ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 724/2011/164
‘वतन के तराने’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आपका स्वागत है। इस श्रृंखला की पिछली दो कड़ियों मे आप नारी शक्ति की प्रतीक, झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के त्याग और बलिदान की अमर गाथा के कुछ चुने हुए प्रसंगों के भागीदार हुए हैं। आज के अंक में भी इस गाथा को जारी रखते हुए आगे के कुछ प्रसंग आपके लिए प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही बलिदानियों द्वारा अपने से आगे की पीढ़ी के लिए दिये गए सन्देश से परिपूर्ण गीत भी आपको सुनवाएँगे। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि झाँसी के उत्तराधिकारी की असमय मृत्यु से महाराज गंगाधर राव अवसादग्रस्त होकर राजकीय कार्यों से विमुख हो गए। ऐसी परिस्थिति में लक्ष्मीबाई ने समस्त शासन-सूत्र अपने हाथों में ले लिये।
कुछ समय बाद शोकग्रस्त गंगाधर राव का भी निधन हो गया। यह 1853 का वर्ष था। पूरे देश में अंग्रेजों के अत्याचार से जनता त्रस्त थी। उस समय झाँसी में अंग्रेज़ अधिकारी मेजर मालकम तैनात था। उसने दामोदर राव को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया। धीरे-धीरे संघर्ष की स्थिति बनती जा रही थी। लक्ष्मीबाई तो पहले से ही तैयार थीं। उधर तात्याटोपे राष्ट्रभक्त शक्तियों को एकजुट कर अंग्रेजों के विरुद्ध महासंग्राम की तैयारी के लिए गुप्त रूप से भ्रमण कर रहे थे। अचानक एक दिन तात्या झाँसी आकर लक्ष्मीबाई से भी मिले। अन्ततः 1857 भी आ पहुँचा। देश के अलग-अलग हिस्सों में अन्दर ही अन्दर चिंगारी ज्वाला बनने के लिए धधक रही थी, किन्तु अंग्रेज़ इससे अनभिज्ञ थे। क्रान्ति की ज्वाला धधकने का दिन 31 मई, 1857 का दिन निश्चित था, किन्तु 29 मार्च को ही बंगाल में बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डेय ने समय से पहले क्रान्ति का शंखनाद कर दिया। लक्ष्मीबाई की चौकस दृष्टि क्रान्ति पर जमी हुई थी। अचानक एक दिन रानी को सूचना मिली कि झाँसी में तैनात अंगेजों की 12वीं पैदल सेना और घुड़सवार सेना की टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया है।
सेनाधिकारी डनलप और कुछ अन्य अंग्रेज़ परिवार झाँसी किले में छिप गए और क्रान्तिकारियों ने किले को घेर लिया।लक्ष्मीबाई ने किले में कैद अंग्रेज़ महिलाओं और बच्चों को क्रान्तिकारियों से मुक्त कराने का प्रयास किया किन्तु डनलप की जिद के सामने ऐसा न हो सका। अन्ततः क्रान्तिकारियों ने हमला कर किले पर कब्जा कर लिया और किला रानी को सौंप दिया।
भारतीय सैनिको द्वारा अँग्रेजी सेना से विद्रोह कर देने से गोरों के डगमगाए कदम धीरे-धीरे सहज हो रहे थे। स्थिति कुछ सामान्य होते ही गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग की आँख में अब झाँसी खटकने लगी। उसने जनरल ह्यूरोज को एक बड़ी सेना के साथ झाँसीविजय के लिए भेजा। तेरह दिनों तक रानी ने हयूरोज से भीषण युद्ध किया, किन्तुमुट्ठीभर देशभक्तों की सेना के साथ वह अधिक प्रतिरोध न कर सकी। झाँसी के नागरिकों और सैनिकों को रक्तपात से बचाने के लिए रानी ने युद्धभूमि से हट कर कर कालपी जाने का निर्णय लिया। कालपी पहुँच कर लक्ष्मीबाई ने नानासाहब और तात्या टोपे के साथ विचार-विमर्श किया और कानपुर की ओर बढ़ते ह्यूरोज के रोकने के लिए भीषण युद्ध किया। रानी ने घोड़े की लगाम को अपने मुख से पकड़ा और दोनों हाथों में तलवार लेकर लड़ते हुए अंग्रेजों के तोपखाने पर कब्जा कर लिया। अंग्रेज़ सेनापति ह्यूरोज से रानी का तीसरा और निर्णायक युद्ध ग्वालियर में हुआ। इससे पूर्व रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने ग्वालियर नरेश की अंग्रेज़-भक्ति का सबक सिखाते हुए ग्वालियर और मुरार किले पर नियंत्रण कर लिया। एक विशाल सेना लेकर ह्यूरोज फिर ग्वालियर को रानी से मुक्त कराने पहुँच गया। रानी ने उस विशाल सेना से भीषण युद्ध किया। युद्ध करते-करते रानी एक ऐसे स्थान पर पहुँच गईं जहाँ सामने एक बड़ी खाईं थी और पीछे गोरों की एक बड़ी फौज थी। रानी के घोड़े के लिए उस खाईं को पार करना असम्भव था। रानी क्रुद्ध बाघिन सी अँग्रेजी सेना पर टूट पड़ी। उस दिन उसने अपने प्राणोत्सर्ग करने का निश्चय कर लिया था। रानी चारो ओर से घिर गई थी। अचानक एक सैनिक के वार से बचने के लिए रानी घूमी ही थी कि दूसरी ओर से कई सैनिकों ने एक साथ वार किया। यह वार घातक था। मृत्यु की गोद मे जाने से पहले लक्ष्मीबाई ने वार करने वाले सैनिक को स्वर्ग पहुँचा दिया था। आसमान को चीर कर रानी लक्ष्मीबाई स्वर्ग की ओर कूच कर गईं। उनके मृत शरीर को रघुनाथ अंग्रेजों के व्यूह से निकाल कर निकट के एक साधु के आश्रम ले गए और वहीं उनका अन्तिम संस्कार कर दिया। इस प्रकार भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का त्याग और बलिदान से परिपूर्ण एक अध्याय पूरा हुआ।
बलिदानी लक्ष्मीबाई के अन्तिम क्षणों में सम्भवतः यही भाव प्रस्फुटित हुए होंगे जो भाव आज के इस गीत में व्यक्त है। आज हम आपको 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘हक़ीक़त’ का गीत सुनवा रहे हैं। कैफी आज़मी के गीत को मदनमोहन ने संगीतबद्ध किया है और इसे मुहम्मद रफी ने गाया है। फिल्म ‘हक़ीक़त’ भारत-चीन युद्ध पर बनी थी। देशभक्ति भावों से भरे इस फिल्म के गीत आज भी प्रेरक बने हुए हैं। लीजिए प्रस्तुत है एक बलिदानी के अन्तिम मनोभावों की अभिव्यक्ति करता यह गीत-
फिल्म हक़ीक़त : ‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों....’ – गीतकार : कैफी आज़मी
(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - एक महान क्रांतिकारी के नाम पर था फिल्म का नाम भी.
सूत्र २ - दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित ये कवि अपने राष्ट्रीय प्रेम से भरे गीतों के लिए अधिक जाने गए .
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है - "आज़ाद".
