Skip to main content

भैरवी के कोमल स्वरों से आराधना

  
स्वरगोष्ठी – 133 में आज

रागों में भक्तिरस – 1

'भवानी दयानी महावाक्वानी सुर नर मुनि जन मानी...'


भारतीय संगीत की परम्परा के सूत्र वेदों से जुड़े हैं। इस संगीत का उद्गम यज्ञादि के समय गेय मंत्रों के रूप में हुआ। आरम्भ से ही आध्यात्म और धर्म से जुड़े होने के कारण हजारों वर्षों तक भारतीय संगीत का स्वरूप भक्तिरस प्रधान रहा। मध्यकाल तक संगीत का विकास मन्दिरों में ही हुआ था, परिणामस्वरूप हमारे परम्परागत संगीत में भक्तिरस की आज भी प्रधानता है। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से हम एक नई श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं, जिसका शीर्षक है- ‘रागों में भक्तिरस’। इस श्रृंखला की प्रथम कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस नई श्रृंखला में हम आपको विभिन्न रागों में निबद्ध भक्ति संगीत की कुछ उत्कृष्ट रचनाओं का रसास्वादन कराएँगे। साथ ही उन्हीं रागों पर आधारित फिल्मी गीतों को भी हमने श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में सम्मिलित किया है। आज श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपके लिए राग भैरवी चुना है। इस राग में पहले हम आपको 1977 में प्रदर्शित फिल्म ‘आलाप’ में शामिल, राग भैरवी पर आधारित एक प्रार्थना गीत सुनवाएँगे। इसके साथ ही सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी परवीन सुलताना के स्वरों में देवी-स्तुति से युक्त एक मनमोहक सादरा भी प्रस्तुत करेंगे। 


ज भारतीय उपमहाद्वीप में संगीत की जितनी भी शैलियाँ प्रचलित हैं, इनका क्रमिक विकास प्राचीन वैदिक संगीत से ही हुआ है। जब हम भारतीय संगीत की परम्परा को सामवेद से जोड़ते हैं तब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या वैदिकयुग से पहले संगीत नहीं था? वैदिककालीन सभ्यता अपने उच्च शिखर पर थी। परन्तु संगीत की उपस्थिति तो उससे भी पहले थी। जब मानव को भावाभिव्यक्ति की आवश्यकता प्रतीत हुई, तभी उसे ध्वनियों का सहारा लेना पड़ा और तभी शब्दों व संगीत का जन्म हुआ। यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि मानव ने प्रकृति से प्रेरणा पाकर ही संगीत को जन्म दिया। नदियों की कल-कल ध्वनि, पक्षियों के कलरव, सागर की तरंगों और वायु के शीतल झोकों से उपजने वाला नाद हमारे संगीत का आधार बना। मानव ने अपनी प्रसन्नता, आशाएँ, अपेक्षाएँ, इच्छाएँ आदि भावों को व्यक्त करने के लिए ऊँची-नीची ध्वनियों का प्रयोग किया जो कालान्तर में संगीत बना। आगे चल कर यह संगीत सर्वाधिक उन्नत, आर्य संस्कृति का प्रमुख अंग बन गया। चूँकि भारतीय संगीत की परम्परा वैदिककालीन सभ्यता से जुड़ी है, इसीलिए संगीत की विविध शैलियों में आध्यात्म, धर्म और भक्ति के तत्त्व आज भी प्रमुख रूप से उपस्थित हैं। विषय के अनुसार भक्ति संगीत का कई प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है। भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में वन्दना या प्रार्थना गीतों का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। इस श्रृंखला की आरम्भिक कुछ कड़ियों में हम भक्ति संगीत के इसी स्वरूप पर चर्चा करेंगे।

भारतीय संगीत के कई राग हैं, जिनमें भक्तिरस खूब मुखर हो जाता है। प्रातःकाल गाये-बजाए जाने वाले राग, विशेषतः राग भैरवी, भक्तिरस की अभिव्यक्ति के लिए आदर्श होते हैं। आज के अंक में हम आपके लिए राग भैरवी में निबद्ध भक्तिरस से अभिसिंचित दो रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। वर्ष 1977 में फिल्म ‘आलाप’ प्रदर्शित हुई थी। फिल्म के संगीत निर्देशक जयदेव ने राग आधारित कई गीतों का समावेश फिल्म में किया था। फिल्म का कथानक संगीत-शिक्षा और साधना पर ही केन्द्रित था। संगीतकार जयदेव ने एक प्राचीन सरस्वती वन्दना- ‘माता सरस्वती शारदा...’ को भी फिल्म में शामिल किया। राग भैरवी में निबद्ध यह वन्दना इसलिए भी रेखांकन योग्य है कि यह युगप्रवर्तक संगीतज्ञ पण्डित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर द्वारा स्वरबद्ध परम्परागत सरस्वती वन्दना है, जिसे फिल्म में यथावत रखा गया था। प्रसंगवश यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय संगीत के इस उद्धारक की आज 140वीं जयन्ती है। पलुस्कर जी का जन्म आज के ही दिन वर्ष 1872 में हुआ था। फिल्म ‘आलाप’ में जयदेव ने इस सरस्वती वन्दना को यथावत सम्मिलित किया। आइए, सुनते हैं, राग भैरवी में निबद्ध यह वन्दना गीत। इस गीत को लता मंगेशकर, येशुदास, दिलराज कौर और मधुरानी ने स्वर दिया है।


राग भैरवी : ‘माता सरस्वती शारदा...’ : फिल्म आलाप : तीनताल 


राग भैरवी भक्तिरस की अभिव्यक्ति के लिए एक आदर्श राग है। ‘भारतीय संगीत के विविध रागों का मानव जीवन पर प्रभाव’ विषय पर अध्ययन और शोध कर रहे लखनऊ के जाने-माने मयूर वीणा और इसराज वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र से जब मैंने इस विषय पर चर्चा की तो उन्होने स्पष्ट बताया कि भारतीय रागदारी संगीत से राग भैरवी को अलग करने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो मानव जाति प्रातःकालीन ऊर्जा की प्राप्ति से वंचित हो जाएगा। राग भैरवी मानसिक शान्ति प्रदान करता है। इसकी अनुपस्थिति से मनुष्य डिप्रेशन, उलझन, तनाव जैसी असामान्य मनःस्थितियों का शिकार हो सकता है। प्रातःकाल सूर्योदय का परिवेश परम शान्ति का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में भैरवी के कोमल स्वर- ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद, मस्तिष्क की संवेदना तंत्र को सहज ढंग से ग्राह्य होते है। कोमल स्वर मस्तिष्क में सकारात्मक हारमोन रसों का स्राव करते हैं। इससे मानव मानसिक और शारीरिक विसंगतियों से मुक्त रहता है।

भैरवी के कोमल स्वर मन को शान्ति प्रदान करता है, वहीं भक्तिरस का संचार करने में भी सहायक होता है। अब हम आपको राग भैरवी में निबद्ध एक बेहद लोकप्रिय सादरा सुनवाते हैं। इस रचना के माध्यम से देवी-स्तुति की गई है। इसे अनेक वरिष्ठ कलासाधक अपने-अपने स्वरों से सुसज्जित कर चुके हैं, परन्तु सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी परवीन सुलताना ने अपने पुकारयुक्त स्वरों में जिस प्रकार इसे प्रस्तुत किया है, उससे यह भक्तिरस की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ उदाहरण हो जाता है। यह रचना झपताल में निबद्ध है।


राग भैरवी : ‘भवानी दयानी महा वाक्वानी सुर नर मुनि जन मानी...’ : बेगम परवीन सुलताना : झपताल





आज की पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ की 133वीं संगीत पहेली में हम आपको एक द्रुत खयाल का अंश सुनवा रहे हैं। इसे सुन कर आपको निम्नलिखित दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के 140वें अंक तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें इस श्रृंखला का विजेता घोषित किया जाएगा।


1 – खयाल के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह रचना किस राग में निबद्ध है?

2 – यह खयाल किस ताल में प्रस्तुत किया गया है?

आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com पर ही शनिवार मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के 135वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।



पिछली पहेली के विजेता


‘स्वरगोष्ठी’ के 131वीं संगीत पहेली में हमने आपको एक कजरी गीत का अन्तरा सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- स्थायी की पंक्ति- ‘बरसन लागी बदरिया रूम झूम के...’ और दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है- स्वर- विदुषी गिरिजा देवी। दोनों प्रश्नो के उत्तर हमारे नियमित प्रतिभागी जौनपुर के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और जबलपुर की क्षिति तिवारी ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई।


झरोखा अगले अंक का


मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर आज से आरम्भ हुई लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ के अन्तर्गत हमने आज की कड़ी में आपको राग भैरवी की दो रचनाओं का रसास्वादन कराया। अगले अंक में हम आपके लिए एक और भक्तिरस प्रधान राग चुनेंगे और उसमें निबद्ध रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला की आगामी कड़ियों के लिए आप अपनी पसन्द के भक्तिरस प्रधान रागों या रचनाओं की फरमाइश कर सकते हैं। हम आपके सुझावों और फरमाइशों का स्वागत करते हैं। अगले अंक में रविवार को प्रातः 9 बजे ‘स्वरगोष्ठी’ के इस मंच पर आप सभी संगीत-रसिकों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र


Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की