ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 717/2011/157
'ओल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय और सजीव का प्यार भरा नमस्कार! आज इस सुरीली महफ़िल की शमा जलाते हुए पेश कर रहे हैं सजीव सारथी की लिखी कविता 'वो'। लघु शृंखला 'एक पल की उम्र लेकर' की यह है सातवीं कड़ी।
समय की पृष्ठभूमि पर
बदलते रहे चित्र
कुछ चेहरे बने
कुछ बुझ गए
कुछ कदम साथ चले
कुछ खो गए
पर वो
उसकी ख़ुशबू रही साथ सदा
उसका साया साथ चला मेरे
हमेशा
टूटा कभी जब हौंसला
और छूटे सारे सहारे
उन थके से लम्हों में
डूबी-डूबी तन्हाइयों में
वो पास आकर
ज़ख़्मों को सहलाता रहा
उसके कंधों पर रखता हूँ सर
तो बहने लगता है सारा गुबार
आँखों से
वो समेट लेता है मेरे सारे आँसू
अपने दामन में
फिर प्यार से काँधे पर रख कर हाथ
कहता है - अभी हारना नहीं
अभी हारना नहीं
मगर उसकी उन नूर भरी
चमकती
मुस्कुराती
आँखों में
मैं देख लेता हूँ
अपने दर्द का एक
झिलमिलाता-सा कतरा।
इसमें कोई शक़ नहीं कि उस एक इंसान की आँखों में ही अपनी परछाई दिखती है, अपना दर्द बस उसी की आँखों से बहता है। जिस झिलमिलाते कतरे की बात कवि नें उपर कविता की अंतिम पंक्ति में की है, वह कतरा कभी प्यास बुझाती है तो कभी प्यास और बढ़ा देती है। यह सोचकर दिल को सुकून मिलता है कि कोई तो है जो मेरे दर्द को अपना दर्द समझता है, और दूसरी तरफ़ यह सोचकर मन उदास हो जाता है कि मेरे ग़मों की छाया उस पर भी पड़ रही है, उसे परेशान कर रही है। यह कतरा कभी सुकून बन कर तो कभी परेशानी बनकर बार बार आँखों में झलक दिखा जाता है। और कतरे की बात करें तो यह जीवन भी तो टुकड़ों में, कतरों में ही मिलता है न? शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे हमेशा लगातार जीवन में ख़ुशी, सफलता, यश, धन की प्राप्ति होती होगी। समय सदा एक जैसा नहीं रहता। जीवन में हर चीज़ टुकड़ों में मिलती है, और सबको इसी में संतुष्ट भी रहना चाहिए। अगर सबकुछ एक ही पल में, एक साथ मिल जाए फिर ज़िंदगी का मज़ा ही क्या! ज़िंदगी की प्यास हमेशा बनी रहनी चाहिए, तभी इंसान पर ज़िंदगी का नशा चढ़ा रहेगा। फ़िल्म 'इजाज़त' में गुलज़ार साहब नें कतरा कतरा ज़िंदगी की बात कही थी - "कतरा कतरा मिलती है, कतरा कतरा जीने दो, ज़िंदगी है, बहने दो, प्यासी हूँ मैं प्यासी रहने दो"। आशा भोसले का गाया और राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया यह गीत 'सुपरिम्पोज़िशन' का एक अनूठा उदाहरण है। आइए सुना जाए!
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - ये कलात्मक फिल्म एक विचारणीय मुद्दे पर केंद्रित थी, जो आज भी एक समस्या ही है.
सूत्र २ - फिल्म के सगीतकार ने इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय सम्मान जीता था.
सूत्र ३ - इस ग़ज़ल के एक मिसरे में शब्द है -"लौ".
