Skip to main content

दर्शन कौर धनोय लायीं हैं रश्मि जी की महफ़िल में कुछ लाजवाब गीत

आज का दिन दर्शन कौर धनोय जी के नाम , जिसमें हैं उनकी पसंद के गीत हमारे बीच . चलिए देखते हैं वे क्या कहती हैं -



रश्मि जी नमस्कार ,
 मेरे पसंद के गीतों का तो समुंदर भरा पड़ा हैं --इनमें से  5 नायाब मोती निकलना बड़ा मुश्किल काम हैं  --- ये गीत मेरे जीवन की अनमोल पूंजी हैं -- मेरी सांसो में बसे हैं ये गीत --
१. तुम्हे याद करते -करते जाएगी उम्र सारी --तुम ले गए हो अपने संग नींद भी हमारी "--फिल्म --आम्रपाली !
"यह गीत मुझे उस व्यक्ति की याद दिलाता हैं जिसे मैनें खो दिया हैं --और जो मुझे इस जनम में कभी नहीं मिल सकता  ! उसके जाने से जो स्थान रिक्त हैं उसे कोई नहीं भर सकता !"
२."आपकी नजरों ने समझा --प्यार के काबिल मुझे --दिल की ये धडकन संभल जा मिल गई मंजिल मुझे --फिल्म ---अनपढ़  !
"यह गीत मुझे बेहद पसंद हैं --इसका संगीत,धुन,बोल, और लताजी की आवाज का जादू  --सब मिलाकर जादुई असर करते हैं --जब भी सुनती हूँ तो आँखें नम हो जाती हैं !"
३. "लग जा गले के फिर ये हंसी रात हो न हो --शायद  फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो "--फिल्म --वो कौन थी !
"इस गीत में स्वर्गीय मदन मोहन जी ने कमाल का संगीत दिया हैं --लताजी की जादुई आवाज ने कमाल किया हैं --कभी -कभी कुछ पल जिन्दगी की धरोहर होते हैं जो अमिट होते हैं--ये गीत भी कुछ ऐसा ही हैं !"
४."अगर मुझसे मुहब्बत हैं --मुझे सब अपने गम दे दो "-- फिल्म --आपकी  परछाईयाँ ! 
अपने प्यार को व्यक्त करती एक भावपूर्ण अभीव्यक्ति--औरत जिसको प्यार करती हैं उसपर दिलोजान से निछावर होती हैं --पूर्णतया समर्पित यह गीत मुझे बहुत पसंद हैं ...



५. "ऐ दिले नादा--आरजू क्या हैं --जुस्तजू क्या हैं" --फिल्म --रजिया सुल्ताना !
"दिल बड़ी अजीब शे हैं--कब किस पर आ जाए पता नहीं ? न तो ये उम्र के बंधन में बंधा हैं, न इस पर किसी का जौर चला हैं --यह तो जज्बातों में गुंथा हैं   --इस गीत में जो बैचेनी , जो तड़प हैं ,वो मुझे बेहद पसंद हैं !"

Comments

बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन गीत संगीत,

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
धन्यवाद रश्मिजी आपने मेरे दिल की आवाज जो गीतों के जरिए मैनें व्यक्त की हैं उन्हें सबसे बाटने में मेरी मदद की ....शुक्रियां
waah darshan aunty...ye sare songs mere v fav hai...kya pasand hai.....sadabahar sunder geet....rashmi aunty aur aapke dwara aaj ki mahfil yaadgar ho gayi :)
"lag ja gale, fir ye hansi raat ho na ho......:)" mujhe bhi ye gaana bahut pasand hai..!

waise Darshan jee aapki pasand ka jabab nahi... aur di ki behtareen peshkash... lajabab hai:)
सारे गीत मेरी पसंद के। वाह मज़ा आ गया सुनकर।
Anita kumar said…
मेरे भी फ़ेवरेट गाने हैं ये
Unknown said…
bahut badhiya hai ek doosre ki pasand jaankar thoda mizaaz ka bhi pata chalta hai saathiyo ka. ab ye paancho gaane kab sunaaoge darshan ji

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट