Skip to main content

तू मेरा जानूँ है तू मेरा हीरो है.....८० के दशक का एक और सुमधुर युगल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 560/2010/260

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! देखिए, गुज़रे ज़माने के सुमधुर गीतों को सुनते और गुनगुनाते हुए हम आ पहुँचे हैं इस साल २०१० के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की अंतिम कड़ी पर। आज ३० दिसंबर, यानी इस साल का आख़िरी 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। जैसा कि इन दिनों आप इस स्तंभ में सुन और पढ़ रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कुछ सदाबहार युगल गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक मैं और एक तू', आज ८० के दशक के ही एक और लैण्डमार्क डुएट के साथ हम समापन कर रहे हैं इस शृंखला का। यह वह गीत है दोस्तों जिसने लता और आशा के बाद की पीढ़ी के पार्श्वगायिकाओं का द्वार खोल दिया था। इस नयी पीढ़ी से हमारा मतलब है अनुराधा पौड़वाल, अल्का याज्ञ्निक, साधना सरगम और कविता कृष्णमूर्ती। आज हम चुन लाये हैं अनुराधा और मनहर उधास की आवाज़ों में १९८३ की फ़िल्म 'हीरो' का गीत "तू मेरा जानू है... मेरी प्रेम कहानी का तू हीरो है"। युं तो इस गीत से पहले भी अनुराधा ने कुछ गीत गाये थे, लेकिन इस गीत ने उन्हें पहली बार अपार सफलता दी जिसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। 'एक दूजे के लिए' ही की तरह 'हीरो' भी एक कामयाब युवा फ़िल्म है, और इस फ़िल्म के ज़रिए जैकी श्रॊफ़ और मीनाक्षी शेषाद्री ने फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा था। 'हीरो' के गीतों की अपार कामयाबी ने एक बार फिर साबित किया कि ८० के दशक में भी एल.पी का संगीत उतना ही पुरअसर है जितना पिछले दो दशकों में था "निंदिया से जागी बहार" की शास्त्रीयता से भरी सुमधुर धुन, रेशमा की आवाज़ में कलेजे को चीर कर रख देने वाली "लम्बी जुदाई", लता-मनहर का गाया "प्यार करने वाले कभी डरते नहीं", तथा अनुराधा-मनहर के गाये दो गीत - "तू मेरा जानू है" और "डिंग डॊंग" जैसे गीतों के लिए एल. पी को बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

दोस्तों, आज पहली बार 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर अनुराधा और मनहर की आवाज़ें गूंज रही है। ऐसे में आइए आज अनुराधा पौडवाल द्वारा प्रस्तुत 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम का एक अंश पढ़ते हैं जिसमें वो बता रही हैं कि फ़िल्म जगत में उनका पदार्पण किस तरह से हुआ था। विविध भारती के सौजन्य से यह रहा वह अंश - "फ़ौजी भाइयों को मेरा संगीतमय नमस्कर! आज यह अवसर आप से बातें करने का, अपने गानें सुनाने का मिला है उसे मैं शिव जी का प्रसाद कहूँ तो सही होगा। जैसा कि बहुत से सुनने वाले शायद जानते हैं कि मेरे शोहर, श्री अरुण पौडवाल एक ज़माने में एस. डी. बर्मन के ऐसिस्टैण्ट भी रहे। बात युं हुई कि 'अभिमान' फ़िल्म का 'बैकग्राउण्ड म्युज़िक' रेकॊर्ड किया जा रहा था। सोच विचार हो रहा था कि एक 'पर्टिकुलर सिचुएशन' में कौन सा श्लोक रखा जाए। दादा ने अरुण से कहा कि तुम महाराष्ट्रियन हो और तुम्हारे घरों में बड़े बुज़ुर्ग बहुत अच्छे अच्छे श्लोक रिसाइट करते हैं। तो कल कोई श्लोक घर से लेके आना। मेरी क़िस्मत को मंज़ूर था और ईश्वर की कृपा मुझ पर होनी थी कि अरुण जी के मन में यह ख़याल आया कि क्यों ना यह श्लोक अनुराधा से, यानी मुझसे अपने टेप रेकोर्डर पे घर से ही रेकोर्ड करके ले जाऊँ! दादा ने श्लोक सुना और मेरे लिये प्लेबैक की दुनिया के दरवाजे खुल गये। उन्होंने श्लोक सुनते ही पूछा, 'कौन है ये?' दादा ने कहा कि शायद मैंने ऐसी ही आवाज़ में ऐसा ही श्लोक सोचा था जो बरबस तुम मेरे सामने ले आये। अरुण जी से कहा, अभी बुलाओ इस आवाज़ को। जब अरुण ने कहा कि यह आवाज़ अनुराधा की है, मेरी वाइफ़ की है, तो दादा और भी ख़ुश हुए। और शिव जी का प्रसाद मुझे ऐसा मिला कि दिन-ओ-दिन आप लोगों का प्यार और सुनने वालों की चाहत आज मुझे यहाँ तक ले आई है।" हाँ तो दोस्तों, ये थी अनुराधा जी के शब्द जो रेकॊर्ड हुए थे १९८७ में विविध भारती के स्टुडिओ में। और अब फ़िल्म 'हीरो' का वही हिट गीत जिसे शायद आपने कुछ दिनों से नहीं सुना होगा, लीजिए ८० के दशक की यादें फिर एक बार ताज़ा कर लीजिए इस गीत के माध्यम से। और इसी के साथ 'एक मैं और एक तू' शृंखला सम्पन्न होती है। हमें उम्मीद है कि ३० के दशक से लेकर ८० के दशक के ये १० युगल गीत आपको पसंद आये होंगे। आप अपने विचार और सुझाव हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर अवश्य लिख भेजिएगा। हमें इंतज़ार रहेगा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की अगली कड़ी अब अगले साल ही पेश होगी। अरे अरे घबराइए नहीं, अगले साल, यानी कि इसी रविवार, २ जनवरी की शाम को। नये साल की ढेरों हार्दिक शुभकामनाओं के साथ अब हमें इजाज़त दीजिए, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि अनुराधा पौडवाल ने अपना पहला फ़िल्मी एकल गीत गाया था संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में, हेमा मालिनी - शशि कपूर अभिनीत फ़िल्म 'आप बीती' में।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 01/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - खुद संगीतकार है इस युगल गीत में गायक.

सवाल १ - किस संगीतकार की बात है यहाँ - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी को बधाई हमारी ७ वीं शृंखला में वो विजेता हुए हैं. अमित जी कल तो आपका अंदाजा गलत हो गया..खैर कोई बात नहीं, नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट