ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 53- गीतकार गोपाल सिंह नेपाली की जन्म-शती पर स्मरण
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी पाठकों-श्रोताओं को कृष्णमोहन मिश्र का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है, आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। आज के इस साप्ताहिक विशेषांक में हम हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार-पत्रकार, फिल्मों के चर्चित गीतकार और उत्तर छायावाद के अनूठे कवि गोपाल सिंह नेपाली का स्मरण करेंगे। इस वर्ष कवि-गीतकार श्री नेपाली का जन्मशती वर्ष है। 11 अगस्त, 1911 को बिहार के चम्पारण जिलान्तर्गत बेतिया नामक स्थान में हुआ था। यह वही क्षेत्र है जहाँ से महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन का प्रारम्भ किया था। यह इस भूमि का ही प्रभाव था कि 1962 में चीन के आक्रमण के दिनों में कवि गोपाल सिंह नेपाली ने सैनिकों की प्रशस्ति में और देशवासियों में जन-चेतना जागृत करने के लिए देशभक्ति से ओतप्रोत अनेक गीतों की रचना की थी। उनकी उस दौर की रचनाओं में सर्वाधिक चर्चित और प्रभावशाली रचना थी- "बर्फों में पिघलने को चला है लाल सितारा, चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा..."। वे एक स्वाभिमानी गीतकार थे, जिसने नैतिकता के विरुद्ध कभी समझौता नहीं किया। उनके व्यक्तित्व के इस पक्ष को कवि लाजपत राय 'विकट' ने अपने काव्यपाठ के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। लीजिए आप भी इस कविता को सुनिए-
काव्यपाठ : कवि लाजपत राय 'विकट' : "मुझको चाह नहीं मैं प्रेमी दीवानों पर गीत लिखूँ...."
श्री नेपाली द्वारा चीन-युद्ध के दौरान रचे गए राष्ट्रवादी गीत उत्कृष्ठ स्तर के थे। उस दौर की उनकी काव्य रचनाएँ- सावन, कल्पना, नीलिमा, नवीन कल्पना आदि अत्यन्त लोकप्रिय हुईं थी। उनकी राष्ट्रीय चेतना जागृत करने वाली उनकी कविताओं और गीतों का संग्रह है- 'हमारी राष्ट्रवाणी' और 'हिमालय ने पुकारा'। गीतकार के साथ-साथ श्री नेपाली कुशल पत्रकार भी थे। उन्होने 'रतलाम टाइम्स', 'चित्रपट', 'सुधा' और 'योगी' नामक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था।
गोपाल सिंह नेपाली का जितना योगदान साहित्य जगत में रहा है, फिल्मों के गीतकार के रूप में भी उनका योगदान अतुलनीय रहा है। 1944 से 1963 (मृत्युपर्यन्त) तक फिल्मों में सफल गीतकार के रूप सक्रिय रहे श्री नेपाली ने फिल्मों में लगभग 400 गीतों की रचना की थी। उन्होने अधिकतर धार्मिक और सामाजिक फिल्मों में गीत लिखे। अपने फिल्मी गीतों में भी उन्होने साहित्यिक स्तर में कभी समझौता नहीं किया। 1946 में सचिनदेव बर्मन ने गोपाल सिंह नेपाली के गीतों को फिल्म 'आठ दिन' के लिए संगीतबद्ध किया था। शब्द और संगीत की दृष्टि से इस फिल्म का एक गीत -"पहले न समझा प्यार था...." बेहद लोकप्रिय हुआ था। इसके अलावा 1953 में प्रदर्शित फिल्म 'नाग पंचमी' का गीत -"अर्थी नहीं नारी का संसार जा रहा, भगवान तेरे घर का श्रृंगार जा रहा...", 1955 की फिल्म 'शिवभक्त' का नृत्यगीत -"बार बार नाची...", 1959 की फिल्म 'नई राह' का गीत -"कहाँ तेरी मंज़िल..." तथा 1961 में प्रदर्शित फिल्म 'जय भवानी' का गीत -"शमा से कोई कह दे..." जैसे गीत गोपाल सिंह नेपाली की बहुआयामी प्रतिभा के उदाहरण हैं। फिल्म के इन गीतों के बीच 1957 में श्री नेपाली रचित एक ऐसा गीत फिल्म 'नरसी भगत' में शामिल हुआ जिसने लोकप्रियता के सारे कीर्तिमानों को तोड़ दिया। संगीतकार रवि द्वारा स्वरबद्ध तथा हेमन्त कुमार, मन्ना डे और सुधा मल्होत्रा के स्वरों में वह गीत है -"दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे..."। (यह गीत आप 'ओल्ड इज गोल्ड' की श्रृंखला --- में सुन चुके हैं।) आइए आज हम श्री नेपाली का एक श्रृंगारपूर्ण गीत सुनते हैं। यह गीत 1955 में प्रदर्शित फिल्म 'नवरात्रि' से लिया गया है। चित्रगुप्त के संगीतबद्ध गीत को मोहम्मद रफी और आशा भोसले ने स्वर दिया है।
