स्वरगोष्ठी – ६९ में आज
स्वर-साधक मन्ना डे से सुनिए- बागेश्री, छायानट और खमाज
हिन्दी फिल्मों के पार्श्वगायकों में मन्ना डे ऐसे गायक हैं जो गीतों की संख्या से नहीं बल्कि गीतों की गुणबत्ता और संगीत-शैलियों की विविधता से पहचाने जाते हैं। पूरे छः दशक तक फिल्मों में हर प्रकार के गीतों के साथ-साथ राग आधारित गीतों के गायन में मन्ना डे का कोई विकल्प नहीं था। ‘स्वरगोष्ठी’ के पिछले अंक में हमने राग दरबारी पर आधारित उनके गाये तीन अलग-अलग रसों के गीत प्रस्तुत किये थे। आज के अंक में हम आपको तीन भिन्न रागों के रंग, मन्ना डे के स्वरों के माध्यम प्रस्तुत कर रहे हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की गोष्ठी में पुनः उपस्थित हूँ। अपने पिछले अंक में हमने फिल्मों के पार्श्वगायक मन्ना डे के ९४वें जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनके गाये राग दरबारी पर आधारित कुछ गीतों का सिलसिला आरम्भ किया था। आज के अंक में हम इस श्रृंखला को आगे बढ़ाएँगे और आपको मन्ना डे के स्वरों में तीन और रागों- बागेश्री, छायानट और खमाज पर आधारित गीत सुनवाएँगे। पिछले अंक में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि मन्ना डे को रागदारी संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त हुई थी। कोलकाता में अपने चाचा के.सी. डे से और उस्ताद दबीर खाँ से तथा मुम्बई आने के बाद उस्ताद अमान अली खाँ और उस्ताद अब्दुल रहमान खाँ से उन्होने संगीत सीखा। फिल्मी दुनिया में व्यस्तता के बावजूद वे समय निकाल कर बीच बीच में उस्ताद अब्दुल रहमान खाँ से मार्गदर्शन लेते रहे।
फिल्म – प्राइवेट सेक्रेटरी : ‘जा रे बेईमान तुझे जान लिया... ’ राग – बागेश्री
मन्ना डे के स्वर में आज का दूसरा गीत राग छायानट पर आधारित है। संगीतकार सचिनदेव बर्मन, मन्ना डे की प्रतिभा से भलीभाँति परिचित थे। अपने आरम्भिक दौर में बर्मन दादा मन्ना डे के चाचा के.सी. डे से मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। कुछ फिल्मों में मन्ना डे, बर्मन दादा के सहायक भी रहे। १९४९-५० में दोनों संघर्षरत कलाकारों के जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब असफलता से घबरा कर दोनों मुम्बई-फिल्म-जगत को अलविदा कहने वाले थे, तभी १९५० की फिल्म ‘मशाल’ में मन्ना डे का गाया और बर्मन दादा का संगीतबद्ध किया गीत- ‘ऊपर गगन विशाल...’ हिट हो गया और दोनों ने मुम्बई छोड़ना स्थगित कर दिया। इसके बाद तो बर्मन दादा ने जब भी कोई राग आधारित क्लिष्ट संगीत रचना की, मन्ना डे ने उसे अपना स्वर देकर अमर बना दिया।
फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आँखें’ का राग ‘अहीर भैरव’ पर आधारित गीत- ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई...’ इसी जोड़ी का सृजित गीत है, जो आज भी सदाबहार गीतों की श्रेणी में रखा जाता है। १९६९ में फिल्म ‘तलाश’ के लिए बर्मन दादा ने राग ‘छायानट’ पर आधारित एक गीत- ‘तेरे नैना तलाश करें जिसे...’ की संगीत रचना की। इस गीत को स्वर देने के लिए दादा के सामने मन्ना डे का कोई विकल्प नहीं था। सितारखानी ताल में निबद्ध इस गीत को गाकर मन्ना डे ने फिल्म के प्रसंग के साथ-साथ राग ‘छायानट’ का पूरा स्वरूप श्रोताओं के सम्मुख उपस्थित कर दिया है। बर्मन दादा ने तबला, तबला तरंग के साथ दक्षिण भारतीय ताल वाद्य मृदंगम का प्रयोग कर गीत को मनमोहक रूप दिया है। लीजिए, आप भी सुनिए दो सुरीले कलाकारों की मधुर कृति-
फिल्म – तलाश : ‘तेरे नैना तलाश करें जिसे...’ : राग – छायानट
