छल्ला कालियां मर्चां, छल्ला होया बैरी.. छल्ला से अपने दिल का दर्द बताती विरहणी को आवाज़ दी शौकत अली ने
महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०४
यूँतो हमारी महफ़िल का नाम है "महफ़िल-ए-ग़ज़ल", लेकिन कभी-कभार हम ग़ज़लों के अलावा गैर-फिल्मी नगमों और लोक-गीतों की भी बात कर लिया करते हैं। लीक से हटने की अपनी इसी आदत को ज़ारी रखते हुए आज हम लेकर आए हैं एक पंजाबी गीत.. या यूँ कहिए पंजाबी लोकगीतों का एक खास रूप, एक खास ज़ौनर जिसे "छल्ला" के नाम से जाना जाता है। इस "छल्ला" को कई गुलुकारों ने गाया है और अपने-अपने तरीके से गाया है। तरीकों के बदलाव में कई बार बोल भी बदले हैं, लेकिन इस "छल्ला" का असर नहीं बदला है। असर वही है, दर्द वही है... एक "विरहणी" के दिल की पीर, जो सुनने वालों के दिलों को चीर जाती है। आखिर ये "छल्ला" होता क्या है, इसके बारे में "एक शाम मेरे नाम" के मनीष जी लिखते हैं (साभार):
तो आज हम अपनी इस महफ़िल को शौकत अली के गाए "छल्ला" से सराबोर करने वाले हैं। हम शौकत अली को सुनें, उससे पहले चलिए इनके बारे में कुछ जान लेते हैं। (सौजन्य: विकिपीडिया)
शौकत अली खान पाकिस्तान के एक जानेमाने लोकगायक हैं। इनका जन्म "मलकवल" के एक फ़नकरों के परिवार में हुआ था। शौकत ने अपने बड़े भाई इनायत अली खान की मदद से १९६० के दशक में हीं अपने कॉलेज के दिनों में गाना शुरू कर दिया था। १९७० से ये ग़ज़ल और पंजाबी लोकगीत गाने लगे। १९८२ में जब नई दिल्ली में एशियन खेलों का आयोजन किया गया था, तो शौकत अली ने वहाँ अपना लाईव परफ़ारमेंश दिया। इन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च सिविलियन प्रेसिडेंशियल अवार्ड भी प्राप्त है। अभी हाल हीं में आए "लव आज कल" में इनके गाये "कदि ते हंस बोल वे" गाने (जो कि अब एक लोकगीत का रूप ले चुका है) की पहली दो पंक्तियाँ इस्तेमाल की गई थी। शौकत अली साहब के कई गाने मक़बूल हुए हैं। उन गानों में "छल्ला" और "जागा" प्रमुख हैं। इनके सुपुत्र भी गाते हैं, जिनका नाम है "इमरान शौकत"।
"छल्ला" गाना अभी हाल में हीं इमरान हाशमी अभिनीत फिल्म "क्रूक" में शामिल किया गया था। वह छल्ला "लोकगीत वाले सारे छ्ल्लों" से काफ़ी अलग है। अगर कुछ समानता है तो बस यह है कि उसमें भी "एक दर्द" (आस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों का दर्द) को प्रधानता दी गई है। उस गाने को बब्बु मान ने गाया है और संगीत दिया है प्रीतम ने। प्रीतम ने उस गाने के लिए "किसी लोक-धुन" को क्रेडिट दी है, लेकिन सच्चाई कुछ और है। दो महिने पहले जब मैंने और सुजॉय जी ने "क्रूक" के गानों की समीक्षा की थी, तो उस पोस्ट की टिप्पणी में मैंने सच्चाई को उजागर करने के लिए यह लिखा था: वह गाना बब्बु मान ने नहीं बनाया था, बल्कि "बब्बल राय" ने बनाया था "आस्ट्रेलियन छल्ला" के नाम से... वो भी ऐं वैं हीं, अपने कमरे में बैठे हुए। और उस वीडियो को