अब बताएं -
इस महान स्वतंत्रता सेनानी का मशहूर नारा क्या था - ३ अंक
संगीतकार कौन हैं - २ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी एक बार फिर सही जवाब के साथ सबसे पहले आये, हिन्दुस्तानी जी और सत्यजीत जी को भी बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
‘वतन के तराने’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आपका स्वागत है। इस श्रृंखला की पिछली दो कड़ियों मे आप नारी शक्ति की प्रतीक, झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के त्याग और बलिदान की अमर गाथा के कुछ चुने हुए प्रसंगों के भागीदार हुए हैं। आज के अंक में भी इस गाथा को जारी रखते हुए आगे के कुछ प्रसंग आपके लिए प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही बलिदानियों द्वारा अपने से आगे की पीढ़ी के लिए दिये गए सन्देश से परिपूर्ण गीत भी आपको सुनवाएँगे। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि झाँसी के उत्तराधिकारी की असमय मृत्यु से महाराज गंगाधर राव अवसादग्रस्त होकर राजकीय कार्यों से विमुख हो गए। ऐसी परिस्थिति में लक्ष्मीबाई ने समस्त शासन-सूत्र अपने हाथों में ले लिये।
कुछ समय बाद शोकग्रस्त गंगाधर राव का भी निधन हो गया। यह 1853 का वर्ष था। पूरे देश में अंग्रेजों के अत्याचार से जनता त्रस्त थी। उस समय झाँसी में अंग्रेज़ अधिकारी मेजर मालकम तैनात था। उसने दामोदर राव को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया। धीरे-धीरे संघर्ष की स्थिति बनती जा रही थी। लक्ष्मीबाई तो पहले से ही तैयार थीं। उधर तात्याटोपे राष्ट्रभक्त शक्तियों को एकजुट कर अंग्रेजों के विरुद्ध महासंग्राम की तैयारी के लिए गुप्त रूप से भ्रमण कर रहे थे। अचानक एक दिन तात्या झाँसी आकर लक्ष्मीबाई से भी मिले। अन्ततः 1857 भी आ पहुँचा। देश के अलग-अलग हिस्सों में अन्दर ही अन्दर चिंगारी ज्वाला बनने के लिए धधक रही थी, किन्तु अंग्रेज़ इससे अनभिज्ञ थे। क्रान्ति की ज्वाला धधकने का दिन 31 मई, 1857 का दिन निश्चित था, किन्तु 29 मार्च को ही बंगाल में बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डेय ने समय से पहले क्रान्ति का शंखनाद कर दिया। लक्ष्मीबाई की चौकस दृष्टि क्रान्ति पर जमी हुई थी। अचानक एक दिन रानी को सूचना मिली कि झाँसी में तैनात अंगेजों की 12वीं पैदल सेना और घुड़सवार सेना की टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया है।
सेनाधिकारी डनलप और कुछ अन्य अंग्रेज़ परिवार झाँसी किले में छिप गए और क्रान्तिकारियों ने किले को घेर लिया।लक्ष्मीबाई ने किले में कैद अंग्रेज़ महिलाओं और बच्चों को क्रान्तिकारियों से मुक्त कराने का प्रयास किया किन्तु डनलप की जिद के सामने ऐसा न हो सका। अन्ततः क्रान्तिकारियों ने हमला कर किले पर कब्जा कर लिया और किला रानी को सौंप दिया।
भारतीय सैनिको द्वारा अँग्रेजी सेना से विद्रोह कर देने से गोरों के डगमगाए कदम धीरे-धीरे सहज हो रहे थे। स्थिति कुछ सामान्य होते ही गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग की आँख में अब झाँसी खटकने लगी। उसने जनरल ह्यूरोज को एक बड़ी सेना के साथ झाँसीविजय के लिए भेजा। तेरह दिनों तक रानी ने हयूरोज से भीषण युद्ध किया, किन्तुमुट्ठीभर देशभक्तों की सेना के साथ वह अधिक प्रतिरोध न कर सकी। झाँसी के नागरिकों और सैनिकों को रक्तपात से बचाने के लिए रानी ने युद्धभूमि से हट कर कर कालपी जाने का निर्णय लिया। कालपी पहुँच कर लक्ष्मीबाई ने नानासाहब और तात्या टोपे के