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नफरत की दुनिया को छोडकर प्यार की दुनिया में, खुश रहना मेरे यार.... करुण रस और रफ़ी साहब की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 495/2010/195

हास्य रस के बाद आज ठीक विपरीत दिशा में जाते हुए करुण रस की बारी। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार। 'रस माधुरी' शृंखला में आज ज़िक्र करुण रस का। करुण रस, यानी कि दुख, सहानुभूति, हमदर्दी, जो उत्पन्न होती है लगाव से, किसी वस्तु या प्राणी के साथ जुड़ाव से। जब यह लगाव हमसे दूर जाने लगता है, बिछड़ने लगता है, तो करुण रस से मन भर जाता है। करुण रस आत्म केन्द्रित होने का भी कभी कभी लक्षण बन जाता है। इसलिए शास्त्र में कहा गया है कि करुण रस को आत्मकेन्द्रित दुख से ज़रूरतमंदों के प्रति हमदर्दी जताने में परिवर्तित कर दिया जाए। किसी तरह के दुख के निवारण के लिए यह जान लेना ज़रूरी है कि दुख अगर आता है तो एक दिन चला भी जाता है। ज़रूरी नहीं कि किसी से जुदाई ही करुण रस को जन्म देती है। एकाकीपन भी करुण रस को जन्म दे सकता है। करुण रस मनुष्य के जीवन के हर पड़ाव में आता है। जवान होते बच्चों में देखा गया है कि जब वो उपेक्षित महसूस करते हैं तो दूसरों से हमदर्दी की चाह रखने लगते हैं। जब इंसान बूढ़ा होने लगता है तो अलग तरह का करुण रस होता है कि जिसमें उसे उसके जीवन भर का संचय भी बेमतलब लगने लगता है। मृत्यु के निकट आने पर करुण रस अपने चरम पर पहूँच जाता है। लेकिन अगर इंसान शाश्वत आत्मा में विश्वास रखता है तो इस समय भी वो करुण रस से बच सकता है और जीवन के अंतिम क्षण तक आनंद ले सकता है इस ख़ूबसूरत जीवन का। दोस्तों, हिंदी फ़िल्मों में करुण रस के गीतों की कोई कमी नहीं है। हमने जो गीत चुना है वह है मोहम्मद रफ़ी साहब का गाया फ़िल्म 'हाथी मेरे साथी' का "नफ़रत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में ख़ुश रहना मेरे यार"।

'हाथी मेरे साथी' १९७१ की फ़िल्म थी और उस समय के लिहाज़ से यह एक स्वप्न फ़िल्म थी ख़ास कर बच्चों के लिए, क्योंकि इस तरह से जानवरों को मुख्य भूमिका में लेकर कोई फ़िल्म पहले नहीं बनी थी। हाथियों से स्टण्ट्स बच्चों और बड़ों, सभी को ख़ूब अभिभूत किया था उस ज़माने में। युं तो फ़िल्म के अधिकतर गानें किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने गाए, जो ख़ुशरंग गानें थे, लेकिन फ़िल्म का अंतिम गीत एक बड़ा ही दुखद, करुण गीत था, जिसे रफ़ी साहब से गवाया गया था। दोस्तों, देखिए उम्र का इंसान के मिज़ाज पर, स्वाद पर कैसा प्रभाव होता है, जब मैं छोटा था और रेडियो में इस फ़िल्म के गानें सुना करता था, उन दिनों शायद यह गीत मुझे सब से कम पसंद आता था, जब कि लता और किशोर के "सुन जा ऐ ठण्डी हवा", "दिलबरजानी चली हवा मस्तानी" और "चल चल चल मेरे हाथी" जैसे गीत बहुत भाते थे। लेकिन अब मैं यह गर्व के साथ कह सकता हूँ कि रफ़ी साहब का गाया "नफ़रत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में" इस फ़िल्म का सर्वोत्तम गीत है। इंसानों के गुज़र जाने के सिचुएशन पर तो बहुत से गानें बनें हैं, लेकिन यह गीत फ़िल्म के असली नायक, एक हाथी के मर जाने पर उसका रखवाला (राजेश खन्ना) रोते हुए गाता है। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने जिस तरह से अपने संगीत के माध्यम से इस गीत में करुण रस का संचार किया है, और आनंद बक्शी साहब ने जिस तरह के बोल लिखे हैं इस गीत में, इसे सुन कर शायद ही कोई होगा जिसकी आँखें नम ना हुई होंगी। यहाँ पर यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि इस गीत के लिए Society for Prevention of Cruelty to Animals ने आनंद बक्शी को पुरस्कृत किया था, जो अपने आप में अकेला वाक्या है। इस क्रूर जगत की कितनी बड़ी सच्चाई है इन शब्दों में कि "जब जानवर कोई इंसान को मारे, कहते हैं दुनिया में वहशी उसे सारे, एक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है, चुप क्यों है संसार"। लीजिए, करुण रस पर आधारित इस गीत को सुनिए और अपने इर्द गिर्द अगर आपको जानवरों पर अत्याचार की कोई घटना दिखाई दे तो नज़दीकी उचित सरकारी कार्यालय या किसी एन.जी.ओ को तुरंत इसकी जानकारी दें।



क्या आप जानते हैं...
कि 'हाथी मेरे साथी' हिंदी का पहला ऐल्बम था जिसने बिक्री के लिए विक्रय डिस्क जीता, जो था एच. एम. वी का रजत डिस्क।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. भयानक रस का उदाहरण है अगले अंक का गीत। गीत के मुखड़े में एक गीतकार का नाम भी आता है। संगीतकार बताएँ। ३ अंक।
२. साल १९६५ की इस फ़िल्म में एक सेन्सुअस युगल गीत भी है जिसमें आशा की नहीं, बल्कि किसी और ही गायिका की आवाज़ है। फ़िल्म का नाम बताएँ। १ अंक।
३. संगीतकार का नाम अगर समझ गए हैं तो गीतकार बताना ज़्यादा मुश्किल नहीं। कौन हैं इस गीत के गीतकार? ३ अंक।
४. फ़िल्म के निर्देशक कौन हैं? ३ अंक।


पिछली पहेली का परिणाम -
कल तो सभी प्रतिभागी खूब अच्छे मूड में दिखे, और जवाब भी सब सही दिए, लगता है हास्य रस में डूबे गीत का असर था ये

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

singhSDM said…
rd burman
*****
pawan kumar
मेरे विचार से संगीतकार हैं : शंकर जयकिशन
बहुत सुन्दर सामयिक गीत सुनाया ...आत्मा खुश हो गई...आभार ...
फ़िल्म के निर्देशक कौन हैं? - GUMNAAM

Pratibha K-S.
Ottawa, Canada
Sorry for the mistake. I revealed name of the movie unknowingly.
फ़िल्म के निर्देशक कौन हैं? - Raja Nawate

Pratibha Kaushal-Sampat
Kishore Sampat said…
संगीतकार का नाम अगर समझ गए हैं तो गीतकार बताना ज़्यादा मुश्किल नहीं। कौन हैं इस गीत के गीतकार? - Hasrat Jaipuri

Kishore Sampat
Ottawa, Canada
ShyamKant said…
This post has been removed by the author.
ShyamKant said…
Film Directed by- RAJA NAWATHE

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