यू-ट्युब पर पोस्ट कर दिया। यू-ट्युब पर उस वीडियो को इतने हिट्स मिले कि बंदा फेमस हो गया। बाद में उसी बंदे ने यह गाना सही से रीलिज किया .. बस उससे यह गलती हो गई कि उसने रीलिज करने के लिए बब्बु मान के रिकार्ड कंपनी को चुना... और आगे क्या हुआ, यह हम सबके सामने है। कैसेट पर कहीं भी बब्बल राय का नाम नहीं है, जबकि गाना पूरा का पूरा उसी से उठाया हुआ है। यह पूरा का पूरा पैराग्राफ़ आज की महफ़िल के लिए भले हीं गैर-मतलब हो, लेकिन इससे दो तथ्य तो सामने आते हीं है: क) हिन्दी फिल्मों में पंजाबी संगीत और पंजाबी संगीत में छल्ला के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। ख) हिन्दी फिल्म-संगीत में "कॉपी-पेस्ट" वाली गतिविधियाँ जल्द खत्म नहीं होने वाली और ना हीं "चोरी-सीनाजोरी" भी थमने वाली है।
बातें बहुत हो गईं। चलिए तो अब ज्यादा समय न गंवाते हुए, "छल्ला" की ओर अपनी महफ़िल का रूख कर देते हैं और सुनते हैं ये पंजाबी लोकगीत। मैं अपने सारे पंजाबी भाईयों और बहनों से यह दरख्वास्त करूँगा कि जिन्हें भी इस नज़्म का अर्थ पता है, वो हमसे शेयर ज़रूर करें। हम सब अच्छे गानों और ग़ज़लों के शैदाई हैं, इसलिए चाहते हैं कि जो भी गाना, जो भी ग़ज़ल हमें पसंद हो, उसे समझे भी ज़रूर। बिना समझे हम वो आनंद नहीं ले पाते, जिस आनंद के हम हक़दार होते हैं। उम्मीद है कि आप हमारी मदद अवश्य करेंगे। इसी विश्वास के साथ आईये हम और आप सुनते हैं "छल्ला":
जावो नि कोई मोर लियावो,
नि मेरे नाल गया नि लड़ के,
अल्लाह करे आ जावे सोणा,
देवन जान कदमा विच धर के।
हो छल्ला बेरीपुर ए, वे वतन माही दा दूरे,
जाना पहले पूरे, वे गल्ल सुन छल्लया
ओ छोरा,
दिल नु लावे झोरा/छोरा
हो छल्ला कालियां मर्चां, ओए मोरा पी के मरसां,
सिरे तेरे चरसां, वे गल्ल सुन छल्लया,
ओ ढोला,
वे तैनु कागा होला/ओला
हो छल्ला नौ नौ थेवे, पुत्तर मित्थे मेवे,
अल्लाह सब नु देवे, छल्ला छे छे
ओ पाया,
ओए दिया तन/धन ने/दे पराया
हो छल्ला पाया ये गहने, दुख ज़िंदरी ने सहने,
छल्ला मापे ने रहने, गल सुन _____
ढोला,
ओए सार के कित्ते कोला
हो छल्ला होया बैरी, सजन भज गए कचहरी,
रोवां शिकर दोपहरी, ओ गल सुन छलया
पावे,
बुरा वेला ना आवे
हो छल्ला हिक वो कमाई, ओए जो बहना दे भाई,
अल्लाह अबके जुदाई, परदेश....
ओ गल्ल सुन छलया
ओ सारां (?),
वीरा नाल बहावां
चलिए अब आपकी बारी है महफ़िल में रंग ज़माने की... ऊपर जो गज़ल हमने पेश की है, उसके एक शेर में कोई एक शब्द गायब है। आपको उस गज़ल को सुनकर सही शब्द की शिनाख्त करनी है और साथ ही पेश करना है एक ऐसा शेर जिसके किसी भी एक मिसरे में वही खास शब्द आता हो. सही शब्द वाले शेर ही शामिल किये जायेंगें, तो जेहन पे जोर डालिए और बूझिये ये पहेली!
इरशाद ....
पिछली महफिल के साथी -
पिछली महफिल का सही शब्द था "मेहरबानी" और शेर कुछ यूँ था-
ज़िंदगी की मेहरबानी,
है मोहब्बत की कहानी,
आँसूओं में पल रही है... हो..
