सत्तर के दशक के बारे में कहते हैं, लोग चार लोगों के दीवाने थे : सुनील गावस्कर,अमिताभ बच्चन, किशोर कुमार और आर डी बर्मन | गावस्कर का खेल के मैदान में जाना, अमिताभ का परदे पर आना और किशोर कुमार का गाना सबके लिए उतना ही मायने रखता था जितना आर डी का संगीत | भारत में लोग संगीत के साथ जीते हैं,आखिरी दम तक संगीत किसी न किसी तरह से हमसे जुड़ा होता है और इस लिहाज से आर डी बर्मन ने हमारे जीवन को कभी न कभी, किसी न किसी तरह छुआ जरुर है | यह अपने आप में आर डी के संगीत की सादगी और श्रेष्ठता दोनों का परिचायक है |
किशोर, आर डी और अमिताभ ने क्या खूब रंग जमाया था फ़िल्म "सत्ते पे सत्ता" के सदाबहार गाने में, सुनिए और याद कीजिये -
उनके गाने अब तक कितनी बार रिमिक्स,'इंस्पिरेशन' आदि आदि के नाम पर बने हैं, इसके आंकड़े भी मिलना मुश्किल है |आख़िर उनका संगीत पुराना होकर भी उतना ही नया कैसे लगता है, इस बात पर भी गौर करना जरुरी है |आर डी ने कभी भी प्रयोग करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई |वह हमेशा नौजवानों को दिमाग में रख कर धुनें तैयार करते थे, और एक एक धुन पर काफ़ी कड़ी मेहनत करते थे| जब भी उचित लगा, उन्होंने शास्त्रीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत को मिश्रित करने में संकोच नहीं किया | मसलन,'कतरा कतरा मिलती है' में ट्विन ट्रैक, 'चुरा लिया है तुमने' में ग्लास की आवाज (जिसका जिक्र पहले भी कर चुका हूँ ), किताब के गाने 'मास्टर जी की चिठ्ठी' में स्कूल की बेंच को ला कर उसको वाद्य यंत्र के रूप में इस्तेमाल करना, बांस की सीटी में गुब्बारा बाँध कर उसकी आवाज (अब्दुल्ला ), खूशबू के गाने 'ओ मांझी रे' में बोतलों में पानी भरकर उनकी आवाज, जैसे अद्भुत और सफल प्रयोग पंचम के संगीत को नई ऊंचाई देते थे |आर डी ने भारतीय संगीत में इलेक्ट्रानिक उपकरणों का इस्तेमाल बहुत अच्छी तरह से किया | धुन तैयार करते समय हमेशा पंचम के दिमाग में हीरो की शक्ल होती थी, कलाकारों पर उनकी धुनें इतनी फिट कैसे बैठती थीं इसका शायद यह भी कारण था | कभी कभी कार में ही धुनें तैयार कर लेते, और अगर किसी धुन के बारे में विशेष रूप से उत्साहित होते,तो खुशी से चीख पड़ते| इस से जाहिर होता है कि इन जादुई धुनों के पीछे कड़ी मेहनत और श्रेष्ठ रचनात्मकता का कितना बड़ा हाथ था |
आगे बढ़ने से पहले, बचपन की मस्ती में शरारत के रंग भरता फ़िल्म "किताब" का ये नटखट सा गीत सुनते चलें-
पंचम दा के गानों में संगीत के साथ साथ एक और खास बात थी, वह थी गीत के बोलों में छुपे भावों को सफलता से प्रकट करना | किसी भी संगीतकार के लिए यह एक चुनौती होती है कि वह कहानी और गीतकार दोनों के भाव सुनने वाले के जेहन में उत्पन्न कर दे | अगर आप पंचम दा के गानों को महसूस कर पाते हैं, तो स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि वे कितने सफल थे | पंचम ने कई गीतकारों के साथ काम किया लेकिन गुलज़ार, गुलशन आदि से काफ़ी करीब थे | गुलजार चुटकी लेते हुए कहते हैं : "मेरे गीतों से उसे काफ़ी परेशानी हुआ करती थी,एक तो बेचारे कि हिन्दी कमजोर थी,और ऊपर से मेरी पोएट्री | जब मैंने उसे 'मेरा कुछ सामान' गाना लिखकर दिया तो उसने कागज़ फेंक दिया, और कहा 'अगले दिन आप मुझे टाईम्स ऑफ़ इंडिया का मुखपृष्ठ देकर कहोगे कि इसपर धुन बनाओ'!"
पर जब वो गीत बना तो क्या बना ये तो सभी जानते हैं, इस गीत के लिए आशा और गुलज़ार दोनों को राष्ट्रीय सम्मान मिला, पर हक़दार तो पंचम दा भी थे, नही मानते तो गीत सुनिए, मान जायेंगें -
पंचम बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उन्होंने एकाध बार ऐक्टिंग में भी हाथ आजमाए | महमूद की फ़िल्म "भूत बंगला" में उन्होंने पहली बार अदाकारी की और बाद में फ़िल्म "प्यार का मौसम" में पोपट लाल के चरित्र में भी सबको लुभाया | कई गानों में उन्होंने ख़ुद माउथ ओरगन बजाया,और एकाध बार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल (याद कीजिये दोस्ती के गीत) और कल्यानजी -आनंदजी के लिए भी बजाया | और गायक के रूप में तो हम उनको उतना ही प्यार करते हैं जितना कि संगीतकार के रूप में |फ़िल्म शोले का गीत 'महबूबा महबूबा' हो या फ़िर 'पिया तू अब तो आजा';पंचम दा के सारे गाये गीत अनूठे हैं |मजरूह सुलतानपुरी के अनुसार "आर डी बर्मन एक युग था, अपने आप में एक स्कूल था,जो उसने ख़ुद शुरू किया,और उसने इसे जिस स्तर पर रखा, वह स्तर अपने साथ ही लेकर गया, और वह स्तर मेरे ख्याल में दुबारा आना आसान नहीं है" |
पंचम की आवाज़ में सुनिए और डूब जाईये -"धन्नो की आँखों में..."-
पंचम पर और बातें, अगली बार....
प्रस्तुति - अलोक शंकर
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