मन्ना डे की गायकी में शैलियों की पर्याप्त विविधता मिलती है। उनके गाये राग आधारित गीतों में कहीं ध्रुवपद अंग, कहीं खयाल अंग तो कहीं ठुमरी अंग की स्पष्ट झलक मिलती है। उन्होने बोल-बाँट और बोल-बनाव का अच्छा रियाज किया था। आज की गोष्ठी के अन्त में हमने मन्ना डे के गाये गीतों में से एक ऐसा गीत चुना है, जिसे सुन कर आपको उनकी ठुमरी-गायन-प्रतिभा का स्पष्ट अनुभव होगा। १९७१ की एक फिल्म है- ‘बुड्ढा मिल गया’, जिसके निर्देशक थे ऋषिकेश मुखर्जी। इस फिल्म में राहुलदेव बर्मन का संगीत है। फिल्म के अन्य गीतों के साथ एक ठुमरी भी है, जिसे पर्दे पर हास्य अभिनेता ओमप्रकाश पर फिल्माया गया है। राग खमाज पर आधारित इस ठुमरी गीत को मन्ना डे ने इस खूबी से गाया है कि मध्यकाल में गायी जाने वाली परम्परागत बन्दिश की ठुमरी जैसी ही प्रतीत होती है। गीत के अन्त में फिल्म की अभिनेत्री अर्चना की भी आवाज़ है। एक परम्परागत ठुमरी के सभी लक्षण इस गीत में स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। मन्ना डे के गाये इस गीत (ठुमरी) से आज हमे विराम लेने की अनुमति दीजिए।
फिल्म – बुड्ढा मिल गया : ‘आयो कहाँ से घनश्याम...’ : राग – खमाज
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं, १९६३ की एक भोजपुरी फिल्म के गीत का अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ७०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी दूसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – इस गीत में किन दो पार्श्वगायकों के स्वर हैं?
२ – यह गीत किस भोजपुरी फिल्म से लिया गया है?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ७१वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ६७वें अंक में हमने आपको १९५९ में प्रदर्शित फिल्म ‘रानी रूपमती’ के एक गीत ‘उड़ जा भँवर माया कमल का...’ का अंश सुनवाकर दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग दरबारी कान्हड़ा और दूसरे का उत्तर है- सात मात्रा का रूपक ताल। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर बैंगलुरु के पंकज मुकेश और इन्दौर की क्षिति तिवारी (अब स्थानान्तरित होकर जबलपुर पहुँचीं) ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर हार्दिक बधाई। इनके अलावा ‘हिन्दी फिल्मों में रवीन्द्र संगीत’ विषयक इस अंक के बारे में हमारे एक पाठक cgswar ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है- “अविस्मरणीय पोस्ट, अकल्पनीय शोध, शब्द नहीं हैं इसकी तारीफ करने के लिये...धन्यवाद रेडियो प्लेबैक इंडिया...” इनके अलावा तीरथ रावत और उमेश रावल सहित उन सभी पाठकों-श्रोताओं का हम आभार प्रकट करते हैं, जिन्होने इस अंक को पसन्द किया।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ का आगामी अंक भोजपुरी के विख्यात गीतकार, संगीतकार, नाटककार और संस्कृतिकर्मी पद्मश्री भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित होगा। यह अंक हम अपने कई नियमित पाठकों के अनुरोध पर प्रस्तुत कर रहे हैं। आगामी रविवार की सुबह ९-३० बजे आप और हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक में पुनः मिलेंगे। तब तक के लिए हमें विराम लेने की अनुमति दीजिए।
स्वर-साधक मन्ना डे से सुनिए- बागेश्री, छायानट और खमाज