इस शब्द पर ये सारे शेर महफ़िल में कहे गए:
बहुत शुक्रिया बडी मेहरबानी
मेरी जिन्दगी मे हजूर आप आये
ज़िन्दगी से हम भी तर जाते,
जीते जी ही हम मर जाते,
पर उनकी नज़रों की ज़रा सी मेहरबानी न हो सकी (प्रतीक जी)
चीनी से भी ज्यादा मीठी माफ़ी ,
महफिल सजा के की मेहरबानी (मंजु जी)
शमा के नसीब में तो बुझना ही लिखा है
मेहरबानी है उसकी जो जला के बुझाता है. (शन्नो जी)
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
ऐ मेरे यार ज़रा सी मेहरबानी कर दे
मेरी साँसों को अपनी खुशबु की निशानी कर दे (अवनींद्र जी)
मेहरवानी थी उनका या कोई करम था ,
या खुदा ये उनको कैसा भरम था (नीलम जी)
अवध जी, माफ़ कीजिएगा.. अगर समय पर मैं एक शब्द गायब कर दिया होता तो शायद आप हीं पिछली महफ़िल की शान होते। हाँ, लेकिन आपका शुक्रिया ज़रूर अदा करूँगा क्योंकि आपने समय पर हमें जगा दिया। सुमित भाई, आप "महफ़िल में फिर आऊँगा" लिखकर चल दिए तो हमें लगा कि इस बार भी आप एक-दो दिन के लिए नदारद हो जाएँगे और "शान" की उपाधि से कोई और सज जाएगा। लेकिन आप ६ मिनट में हीं लौट आए और "शान-ए-महफ़िल" बन गए। बधाई स्वीकारें। प्रतीक जी, हमारी मेहनत को परखने और प्रोत्साहित करने के लिए आपका तह-ए-दिल से आभार! मंजु जी, बड़े हीं नायाब तरीके से आपने हमारी प्रशंसा कर दी। धन्यवाद स्वीकारें! शन्नो जी, आपकी डाँट भी प्यारी होती है। आपने कहा कि "कितनी हीं पंजाबी कुड़ियाँ इत-उत मंडराती होगी" तो मैं उन कुड़ियों में से एकाध से अपील करूँगा कि वो हमारी महफ़िल में तशरीफ़ लाएँ और हमें "छल्ला" का अर्थ बता कर कृतार्थ करें :) वैसे, वे अगर महफ़िल में न आना चाहें तो हमसे अकेले में हीं मिल लें। इसी बहाने मेरी पंजाबी थोड़ी सुधर जाएगी। :) अवध जी, शेर तो आपने बहुत हीं जबरदस्त पेश किया, लेकिन शायर का नाम मैं भी नहीं ढूँढ पाया। अवनींद्र जी, मुझे भी आप लोगों से वापस मिलकर बेहद खुशी हुई। कोशिश करूँगा कि अपने ये मिलने-मिलाने का कार्यक्रम यूँ हीं चलता रहें। और हाँ, आपको तो पंजाबी आती है ना? तो ज़रा हमें "छल्ला गाने" का मतलब बता दें। बड़ी कृपा होगी। :) नीलम जी, क्या बात है, दो-दो शेर.. वो भी स्वरचित :) चलिए मैंने अपने पसंद का एक चुन लिया।
चलिए तो इन्हीं बातों के साथ अगली महफिल तक के लिए अलविदा कहते हैं। खुदा हाफ़िज़!
प्रस्तुति - विश्व दीपक
ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा दबा सा ही रहता है. "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" श्रृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की. हम हाज़िर होंगे हर बुधवार एक अनमोल रचना के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपके मुखातिब होंगे कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा". साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -"शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा.
यूँतो हमारी महफ़िल का नाम है "महफ़िल-ए-ग़ज़ल", लेकिन कभी-कभार हम ग़ज़लों के अलावा गैर-फिल्मी नगमों और लोक-गीतों की भी बात कर लिया करते हैं। लीक से हटने की अपनी इसी आदत को ज़ारी रखते हुए आज हम लेकर आए हैं एक पंजाबी गीत.. या यूँ कहिए पंजाबी लोकगीतों का एक खास रूप, एक खास ज़ौनर जिसे "छल्ला" के नाम से जाना जाता है। इस "छल्ला" को कई गुलुकारों ने गाया है और अपने-अपने तरीके से गाया है। तरीकों के बदलाव में कई बार बोल भी बदले हैं, लेकिन इस "छल्ला" का असर नहीं बदला है। असर वही है, दर्द वही है... एक "विरहणी" के दिल की पीर, जो सुनने वालों के दिलों को चीर जाती है। आखिर ये "छल्ला" होता क्या है, इसके बारे में "एक शाम मेरे नाम" के मनीष जी लिखते हैं (साभार):
जैसा कि नाम से स्पष्ट है "छल्ला लोकगीत" के केंद्र में वो अंगूठी होती है, जो प्रेमिका को अपने प्रियतम से मिलती है। पर जब उसका प्रेमी दूर देश चला जाता है तो वो अपने दिल का हाल किससे बताए? और किससे? उसी छल्ले से जो उसके साजन की दी हुई एकमात्र निशानी है। यानि कि छल्ला लोकगीत छल्ले से कही जाने वाली एक विरहणी की आपबीती है। छल्ले को कई पंजाबी गायकों ने समय-समय पर पंजाबी फिल्मों और एलबमों में गाया है। इस तरह के जितने भी गीत हैं उनमें रेशमा, इनायत अली, गुरदास मान, रब्बी शेरगिल और शौकत अली के वर्ज़न काफी मशहूर हुए।
तो आज हम अपनी इस महफ़िल को शौकत अली के गाए "छल्ला" से सराबोर करने वाले हैं। हम शौकत अली को सुनें, उससे पहले चलिए इनके बारे में कुछ जान लेते हैं। (सौजन्य: विकिपीडिया)
शौकत अली खान पाकिस्तान के एक जानेमाने लोकगायक हैं। इनका जन्म "मलकवल" के एक फ़नकरों के परिवार में हुआ था। शौकत ने अपने बड़े भाई इनायत अली खान की मदद से १९६० के दशक में हीं अपने कॉलेज के दिनों में गाना शुरू कर दिया था। १९७० से ये ग़ज़ल और पंजाबी लोकगीत गाने लगे। १९८२ में जब नई दिल्ली में एशियन खेलों का आयोजन किया गया था, तो शौकत अली ने वहाँ अपना लाईव परफ़ारमेंश दिया। इन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च सिविलियन प्रेसिडेंशियल अवार्ड भी प्राप्त है। अभी हाल हीं में आए "लव आज कल" में इनके गाये "कदि ते हंस बोल वे" गाने (जो कि अब एक लोकगीत का रूप ले चुका है) की पहली दो पंक्तियाँ इस्तेमाल की गई थी। शौकत अली साहब के कई गाने मक़बूल हुए हैं। उन गानों में "छल्ला" और "जागा" प्रमुख हैं। इनके सुपुत्र भी गाते हैं, जिनका नाम है "इमरान शौकत"।
"छल्ला" गाना अभी हाल में हीं इमरान हाशमी अभिनीत फिल्म "क्रूक" में शामिल किया गया था। वह छल्ला "लोकगीत वाले सारे छ्ल्लों" से काफ़ी अलग है। अगर कुछ समानता है तो बस यह है कि उसमें भी "एक दर्द" (आस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों का दर्द) को प्रधानता दी गई है। उस गाने को बब्बु मान ने गाया है और संगीत दिया है प्रीतम ने। प्रीतम ने उस गाने के लिए "किसी लोक-धुन" को क्रेडिट दी है, लेकिन सच्चाई कुछ और है। दो महिने पहले जब मैंने और सुजॉय जी ने "क्रूक" के गानों