी" जैसे नशीले तोहफ़े दिए। मैं इरशाद साहब की लेखनी का कायल हूँ, इसलिए जब गुलज़ार साहब और जावेद साहब का नामांकन हो चुका था, तो मुझे सीधे इनकी याद हुई। जहाँ इरशाद साहब नर्मोनाजुक शब्दों से गीतों का जाल बुनते हैं, वहीं एक गीतकार ऐसा है, जो आज की पीढी को ध्यान में रखकर शब्दों का तानाबाना गढता है। मैंने जब "बैंड बाजा बारात" और "नो वन किल्ड जेसिका" की समीक्षाएँ लिखी थीं, तो इन महानुभाव, जिनका नाम अमिताभ है, का ज़िक्र विशेष तौर पर किया था।
सुजॊय - गीतकार के बाद अब 'सर्वश्रेष्ठ संगीतकार' की बारी। मैं अपने वोट 'मिस्टर सिंह ऐण्ड मिसेस मेहता' तथा 'रावण' को दे रहा हूँ। वैसे तो और भी बहुत से फ़िल्मों में कामयाब गीत आये हैं, लेकिन अगर पूरे ऐल्बम की बात करें तो मुझे ये दो ऐल्बम ठीक लगे, वैसे 'पीपलि लाइव' और 'माइ नेम इज़ ख़ान' भी इसके हक़दार हैं। लेकिन क्योंकि मुझे दो ही नाम चुनने हैं, इसलिए उस्ताद शुजात हुसैन ख़ान और ए. आर. रहमान को ही मैं अपना वोट दे रहा हूँ। विश्वदीपक जी, आपने किन दो संगीतकारों को चुना है?
विश्व दीपक - मैं दो ऐसे संगीतकारों को चुन रहा हूँ जिन्होंने जितनी भी फ़िल्मों में संगीत दिया इस वर्ष, कामयाब दिया। ये हैं अमित त्रिवेदी ('उड़ान', 'आयशा') तथा विशाल-शेखर ('आइ हेट लव स्टोरीज़', 'अंजाना अंजानी', 'ब्रेक के बाद')। सजीव जी, अब आपकी बारी, आपकी राय में कौन हैं सर्वश्रेष्ठ संगीतकार २०१० के?
सजीव - 'गुज़ारिश' के ही "तेरा ज़िक्र" गीत के लिए और "खेले हम जी जान से" के शीर्षक गीत के लिए मेरा नामांकन संजय लीला भंसाली और सोहैल सेन को जाता है संगीतकार श्रेणी में। संजय ने सीमित साजों का इस्तेमाल कर जहाँ संगीत को माधुर्य और शब्द गरिमा दी है वहीं सोहैल ने किशोर लड़कों के लिए बने गीत में परफेक्ट टोन और ओर्केस्टएशन देकर उसे एक यादगार गीत बना दिया है। और अब आख़िरी कैटगरी की बारी, और यह है 'सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मांकन'। यानी बेस्ट कोरीओग्राफ़्ड सॊंग। फिल्मांकन की बात करें तो 'गुज़ारिश' के "उडी" का कोई जवाब नहीं। एश्वर्या की सुंदरता और उनका नृत्य दोनों ही किसी जादू से कम नहीं है इस गीत में। "तेरे मस्त मस्त दो नैन" का फिल्मांकन शानदार है। सामान्य सड़क पर चलते हुए, रोज़मर्रा के चेहरों की भीड़ में कैसे कोई व्यक्ति सपनों में पहुँच जाता है जहाँ वही आस पास की दुनिया, वही लोग उसके साथ होते है उसकी खुशी में, बेहद दिलचस्प है सब पर्दे पर देखना।
सुजॊय - पता नहीं इस विभाग में मैं न्याय कर पाऊँगा कि नहीं क्योंकि मैंने इस साल पर्दे पर ज़्यादा फ़िल्में देखी नहीं है, हाँ कुछ गानें टीवी पर ज़रूर देखे हैं। उन्हीं में से मैं दो गीत सुझाता हूँ। एक तो है 'कार्तिक कॊलिंग कार्तिक' का "उफ़ तेरी अदा" और दूसरा है 'हाउसफ़ुल' फ़िल्म का "वाल्युम कम कर पप्पा जग जाएगा"। और विश्व दीपक जी, आप भी बताइए कि आपके हिसाब से कौन से गानों की शानदार फ़िल्मांकन हुआ है।