गीत -"बहारें आएँगी होठों पे फूल खिलेंगे..." : फिल्म - नवरात्रि : स्वर - मोहम्मद रफी और आशा भोसले
गोपाल सिंह नेपाली निश्चित रूप से उच्चकोटि के कवि और गीतकार थे, किन्तु उनका जीवन सदा अभावों में ही बीता। वह एक स्वाभिमानी रचनाकार थे जिन्होंने कवि-धर्म और नैतिक मूल्यों के विरुद्ध कभी समझौता नहीं किया। श्री नेपाली के निधन के चार दशक बाद ब्रिटिश फिल्म निर्माता डेनी बोयेल ने 'स्लमडॉग मिलियोनार' का निर्माण किया था। आस्कर पुरस्कार प्राप्त इस फिल्म में नेपाली जी के गीत "दर्शन दो घनश्याम..." का इस्तेमाल किया था, किन्तु फिल्म में इस गीत का लिए "सूरदास" को श्रेय दिया गया था। गोपाल सिंह नेपाली के पुत्र नकुल सिंह ने मुम्बई उच्च न्यायालय में फिल्म के निर्माता के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का दावा भी पेश किया था। कैसा दुर्भाग्य है कि एक स्वाभिमानी गीतकार को मृत्यु के बाद भी अन्याय का शिकार होना पड़ा। 'हिंदयुग्म' परिवार की ओर से आज हम गोपाल सिंह नेपाली को उनकी जन्मशती के अवसर पर श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं। इस आलेख को विराम देने से पूर्व हम आपको नेपाली जी का एक ऐसा गीत सुनवाते हैं जिसमे रचनाकार का पूरा जीवन-दर्शन छिपा हुआ है। गीत के बोल हैं -
घूँघट घूँघट नैना नाचे, पनघट पनघट छैया रे,
लहर लहर हर नैया नाचे, नैया में खेवइया रे।
इस गीत को सुप्रसिद्ध लोक-गायिका शारदा सिन्हा ने स्वर देकर बिहार के ही नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र के गौरव गोपाल सिंह नेपाली को स्वरांजलि अर्पित की है। इन्ही स्वरों में अपनी श्रद्धापूर्ण भावनाओं को मिलाते हुए अब हम यहीं विराम लेते हैं। आप यह गीत सुनें।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी पाठकों-श्रोताओं को कृष्णमोहन मिश्र का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है, आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। आज के इस साप्ताहिक विशेषांक में हम हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार-पत्रकार, फिल्मों के चर्चित गीतकार और उत्तर छायावाद के अनूठे कवि गोपाल सिंह नेपाली का स्मरण करेंगे। इस वर्ष कवि-गीतकार श्री नेपाली का जन्मशती वर्ष है। 11 अगस्त, 1911 को बिहार के चम्पारण जिलान्तर्गत बेतिया नामक स्थान में हुआ था। यह वही क्षेत्र है जहाँ से महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन का प्रारम्भ किया था। यह इस भूमि का ही प्रभाव था कि 1962 में चीन के आक्रमण के दिनों में कवि गोपाल सिंह नेपाली ने सैनिकों की प्रशस्ति में और देशवासियों में जन-चेतना जागृत करने के लिए देशभक्ति से ओतप्रोत अनेक गीतों की रचना की थी। उनकी उस दौर की रचनाओं में सर्वाधिक चर्चित और प्रभावशाली रचना थी- "बर्फों में पिघलने को चला है लाल सितारा, चालीस करोड़ों को हिमालय ने पुकारा..."। वे एक स्वाभिमानी गीतकार थे, जिसने नैतिकता के विरुद्ध कभी समझौता नहीं किया। उनके व्यक्तित्व के इस पक्ष को कवि लाजपत राय 'विकट' ने अपने काव्यपाठ के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। लीजिए आप भी इस कविता को सुनिए-
काव्यपाठ : कवि लाजपत राय 'विकट' : "मुझको चाह नहीं मैं प्रेमी दीवानों पर गीत लिखूँ...."