की समीक्षा की थी, तो उस पोस्ट की टिप्पणी में मैंने सच्चाई को उजागर करने के लिए यह लिखा था: वह गाना बब्बु मान ने नहीं बनाया था, बल्कि "बब्बल राय" ने बनाया था "आस्ट्रेलियन छल्ला" के नाम से... वो भी ऐं वैं हीं, अपने कमरे में बैठे हुए। और उस वीडियो को यू-ट्युब पर पोस्ट कर दिया। यू-ट्युब पर उस वीडियो को इतने हिट्स मिले कि बंदा फेमस हो गया। बाद में उसी बंदे ने यह गाना सही से रीलिज किया .. बस उससे यह गलती हो गई कि उसने रीलिज करने के लिए बब्बु मान के रिकार्ड कंपनी को चुना... और आगे क्या हुआ, यह हम सबके सामने है। कैसेट पर कहीं भी बब्बल राय का नाम नहीं है, जबकि गाना पूरा का पूरा उसी से उठाया हुआ है। यह पूरा का पूरा पैराग्राफ़ आज की महफ़िल के लिए भले हीं गैर-मतलब हो, लेकिन इससे दो तथ्य तो सामने आते हीं है: क) हिन्दी फिल्मों में पंजाबी संगीत और पंजाबी संगीत में छल्ला के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। ख) हिन्दी फिल्म-संगीत में "कॉपी-पेस्ट" वाली गतिविधियाँ जल्द खत्म नहीं होने वाली और ना हीं "चोरी-सीनाजोरी" भी थमने वाली है।
बातें बहुत हो गईं। चलिए तो अब ज्यादा समय न गंवाते हुए, "छल्ला" की ओर अपनी महफ़िल का रूख कर देते हैं और सुनते हैं ये पंजाबी लोकगीत। मैं अपने सारे पंजाबी भाईयों और बहनों से यह दरख्वास्त करूँगा कि जिन्हें भी इस नज़्म का अर्थ पता है, वो हमसे शेयर ज़रूर करें। हम सब अच्छे गानों और ग़ज़लों के शैदाई हैं, इसलिए चाहते हैं कि जो भी गाना, जो भी ग़ज़ल हमें पसंद हो, उसे समझे भी ज़रूर। बिना समझे हम वो आनंद नहीं ले पाते, जिस आनंद के हम हक़दार होते हैं। उम्मीद है कि आप हमारी मदद अवश्य करेंगे। इसी विश्वास के साथ आईये हम और आप सुनते हैं "छल्ला":
जावो नि कोई मोर लियावो,
नि मेरे नाल गया नि लड़ के,
अल्लाह करे आ जावे सोणा,
देवन जान कदमा विच धर के।
हो छल्ला बेरीपुर ए, वे वतन माही दा दूरे,
जाना पहले पूरे, वे गल्ल सुन छल्लया
ओ छोरा,
दिल नु लावे झोरा/छोरा
हो छल्ला कालियां मर्चां, ओए मोरा पी के मरसां,
सिरे तेरे चरसां, वे गल्ल सुन छल्लया,
ओ ढोला,
वे तैनु कागा होला/ओला
हो छल्ला नौ नौ थेवे, पुत्तर मित्थे मेवे,
अल्लाह सब नु देवे, छल्ला छे छे
ओ पाया,
ओए दिया तन/धन ने/दे पराया
हो छल्ला पाया ये गहने, दुख ज़िंदरी ने सहने,
छल्ला मापे ने रहने, गल सुन _____
ढोला,
ओए सार के कित्ते कोला
हो छल्ला होया बैरी, सजन भज गए कचहरी,
रोवां शिकर दोपहरी, ओ गल सुन छलया
पावे,
बुरा वेला ना आवे
हो छल्ला हिक वो कमाई, ओए जो बहना दे भाई,
अल्लाह अबके जुदाई, परदेश....
ओ गल्ल सुन छलया
ओ सारां (?),
वीरा नाल बहावां
चलिए अब आपकी बारी है महफ़िल में रंग ज़माने की... ऊपर जो गज़ल हमने पेश की है, उसके एक शेर में कोई एक शब्द गायब है। आपको उस गज़ल को सुनकर सही शब्द की शिनाख्त करनी है और साथ ही पेश करना है एक ऐसा शेर जिसके किसी भी एक मिसरे में वही खास शब्द आता हो. सही शब्द वाले शेर ही शामिल किये जायेंगें, तो जेहन पे जोर डालिए और बूझिये ये पहेली!
इरशाद ....
