स्वरगोष्ठी – 134 में आज
रागों में भक्तिरस – 2
‘हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें...’
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है,
भारतीय संगीत के विविध रागों में भक्तिरस की उपस्थिति विषयक लघु श्रृंखला
‘रागों में भक्तिरस’। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए संगीत के कुछ
भक्तिरस प्रधान रागों और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। दरअसल
भारतीय संगीत की मूल अवधारणा ही भक्तिरस पर आधारित है। वैदिक काल के उपलब्ध
प्रमाणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि तत्कालीन संगीत का स्वरूप धर्म और
आध्यात्म से प्रभावित था। परन्तु वेदों से पूर्व काल के भी कुछ ऐसे प्रमाण
मिले हैं, जिनसे उक्त काल के संगीत में भी भक्ति संगीत की अवधारणा की
पुष्टि होती है। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में हम आपसे इन तथ्यों पर चर्चा
करेंगे। इसके साथ ही आप सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद राशिद खाँ के स्वरों में
राग केदार में निबद्ध कृष्ण-वन्दना से युक्त एक खयाल और 1971 में प्रदर्शित
फिल्म ‘गुड्डी’ से राग केदार पर ही आधारित एक लोकप्रिय प्रार्थना गीत भी
सुनेगे।
वर्ष 1922 में पंजाब के मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त पुरावशेषों का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने इन्हें ईसा से 4500 से 5000 वर्ष पूर्व का माना है। इस खुदाई में पुरातत्त्ववेत्ता राधाकृष्ण बनर्जी, सर जॉन मार्शल, ननीगोपाल मजूमदार, रायबहादुर रामप्रकाश चन्द्रा, रायबहादुर के.एन. दीक्षित, व्हीलर आदि अनेक विद्वानों का योगदान था। इस खुदाई में ऐसी अनेक सामग्री प्राप्त हुई थी जिससे उस युग की समृद्ध संगीत और नृत्य परम्परा की पुष्टि होती है। इनमें ताण्डव नृत्यरत शिव की मूर्ति और मिट्टी की एक ऐसी मूर्ति प्राप्त हुई थी जिसके गले से लटकता ढोलक की आकृति का एक वाद्य है। ऐसा ही एक तालवाद्य भी प्राप्त हुआ जिसकी आकृति वर्तमान मृदंग जैसा है। इसी प्रकार सतलज नदी के किनारे, रोपड़ नामक स्थान पर हुई खुदाई में संगीत वाद्यों के अनेक चिह्न मिले, जिनमें एक ऐसी नारी-मूर्ति भी है, जो चार तारों की वीणा बजा रही है। यहीं पर मिले कुछ सिक्कों पर वीणा के चित्र अंकित हैं। इन अवशेषों को विशेषज्ञों ने वैदिक युग के पश्चात अर्थात ईसा से 200 से 600 वर्ष पूर्व का माना है।
इन सभी उदाहरणों के उल्लेख का आशय यह है कि वैदिक युग से पूर्व संगीत की मौजूदगी के जो चिह्न प्राप्त हुए हैं, वैदिक युग में उसी परम्परा का विस्तार हुआ। वैदिक काल ईसा से लगभग 2000 से 1000 पूर्व का माना जाता है। इस काल में संगीत का सर्वाधिक विकास हुआ था। इस काल में प्रचलित संगीत का ज्ञान विभिन्न संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों, प्रतिसाख्यों, व्याकरण और पुराणों के द्वारा प्राप्त होता है। संगीत को शास्त्रबद्ध करने का कार्य इसी युग में हुआ। इस युग में शास्त्रगत और लोक, दोनों प्रकार का संगीत जनसामान्य में ईश्वर की उपासना के लिए प्रचलित था। इस युग में संगीत का विकास मन्दिरों में ही हुआ था। आज हम राग केदार की दो रचनाओं के माध्यम से भक्तिरस के स्वरूप की अनुभूति करेंगे। पहले आपको 1971 में प्रदर्शित फिल्म ‘गुड्डी’ में शामिल एक प्रार्थना गीत सुनवाते हैं। इस प्रार्थना गीत को संगीतकार बसन्त देसाई ने राग केदार के स्वरों में बाँधा है। फिल्म में इसे विद्यालय की प्रातःकालीन प्रार्थना के रूप में ही फिल्माया गया है। मधुर गायिका वाणी जयराम ने इस प्रार्थना को स्वर दिया है। फिल्म में उन्होने नायिका जया भादुड़ी (अब जया बच्चन) के लिए पार्श्वगायन किया है। दादरा ताल में निबद्ध या प्रार्थना गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि आज देश की तमाम शिक्षण संस्थाओं में इसे प्रार्थना गीत के रूप में गाया जाता है। आप यह गीत सुनिए और राग केदार में निहित भक्तिरस का प्रत्यक्ष अनुभव कीजिए।
