ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 720/2011/160
सजीव सारथी के लिखे कविता-संग्रह 'एक पल की उम्र लेकर' पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इसी शीर्षक से लघु शृंखला की आज दसवीं और अंतिम कड़ी है। आज जिस कविता को हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह इस पुस्तक की शीर्षक कविता है 'एक पल की उम्र लेकर'। आइए इस कविता का रसस्वादन करें...
सुबह के पन्नों पर पायी
शाम की ही दास्ताँ
एक पल की उम्र लेकर
जब मिला था कारवाँ
वक्त तो फिर चल दिया
एक नई बहार को
बीता मौसम ढल गया
और सूखे पत्ते झर गए
चलते-चलते मंज़िलों के
रास्ते भी थक गए
तब कहीं वो मोड़ जो
छूटे थे किसी मुकाम पर
आज फिर से खुल गए,
नए क़दमों, नई मंज़िलों के लिए
मुझको था ये भरम
कि है मुझी से सब रोशनाँ
मैं अगर जो बुझ गया तो
फिर कहाँ ये बिजलियाँ
एक नासमझ इतरा रहा था
एक पल की उम्र लेकर।
ज़िंदगी की कितनी बड़ी सच्चाई कही गई है इस कविता में। जीवन क्षण-भंगुर है, फिर भी इस बात से बेख़बर रहते हैं हम, और जैसे एक माया-जाल से घिरे रहते हैं हमेशा। सांसारिक सुख-सम्पत्ति में उलझे रहते हैं, कभी लालच में फँस जाते हैं तो कभी झूठी शान दिखा बैठते हैं। कल किसी नें नहीं देखा पर कल का सपना हर कोई देखता है। यही दुनिया का नियम है। इसी सपने को साकार करने का प्रयास ज़िंदगी को आगे बढ़ाती है। लेकिन साथ ही साथ हमें यह भी याद रखनी चाहिए कि ज़िंदगी दो पल की है, इसलिए हमेशा ऐसा कुछ करना चाहिए जो मानव-कल्याण के लिए हो, जिससे समाज का भला हो। एक पीढ़ी जायेगी, नई पीढ़ी आयेगी, दुनिया चलता रहेगा, पर जो कुछ ख़ास कर जायेगा, वही अमर कहलाएगा। भविष्य तो किसी नें नहीं देखा, इसलिए हमें आज में ही जीना चाहिए और आज का भरपूर फ़ायदा उठाना चाहिए, क्या पता कल हो न हो, कल आये न आये! इसी विचार को गीत के रूप में प्रस्तुत किया था साहिर नें फ़िल्म 'वक़्त' के रवि द्वारा स्वरवद्ध और आशा भोसले द्वारा गाये हुए इस गीत में - "आगे भी जाने ना तू, पीछे भी जाने ना तू, जो भी है बस यही एक पल है"।
इसी के साथ 'एक पल की उम्र लेकर' शृंखला का समापन करते हुए हम सजीव जी बधाई देते हैं इस ख़ूबसूरत काव्य-संकलन के प्रकाशन पर। इस संकलन में प्रकाशित कुल ११० कविताओं में से १० कविताओं को हमनें इस शृंखला में प्रस्तुत किया। इस पुस्तक के बारे में अतिरिक्त जानकारी के लिए या इसे प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें। और इसी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह ख़ास शृंखला समाप्त होती है, अपनी राय व सुझाव टिप्पणी के अलावा oig@hindyugm.com पर आप भेज सकते हैं। अगले सप्ताह एक नई शृंखला के साथ उपस्थित होंगे, और मेरी और आपकी अगली मुलाक़ात होगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेषांक' में। अब आज के लिए अनुमति दीजिए, नमस्कार!
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - एक एतिहासिक फिल्म है जिसमें एक अमर योद्धा की शहादत का वर्णन है.
सूत्र २ - आवाज़ है मन्ना डे की.
सूत्र ३ - गीत में "जन्मभूमि" की महानता का जिक्र है.
अब बताएं -
गीतकार कौन है - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
किसी सशक्त प्रतिद्वंधी की अनुपस्तिथि में अमित जी एक बार फिर विजयी हुए है, बहुत बधाई.