विश्व दीपक - पहला गीत है "छान के मोहल्ला", फ़िल्म 'ऐक्शन रीप्ले' का, और दूसरा है 'रोबोट' फ़िल्म का "नैना मिले"। "छान के मोहल्ला" एक पारंपरिक होली गीत की तरह पिक्चराईज़ न होकर अलग हीं रंग और ढंग से फिल्मांकित हुआ लगता है। इस गाने में कई सारे डांसरों का इस्तेमाल किया गया है, जो पूरी तरह "सिंक" में हैं। इसलिए मुझे यह गीत बहुत पसंद है। जहाँ तक "रोबोट" की बात है तो इस फिल्म और इस फिल्म से जुड़े हर दृश्य की बात हीं निराली है। बस "नैना मिले हीं क्यों", इस फिल्म में ऐसा कौन-सा गाना है जो किसी खास अंदाज में न फिल्माया गया हो। रजनीकांत और ऐश्वर्या की जोड़ी हर गाने में कमाल की नज़र आई है, लेकिन इस गाने में ऐश्वर्या ने तो "डांस" के अपने पुराने रिकार्ड्स पीछे छोड़ दिए हैं। इसलिए सारे गानों में से मैंने इसे प्राथमिकता दी है। आप दोनों ने शायद यब बात गौर की होगी कि जिन छ: गानों को हमने नामांकित किया है, उनमें से तीन में ऐश्वर्या है। फिर न जाने क्यों लोग ऐश्वर्या की काबिलियत पर ऊंगली उठाते हैं!! चलिए आगे बढते हैं।
सजीव - तो हमें मिल गये हैं इन सभी श्रेणियों के लिए ६ ६ नामांकन, अब हम ज़िम्मा अपने श्रोताओं व पाठकों पर ही छोड़ते हैं कि हर श्रेणी में अपना वोट किसे दें। आपको ऊपर दिए हुए पूल बॉक्स में जाकर अपना मत देना है.
सुजॊय - तो इसी के साथ आज का यह चर्चा हम समाप्त कर सकते हैं, लेकिन आज एक ऐसा गीत ज़रूर सुन सकते हैं जिसकी चर्चा उपर नहीं हुई है। बहुत ही स्पेशल है यह गीत इस लिहाज़ से कि इसे लता मंगेशकर ने गाया है, और हाल ही में रिलीज़ हुई 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' फ़िल्म का यह गीत है। फ़िल्म के ना चलने से इस गीत की तरफ़ बहुत कम लोगों का ही ध्यान गया है। लता जी का नाम आज के दौर के कलाकारों के साथ नामांकित करना हमें शोभा नहीं देता, इसलिए उन्हें हमने इस चर्चा से अलग ही रखा है। लेकिन इस विशेषांक को समाप्त करते हुए उनका गाया यह गीत ज़रूर सुन सकते हैं।
गीत - डोन्नो व्हाई न जाने क्यों
सजीव - चलिए अब सब हम अपने दोस्तों पर छोड़ते हैं, आपके वोटों का नतीजा हम लेकर उपस्थित होंगें ३१ तारीख़ को टी एस टी के विशेष एपिसोड में, आपके पास वोट करने के लिए २९ तारीख़ रात ११.४५ तक का टाइम है. एक बात और हम आपको बता दें कि अगले साल से टी एस टी संवाद रूप में नहीं होगा, इसे मैं या वी डी आपके लिए लेकर आयेगें एकल प्रस्तुति के रूप में. सुजॉय जी अगले वर्ष से हर रविवार लेकर आयेंगें शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नयी शृंखला. आशा है आप इस नयी शृंखला को भी भरपूर स्नेह देंगें.
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