राग केदार : ‘हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें...’ : वाणी जयराम : फिल्म ‘गुड्डी’
भक्तिरस की अभिव्यक्ति के लिए केदार भी एक समर्थ राग है। षाड़व-षाड़व जाति, अर्थात आरोह और अवरोह दोनों में छह-छह स्वरों का प्रयोग होने वाला यह राग कल्याण थाट के अन्तर्गत माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थकार राग केदार को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते थे, आज अधिकतर गुणिजन इसे कल्याण थाट के अन्तर्गत मानते हैं। इस राग में दोनों मध्यम का प्रयोग होता है। शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह दोनों में तथा तीव्र मध्यम का प्रयोग केवल आरोह में किया जाता है। आरोह में ऋषभ स्वर और अवरोह में गान्धार स्वर वर्जित होता है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। इस राग का गायन-वादन रात्रि के पहले प्रहर में किया जाता है। राग केदार में भक्तिरस के तत्त्व का अनुभव करने के लिए अब हम आपको इस राग की एक बन्दिश सुनवाते हैं। राग केदार का एक लोकप्रिय खयाल रचना प्रस्तुत कर रहे हैं, उस्ताद राशिद खाँ। द्रुत तीनताल की इस रचना के बोल हैं, ‘कान्हा रे नन्दनन्दन...’। आप राग केदार की इस भक्ति-रचना का रसास्वादन करें और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग केदार : ‘कान्हा रे नन्दनन्दन...’ : उस्ताद राशिद खाँ
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 134वें अंक की पहेली में आज हम आपको तंत्रवाद्य पर प्रस्तुत एक रचना का अंश सुनवा रहे है। इसे सुन कर आपको दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। 140वें अंक की समाप्ति तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला (सेगमेंट) का विजेता घोषित किया जाएगा।
1 – तंत्रवाद्य पर प्रस्तुत यह रचना किस राग में निबद्ध है?
2 – संगीत की इस रचना में किस ताल का प्रयोग किया गया है?
आप अपने उत्तर केवल radioplaybackindia@live.com या swargoshthi@gmail.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 136वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com या swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के 132वें अंक की पहेली में हमने आपको विदुषी परवीन सुल्ताना के स्वरों में एक सादरा का अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग भैरवी और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- ताल झपताल। एक बार फिर दोनों प्रश्नो के सही उत्तर जबलपुर से क्षिति तिवारी, लखनऊ से प्रकाश गोविन्द और जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के
साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’
का यह दूसरा अंक था, जिसमें आपने राग केदार के भक्ति पक्ष का रसास्वादन
किया। आगामी अंक में हम एक और भक्तिरस प्रधान राग में गूँथी रचनाएँ लेकर
उपस्थित होंगे। अगले अंक में इस लघु श्रृंखला की तीसरी कड़ी के साथ रविवार
को प्रातः 9 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इसी मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की
प्रतीक्षा करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments
वाह, बहुत सुंदर!
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी