ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 726/2011/166
शृंखला ‘वतन के तराने’ की छठी कड़ी में आपका पुनः स्वागत है। इस श्रृंखला के गीतों के माध्यम से हम उन बलिदानियों का पुण्य स्मरण कर रहे हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में अपने प्राणों की आहुतियाँ दी। जिनके त्याग, तप और बलिदान के कारण ही हम उन्मुक्त हवा में साँस ले पा रहे हैं। आज जो गीत हम आपके लिए प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक ऐसे महानायक से सम्बन्धित है, जिसे नाम के स्थान पर दी गई ‘शहीद-ए-आजम’ की उपाधि से अधिक पहचाना जाता है। जी हाँ, आपका अनुमान बिलकुल ठीक है, हम अमर बलिदानी भगत सिंह की स्मृति को आज स्वरांजलि अर्पित करेंगे।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर बलिदानी भगत सिंह का जन्म एक देशभक्त परिवार में 28सितम्बर, 1907 को ग्राम बंगा, ज़िला लायलपुर (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उनके पूर्वज महाराजा रणजीत सिंह की सेना के योद्धा थे। भगत सिंह के दो चाचा स्वर्ण सिंह व अजीत सिंह तथा पिता किशन सिंह ने अपना पूरा जीवन अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ने में लगा दिया। ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकले भगतसिंह के हृदय में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने की भावना को और अधिक सबल बना दिया। 13अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में जनरल डायर ने भीषण नरसंहार किया था। तब भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे। घर पर बिना किसी को बताए भगत सिंह लाहौर से अमृतसर के जलियाँवाला पहुँच गए और एक शीशी में वहाँ की रक्तरंजित मिट्टी लेकर लौटे। उन्होने वह शीशी अपनी बहन को दिखाया और उस पर फूल चढ़ा कर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसी प्रकार 1921 में जब वे नौवीं कक्षा में थे, अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ हुआ। ऐसे में भला भगत सिंह कहाँ पीछे रहते। अपने साथियों की एक टोली बना कर विदेशी कपड़ों की होली जलाने में जुट गए। इसी बीच 5फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के चौरीचौरा में प्रदर्शनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में बन्दकर आग लगा दिया। इस घटना ने भगत सिंह को हिंसा और अहिंसा मार्ग के अलावा एक ऐसे मार्ग पर चलने का संकेत दिया, जिसपर चलकर जन-चेतना जागृत करते हुए आत्मोत्सर्ग के लिए सदा तत्पर रहने का आग्रह था।
आगे चल कर भगत सिंह ने इसी मार्ग का अनुसरण किया और 17दिसम्बर, 1928 के दिन लाला लाजपत राय के हत्यारे सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्सको उसके अत्याचार की सजा दी। इस काण्ड में उनका साथ अमर बलिदानी राजगुरु ने दिया था। क्रान्तिकारियों के जीवन-चरित्र का अध्ययन करते समय भगत सिंह को फ्रांसीसी क्रान्तिकारी बेलाँ का चरित्र खूब भाया था। संसद में बम विस्फोट कर अपने सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने और स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए जनचेतना जगाने की अनूठी योजना की प्रेरणा भगत सिंह को बेलाँ से ही मिली थी। बिना किसी को हताहत किये संसद में बम फेक कर स्वयं को बन्दी बनवा लेने की इस योजना में भगत सिंह का साथ बटुकेश्वर दत्त ने दिया। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार उन्होने जोरदार आवाज़ के साथ विस्फोट किया और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया। हुआ वही जो होना था। 7मई, 1929 से जेल में ही अदालत का आयोजन कर सुनवाई आरम्भ हुई। सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार और उनकी नीतियों की खूब धज्जियाँ उड़ाईं।
अन्ततः 7अक्तूबर, 1930 को मुकदमे का नाटक पूरा हुआ और साण्डर्स हत्याकाण्ड में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुना दी गई। तीनों क्रान्तिवीर अपना कार्य कर चुके थे। 23मार्च, 1931 का दिन, उस दिन भगत सिंह अपनी आयु के मात्र 23वर्ष, 5मास और 26 दिन पूरे किये थे। इतनी कम आयु के बावजूद उन्होने उस साम्राज्य की चूलें हिला दीं, जिनके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था।
आज हम आपको जो गीत सुनवाने जा रहे हैं वह इन्हीं तीनों बलिदानियों, विशेष रूप से अमर बलिदानी भगत सिंह के जीवन-दर्शन पर आधारित फिल्म‘शहीद’ से लिया गया है। इस फिल्म के गीतकार और संगीतकार, दोनों का दायित्व प्रेम धवन ने ही निभाया था। फिल्मांकन की दृष्टि से आज का गीत इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह गीत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को जेल की कोठरी से फाँसी-स्थल तक ले जाने के दौरान फिल्माया गया था। मोहम्मद रफी और साथियों के स्वरों में आइए सुनते हैं, यह प्रेरक गीत और हँसते-हँसते फाँसी का फन्दा चूमने वाले क्रान्तिवीरों को भाव-भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - पहले स्वतन्त्रता संग्राम का नायक था ये वीर, जिसने आने वाले समय में देश में जाग्रति भरी.
सूत्र २ - आवाज़ है रफ़ी साहब की.
सूत्र ३ - एक अंतरे का पहला शब्द है - "हिमाला" .
अब बताएं -
संगीतकार बताएं - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी को एक बार फिर बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
शृंखला ‘वतन के तराने’ की छठी कड़ी में आपका पुनः स्वागत है। इस श्रृंखला के गीतों के माध्यम से हम उन बलिदानियों का पुण्य स्मरण कर रहे हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में अपने प्राणों की आहुतियाँ दी। जिनके त्याग, तप और बलिदान के कारण ही हम उन्मुक्त हवा में साँस ले पा रहे हैं। आज जो गीत हम आपके लिए प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक ऐसे महानायक से सम्बन्धित है, जिसे नाम के स्थान पर दी गई ‘शहीद-ए-आजम’ की उपाधि से अधिक पहचाना जाता है। जी हाँ, आपका अनुमान बिलकुल ठीक है, हम अमर बलिदानी भगत सिंह की स्मृति को आज स्वरांजलि अर्पित करेंगे।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर बलिदानी भगत सिंह का जन्म एक देशभक्त परिवार में 28सितम्बर, 1907 को ग्राम बंगा, ज़िला लायलपुर (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उनके पूर्वज महाराजा रणजीत सिंह की सेना के योद्धा थे। भगत सिंह के दो चाचा स्वर्ण सिंह व अजीत सिंह तथा पिता किशन सिंह ने अपना पूरा जीवन अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ने में लगा दिया। ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकले भगतसिंह के हृदय में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने की भावना को और अधिक सबल बना दिया। 13अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में जनरल डायर ने भीषण नरसंहार किया था। तब भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे। घर पर बिना किसी को बताए भगत सिंह लाहौर से अमृतसर के जलियाँवाला पहुँच गए और एक शीशी में वहाँ की रक्तरंजित मिट्टी लेकर लौटे। उन्होने वह शीशी अपनी बहन को दिखाया और उस पर फूल चढ़ा कर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसी प्रकार 1921 में जब वे नौवीं कक्षा में थे, अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ हुआ। ऐसे में भला भगत सिंह कहाँ पीछे रहते। अपने साथियों की एक टोली बना कर विदेशी कपड़ों की होली जलाने में जुट गए। इसी बीच 5फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के चौरीचौरा में प्रदर्शनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में बन्दकर आग लगा दिया। इस घटना ने भगत सिंह को हिंसा और अहिंसा मार्ग के अलावा एक ऐसे मार्ग पर चलने का संकेत दिया, जिसपर चलकर जन-चेतना जागृत करते हुए आत्मोत्सर्ग के लिए सदा तत्पर रहने का आग्रह था।
आगे चल कर भगत सिंह ने इसी मार्ग का अनुसरण किया और 17दिसम्बर, 1928 के दिन लाला लाजपत राय के हत्यारे सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्सको उसके अत्याचार की सजा दी। इस काण्ड में उनका साथ अमर बलिदानी राजगुरु ने दिया था। क्रान्तिकारियों के जीवन-चरित्र का अध्ययन करते समय भगत सिंह को फ्रांसीसी क्रान्तिकारी बेलाँ का चरित्र खूब भाया था। संसद में बम विस्फोट कर अपने सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाने और स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए जनचेतना जगाने की अनूठी योजना की प्रेरणा भगत सिंह को बेलाँ से ही मिली थी। बिना किसी को हताहत किये संसद में बम फेक कर स्वयं को बन्दी बनवा लेने की इस योजना में भगत सिंह का साथ बटुकेश्वर दत्त ने दिया। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार उन्होने जोरदार आवाज़ के साथ विस्फोट किया और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया। हुआ वही जो होना था। 7मई, 1929 से जेल में ही अदालत का आयोजन कर सुनवाई आरम्भ हुई। सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार और उनकी नीतियों की खूब धज्जियाँ उड़ाईं।
अन्ततः 7अक्तूबर, 1930 को मुकदमे का नाटक पूरा हुआ और साण्डर्स हत्याकाण्ड में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुना दी गई। तीनों क्रान्तिवीर अपना कार्य कर चुके थे। 23मार्च, 1931 का दिन, उस दिन भगत सिंह अपनी आयु के मात्र 23वर्ष, 5मास और 26 दिन पूरे किये थे। इतनी कम आयु के बावजूद उन्होने उस साम्राज्य की चूलें हिला दीं, जिनके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था।
आज हम आपको जो गीत सुनवाने जा रहे हैं वह इन्हीं तीनों बलिदानियों, विशेष रूप से अमर बलिदानी भगत सिंह के जीवन-दर्शन पर आधारित फिल्म‘शहीद’ से लिया गया है। इस फिल्म के गीतकार और संगीतकार, दोनों का दायित्व प्रेम धवन ने ही निभाया था। फिल्मांकन की दृष्टि से आज का गीत इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह गीत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को जेल की कोठरी से फाँसी-स्थल तक ले जाने के दौरान फिल्माया गया था। मोहम्मद रफी और साथियों के स्वरों में आइए सुनते हैं, यह प्रेरक गीत और हँसते-हँसते फाँसी का फन्दा चूमने वाले क्रान्तिवीरों को भाव-भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - पहले स्वतन्त्रता संग्राम का नायक था ये वीर, जिसने आने वाले समय में देश में जाग्रति भरी.
सूत्र २ - आवाज़ है रफ़ी साहब की.
सूत्र ३ - एक अंतरे का पहला शब्द है - "हिमाला" .
अब बताएं -
संगीतकार बताएं - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी को एक बार फिर बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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