हिन्दी फिल्मों के पार्श्वगायकों में मन्ना डे ऐसे गायक हैं जो गीतों की संख्या से नहीं बल्कि गीतों की गुणबत्ता और संगीत-शैलियों की विविधता से पहचाने जाते हैं। पूरे छः दशक तक फिल्मों में हर प्रकार के गीतों के साथ-साथ राग आधारित गीतों के गायन में मन्ना डे का कोई विकल्प नहीं था। ‘स्वरगोष्ठी’ के पिछले अंक में हमने राग दरबारी पर आधारित उनके गाये तीन अलग-अलग रसों के गीत प्रस्तुत किये थे। आज के अंक में हम आपको तीन भिन्न रागों के रंग, मन्ना डे के स्वरों के माध्यम प्रस्तुत कर रहे हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की गोष्ठी में पुनः उपस्थित हूँ। अपने पिछले अंक में हमने फिल्मों के पार्श्वगायक मन्ना डे के ९४वें जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनके गाये राग दरबारी पर आधारित कुछ गीतों का सिलसिला आरम्भ किया था। आज के अंक में हम इस श्रृंखला को आगे बढ़ाएँगे और आपको मन्ना डे के स्वरों में तीन और रागों- बागेश्री, छायानट और खमाज पर आधारित गीत सुनवाएँगे। पिछले अंक में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि मन्ना डे को रागदारी संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त हुई थी। कोलकाता में अपने चाचा के.सी. डे से और उस्ताद दबीर खाँ से तथा मुम्बई आने के बाद उस्ताद अमान अली खाँ और उस्ताद अब्दुल रहमान खाँ से उन्होने संगीत सीखा। फिल्मी दुनिया में व्यस्तता के बावजूद वे समय निकाल कर बीच बीच में उस्ताद अब्दुल रहमान खाँ से मार्गदर्शन लेते रहे।
आज के अंक में सबसे पहले हम आपको मन्ना डे का गाया राग बागेश्री पर आधारित एक गीत सुनवाएँगे। फिल्म-संगीत के क्षेत्र में एक कम चर्चित नाम डी. डिलीप का है। इनका पूरा नाम था, दिलीप ढोलकिया। गुजराती के प्रमुख संगीतकार डी. डिलीप ने १९५६ में फिल्म ‘बगदाद की रातें’ से हिन्दी फिल्मों में अपनी संगीतकार की भूमिका शुरू की, किन्तु दुर्भाग्य से यह फिल्म छह वर्षों बाद प्रदर्शित हुई। इस बीच उन्होने भक्ति महिमा, सौगन्ध, तीन उस्ताद आदि फिल्मों में संगीत दिया, किन्तु उनकी ओर लोगों का ध्यान तब गया जब जब १९६२ में अशोक कुमार और जयश्री गड़कर अभिनीत फिल्म ‘प्राईवेट सेक्रेटरी’ के लिए उन्होने मन्ना डे से एक गीत- ‘जा रे बेईमान तुझे जान लिया...’ गवाया। श्री ढोलकिया ने प्रेम धवन के गीत को राग बागेश्री के स्वरॉ में बाँधा। मन्ना डे ने एक ताल और दादरा ताल में अपना स्वर देकर इस गीत को मोहक रूप दे दिया। गीत में राग का स्वरूप स्पष्ट रूप से उभर कर आता है। लीजिए, आप भी सुनिए यह गीत।
फिल्म – प्राइवेट सेक्रेटरी : ‘जा रे बेईमान तुझे जान लिया... ’ राग – बागेश्री
मन्ना डे के स्वर में आज का दूसरा गीत राग छायानट पर आधारित है। संगीतकार सचिनदेव बर्मन, मन्ना डे की प्रतिभा से भलीभाँति परिचित थे। अपने आरम्भिक दौर में बर्मन दादा मन्ना डे के चाचा के.सी. डे से मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। कुछ फिल्मों में मन्ना डे, बर्मन दादा के सहायक भी रहे। १९४९-५० में दोनों संघर्षरत कलाकारों के जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब असफलता से घबरा कर दोनों मुम्बई-फिल्म-जगत को अलविदा कहने वाले थे, तभी १९५० की फिल्म ‘मशाल’ में मन्ना डे का गाया और बर्मन दादा का संगीतबद्ध किया गीत- ‘ऊपर गगन विशाल...’ हिट हो गया और दोनों ने मुम्बई छोड़ना स्थगित कर दिया। इसके बाद तो बर्मन दादा ने जब भी कोई राग आधारित क्लिष्ट संगीत रचना की, मन्ना डे ने उसे अपना स्वर देकर अमर बना दिया।
फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आँखें’ का राग ‘अहीर भैरव’ पर आधारित गीत- ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई...’ इसी जोड़ी का सृजित गीत है, जो आज भी सदाबहार गीतों की श्रेणी में रखा जाता है। १९६९ में फिल्म ‘तलाश’ के लिए बर्मन दादा ने राग ‘छायानट’ पर आधारित एक गीत- ‘तेरे नैना तलाश करें जिसे...’ की संगीत रचना की। इस गीत को स्वर देने के लिए दादा के सामने मन्ना डे का कोई विकल्प नहीं था। सितारखानी ताल में निबद्ध इस गीत को गाकर मन्ना डे ने फिल्म के प्रसंग के साथ-साथ राग ‘छायानट’ का पूरा स्वरूप श्रोताओं के सम्मुख उपस्थित कर दिया है। बर्मन दादा ने तबला, तबला तरंग के साथ दक्षिण भारतीय ताल वाद्य मृदंगम का प्रयोग कर गीत को मनमोहक रूप दिया है। लीजिए, आप भी सुनिए दो सुरीले कलाकारों की मधुर कृति-