पिछली महफिल के साथी -
पिछली महफिल का सही शब्द था "मेहरबानी" और शेर कुछ यूँ था-
ज़िंदगी की मेहरबानी,
है मोहब्बत की कहानी,
आँसूओं में पल रही है... हो..
इस शब्द पर ये सारे शेर महफ़िल में कहे गए:
बहुत शुक्रिया बडी मेहरबानी
मेरी जिन्दगी मे हजूर आप आये
ज़िन्दगी से हम भी तर जाते,
जीते जी ही हम मर जाते,
पर उनकी नज़रों की ज़रा सी मेहरबानी न हो सकी (प्रतीक जी)
चीनी से भी ज्यादा मीठी माफ़ी ,
महफिल सजा के की मेहरबानी (मंजु जी)
शमा के नसीब में तो बुझना ही लिखा है
मेहरबानी है उसकी जो जला के बुझाता है. (शन्नो जी)
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
ऐ मेरे यार ज़रा सी मेहरबानी कर दे
मेरी साँसों को अपनी खुशबु की निशानी कर दे (अवनींद्र जी)
मेहरवानी थी उनका या कोई करम था ,
या खुदा ये उनको कैसा भरम था (नीलम जी)
अवध जी, माफ़ कीजिएगा.. अगर समय पर मैं एक शब्द गायब कर दिया होता तो शायद आप हीं पिछली महफ़िल की शान होते। हाँ, लेकिन आपका शुक्रिया ज़रूर अदा करूँगा क्योंकि आपने समय पर हमें जगा दिया। सुमित भाई, आप "महफ़िल में फिर आऊँगा" लिखकर चल दिए तो हमें लगा कि इस बार भी आप एक-दो दिन के लिए नदारद हो जाएँगे और "शान" की उपाधि से कोई और सज जाएगा। लेकिन आप ६ मिनट में हीं लौट आए और "शान-ए-महफ़िल" बन गए। बधाई स्वीकारें। प्रतीक जी, हमारी मेहनत को परखने और प्रोत्साहित करने के लिए आपका तह-ए-दिल से आभार! मंजु जी, बड़े हीं नायाब तरीके से आपने हमारी प्रशंसा कर दी। धन्यवाद स्वीकारें! शन्नो जी, आपकी डाँट भी प्यारी होती है। आपने कहा कि "कितनी हीं पंजाबी कुड़ियाँ इत-उत मंडराती होगी" तो मैं उन कुड़ियों में से एकाध से अपील करूँगा कि वो हमारी महफ़िल में तशरीफ़ लाएँ और हमें "छल्ला" का अर्थ बता कर कृतार्थ करें :) वैसे, वे अगर महफ़िल में न आना चाहें तो हमसे अकेले में हीं मिल लें। इसी बहाने मेरी पंजाबी थोड़ी सुधर जाएगी। :) अवध जी, शेर तो आपने बहुत हीं जबरदस्त पेश किया, लेकिन शायर का नाम मैं भी नहीं ढूँढ पाया। अवनींद्र जी, मुझे भी आप लोगों से वापस मिलकर बेहद खुशी हुई। कोशिश करूँगा कि अपने ये मिलने-मिलाने का कार्यक्रम यूँ हीं चलता रहें। और हाँ, आपको तो पंजाबी आती है ना? तो ज़रा हमें "छल्ला गाने" का मतलब बता दें। बड़ी कृपा होगी। :) नीलम जी, क्या बात है, दो-दो शेर.. वो भी स्वरचित :) चलिए मैंने अपने पसंद का एक चुन लिया।
चलिए तो इन्हीं बातों के साथ अगली महफिल तक के लिए अलविदा कहते हैं। खुदा हाफ़िज़!
प्रस्तुति - विश्व दीपक
ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा दबा सा ही रहता है. "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" श्रृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की. हम हाज़िर होंगे हर बुधवार एक अनमोल रचना के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपके मुखातिब होंगे कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा". साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -"शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा.
Comments
महफिल में मच गये इतने हल्ले
पर पड़ा न कुछ भी अपने पल्ले
मुँह ताकें हम सब यहाँ निठल्ले.