साथ विचार-विमर्श किया और कानपुर की ओर बढ़ते ह्यूरोज के रोकने के लिए भीषण युद्ध किया। रानी ने घोड़े की लगाम को अपने मुख से पकड़ा और दोनों हाथों में तलवार लेकर लड़ते हुए अंग्रेजों के तोपखाने पर कब्जा कर लिया। अंग्रेज़ सेनापति ह्यूरोज से रानी का तीसरा और निर्णायक युद्ध ग्वालियर में हुआ। इससे पूर्व रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने ग्वालियर नरेश की अंग्रेज़-भक्ति का सबक सिखाते हुए ग्वालियर और मुरार किले पर नियंत्रण कर लिया। एक विशाल सेना लेकर ह्यूरोज फिर ग्वालियर को रानी से मुक्त कराने पहुँच गया। रानी ने उस विशाल सेना से भीषण युद्ध किया। युद्ध करते-करते रानी एक ऐसे स्थान पर पहुँच गईं जहाँ सामने एक बड़ी खाईं थी और पीछे गोरों की एक बड़ी फौज थी। रानी के घोड़े के लिए उस खाईं को पार करना असम्भव था। रानी क्रुद्ध बाघिन सी अँग्रेजी सेना पर टूट पड़ी। उस दिन उसने अपने प्राणोत्सर्ग करने का निश्चय कर लिया था। रानी चारो ओर से घिर गई थी। अचानक एक सैनिक के वार से बचने के लिए रानी घूमी ही थी कि दूसरी ओर से कई सैनिकों ने एक साथ वार किया। यह वार घातक था। मृत्यु की गोद मे जाने से पहले लक्ष्मीबाई ने वार करने वाले सैनिक को स्वर्ग पहुँचा दिया था। आसमान को चीर कर रानी लक्ष्मीबाई स्वर्ग की ओर कूच कर गईं। उनके मृत शरीर को रघुनाथ अंग्रेजों के व्यूह से निकाल कर निकट के एक साधु के आश्रम ले गए और वहीं उनका अन्तिम संस्कार कर दिया। इस प्रकार भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का त्याग और बलिदान से परिपूर्ण एक अध्याय पूरा हुआ।
बलिदानी लक्ष्मीबाई के अन्तिम क्षणों में सम्भवतः यही भाव प्रस्फुटित हुए होंगे जो भाव आज के इस गीत में व्यक्त है। आज हम आपको 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘हक़ीक़त’ का गीत सुनवा रहे हैं। कैफी आज़मी के गीत को मदनमोहन ने संगीतबद्ध किया है और इसे मुहम्मद रफी ने गाया है। फिल्म ‘हक़ीक़त’ भारत-चीन युद्ध पर बनी थी। देशभक्ति भावों से भरे इस फिल्म के गीत आज भी प्रेरक बने हुए हैं। लीजिए प्रस्तुत है एक बलिदानी के अन्तिम मनोभावों की अभिव्यक्ति करता यह गीत-
फिल्म हक़ीक़त : ‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों....’ – गीतकार : कैफी आज़मी
(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - एक महान क्रांतिकारी के नाम पर था फिल्म का नाम भी.
सूत्र २ - दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित ये कवि अपने राष्ट्रीय प्रेम से भरे गीतों के लिए अधिक जाने गए .
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है - "आज़ाद".
अब बताएं -
इस महान स्वतंत्रता सेनानी का मशहूर नारा क्या था - ३ अंक
संगीतकार कौन हैं - २ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी एक बार फिर सही जवाब के साथ सबसे पहले आये, हिन्दुस्तानी जी और सत्यजीत जी को भी बधाई
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
मेरे जैसे बहुत से रीडर्स हैं आपके.इससे कोई फर्क नही पड़ता एक...आये ...ना आये. पर...ये 'एक' दिल से सोचता है दिमाग तो इसे इश्वर ने दिया ही नही.
पिछले दिनों तीन महीने में दो बार एंजियोप्लास्टी हुई.
याद किया,करती रही....कि कितने दिनों से मिली नही आप लोगो से .....
तब लगा आप सब कितने अपने बन गए हो.
kyon bolu?nhi bolungi.
kya kru ???
aisich hun main to
kintu.....aapko dekh kr usi tarah lga apne shahar ka koi doosre desh me achanak hme mil jaaye.
thanx sir !