ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 723/2011/163
स्वतन्त्रता दिवस की 64वीं वर्षगाँठ के अवसर पर श्रृंखला ‘वतन के तराने’ कीतीसरी कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत है। कल की कड़ी में हमने आपसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की अप्रतिम वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के प्रेरक जीवन-प्रसंग के कुछ अंश को रेखांकित किया था। आज हम आपसे उसके आगे के प्रसंगों की चर्चा करेंगे।
झाँसी के महाराज गंगाघर राव से विवाह हो जाने के बाद मनु अब झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई बन कर महलों में आ गईं। विवाह के समय मनु की आयु 14 वर्ष और महाराज की आयु लगभग 50 वर्ष थी। वास्तव में इस बेमेल विवाह की जिम्मेदार तत्कालीन परिस्थितियाँ थी, जिन्हें अंग्रेजों ने ही उत्पन्न किया था। देशी राजाओं के राज्यों को हड़पने के लिए अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया था कि जिन राजाओं की अपनी सन्तान नहीं होगी, उस राज्य को राजा के निधन के बाद अंग्रेजों की सत्ता के अधीन कर लिया जाएगा। उस समय झाँसी को विदेशी सत्ता के अधीन होने से बचाने के लिए महाराज गंगाधर राव को अपने एक उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी। इसीलिए इस बेमेल विवाह को हर पक्ष से मौन स्वीकृति मिली।
दूसरी ओर लक्ष्मीबाई में बाल्यावस्था से प्रशासनिक महत्वाकांक्षा, युद्ध-कौशल और देश-प्रेम का जो बीजारोपण हुआ था, उसके पुष्पित-पल्लवित होने के लिए अनुकूल वातावरण मिलने लगा। विवाह के बाद लक्ष्मीबाई राज्य की शासन व्यवस्था में महाराज का सहयोग करने लगी। उन्होने सेना का संगठन नये सिरे से किये और राज्य प्रबन्ध में फैली अव्यवस्था में सुधार की नई योजनाएँ बनाईं। रानी ने सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य यह किया कि महिलाओं की एक अलग सेना बनाई और स्वयं उन्हें प्रशिक्षित भी किया। सेना की इस टुकड़ी का व्यायाम, घुड़सवारी, अश्व-संचालन आदि देख कर महाराज गंगाधर राव चकित रह गए। स्त्री जाति को वह अबला मानते थे, किन्तु इन वीरांगनाओं को देख कर उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा। लक्ष्मीबाई राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ-साथ गृहस्थ जीवन में भी कुशल थी। कुछ समय बाद महारानी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति और राज्य को एक उत्तराधिकारी मिला। पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई, किन्तु अंग्रेजोंके खेमे में शोक छा गया। एक पक्ष की प्रसन्नता और दूसरे पक्ष के शोक का अनुपात बहुत दिनों तक कायम नहीं रह सका। झाँसी के उत्तराधिकारी की असमय मृत्यु से महाराज को राज्य-कार्य से विमुख कर दिया। लक्ष्मीबाई ने शासन-व्यवस्था अपने हाथ में लेकर भारतीय परम्परा के अनुसार अपने ही वंश के एक बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र बनाया और अंग्रेजों को सीधी चुनौती दे दी।
दोस्तों, झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई की यह अमर गाथा आज के अंक में भी पूर्ण नहीं हो सकती। महारानी के त्याग और बलिदान की इस गाथा को हम कल के अंक में जारी रखते हुए थोड़ी चर्चा आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत पर करते हैं। आज हम आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म “काबली खान” से लिया गया ऊर्जा से भरा हुआ एक गीत सुनवाएँगे। मजरूह सुल्तानपुरी के गीत को चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किया है। देशभक्त सैनिकों में उत्साह और ऊर्जा का संचार करने वाले इस गीत को लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। जिस प्रकार रानी झाँसी ने अंग्रेजों को ललकारते हुए अपने देशभक्त सैनिकों का उत्साहवर्द्धन किया था, ऐसा ही कुछ भाव इस गीत में भी है। लीजिए आप भी सुनिए यह गीत-
फिल्म - काबली खान : ‘चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न..’ – गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - कृष्णमोहन जी के शब्दों में कहें तो एक बलिदानी के अन्तिम मनोभावों की अभिव्यक्ति है ये गीत.
सूत्र २ - आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में जन्में थे इसके शायर.
सूत्र ३ - एक अंतरे में हुस्न और इश्क का जिक्र है.
अब बताएं -
संगीतकार कौन है - ३ अंक
शायर बताएं - २ अंक
फिल्म के निर्देशक कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह शरद जी जबरदस्त वापसी की और ३ अंकों के साथ बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
स्वतन्त्रता दिवस की 64वीं वर्षगाँठ के अवसर पर श्रृंखला ‘वतन के तराने’ कीतीसरी कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत है। कल की कड़ी में हमने आपसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की अप्रतिम वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के प्रेरक जीवन-प्रसंग के कुछ अंश को रेखांकित किया था। आज हम आपसे उसके आगे के प्रसंगों की चर्चा करेंगे।
झाँसी के महाराज गंगाघर राव से विवाह हो जाने के बाद मनु अब झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई बन कर महलों में आ गईं। विवाह के समय मनु की आयु 14 वर्ष और महाराज की आयु लगभग 50 वर्ष थी। वास्तव में इस बेमेल विवाह की जिम्मेदार तत्कालीन परिस्थितियाँ थी, जिन्हें अंग्रेजों ने ही उत्पन्न किया था। देशी राजाओं के राज्यों को हड़पने के लिए अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया था कि जिन राजाओं की अपनी सन्तान नहीं होगी, उस राज्य को राजा के निधन के बाद अंग्रेजों की सत्ता के अधीन कर लिया जाएगा। उस समय झाँसी को विदेशी सत्ता के अधीन होने से बचाने के लिए महाराज गंगाधर राव को अपने एक उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी। इसीलिए इस बेमेल विवाह को हर पक्ष से मौन स्वीकृति मिली।
दूसरी ओर लक्ष्मीबाई में बाल्यावस्था से प्रशासनिक महत्वाकांक्षा, युद्ध-कौशल और देश-प्रेम का जो बीजारोपण हुआ था, उसके पुष्पित-पल्लवित होने के लिए अनुकूल वातावरण मिलने लगा। विवाह के बाद लक्ष्मीबाई राज्य की शासन व्यवस्था में महाराज का सहयोग करने लगी। उन्होने सेना का संगठन नये सिरे से किये और राज्य प्रबन्ध में फैली अव्यवस्था में सुधार की नई योजनाएँ बनाईं। रानी ने सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य यह किया कि महिलाओं की एक अलग सेना बनाई और स्वयं उन्हें प्रशिक्षित भी किया। सेना की इस टुकड़ी का व्यायाम, घुड़सवारी, अश्व-संचालन आदि देख कर महाराज गंगाधर राव चकित रह गए। स्त्री जाति को वह अबला मानते थे, किन्तु इन वीरांगनाओं को देख कर उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा। लक्ष्मीबाई राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ-साथ गृहस्थ जीवन में भी कुशल थी। कुछ समय बाद महारानी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति और राज्य को एक उत्तराधिकारी मिला। पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई, किन्तु अंग्रेजोंके खेमे में शोक छा गया। एक पक्ष की प्रसन्नता और दूसरे पक्ष के शोक का अनुपात बहुत दिनों तक कायम नहीं रह सका। झाँसी के उत्तराधिकारी की असमय मृत्यु से महाराज को राज्य-कार्य से विमुख कर दिया। लक्ष्मीबाई ने शासन-व्यवस्था अपने हाथ में लेकर भारतीय परम्परा के अनुसार अपने ही वंश के एक बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र बनाया और अंग्रेजों को सीधी चुनौती दे दी।
दोस्तों, झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई की यह अमर गाथा आज के अंक में भी पूर्ण नहीं हो सकती। महारानी के त्याग और बलिदान की इस गाथा को हम कल के अंक में जारी रखते हुए थोड़ी चर्चा आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत पर करते हैं। आज हम आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म “काबली खान” से लिया गया ऊर्जा से भरा हुआ एक गीत सुनवाएँगे। मजरूह सुल्तानपुरी के गीत को चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किया है। देशभक्त सैनिकों में उत्साह और ऊर्जा का संचार करने वाले इस गीत को लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। जिस प्रकार रानी झाँसी ने अंग्रेजों को ललकारते हुए अपने देशभक्त सैनिकों का उत्साहवर्द्धन किया था, ऐसा ही कुछ भाव इस गीत में भी है। लीजिए आप भी सुनिए यह गीत-
फिल्म - काबली खान : ‘चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न..’ – गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - कृष्णमोहन जी के शब्दों में कहें तो एक बलिदानी के अन्तिम मनोभावों की अभिव्यक्ति है ये गीत.
सूत्र २ - आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में जन्में थे इसके शायर.
सूत्र ३ - एक अंतरे में हुस्न और इश्क का जिक्र है.
अब बताएं -
संगीतकार कौन है - ३ अंक
शायर बताएं - २ अंक
फिल्म के निर्देशक कौन हैं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह शरद जी जबरदस्त वापसी की और ३ अंकों के साथ बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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