इसका मतलब ये है कि कुछ समझ में नहीं आया...समझे ना ? सोचा था कि शायद गायब शब्द ही पल्ले पड़ जाये..पर नहीं..वो भी समझ नहीं आया..तभी इत्तला कर रही हूँ. इसे भी डांट की एक खुराक समझियेगा. :)
आप फिर से सुनिए.. हाँ बहुत से शब्द समझ नहीं आते इस पंजाबी गाने में, लेकिन मैंने जो शब्द गायब किया है, वो आराम से पता चल जाएगा। एक बार और कोशिश करके देख लीजिए, नहीं तो दूसरे किसी के जवाब का इंतज़ार कीजिए :)
अगर कल शाम तक सही जवाब नहीं आया तो मैं बता दूँगा.. सबको.. टिप्पणी के माध्यम से..
धन्यवाद,
विश्व दीपक
गायब शब्द है '' सांवला ''
पर पूरे विश्वास के साथ अब भी नहीं कह सकती इसलिये...keeping my fingers crossed :)
byeeeeee....
मेरा हर लफ़्ज़ लकीर, अहसास स्याही है "आजाद"
चेहरा एक सांवला-सा ग़ज़ल में दिख रहा होगा. -आजाद
पिछली महफ़िल से गायब रहने के लिये माफ़ी चाहती हूँ, महफ़िल की तरह हम भी कभी हाज़िर और कभी गायब रहने लगे हैं, लगता है यह महफ़िल के संग का असर है....!!!!
मौसम हुआ है खुशनुमा दुनिया बदल गयी है.
अवध लाल (स्वरचित - परन्तु अन्य किसी की उक्ति से प्रेरणा से)
मगर मुझे ऐसा लागे जैसे किशन । (स्वरचित}
कोई सांवला यहाँ कोई सफेद है
कोई खुश तो किसी को खेद है
एक खुदा ने बनाया हम सबको
फिर सबके रंगों में क्यों भेद है?
( स्वरचित..बिलकुल अभी ही लिखा है )
उफक पे दिन का उजाला सिमट जाये
शाम का सांवलापन जमीं पे छा जाये
फिर रात के शबनमी गेसुओं में उलझ
चाँदनी का उजला तनबदन झिलमिलाये.
बस इसके सिवा कुछ नहीं,कैसा भी हो रूप
नमस्कार!
मैं आपको इस गीत का हिन्दी अनुवाद भेज रहा हूँ. इस अनुवाद से गीत के भाव स्वयं परिलक्षित होते हैं. यद्यपि मुझे पंजाबी भाषा का अधिक ज्ञान तो नही है फिर भी मैंने इस सुन्दर गीत का अर्थ हिंद युग्म के पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश की है. किसी भी त्रुटि के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ.
सादर,
अश्विनी कुमार रॉय
छल्ला
जावो नी कोई मोड़ लियावो,
नि मेरे नाल गया जे लड़ के,
अल्लाह करे आ जावे जे सोणा ओए,
देवां जान कदमा विच धर के।
कोई जाये और मेरे प्रीतम को मना कर वापिस ले आये जो मेरे साथ लड़ कर चला गया है. अल्लाह करे कि जब वह लौट आये तो मैं अपनी जान उसके क़दमों में रख दूंगी.
हो छल्ला बेरी बुवे, वतन माही दा दूरे,
जाना पहले पूरे, गल्ल सुन छल्लया
ओ छोरा, दिल नु लाया ई जोरा
दरवाजे के बाहर ही बेरी का पेड़ है और मेरे पति का देश बहुत दूर है. पहले मेरी बात सुनो, फिर वहाँ पर जाना. मैं तुम्हे क्या बताऊँ ये दिल कितना जोर दे रहा है.
हो छल्ला कालियां मर्चां, ओए मोरा पी के मरसां,
सिरे तेरे चडसां, ओ गल्ल सुन छल्लया,
ओ ढोला, ओए तैथों कादा ओला
छल्ला काली मिर्च है न ..मैं ज़हर पी कर तेरे सर होके मर जाऊंगी. अरे छल्ला सुनो...तुम से क्या पर्दा है मेरा!
