ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 730/2011/170
शृंखला ‘वतन के तराने’ की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, स्वतन्त्रता की 64वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में यह श्रृंखला हमने उन बलिदानियों को समर्पित किया है, जिन्होने देश को विदेशी सत्ता से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इनके बलिदानों के कारण ही 15अगस्त, 1947 को विदेशी शासकों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा। आज़ादी के 64वर्षों में हम किसी विदेशी सत्ता के गुलाम तो नहीं रहे, किन्तु स्वयं द्वारा रची गई अनेक विसंगतियों के गुलाम अवश्य हो गए हैं। इस गुलामी से मुक्त होने के लिए हमे अपने पूर्वजों के त्याग और बलिदान का स्मरण करते हुए राष्ट्र-निर्माण के लिए नए संकल्प लेने पड़ेंगे।
श्रृंखला की इस समापन कड़ी में हम एक ऐसे बलिदानी का परिचय आपके साथ बाँटना चाहेंगे जो महान पराक्रमी, अद्वितीय युद्धविशारद, कुशल वक्ता के साथ-साथ प्रबुद्ध शायर भी था। उस महान बलिदानी का नाम है रामप्रसाद ‘बिस्मिल’। प्रथम विश्वयुद्ध के समय देश को गुलामी से मुक्त कराने का एक प्रयास हुआ था, जिसे ‘मैनपुरी षड्यंत्र काण्ड’ के नाम से जाना गया था। इस अभियान में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की सक्रिय भागीदारी थी, परन्तु पुलिस इन्हें पकड़ न सकी। 1921 में जब असहयोग आन्दोलन आरम्भ हुआ तब ‘बिस्मिल’ अशफाक़उल्ला के साथ आन्दोलन में कूद पड़े। उस दौर में उन्होने युवा पीढ़ी में स्वतन्त्रता के प्रति चेतना जागृत करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। असहयोग आन्दोलन स्थगित हो जाने के बाद ये लोग फिर अपने पुराने पथ पर लौट आए। युवा वर्ग इन्हें श्रद्धा और विश्वास से देखता था। नवयुवकों के सहयोग से ‘बिस्मिल’ क्रान्तिकारी संघ के कार्यों में तत्परता से जुट गए।
रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ एक अच्छे लेखक, कवि और वक्ता भी थे। उन्होने ‘मन की लहर’, ‘बोल्शेविकों की करतूत’ तथा ‘मैनपुरी षड्यंत्र का इतिहास’ नामक पुस्तकें लिखी। ‘अज्ञात’ छद्म नाम से वे ‘प्रभा’ और ‘प्रताप’ आदि पत्रों में उन्होने लेख भी लिखे। कुशल लेखक के साथ-साथ वे एक कुशल वक्ता भी थे। ‘काकोरी काण्ड’ में अंग्रेजों की अदालत में जिस तर्कपूर्ण ढंग से उन्होने अपना पक्ष रखा, उससे पूरी अंग्रेज़-सत्ता हतप्रभ रह गई। इस मुकदमे में ‘बिस्मिल’ को राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के साथ फाँसी की सज़ा दी गई। सज़ा सुन कर अदालत में ही उन्होने ‘भारतमाता की जय’ और ‘भारतीय प्रजातन्त्र की जय’ के नारे लगाए और दो शे’र कहे-
‘हैफ़ हम जिसपे कि तैयार थे मर जाने को,
जीते-जी हमसे छुड़ाया उसी काशाने को।
दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं,
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।
19 दिसम्बर, 1927 के दिन इस वीर सेनानी को गोरखपुर जेल में फाँसी दी गई थी। फाँसी से पहले उन्होने रोज की तरह पूजा की और अपनी माँ के नाम पत्र लिखा। सिपाहियों ने चलने का इशारा किया और मुस्कुराते हुए ‘वन्देमातरम’ का जयघोष करते हुए फाँसी स्थल की ओर चल पड़े। चलते-चलते बुलन्द आवाज़ में ‘बिस्मिल’ ने यह शे’र कहे और ‘आज़ाद भारत की जय’ कहते हुए भारतमाता के चरणों में स्वयं को बलिदान कर दिया।
मालिक! तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी न मैं रहूँ,, न मेरी आरज़ू रहे।
जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे,
तेरा ही ज़िक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे।
दोस्तों भारत की स्वतन्त्रता के लिए यूँ तो असंख्य बलिदानियों ने अपने प्राणो की आहुतियाँ देकर देश को स्वतंत्र कराया था। इस श्रृंखला में हमने केवल दस बलिदानियों की चर्चा आपसे की है। देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले इन क्रान्तिवीरों ने आज़ाद भारत की जैसी परिकल्पना की थी, वैसी ही परिकल्पना आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत में भी की गई है। आज हम आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘मुझे जीने दो’ का वह गीत सुनवाते हैं जिसमे एक समृद्ध भारत की परिकल्पना की गई है। समाज की मुख्य धारा से कटे डाकुओं के पुनर्वास की समस्या पर बनी इस फिल्म के संगीतकार जयदेव हैं और गीतकार हैं साहिर लुधियानवी। आप यह गीत सुनिए और हमें श्रृंखला ‘वतन के तराने’ से आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिये। रविवार की शाम एक नई श्रृंखला में फिर हम-आप मिलेंगे।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
अब बताएं इस सवाल का जवाब
के एल सहगल की प्रशंसक रही इस गायिका का जन्म अमृतसर पंजाब में हुआ था, इनका नाम बताएं ?
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी एक और शृंखला जीतने की बधाई...
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
शृंखला ‘वतन के तराने’ की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, स्वतन्त्रता की 64वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में यह श्रृंखला हमने उन बलिदानियों को समर्पित किया है, जिन्होने देश को विदेशी सत्ता से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इनके बलिदानों के कारण ही 15अगस्त, 1947 को विदेशी शासकों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा। आज़ादी के 64वर्षों में हम किसी विदेशी सत्ता के गुलाम तो नहीं रहे, किन्तु स्वयं द्वारा रची गई अनेक विसंगतियों के गुलाम अवश्य हो गए हैं। इस गुलामी से मुक्त होने के लिए हमे अपने पूर्वजों के त्याग और बलिदान का स्मरण करते हुए राष्ट्र-निर्माण के लिए नए संकल्प लेने पड़ेंगे।
श्रृंखला की इस समापन कड़ी में हम एक ऐसे बलिदानी का परिचय आपके साथ बाँटना चाहेंगे जो महान पराक्रमी, अद्वितीय युद्धविशारद, कुशल वक्ता के साथ-साथ प्रबुद्ध शायर भी था। उस महान बलिदानी का नाम है रामप्रसाद ‘बिस्मिल’। प्रथम विश्वयुद्ध के समय देश को गुलामी से मुक्त कराने का एक प्रयास हुआ था, जिसे ‘मैनपुरी षड्यंत्र काण्ड’ के नाम से जाना गया था। इस अभियान में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की सक्रिय भागीदारी थी, परन्तु पुलिस इन्हें पकड़ न सकी। 1921 में जब असहयोग आन्दोलन आरम्भ हुआ तब ‘बिस्मिल’ अशफाक़उल्ला के साथ आन्दोलन में कूद पड़े। उस दौर में उन्होने युवा पीढ़ी में स्वतन्त्रता के प्रति चेतना जागृत करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। असहयोग आन्दोलन स्थगित हो जाने के बाद ये लोग फिर अपने पुराने पथ पर लौट आए। युवा वर्ग इन्हें श्रद्धा और विश्वास से देखता था। नवयुवकों के सहयोग से ‘बिस्मिल’ क्रान्तिकारी संघ के कार्यों में तत्परता से जुट गए।
रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ एक अच्छे लेखक, कवि और वक्ता भी थे। उन्होने ‘मन की लहर’, ‘बोल्शेविकों की करतूत’ तथा ‘मैनपुरी षड्यंत्र का इतिहास’ नामक पुस्तकें लिखी। ‘अज्ञात’ छद्म नाम से वे ‘प्रभा’ और ‘प्रताप’ आदि पत्रों में उन्होने लेख भी लिखे। कुशल लेखक के साथ-साथ वे एक कुशल वक्ता भी थे। ‘काकोरी काण्ड’ में अंग्रेजों की अदालत में जिस तर्कपूर्ण ढंग से उन्होने अपना पक्ष रखा, उससे पूरी अंग्रेज़-सत्ता हतप्रभ रह गई। इस मुकदमे में ‘बिस्मिल’ को राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के साथ फाँसी की सज़ा दी गई। सज़ा सुन कर अदालत में ही उन्होने ‘भारतमाता की जय’ और ‘भारतीय प्रजातन्त्र की जय’ के नारे लगाए और दो शे’र कहे-
‘हैफ़ हम जिसपे कि तैयार थे मर जाने को,
जीते-जी हमसे छुड़ाया उसी काशाने को।
दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं,
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।
19 दिसम्बर, 1927 के दिन इस वीर सेनानी को गोरखपुर जेल में फाँसी दी गई थी। फाँसी से पहले उन्होने रोज की तरह पूजा की और अपनी माँ के नाम पत्र लिखा। सिपाहियों ने चलने का इशारा किया और मुस्कुराते हुए ‘वन्देमातरम’ का जयघोष करते हुए फाँसी स्थल की ओर चल पड़े। चलते-चलते बुलन्द आवाज़ में ‘बिस्मिल’ ने यह शे’र कहे और ‘आज़ाद भारत की जय’ कहते हुए भारतमाता के चरणों में स्वयं को बलिदान कर दिया।
मालिक! तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी न मैं रहूँ,, न मेरी आरज़ू रहे।
जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे,
तेरा ही ज़िक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे।
दोस्तों भारत की स्वतन्त्रता के लिए यूँ तो असंख्य बलिदानियों ने अपने प्राणो की आहुतियाँ देकर देश को स्वतंत्र कराया था। इस श्रृंखला में हमने केवल दस बलिदानियों की चर्चा आपसे की है। देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर देने वाले इन क्रान्तिवीरों ने आज़ाद भारत की जैसी परिकल्पना की थी, वैसी ही परिकल्पना आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत में भी की गई है। आज हम आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘मुझे जीने दो’ का वह गीत सुनवाते हैं जिसमे एक समृद्ध भारत की परिकल्पना की गई है। समाज की मुख्य धारा से कटे डाकुओं के पुनर्वास की समस्या पर बनी इस फिल्म के संगीतकार जयदेव हैं और गीतकार हैं साहिर लुधियानवी। आप यह गीत सुनिए और हमें श्रृंखला ‘वतन के तराने’ से आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिये। रविवार की शाम एक नई श्रृंखला में फिर हम-आप मिलेंगे।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
अब बताएं इस सवाल का जवाब
के एल सहगल की प्रशंसक रही इस गायिका का जन्म अमृतसर पंजाब में हुआ था, इनका नाम बताएं ?
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
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अमित जी एक और शृंखला जीतने की बधाई...
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
आप क्यों देंगे मेरे ब्लॉग पर आने की?
हा हा हा वो मैं नही जानती .
क्या करू? ऐसिच हूँ मैं तो
.......पर आप सबको प्यार करती हूँ.एकदम अपने-से लगते हैं आप लोग.हमेशा स्वस्थ और खुश रहे अपने परिजनों के साथ. :)
आप तो जब भी टाइप करती हैं (कलम उठाना नहीं कहूँगा :-) )तो सबका मन मोह लेती हैं.
पार्टी के लिए किसी बहाने की जरूरत थोड़े ही ना होती है. वो तो सदा हाज़िर है.