अब बताएं -
शायर बताएं - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
गायिका कौन है - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
लगता है इस बार अमित जी कोई रोक् नहीं पायेगा....क्षिति जी को भी बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय और सजीव का प्यार भरा नमस्कार! आज इस सुरीली महफ़िल की शमा जलाते हुए पेश कर रहे हैं सजीव सारथी की लिखी कविता 'वो'। लघु शृंखला 'एक पल की उम्र लेकर' की यह है सातवीं कड़ी।
समय की पृष्ठभूमि पर
बदलते रहे चित्र
कुछ चेहरे बने
कुछ बुझ गए
कुछ कदम साथ चले
कुछ खो गए
पर वो
उसकी ख़ुशबू रही साथ सदा
उसका साया साथ चला मेरे
हमेशा
टूटा कभी जब हौंसला
और छूटे सारे सहारे
उन थके से लम्हों में
डूबी-डूबी तन्हाइयों में
वो पास आकर
ज़ख़्मों को सहलाता रहा
उसके कंधों पर रखता हूँ सर
तो बहने लगता है सारा गुबार
आँखों से
वो समेट लेता है मेरे सारे आँसू
अपने दामन में
फिर प्यार से काँधे पर रख कर हाथ
कहता है - अभी हारना नहीं
अभी हारना नहीं
मगर उसकी उन नूर भरी
चमकती
मुस्कुराती
आँखों में
मैं देख लेता हूँ
अपने दर्द का एक
झिलमिलाता-सा कतरा।
इसमें कोई शक़ नहीं कि उस एक इंसान की आँखों में ही अपनी परछाई दिखती है, अपना दर्द बस उसी की आँखों से बहता है। जिस झिलमिलाते कतरे की बात कवि नें उपर कविता की अंतिम पंक्ति में की है, वह कतरा कभी प्यास बुझाती है तो कभी प्यास और बढ़ा देती है। यह सोचकर दिल को सुकून मिलता है कि कोई तो है जो मेरे दर्द को अपना दर्द समझता है, और दूसरी तरफ़ यह सोचकर मन उदास हो जाता है कि मेरे ग़मों की छाया उस पर भी पड़ रही है, उसे परेशान कर रही है। यह कतरा कभी सुकून बन कर तो कभी परेशानी बनकर बार बार आँखों में झलक दिखा जाता है। और कतरे की बात करें तो यह जीवन भी तो टुकड़ों में, कतरों में ही मिलता है न? शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे हमेशा लगातार जीवन में ख़ुशी, सफलता, यश, धन की प्राप्ति होती होगी। समय सदा एक जैसा नहीं रहता। जीवन में हर चीज़ टुकड़ों में मिलती है, और सबको इसी में संतुष्ट भी रहना चाहिए। अगर सबकुछ एक ही पल में, एक साथ मिल जाए फिर ज़िंदगी का मज़ा ही क्या! ज़िंदगी की प्यास हमेशा बनी रहनी चाहिए, तभी इंसान पर ज़िंदगी का नशा चढ़ा रहेगा। फ़िल्म 'इजाज़त' में गुलज़ार साहब नें कतरा कतरा ज़िंदगी की बात कही थी - "कतरा कतरा मिलती है, कतरा कतरा जीने दो, ज़िंदगी है, बहने दो, प्यासी हूँ मैं प्यासी रहने दो"। आशा भोसले का गाया और राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया यह गीत 'सुपरिम्पोज़िशन' का एक अनूठा उदाहरण है। आइए सुना जाए!
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-
सूत्र १ - ये कलात्मक फिल्म एक विचारणीय मुद्दे पर केंद्रित थी, जो आज भी एक समस्या ही है.
सूत्र २ - फिल्म के सगीतकार ने इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय सम्मान जीता था.
सूत्र ३ - इस ग़ज़ल के एक मिसरे में शब्द है -"लौ".
अब बताएं -
शायर बताएं - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
गायिका कौन है - २ अंक
सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.
पिछली पहेली का परिणाम -
लगता है इस बार अमित जी कोई रोक् नहीं पायेगा....क्षिति जी को भी बधाई
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
film men smitha patel bhi thi
वैसे एक और बात.संगीतकार के अलावा गायिका ने भी राष्ट्रीय पुरष्कार जीता था.
मैंने यह फिल्म १९८० में देखी थी जो मेरी उस समय की उम्र के हिसाब से बहुत बोर थी :)
उसका एक डायलोग आज भी याद है. 'तिवारी जी सुनिए तो सही' :))