हो छल्ला नौ नौ देवे, पुत्तर मिठ्ठे मेवे,
अल्लाह सब नु देवे, छल्ला छी छी
ओ पाया, ओए धीयाँ धन जे पराया
छल्ला ! बेटे, मीठे मेवे की तरह हैं ...अल्लाह करे सब को ये मिलें . बेटियाँ तो पराया धन ही होती हैं.
हो छल्ला पाया गहने, दुख ज़िंदडी ने सहने,
सदा मापे नहीं रहने, गल सुन सांवला ढोला,
ओए साड के कित्ता ई कोला
छल्ला गहनों में मिला है, दुःख तो इस ज़िंदगी ने ही उठाने हैं क्योंकि माँ-बाप तो सदा नहीं रहते. मेरे सांवले ढोला सुनो! तुम क्यों स्वयं को कोयले की तरह जला रहे हो!
ओ छल्ला होया बैरी, सजन भज गए कचहरी,
रोवां शिखर दोपहरी, ओ गल सुन छलया
ओ पावे बुरा वेला ना आवे
छल्ला अब तो मेरे साजन वैरी हो कर कचहरी में चले गए हैं. मैं शिखर दोपहर में रो रही हूँ ...छल्ला तुम मेरी बात सुनो “बुरा वक्त किसी पर न आये”
हो छल्ला ज़ेरां ज़बरां, मौया मल्लियाँ कबरां
जिंदे लेन्दे ना खबरां ओए गल सुन छलया
वेहडे अल्लाह संग न उखेड़े,
छल्ला अब तो सब जोर ज़बरदस्ती है ...जो मर गए वो कब्र में दफन हैं और जो जीवित हैं वे कोई खबर नहीं लेते. ओ छल्ला मेरी बात सुनो इस आँगन में अल्लाह किसी का साथ न छुडाये.
हो छल्ला हिको कमाई, ओए जिऊण बहना दे भाई ओए,
अल्लाह मुक्के जुदाई, परदेश दुहाई
ओ गल्ल सुन छलया
ओ तारां वीरा नाल बहारां
छल्ला अब तो एक ही कमाई है कि बहनों के भाई चिरायु हों. अल्लाह करे इस जुदाई का अंत हो मैं परदेस की दुहाई देती हूँ कि भाइयों के साथ ही अच्छा वक़्त (बहार) कटता है.
हो छल्ला बेरी बुवे, वतन माही दा दूरे,
जाना पहले पूरे, गल्ल सुन छल्लया
ओ छोरा, दिल नु लाया ई जोरा
दरवाजे के बाहर ही बेरी का पेड़ है और मेरे पति का देश बहुत दूर है. पहले मेरी बात सुनो, फिर वहाँ पर जाना. मैं तुम्हे क्या बताऊँ ये दिल कितना जोर दे रहा है.
really great job ...............u did for us those who r non-punjaabis' thanks from all of us from bottom of my heart.
v.d kudi ne nahi bheja to ............tum thanks bhi nahi kahoge this is not fair on your part .
sorry for writing in english.
दोहा हाजिर है -
चितचोर सांवला सजन , करता है नित शोर .
नदी पर करे इशारा , आजा मेरी ओर .
बख्त पर सांवलापन छाने लगे
उदासी की चादर में लिपट कर
तनहाई में मन सुकूँ पाने लगे.
( स्वरचित )
एक सांवला सा गम
मन के अँधेरे मैं
कुछ घुल मिल सा gaya hai !!
siskiyon ki स्याह गोद मैं
सहमी सहमी सी यादों के
शूल भरे फूलों se
कुछ छिल सा gaya hai !!
स्वरचित
क्यों नहीं करूँगा धन्यवाद!
अश्विनी जी, आपका मैं तह-ए-दिल से आभारी हूँ। सोचा था कि अगले पोस्ट में दिल खोलकर आभार प्रकट करूँगा, लेकिन नीलम जी की घुड़की देखकर भागते-भागते आना पड़ा। :) फिर भी अगले पोस्ट में आपकी सहायता का ज़िक्र ज़रूर करूँगा।
आपकी टिप्पणी के बाद अब कह सकता हूँ कि "छल्ला" को बहुत हद तक समझ गया हूँ।
धन्यवाद,
विश्व दीपक