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
सजीव सारथी के लिखे कविता-संग्रह 'एक पल की उम्र लेकर' पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इसी शीर्षक से लघु शृंखला की आज दसवीं और अंतिम कड़ी है। आज जिस कविता को हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह इस पुस्तक की शीर्षक कविता है 'एक पल की उम्र लेकर'। आइए इस कविता का रसस्वादन करें...
सुबह के पन्नों पर पायी
शाम की ही दास्ताँ
एक पल की उम्र लेकर
जब मिला था कारवाँ
वक्त तो फिर चल दिया
एक नई बहार को
बीता मौसम ढल गया
और सूखे पत्ते झर गए
चलते-चलते मंज़िलों के
रास्ते भी थक गए
तब कहीं वो मोड़ जो
छूटे थे किसी मुकाम पर
आज फिर से खुल गए,
नए क़दमों, नई मंज़िलों के लिए
मुझको था ये भरम
कि है मुझी से सब रोशनाँ
मैं अगर जो बुझ गया तो
फिर कहाँ ये बिजलियाँ
एक नासमझ इतरा रहा था
एक पल की उम्र लेकर।
ज़िंदगी की कितनी बड़ी सच्चाई कही गई है इस कविता में। जीवन क्षण-भंगुर है, फिर भी इस बात से बेख़बर रहते हैं हम, और जैसे एक माया-जाल से घिरे रहते हैं हमेशा। सांसारिक सुख-सम्पत्ति में उलझे रहते हैं, कभी लालच में फँस जाते हैं तो कभी झूठी शान दिखा बैठते हैं। कल किसी नें नहीं देखा पर कल का सपना हर कोई देखता है। यही दुनिया का नियम है। इसी सपने को साकार करने का प्रयास ज़िंदगी को आगे बढ़ाती है। लेकिन साथ ही साथ हमें यह भी याद रखनी चाहिए कि ज़िंदगी दो पल की है, इसलिए हमेशा ऐसा कुछ करना चाहिए जो मानव-कल्याण के लिए हो, जिससे समाज का भला हो। एक पीढ़ी जायेगी, नई पीढ़ी आयेगी, दुनिया चलता रहेगा, पर जो कुछ ख़ास कर जायेगा, वही अमर कहलाएगा। भविष्य तो किसी नें नहीं देखा, इसलिए हमें आज में ही जीना चाहिए और आज का भरपूर फ़ायदा उठाना चाहिए, क्या पता कल हो न हो, कल आये न आये! इसी विचार को गीत के रूप में प्रस्तुत किया था साहिर नें फ़िल्म 'वक़्त' के रवि द्वारा स्वरवद्ध और आशा भोसले द्वारा गाये हुए इस गीत में - "आगे भी जाने ना तू, पीछे भी जाने ना तू, जो भी है बस यही एक पल है"।
इसी के साथ 'एक पल की उम्र लेकर' शृंखला का समापन करते हुए हम सजीव जी बधाई देते हैं इस ख़ूबसूरत काव्य-संकलन के प्रकाशन पर। इस संकलन में प्रकाशित कुल ११० कविताओं में से १० कविताओं को हमनें इस शृंखला में प्रस्तुत किया। इस पुस्तक के बारे में अतिरिक्त जानकारी के लिए या इसे प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें। और इसी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह ख़ास शृंखला समाप्त होती है, अपनी राय व सुझाव टिप्पणी के अलावा oig@hindyugm.com पर आप भेज सकते हैं। अगले सप्ताह एक नई शृंखला के साथ उपस्थित होंगे, और मेरी और आपकी अगली मुलाक़ात होगी 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेषांक' में। अब आज के लिए अनुमति दीजिए, नमस्कार!
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - एक एतिहासिक फिल्म है जिसमें एक अमर योद्धा की शहादत का वर्णन है.
सूत्र २ - आवाज़ है मन्ना डे की.
सूत्र ३ - गीत में "जन्मभूमि" की महानता का जिक्र है.
अब बताएं -
गीतकार कौन है - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
किसी सशक्त प्रतिद्वंधी की अनुपस्तिथि में अमित जी एक बार फिर विजयी हुए है, बहुत बधाई.
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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अवध लाल