श्री नेपाली द्वारा चीन-युद्ध के दौरान रचे गए राष्ट्रवादी गीत उत्कृष्ठ स्तर के थे। उस दौर की उनकी काव्य रचनाएँ- सावन, कल्पना, नीलिमा, नवीन कल्पना आदि अत्यन्त लोकप्रिय हुईं थी। उनकी राष्ट्रीय चेतना जागृत करने वाली उनकी कविताओं और गीतों का संग्रह है- 'हमारी राष्ट्रवाणी' और 'हिमालय ने पुकारा'। गीतकार के साथ-साथ श्री नेपाली कुशल पत्रकार भी थे। उन्होने 'रतलाम टाइम्स', 'चित्रपट', 'सुधा' और 'योगी' नामक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था।
गोपाल सिंह नेपाली का जितना योगदान साहित्य जगत में रहा है, फिल्मों के गीतकार के रूप में भी उनका योगदान अतुलनीय रहा है। 1944 से 1963 (मृत्युपर्यन्त) तक फिल्मों में सफल गीतकार के रूप सक्रिय रहे श्री नेपाली ने फिल्मों में लगभग 400 गीतों की रचना की थी। उन्होने अधिकतर धार्मिक और सामाजिक फिल्मों में गीत लिखे। अपने फिल्मी गीतों में भी उन्होने साहित्यिक स्तर में कभी समझौता नहीं किया। 1946 में सचिनदेव बर्मन ने गोपाल सिंह नेपाली के गीतों को फिल्म 'आठ दिन' के लिए संगीतबद्ध किया था। शब्द और संगीत की दृष्टि से इस फिल्म का एक गीत -"पहले न समझा प्यार था...." बेहद लोकप्रिय हुआ था। इसके अलावा 1953 में प्रदर्शित फिल्म 'नाग पंचमी' का गीत -"अर्थी नहीं नारी का संसार जा रहा, भगवान तेरे घर का श्रृंगार जा रहा...", 1955 की फिल्म 'शिवभक्त' का नृत्यगीत -"बार बार नाची...", 1959 की फिल्म 'नई राह' का गीत -"कहाँ तेरी मंज़िल..." तथा 1961 में प्रदर्शित फिल्म 'जय भवानी' का गीत -"शमा से कोई कह दे..." जैसे गीत गोपाल सिंह नेपाली की बहुआयामी प्रतिभा के उदाहरण हैं। फिल्म के इन गीतों के बीच 1957 में श्री नेपाली रचित एक ऐसा गीत फिल्म 'नरसी भगत' में शामिल हुआ जिसने लोकप्रियता के सारे कीर्तिमानों को तोड़ दिया। संगीतकार रवि द्वारा स्वरबद्ध तथा हेमन्त कुमार, मन्ना डे और सुधा मल्होत्रा के स्वरों में वह गीत है -"दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे..."। (यह गीत आप 'ओल्ड इज गोल्ड' की श्रृंखला --- में सुन चुके हैं।) आइए आज हम श्री नेपाली का एक श्रृंगारपूर्ण गीत सुनते हैं। यह गीत 1955 में प्रदर्शित फिल्म 'नवरात्रि' से लिया गया है। चित्रगुप्त के संगीतबद्ध गीत को मोहम्मद रफी और आशा भोसले ने स्वर दिया है।
गीत -"बहारें आएँगी होठों पे फूल खिलेंगे..." : फिल्म - नवरात्रि : स्वर - मोहम्मद रफी और आशा भोसले
गोपाल सिंह नेपाली निश्चित रूप से उच्चकोटि के कवि और गीतकार थे, किन्तु उनका जीवन सदा अभावों में ही बीता। वह एक स्वाभिमानी रचनाकार थे जिन्होंने कवि-धर्म और नैतिक मूल्यों के विरुद्ध कभी समझौता नहीं किया। श्री नेपाली के निधन के चार दशक बाद ब्रिटिश फिल्म निर्माता डेनी बोयेल ने 'स्लमडॉग मिलियोनार' का निर्माण किया था। आस्कर पुरस्कार प्राप्त इस फिल्म में नेपाली जी के गीत "दर्शन दो घनश्याम..." का इस्तेमाल किया था, किन्तु फिल्म में इस गीत का लिए "सूरदास" को श्रेय दिया गया था। गोपाल सिंह नेपाली के पुत्र नकुल सिंह ने मुम्बई उच्च न्यायालय में फिल्म के निर्माता के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का दावा भी पेश किया था। कैसा दुर्भाग्य है कि एक स्वाभिमानी गीतकार को मृत्यु के बाद भी अन्याय का शिकार होना पड़ा। 'हिंदयुग्म' परिवार की ओर से आज हम गोपाल सिंह नेपाली को उनकी जन्मशती के अवसर पर श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं। इस आलेख को विराम देने से पूर्व हम आपको नेपाली जी का एक ऐसा गीत सुनवाते हैं जिसमे रचनाकार का पूरा जीवन-दर्शन छिपा हुआ है। गीत के बोल हैं -
घूँघट घूँघट नैना नाचे, पनघट पनघट छैया रे,
लहर लहर हर नैया नाचे, नैया में खेवइया रे।
इस गीत को सुप्रसिद्ध लोक-गायिका शारदा सिन्हा ने स्वर देकर बिहार के ही नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र के गौरव गोपाल सिंह नेपाली को स्वरांजलि अर्पित की है। इन्ही स्वरों में अपनी श्रद्धापूर्ण भावनाओं को मिलाते हुए अब हम यहीं विराम लेते हैं। आप यह गीत सुनें।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
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इस आलेख की चौथी-पाँचवीं पंक्ति में भूलवश श्री गोपाल सिंह नेपाली की जन्मतिथि 11agast, 1913 लिखी गई है. वास्तव में उनकी जन्मतिथि 11अगस्त, 1911 है. अपनी इस भूल के लिए मैं अपने पाठको से क्षमाप्रार्थी हूँ.
कृष्णमोहन मिश्र