फिल्म – तलाश : ‘तेरे नैना तलाश करें जिसे...’ : राग – छायानट
मन्ना डे की गायकी में शैलियों की पर्याप्त विविधता मिलती है। उनके गाये राग आधारित गीतों में कहीं ध्रुवपद अंग, कहीं खयाल अंग तो कहीं ठुमरी अंग की स्पष्ट झलक मिलती है। उन्होने बोल-बाँट और बोल-बनाव का अच्छा रियाज किया था। आज की गोष्ठी के अन्त में हमने मन्ना डे के गाये गीतों में से एक ऐसा गीत चुना है, जिसे सुन कर आपको उनकी ठुमरी-गायन-प्रतिभा का स्पष्ट अनुभव होगा। १९७१ की एक फिल्म है- ‘बुड्ढा मिल गया’, जिसके निर्देशक थे ऋषिकेश मुखर्जी। इस फिल्म में राहुलदेव बर्मन का संगीत है। फिल्म के अन्य गीतों के साथ एक ठुमरी भी है, जिसे पर्दे पर हास्य अभिनेता ओमप्रकाश पर फिल्माया गया है। राग खमाज पर आधारित इस ठुमरी गीत को मन्ना डे ने इस खूबी से गाया है कि मध्यकाल में गायी जाने वाली परम्परागत बन्दिश की ठुमरी जैसी ही प्रतीत होती है। गीत के अन्त में फिल्म की अभिनेत्री अर्चना की भी आवाज़ है। एक परम्परागत ठुमरी के सभी लक्षण इस गीत में स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। मन्ना डे के गाये इस गीत (ठुमरी) से आज हमे विराम लेने की अनुमति दीजिए।
फिल्म – बुड्ढा मिल गया : ‘आयो कहाँ से घनश्याम...’ : राग – खमाज
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं, १९६३ की एक भोजपुरी फिल्म के गीत का अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ७०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी दूसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – इस गीत में किन दो पार्श्वगायकों के स्वर हैं?
२ – यह गीत किस भोजपुरी फिल्म से लिया गया है?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ७१वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ६७वें अंक में हमने आपको १९५९ में प्रदर्शित फिल्म ‘रानी रूपमती’ के एक गीत ‘उड़ जा भँवर माया कमल का...’ का अंश सुनवाकर दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग दरबारी कान्हड़ा और दूसरे का उत्तर है- सात मात्रा का रूपक ताल। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर बैंगलुरु के पंकज मुकेश और इन्दौर की क्षिति तिवारी (अब स्थानान्तरित होकर जबलपुर पहुँचीं) ने दिया है। दोनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर हार्दिक बधाई। इनके अलावा ‘हिन्दी फिल्मों में रवीन्द्र संगीत’ विषयक इस अंक के बारे में हमारे एक पाठक cgswar ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है- “अविस्मरणीय पोस्ट, अकल्पनीय शोध, शब्द नहीं हैं इसकी तारीफ करने के लिये...धन्यवाद रेडियो प्लेबैक इंडिया...” इनके अलावा तीरथ रावत और उमेश रावल सहित उन सभी पाठकों-श्रोताओं का हम आभार प्रकट करते हैं, जिन्होने इस अंक को पसन्द किया।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ का आगामी अंक भोजपुरी के विख्यात गीतकार, संगीतकार, नाटककार और संस्कृतिकर्मी पद्मश्री भिखारी ठाकुर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित होगा। यह अंक हम अपने कई नियमित पाठकों के अनुरोध पर प्रस्तुत कर रहे हैं। आगामी रविवार की सुबह ९-३० बजे आप और हम ‘स्वरगोष्ठी’ के इस अंक में पुनः मिलेंगे। तब तक के लिए हमें विराम लेने की अनुमति दीजिए।
कृष्णमोहन मिश्र
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